डियर स्टूडेंट्स, खुद को गलत मानदंडों पर मत तौलिए..

डियर स्टूडेंट्स, खुद को गलत मानदंडों पर मत तौलिए…

1990 के दशक में जब मुझे अपनी आईसीएसई परीक्षा में शामिल होना था, तब मेरी कॉलोनी में एक आंटी ने गर्व से सबके सामने घोषणा की कि उनका बेटा इस परीक्षा की तैयारी के लिए ‘इरेज़र’ का उपयोग नहीं कर रहा है। उस समय यह माना जाता था कि ‘स्मार्ट’ छात्रों को एक भी गलती करने की अनुमति नहीं होती है, इसलिए उन्हें कभी भी इरेज़र की जरूरत ही महसूस नहीं होनी चाहिए। उन्हें परफेक्ट माना जाता था। और इसी तरह से जाने-अनजाने में इरेज़र विफलता का प्रतीक बन गया था।

चूंकि मैं एक अच्छी स्टूडेंट थी, इसलिए आंटी ने मुझसे भी कहा कि अगर मैं परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करना चाहता हूं तो इरेज़र का उपयोग करना छोड़ दूं। लेकिन मैंने पूर्णता के ऐसे असम्भव मानदंडों पर खरा उतरने से इनकार कर दिया।

मैंने गलतियां कीं, बहुत गलतियां कीं और इरेज़र का भी खूब इस्तेमाल किया। वास्तव में गलतियां करने से बचना सीखने के बजाय मैंने गलतियां करके उनसे बचना सीखा। और जब परिणाम आए, तो मैंने 90% अंक प्राप्त किए, जबकि उन आंटी के बेटे को 83-84% या कुछ ऐसे ही अंक मिले।

इससे उन्हें बहुत निराशा हुई। और बेटा भी अवसाद में चला गया, क्योंकि उसके दिमाग में यह आ गया था कि वह ‘असफल’ हो गया था। लेकिन गनीमत है कि लॉन्ग-टर्म में इनमें से किसी से भी फर्क नहीं पड़ा। वह लड़का आगे चलकर आईआईटी-आईआईएम-आई-बैंक गया और उसने उन सभी बातों पर ध्यान दिया, जो उसकी मां उससे चाहती थी। मैं लेखिका बन गई।

ईमानदारी से कहूं तो आज इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे 50% अंक मिले थे या 90%, लेकिन अगर मैंने उस इरेज़र को छोड़ दिया होता यानी अगर मैंने खुद पर सफल होने का दबाव डाला होता तो मैं वह नहीं होती, जो आज हूं।

यही कारण है कि जब मैं देश भर में युवा छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें पढ़ती हूं तो मेरा दिल टूट जाता है। शायद आप भी इससे इतने ही मायूस होते होंगे। मैं उन बच्चों से विनती करना चाहती हूं कि कृपया रुकें! खुद को विजेताओं और पराजितों के संकीर्ण मानदंडों से परिभाषित करना बंद करें।

परफेक्ट होने की कोशिश करना छोड़ दें। दूसरों को खुश करने के लिए खुद को न खपाएं, फिर चाहे वो आपके माता-पिता हों, शिक्षक हों, मित्र हों, रिश्तेदार हों, या पड़ोसी हों। आपका अस्तित्व परीक्षा में पाए जाने वाले अंकों से परिभाषित नहीं हो सकता है। आपसे होने वाली गलतियां ही आपका जीवन नहीं हैं।

मैं इन युवा छात्रों के माता-पिता से भी कहना चाहती हूं कि कृपया अपने बच्चे पर टॉप मार्क्स लाने, अच्छी नौकरी पाने और ‘बेहतरीन जीवन’ के लिए ऊंचा वेतन पाने के लिए दबाव डालना बंद करें। अच्छे जीवन का मतलब क्या है, इसके मायने बदल चुके हैं।

सफलता और असफलता के पैमाने भी अब पहले जैसे नहीं हैं। वैसे भी, पैसा खुशी को परिभाषित नहीं करता, जीवंत और संतुष्ट रहना करता है। जरा सोचें- क्या आप दुनिया में किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं- यहां तक कि सबसे सफल, सबसे बुद्धिमान, सबसे शक्तिशाली, या सबसे अमीर व्यक्ति भी- जिसने कभी गलतियां नहीं की हों? एक भी नहीं? नहीं, ना? पता है क्यों? क्योंकि गलतियां जैसी कोई चीज होती ही नहीं हैं, केवल अनुभव होते हैं, तजुर्बे होते हैं।

नाकामियां नहीं होतीं, केवल कोशिशें होती हैं। अफसोस और निराशाएं नहीं होतीं, केवल तरक्की होती हैं। इरेज़र को पकड़े रखने से हमें जो समझ मिलती है, वही हमें वहां तक पहुंचाने का इकलौता रास्ता है, जहां हमें वास्तव में होना चाहिए।

गलतियां करें, उनसे सीखें, और समाज के द्वारा निर्धारित अच्छे-बुरे की परिभाषाओं के बावजूद आगे बढ़ें। इरेज़र बुद्धि का प्रतीक है। उसे गर्व से इस्तेमाल करें। लिखें, मिटाएं, और फिर से लिखें। अपना सर्वश्रेष्ठ दें, और शेष को छोड़ दें!

जीवन में गलतियां जैसी कोई चीज होती ही नहीं हैं, केवल अनुभव होते हैं, तजुर्बे होते हैं। नाकामियां नहीं होतीं, केवल कोशिशें होती हैं। अफसोस और निराशाएं नहीं होतीं, केवल तरक्की होती हैं। गलतियां करें, और उनसे सीखें।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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