भारत रत्न सम्मान के पीछे की क्या है राजनीति ?

भारत रत्न सम्मान के पीछे की क्या है राजनीति, लोकसभा चुनाव पर इसका कैसा होगा असर?
इस साल रिकॉर्ड पांच हस्तियों को यह भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा हो चुकी है। जिसके बाद से इसके राजनीतीक मायने भी निकाले जा रहे हैं। आज इसी मुद्दे पर खबरों के खिलाड़ी में चर्चा की गई। पढ़ें उस चर्चा के कुछ अंश…

बीते एक हफ्ते में इस देश की राजनीति में बहुत कुछ हुआ। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा रही देश के सर्वोच्च सम्मान की। शुक्रवार को तीन हस्तियों को भारत रत्न देने का एलान हुआ। इस साल रिकॉर्ड पांच हस्तियों को यह सम्मान देने की घोषणा हो चुकी है। इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। इन मायनों को समझने की कोशिश हुई इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, अवधेश कुमार, समीर चौगांवकर और विनोद अग्निहोत्री मौजूद रहे। 

भारत रत्न की घोषणाओं के पीछे क्या पहलू हैं?
अग्निहोत्री:
इस सम्मान को दिए जाने के दो पहलू हैं। पहला यह कि क्या यह लोग इस सम्मान के योग्य थे? मेरी राय में जिन पांच लोगों को यह सम्मान मिला है, वे सभी इस सम्मान के योग्य थे। चाहे कर्पूरी ठाकुर हों, लालकृष्ण आडवाणी हों, पीवी नरसिम्हा राव हों, चौधरी चरण सिंह हों या एमएस स्वामीनाथन हों। राजनीतिक व्यक्ति कोई फैसला करता है तो उसके पीछे राजनीति नहीं हो, यह मैं नहीं मान सकता हूं। कोई कुछ और कहे तो कहे। मेरा मानना है कि राजनीतिक व्यक्ति राजनीति नहीं करेगा तो कौन करेगा? मेरा मानना है कि राजनीति होनी भी चाहिए। लोकतंत्र में राजनीति नहीं होगी तो क्या तानाशाही शासन में होगी? हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन पूरी तरह से इस सम्मान के योग्य थे। मुझे लगता है कि श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन भी इस सम्मान के हकदार हैं, उन्हें भी जल्द मिल जाए तो अच्छा होगा। कुल मिलाकर मैं मानता हूं जिन पांच लोगों को यह सम्मान दिया गया है, सभी इसके योग्य थे। 

समीर चौगांवकर: भारत रत्न की अगर बात की जा रही है तो मुझे लगता है कि वीर सावरकर को दे दिया जाना चाहिए था। संघ भी चाहता है कि सावरकर को भारत रत्न दिया जाए, लेकिन यह कब दिया जाएगा, यह देखना होगा। मुझे लगता है कि दलित वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांशीराम को भी दिया जा सकता है। हो सकता है कि चुनाव के पहले इन लोगों को भी यह सम्मान दे दिया जाए। या फिर नई सरकार के गठन के बाद यह फैसला हो। जहां तक राजनीति की बात है तो कांग्रेस के समय भी कई लोगों को सम्मान दिए गए, जिसमें राजनीति का पुट था। जैसे 2014 के चुनाव के पहले सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान दिया गया था। 
जहां तक उद्धव ठाकरे के एनडीए के साथ जाने की बात है तो मुझे नहीं लगता कि फिलहाल उनके एनडीए में आने की कोई संभावना है। लोकसभा चुनाव के चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी शर्तों पर समझौता कर सकती है। अगर उद्धव ठाकरे को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलती हैं तो शायद दोनों फिर से साथ आ सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव तक ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है। 

 कुमार: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के समय के लिए बहुत कुछ बचाकर रखते हैं। जब तक चुनाव की घोषणा नहीं होती, तब तक वो कोई न कोई कदम जरूर उठाते रहते हैं। नरेंद्र मोदी की यह रणनीति तब से है, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। भारत रत्न हमारे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में रत्नों की परंपरा रही है। आजादी के बाद भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया गया। अभी तक जितने भी भारत रत्न मिले हैं, उसमें प्रधानमंत्री की भूमिका रही है। मैं यह मानता हूं कि स्वतंत्र भारत के बाद अगर किसी एक व्यक्ति ने भारत को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया तो वो नरसिम्हा राव थे। जिस वक्त राव प्रधानमंत्री बने, उस वक्त देश की राजनीति एक अस्थिरता के दौर में थी, उसमें एक साथ इतने काम करना असाधारण था। नरसिम्हा राव ने आरएसएस पर बैन लगाया था। भाजपा की चार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। इसके बावजूद उन्हें यह सम्मान दिया गया है तो यह बताता है कि मौजूदा सरकार घोर विरोधी का भी सम्मान करती है। 

हमारे देश के महापुरुषों की एक लंबी शृंखला है। क्या उन्हें भारत रत्न नहीं मिलना चाहिए। इसमें बाल गंगाधर तिलक, विवेकानंद, स्वामी दयानंद, विनायक दामोदर सावरकर, माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, डॉ. केशवराव बलीराम हेडगेवार से लेकर कई ऋषि-महर्षि शामिल हैं। यह अपने आप में एक अलग बहस का विषय है।

सिंह: दुनिया में ऐसा कौन होगा, जो ऐसा काम करेगा, जिससे उसका नुकसान हो। यही बात राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर लागू होती है। राजनीति में जो है, वह राजनीति नहीं करेगा तो क्या करेगा? इसलिए राजनीति होगी और फायदे के लिए होगी। राजनीतिक विमर्श देखिए, जून में इस बात से विमर्श शुरू हुआ था कि किसी भी कीमत पर मोदी को हटाना है। अब वो लाइन ही इस बहस से खत्म हो गई है। जो लोग कल विकल्प बन रहे थे, उन्होंने अब यह कहना शुरू कर दिया है मोदी को कितने पर रोकना है। जो राजनीति में है, सत्ता तक पहुंचना उसका लक्ष्य होता है। जमीन से जुड़ा जो व्यक्ति है, उसे अहसास है कि आने वाले वक्त में क्या होने जा रहा है। डूबती नाव में कोई सफर नहीं करना चाहता है। 

चौधरी चरण सिंह ने नेहरू का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि सदियों के बाद इस देश का आदमी आजाद हुआ है। उसके पास जमीन का टुकड़ा है, उसे लग रहा है कि वह मेहनत करेगा। उसे अहसास हो रहा है कि वह उसका मालिक है। उसे फिर से गुलाम नहीं बनाइए। नरसिम्हा राव ने देश की अर्थव्यवस्था को खोल दिया था। उनका योगदान देखिए। नरसिम्हा राव जो करके गए, उसके नतीजे देश को 20 साल बाद मिले।

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