मुसलमान, मोदी और भाजपा की सधी हुई चाल ?

 मुसलमान, मोदी और भाजपा की सधी हुई चाल, भगवा राजनीति निहाल
मोदी सरकार की लाभार्थी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के संचालित हो रही हैं। उज्ज्वला योजना, आवास योजना, गरीब कल्याण योजना व अन्य योजनाओं में वास्तव में मुस्लिम भागीदारी अपनी जनसंख्या के अनुपात में अधिक ही है।

राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में मुसलमान, मोदी और भाजपा जैसे शब्दों के रिश्ते सामान्य रूप से नहीं लिए जाते। धारणा है कि जहां मुस्लिम समुदाय भाजपा को मुस्लिम विरोधी मानता है, वहीं मुस्लिम समुदाय एकजुट होकर उसको चुनाव में हराने के लिए लामबंद हो जाता है। ऐसे में, दोनों तरफ से एक संदेह की खाई का गहरा होना स्वाभाविक है। लेकिन हालात अब पहले जैसे नहीं हैं। आगामी 2024 का लोकसभा चुनाव एक अवसर है, जब बर्फ पिघलने की तरफ सकारात्मक पहल होनी चाहिए।

पसमांदा समाज, कुल मुस्लिम समुदाय का लगभग 70-80 फीसदी है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ओडिशा (2017), हैदराबाद (2022), दिल्ली (2023) और फिर भोपाल में जुलाई, 2023 की एक सार्वजनिक सभा में पसमांदा समाज के लिए सामाजिक न्याय का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर उठाया है। भाजपा पसमांदा समाज को कुलीन मुस्लिम समुदाय के चंगुल से निकालना चाहती है। इसी क्रम में पहल करते हुए भाजपा ने उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव में 300 टिकट मुस्लिम समुदाय को दिए, जिसमें से करीब 60 विजयी हुए। मुस्लिम बहुसंख्यक रामपुर लोकसभा और स्वार विधानसभा के उपचुनाव और त्रिपुरा के बौक्सनगर उपचुनाव में सफलता भी उसे मिली। भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश में दो पसमांदा मुस्लिम भी विधान परिषद में नामित किए गए। दूसरी तरफ देश की लगभग नौ करोड़ मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक से मुक्ति दिलाई गई। यह कुप्रथा अब खाड़ी के मुस्लिम देशों में भी प्रचलित नहीं है।

मोदी सरकार की लाभार्थी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के संचालित हो रही हैं। उज्ज्वला योजना, आवास योजना, गरीब कल्याण योजना व अन्य योजनाओं में वास्तव में मुस्लिम भागीदारी अपनी जनसंख्या के अनुपात में अधिक ही है। जैसे उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या 18 फीसदी है, वहीं लाभार्थियों में उनकी संख्या लगभग 24 फीसदी है। पसमांदा मुस्लिम भारी संख्या में कुशल श्रमिक एवं कारीगर हैं और ऐसे में प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत वह लाभान्वित होंगे।

एक बात जरूर ध्यान देने योग्य है। बीते एक दशक में देश में कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों को देखें, तो बीते 50 साल में यह दशक सबसे शांतिपूर्ण रहा है। एक गौरतलब बात और है, भारत के रिश्ते विभिन्न मुस्लिम देशों से निरंतर बेहतर हो रहे हैं। वर्तमान में भारत ने कई देशों-जैसे, सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, इंडोनेशिया एवं अन्य पश्चिम और मध्य एशिया के देशों से मजबूत सामरिक सहभागिता स्थापित की है। भारत इस समय इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर में केंद्रीय भूमिका में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई इस्लामी देशों की यात्रा की है और कई देशों ने अपने यहां का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार उन्हें दिया है।

वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए जब रूस-यूक्रेन, इस्राइल-फलस्तीन, आतंकवाद, चीन का नकारात्मक पड़ोसी रवैया सामने है, ऐसे में, भारत को एक स्थायी और मजबूत नेतृत्व चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर चुनौतीपूर्ण अवसर पर यह साबित किया है। इससे इतर, अगर आप 1990 के दशक की गठजोड़ वाली सरकारों के कार्यकालों को देखेंगे, तो उस दौरान देश को काफी सामरिक क्षति हुई थी। दूसरी तरफ, विपक्ष के तमाम राजनीतिक दल आज भी वंशवाद से ग्रसित हैं। ऐसे में, इन दलों के सामने पारिवारिक हित पहले रहता है। हाल में मोदी सरकार ने अपनी कार्य-प्रणाली से वैश्विक स्तर पर छाप छोड़ी है।

लिहाजा यह उपयुक्त होगा कि मुस्लिम समुदाय भाजपा को उसके शासन, उपलब्धि और राष्ट्र प्रथम की अवधारणा की कसौटी पर देखे। कुछ ही महीनों बाद होने वाले 2024 लोकसभा चुनाव देश के मुस्लिम समुदाय के लिए एक मौका है, जब वह पुरातन जकड़न से स्वतंत्र होकर भाजपा और मोदी के साथ एक नए रिश्ते का सूत्रपात कर सकते हैं।

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