आंदोलन कर रहे किसानों के रडार पर क्यों है विश्व व्यापार संगठन?

पहली लड़ाई WTO के खिलाफः आंदोलन कर रहे किसानों के रडार पर क्यों है विश्व व्यापार संगठन?
आंदोलनकारी किसानों की मुख्य दो मांग हैं. पहली मांग MSP पर खरीद की कानूनी गारंटी. दूसरी मांग- सरकार भारत को विश्व व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकाले.
पंजाब और हरियाणा के सैकड़ों किसान अपनी 13 मांगों को लेकर राजधानी दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हुए हैं. इस बार के आंदोलन में किसानों की जो सबसे बड़ी मांग हैं, उसमें से पहली है 23 फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की कानूनी गारंटी. दूसरी मांग है कि सरकार भारत को विश्व व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकाले.

किसानों ने पहली बार विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ मोर्चा खोला है. ऐसे में यहां स्पेशल स्टोरी में विस्तार से समझते हैं कि आंदोलन कर रहे किसानों की रडार पर आखिर विश्व व्यापार संगठन क्यों और कैसे आया?

पहले समझिए विश्व व्यापार संगठन है क्या? 

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक  वैश्विक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो यह अलग- अलग देशों के बीच व्यापार के नियम तय करता है. भारत की बात की जाए तो यह देश न सिर्फ WTO के संस्थापक सदस्यों में शामिल है, बल्कि इस संगठन का सक्रिय भागीदार भी है. वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन में 164 सदस्य हैं, जो 98 फीसदी विश्व व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं.

WTO क्या करता है

डब्ल्यूटीओ दो देशों के बीच व्यापार की प्रक्रिया को आसान बनाने का काम करता है. साथ ही यह व्यापार से जुड़े समझौतों पर बातचीत करने का एक मंच भी है. यहां व्यापार से जुड़े सभी तरह की समस्याओं का निपटारा किया जाता है.

पहली लड़ाई WTO के खिलाफः आंदोलन कर रहे किसानों के रडार पर क्यों है विश्व व्यापार संगठन?

फसलों को WTO से क्यों बाहर लाना चाहते हैं किसान?

किसानों के आंदोलन करने के पीछे का मकसद ही यही है कि उन्हें MSP, फसलों की खरीद और पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम को लेकर कानूनी गारंटी दी जाए. वहीं भारत साल 1995 से ही डब्ल्यूटीओ का सदस्य और WTO के नियम किसानों की मांग से बिल्कुल उलट हैं. 

यही कारण है कि किसान चाहते हैं कि भारत डब्ल्यूटीओ से बाहर आकर एमएसपी से जुड़ी उनकी मांगों को मान ले. आंदोलन कर रहे किसानों का कहना है कि सरकार को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी रद्द कर देने चाहिए ताकि उसे भारत के किसी भी किसानों को अन्य देश या संगठन की शर्तों के आगे झुकना न पड़े. 

जब भारत WTO में शामिल हुआ था उसी वक्त तय कर लिया गया था कि वह अपने देश में MSP तय करने की कोई गारंटी नहीं देगा. इसके अलावा, WTO में शामिल होने की और भी कई शर्तें होती हैं जिन्हें सभी सदस्य देशों को स्वीकार करना होता है.

क्या है फ्री ट्रे़ड एग्रीमेंट 

फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को मुक्त व्यापार संधि भी कहा जाता है. इसके तहत दो देशों के बीच होने वाले व्यापार को और आसान बना दिया जाता है. इतना ही नहीं आयात या निर्यात होने वाले उत्पादों पर सब्सिडी, सीमा शुल्क, नियामक कानून और कोटा को या तो बहुत कम कर दिया जाता है या फिर पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है. ये सरकारों की व्यापार संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) की पॉलिसी के बिलकुल उलट होता है.

अब समझिए WTO का नियम क्या कहता है 

डब्ल्यूटीओ का नियम कहता है कि विश्व व्यापार संगठन से जुड़े सदस्य देशों को अपने कृषि उत्पाद को दी जाने वाली डोमेस्टिक हेल्प की मात्रा को सीमित करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादा सब्सिडी अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नुकसान पहुंचा सकती है. 

WTO के नियमों में ट्रेड बैरियर यानी व्यापार से संबंधित बाधाओं को कम करने और सर्विस मार्केट को खोलने के लिए अलग-अलग देशों के कमिटमेंट भी शामिल हैं. कई देशों का कहना है कि भारत अगर किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी फिक्स करने का फैसला करता है तो इससे वैश्विक कृषि कारोबार पर भी काफी असर पड़ेगा. 

पहली लड़ाई WTO के खिलाफः आंदोलन कर रहे किसानों के रडार पर क्यों है विश्व व्यापार संगठन?

MSP, सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन का स्टैंड भी जान लीजिए

विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार खाद, बीज, बिजली, सिंचाई और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP जैसे इनपुट पर कोई भी देश उत्पादन मूल्य के 5 से 10% तक ही सब्सिडी दे सकता है. हालांकि इससे ज्यादा सब्सिडी देता है.

पिछले कुछ सालों की ही बात की जाए तो भारत ने साल 2019-20 में कुल चावल उत्पादन 46.07 बिलियन डॉलर का किया था. जिसमें से किसानों को 13.7% यानी 6.31 बिलियन डॉलर की सब्सिडी दी गई थी,  जो कि डब्ल्यूटीओ की 10 प्रतिशत की सीमा से ऊपर है. 10 प्रतिशत से ज्यादा सब्सिडी देने के कारण भारत को WTO में कई देशों का विरोध भी झेलना पड़ता है. 

हालांकि बावजूद इसके भारत अपने किसानों के जो सब्सिडी देता है वो अमेरिका जैसे देशों की तुलना में काफी कम है. भारत की परेशानी यह है कि WTO के नियम प्रति किसान के आधार पर सब्सिडी पर विचार नहीं करते हैं, बल्कि ओवरऑल कुल उत्पादन पर सब्सिडी काउंट किया जाता है.

भारत और अमेरिका के किसानों को मिलने वाली सब्सिडी में कितना अंतर

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति किसान 300 डॉलर की सब्सिडी दी जाती है जबकि अमेरिका में यही सब्सिडी प्रति किसान 40,000 डॉलर की मिलती है.

भारत सरकार कई बार स्थानीय मार्केट में अनाज, सब्जियों के दामों को कंट्रोल करने के लिए निर्यात और आयात पर बैन भी लगाती है. हालांकि ऐसा करना स्थानीय किसानों के हितों में होता है. लेकिन व्यापार संगठन इसे स्वतंत्र व्यापार के नियमों का उल्लंघन मानता है.

अबू धाबी में WTO के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में वैश्विक व्यापार मंत्रियों की बैठक (MC13) 26 से 29 फरवरी के बीच हो रही है.

क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य

MSP को मिनिमम सपोर्ट प्राइस कहते हैं. ये भारत सरकार की ओर से तय की गई किसानों के फसल की कीमत होती है. इसे आसान भाषा में समझे तो जनता तक पहुंचाए जाने वाले अनाज को सरकार किसानों से एमएसपी पर खरीदती है. फिर इसे राशन व्यवस्था या अलग अलग योजनाओं के तहत जनता तक पहुंचाया जाता है. 

पत्रकार और राजनीति विश्लेषक राजीव कुमार ने एबीपी से बातचीत में बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को उनकी उपज की कीमतों को लेकर एक तरह की गारंटी है. हालांकि यहां एक पेंच है. एमएसपी ऐसी गारंटी राशि है, जो किसानों को तभी दी जाती है जब सरकार उनकी उपज खरीदती है. 

इसका मतलब है कि किसानों को एमएसपी तभी सुनिश्चित हो पाता है, जब अनाज को सरकार द्वारा खरीदा गया हो. सरकारी मंडियों से बाहर के बाजार में यानी खुले बाजार में किसानों को अभी एमएसपी की गारंटी नहीं मिलती है. 

मौजूदा सिस्टम से सिर्फ यह सुनिश्चित हो पाता है कि अधिक उत्पादन या किसी और कारण से फसलों के दाम में बाजार के हिसाब से गिरावट आ भी जाती है, तब भी सरकारी खरीद में किसानों को एमएसपी जरूर मिलेगा.

किसानों की क्या-क्या मांग हैं

साल 2021 के आंदोलन की तरह किसान एक बार फिर से अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं. संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि केंद्र सरकार ने दो साल पहले उनकी सभी मांग मानने का वादा किया था लेकिन उन वादों को अब तक पूरा नहीं किया गया है. इस आंदोलन के जरिए किसान उन मांगो को याद दिला रहे हैं.  आंदोलन में किसान की अलग अलग मांगे हैं. 

किसानों की मांग

  • MSP की गारंटी पर कानून बने 
  • किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की वापसी 
  • लखीमपुर खीरी मामले में जिन किसानों की मौत हुई थी उनके परिवारों को मुआवजा 
  • सरकार किसानों का सारा कर्ज माफ करे 
  • किसानों को प्रदूषण कानून से बाहर रखा जाए.
  • किसानों और खेत मजदूरों को पेंशन मिले 

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