संविधान में जिक्र नहीं, फिर भी डिप्टी CM बनाने की क्यों लगी होड़?
14 राज्य में 26 उप-मुख्यमंत्री, यह देश में पहली बार… संविधान में जिक्र नहीं, फिर भी डिप्टी CM बनाने की क्यों लगी होड़?
भारत के 14 राज्यों में 26 उप-मुख्यमंत्री हैं. सबसे ज्यादा संख्या आंध्र प्रदेश में है. यहां पांच नेताओं को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया है.
बिहार में दो दिन पहले ही महागठबंधन की सरकार गिरी और एनडीए गठबंधन वाली नई सरकार बनी. भारतीय जनता पार्टी के दो नेता सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इस तरह अब भारत के 14 राज्यों में कुल 26 उप-मुख्यमंत्री हैं. सबसे ज्यादा संख्या आंध्र प्रदेश में है. यहां पांच नेताओं को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया है. किसी राज्य में 2-2 उप मुख्यमंत्री हैं तो कहीं 1 डिप्टी सीएम.
विचित्र बात ये है कि संविधान में कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि किसी भी राज्य में उपमुख्यमंत्री या उप प्रधानमंत्री का पद होना अनिवार्य है. इतना ही नहीं संविधान में तो इन पदों के बारे में ही कुछ नहीं कहा गया है.
ऐसे में सवाल उठता है कि जब संविधान में इस पद का कोई जिक्र नहीं है तो सभी राज्यों में डिप्टी सीएम बनाने की होड़ क्यों लगी है?
देश के संविधान में डिप्टी सीएम पद का जिक्र तक नहीं
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता ने बताया, देश के संविधान में राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बारे में अनुच्छेद 164 में प्रावधान है. लेकिन उपमुख्यमंत्री के बारे में कुछ नहीं बताया गया है. यहां तक की इस पद का भी कहीं जिक्र नहीं है.
उन्होंने आगे बताया कि किसी राज्य के उप मुख्यमंत्री सिर्फ सीएम की तरफ से दिए गए विभाग या मंत्रालय को ही देख सकते हैं. इतना ही नहीं उप मुख्यमंत्री की सैलरी, अन्य भत्ते और सुविधाएं कैबिनेट मंत्री के बराबर ही होती हैं.
उन्होंने बताया कि उप मुख्यमंत्री पद की शुरुआत उप-प्रधानमंत्री पद बनने के बाद हुई है.
अब समझिए क्यों बनाए जाते हैं उप मुख्यमंत्री, 3 प्वाइंट में
दरअसल किसी भी राज्य में उप मुख्यमंत्री के जिम्मे कोई ऐसा काम नहीं होता जो सिर्फ उन्हें ही करना है. राज्य सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री के हाथों में होता है. उपमुख्यमंत्री का पद सिर्फ एक प्रतीकात्मक पद है, जो इसलिए बनाया गया है ताकि सबको पता चल सके कि इस पद के नेता उस राज्य में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं.
इसके अलावा कई बार जातीय समीकरणों को साधने के लिए भी एक या दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं. कई राज्यों में तो केवल किसी नेता को संतुष्ट करने के लिए उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दे दिया जाता है.
आसान भाषा में समझे तो किसी भी राज्य के उपमुख्यमंत्री का पद उस पार्टी के लिए तो अहमियत रख सकता है, लेकिन इस पद का किसी राज्य में होने या नहीं होने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
1. पार्टी के भीतर के मतभेद को खत्म करने के लिए भी इस पद का इस्तेमाल
कई बार पार्टियां अपने भीतर चल रहे मतभेद को कम करने या शांत करने के लिए भी इस पद का इस्तेमाल करती हैं. उदाहरण के तौर पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव को ही देख लीजिए. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत हुई थी. लेकिन इसके बाद राहुल गांधी के सामने दो वरिष्ठ नेताओं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच संतुलन साधने की सबसे बड़ी चुनौती थी.
दोनों ही राज्य के पावरफुल नेता हैं और इन दोनों ने सीएम पद पर दावा ठोका दिया था. इतना ही नहीं सीएम पद के लिए दोनों में काफी समय से पार्टी के भीतर प्रतिद्वंद्विता भी चली आ रही थी.
ऐसे में कांग्रेस ने दोनों को खुश करने के लिए एक फॉर्मूला निकाला. जिसके तहत डीके शिवकुमार को कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया और सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री का.
ठीक इसी तरह कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में यही फॉर्मूला अपनाते हुए दो वरिष्ठ नेताओं सुखविंदर सिंह सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री में से एक को मुख्यमंत्री और दूसरे को उप मुख्यमंत्री बना दिया.
2. जातिगत संतुलन साधने के लिए पद का इस्तेमाल
हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे. इसमें बीजेपी की जीत हुई थी. तीनों ही राज्यों में दो-दो उप-मुख्यमंत्री बनाए गए. मध्य प्रदेश में इन दो उपमुख्यमंत्रियों में एक ब्राह्मण जाति के हैं तो दूसरे एससी समुदाय से. जबकि खुद मुख्यमंत्री ओबीसी समुदाय से हैं.
ठीक इसी तरह राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने सीएम का पद ब्राह्मण को दिया तो उप मुख्यमंत्री का पद एक राजपूत और एक दलित समुदाय के नेता को दिया गया.
छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री बनाया और ओबीसी-ब्राह्मण समुदाय से एक-एक नेता को उप मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया.
इसी फॉर्मूले के तहत तेलंगाना में रेड्डी समुदाय से मुख्यमंत्री बनाया और उप मुख्यमंत्री का पद एससी समुदाय को दिया गया.
3. गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम का पद बेहद जरूरी
किसी भी राज्य में जब गठबंधन की सरकार सत्ता में आती है तो ये पद उस वक्त काफी अहम हो जाता है. आसान भाषा में समझे तो जब दो अलग-अलग पार्टियां आकर एक सरकार का निर्माण करती है तो किसी एक पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है और दूसरी पार्टी के नेता को डिप्टी सीएम की कुर्सी दे दी जाती है.
इससे ये समझने में आसानी हो जाती है कि दोनों पार्टियों के सबसे प्रमुख नेता कौन हैं और सरकार में दोनों पार्टियां बराबर की साझीदार हैं.
उदाहरण के लिए बिहार ही ले लीजिए. यहां जेडीयू और आरजेडी साथ आईं थी तो तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे. ठीक इसी तरह 28 जनवरी 2024 में जब एक बार फिर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई तो वो खुद सीएम पद पर रहे और बीजेपी के नेताओं को उपमुख्यमंत्री का पद सौंपा गया.
बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में ऐसा ही फॉर्मूला अपनाया गया. फिलहाल यहां शिवसेना से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री के पद पर हैं. बीजेपी और एनसीपी के गुट के एक-एक नेता डिप्टी सीएम हैं.
कितना पावरफुल है ये पद
वैसे तो राज्य सरकार में उप मुख्यमंत्री का पावर कैबिनेट मंत्री जितना ही होता है लेकिन किसी भी राज्य का डिप्टी सीएम होने का मतलब है कि वह व्यक्ति मुख्यमंत्री के बाद दूसरे नंबर पर है.
एक राज्य में कितने डिप्टी सीएम हो सकते हैं
संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार हर राज्य का एक मुख्यमंत्री होगा. संविधान में डिप्टी सीएम के पद का कोई जिक्र नहीं है. ऐसे में पार्टी इस पद पर जितने चाहें उतने नेताओं को रख सकती है.