भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी …खर्च से लेकर खतरा तक जानिए !

भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी: कितनी सक्सेसफुल है ये प्रक्रिया; खर्च से लेकर खतरा तक जानिए
दुनिया भर में हर साल IVF से लगभग 80 लाख बच्चे जन्म लेते हैं और भारत में एक साल में  2 से 2.5 लाख लोगों का आईवीएफ फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की मदद से माता-पिता बनने का सपना साकार होता है.

29 मई 2022, पंजाब के मशहूर गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या की खबर सामने आई. इस खबर ने न सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे भारत को शोकाकूल कर दिया था. सिद्धू मूसेवाला अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे. उनकी मौत के बाद उनकी मां चरण कौर और पिता बलकौर सिंह अकेले हो गए थे. 

अब इस घटना के दो साल बाद एक बार फिर सिद्धू चर्चा में हैं और इस बार उनके नाम के साथ एक  खुशखबरी भी जुड़ी है. दरअसल हाल ही में सिद्धू मूसेवाला की मां ने एक बच्चे को जन्म दिया है. मूसेवाला की नाम 56 साल की हैं और उन्होंने इस उम्र में बच्चे को जन्म देने के लिए विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक अपनाई है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये क्या है आईवीएफ तकनीक क्या है और इसके जरिये प्रेगनेंसी कितना सफल है… 

क्या है आईवीएफ 

एबीपी ने आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर निभा सिंह से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि इस तकनीक के जरिये लैब में महिला की ओवरी से अंडे निकालकर पुरुष के स्पर्म के साथ फर्टिलाइजेशन कराया जाता है. फर्टिलाइजेशन के इस प्रक्रिया में ये जरूरी नहीं है कि महिला के शरीर से जितने भी अंडे निकल रहे हैं वह सभी भ्रूण में तब्दील हो.

कई बार भ्रूण बनने के बाद भी फ्रीजिंग के प्रोसेस तक वह सर्वाइव नहीं कर पाते हैं. ऐसे में इस प्रक्रिया के बाद जो अच्छे क्वालिटी के भ्रूण होते हैं उसे ही महिला के गर्भाशय में डाला जाता है, ऐसा करने से उनकी प्रेग्नेंसी का चांस ज्यादा रहता है.  

आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को पहले टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता था, इसलिए हो सकता है कि आप आज भी इसे टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से ही जानते हों. IVF यानी टेस्ट ट्यूब बेबी के तकनीक का सबसे पहला इस्तेमाल साल 1978 में इंग्लैंड में किया गया था और आज ये तकनीक न सिर्फ इंग्लैंड बल्कि दुनिया के उन सभी जोड़ो के लिए वरदान से कम नहीं है, जो सालों से प्रेगनेंसी की कोशिश के बावजूद सफल नहीं हो पा रहे हैं. 

भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी: कितनी सक्सेसफुल है ये प्रक्रिया; खर्च से लेकर खतरा तक जानिए

कब शुरू हुई आईवीएफ तकनीक, कैसे हुआ था इसका इजाद 

आईवीएफ तकनीक का इजाद करने वाली महिला वैज्ञानिक का नाम है- मिरियम मेनकिन. मिरियम, हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ. जॉन रॉक के साथ एक तकनीशियन के तौर पर काम करती थीं. उस वक्त उनका मकसद इंसानी शरीर के बाहर प्रजनन करने वाले ऐसे अंडाणुओं को उपजाऊ बनाना था, जिनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता नहीं होती. 

इस तकनीक के खोच में मरियम को पूरे 6 साल का वक्त लगा और सालों की मशक्कत और लगातार मिलने वाली नाकामियों के बाद फरवरी 1944 में मरियम को पहली कामयाबी मिली. आज इसी तकनीक को दुनियाभर में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक के नाम से जाना जाता है.

इस तकनीक की खोज के बाद साल 1978 में दुनिया का पहला इन विट्रो फर्टिलाइजर (आईवीएफ) तकनीक से बच्चा पैदा हुआ. उसका नाम लुईस ब्राउन रखा गया. इसके बाद साल 2017 में अमेरिका में सबसे ज्यादा 2,84,385 महिलाओं ने इस तकनीक से गर्भ धारण किया.

भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी

भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी 6 अगस्त 1986 को जन्मी थी. उसका नाम हर्षा चावड़ा रखा गया था. हर्षा वर्तमान में 37 साल की है और अब उनका बच्चा भी है.

प्रेग्नेंसी की ये तकनीक कितनी सफल है?

आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर निभा सिंह ने बताया कि वर्तमान में आईवीएफ की प्रक्रिया थोड़ी कठिन और महंगी है, लेकिन समय के साथ इस टेक्नोलॉजी के तहत बच्चा पैदा करने का सक्सेस रेट बढ़ता जा रहा है.

हालांकि इस प्रक्रिया के दौरान बहुत सारी बातों का ख्याल रखना पड़ता है, जैसे मां की सेहत कैसी है. उन्होंने कहा की महिला की उम्र भी यह तय करती है कि IVF की ये प्रक्रिया कितनी सफल होगी. 

किस उम्र में कितना सक्सेस रेट

एक रिपोर्ट के अनुसार अगर आईवीएफ तकनीक के जरिये प्रेग्नेंट होने वाली महिला की उम्र 34 साल से कम है तो इस प्रक्रिया का सक्सेस रेट 40% हो जाता है. वहीं 35 से 37 साल की महिला अगर आईवीएफ तकनीक के जरिये प्रेगनेंसी चाहती हैं तो उनका सक्सेस रेट 31% और 38 ले 40 साल की महिलाओं का सक्सेस रेट 21%, 41 से 42 साल का 11% और 43 साल या उससे ज्यादा की महिलाओं का सक्सेस रेट 5% होता है. 

क्या 58 साल की उम्र में IVF से मां बनना संभव है?

साल 2017: इस साल तक भारत में आईवीएफ करवाने के लिए महिला की उम्र 45 साल और पुरुष के लिए उम्र 50 साल थी. 

साल 2020: इस साल नए एआरटी कानून लाए गए जिसके अनुसार महिलाओं के लिए इस तकनीक के जरिये गर्भधारण करने की अधिकतम सीमा 50 साल कर दी गई और पुरुषों के लिए यही सीमा 55 साल कर दी गई है.  

भारत का एआरटी कानून 58 साल की महिला को IVF की अनुमति नहीं देती है. लेकिन कई ऐसे देश हैं जहां इस टेक्निक से प्रेगनेंसी धारण करने के लिए कोई कानून नहीं है.

भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी: कितनी सक्सेसफुल है ये प्रक्रिया; खर्च से लेकर खतरा तक जानिए

किस परिस्थिति में एक महिला आईवीएफ से गर्भधारण करवा सकती है 

डॉक्टर निभा के अनुसार IVF से गर्भाशय धारण करने के लिए महिला का यूट्रस हेल्दी होना बेहद जरूरी है. भ्रूण को गर्भाशय में पहुंचने के लिए मोटी एंडोमेट्रियम चाहिए होती है. 

डॉक्टर के अनुसार मेनोपॉज के बाद महिलाओं में एंडोमेट्रियम पतली होने लगती है, जिससे उन्हें गर्भाशय धारण करने में समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे अगर कोई महिला 50 की उम्र में IVF करवाना चाहती है तो सबसे पहले उन्हें एंडोमेट्रियम बढ़ाने के लिए डॉक्टर की निगरानी में ट्रीटमेंट करवाना पड़ता है. 

इसके अलावा आमतौर पर महिलाओं को 50 की उम्र के बाद हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हार्ट जैसे कई समस्याएं हो जाती है, ये भी एक कारण है कि इस बीमारियों के चलते IVF ट्रीटमेंट में समस्याएं हो सकती हैं. 

क्या है IVF का पूरा प्रोसेस

स्टेप 1- IVF तकनीक से प्रेग्नेंट होने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है.  इसमें सबसे पहले महिला की ओवरी में बनने वाले एग को विकसित किया जाता है. इस एग के विकास के लिए महिला को कुछ इंजेक्शन दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया की शुरुआत पीरियड्स के दूसरे दिन से ही कर दी जाती है और उन्हें लगातार 10 से 12 दिनों तक रोज इंजेक्शन लगाया जाता है. 

हालांकि इन का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. इसके जरिये महिला को वह हॉर्मोन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिया जाता हैं जिससे उनके ओवरी में एग बन सके. इस दौरान अल्ट्रासाउंड के जरिए इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रखी जाती है. इस पूरी प्रक्रिया को एग स्टिमुलेशन कहते हैं.

स्टेप 2- एग विकसित हो जाने के बाद उन्हें निकाल लिया जाता है. इस अंडे को निकालने के लिए भी केवल एक इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. 

स्टेप 3- इसके बाद महिला के पार्टनर का स्पर्म लिया जाता है और लैब में इसे महिला के सबसे स्वस्थ एग से मिला दिया जाता है, इस प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं. ऐसा करने के 3 से 5 दिन में भ्रूण तैयार किया जाता है और एक बार भ्रूण तैयार हो गया तो उसे वापस महिला के गर्भ में रख दिया जाता है. 

डॉक्टर निभा ने कहा कि इस प्रक्रिया में वैसे तो किसी भी प्रकार का दर्द नहीं होता, लेकिन कई बार हल्की से मरोड़ या ऐंठन महसूस होती है. हालांकि ऐसा होना काफी सामान्य है. भ्रूण स्थापित किए जाने के बाद महिला वापस अपनी नॉर्मल जिंदगी  जी सकती हैं. 

भारत में कैसे आई IVF टेक्नोलॉजी: कितनी सक्सेसफुल है ये प्रक्रिया; खर्च से लेकर खतरा तक जानिए

क्या होता है मल्टीपल प्रेगनेंसी 

मल्टीपल प्रेगनेंसी को आसान भाषा में समझें तो IVF प्रक्रिया के तहत एक बार में एक से ज्यादा बच्चे हो सकते है और अगर ऐसा होता है तो इसका असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने का खतरा बना रहता है.  

इस प्रक्रिया में कितना खर्च होता है 

भारत में आमतौर पर आईवीएफ तकनीक में 65,000 से 95,000 रुपए तक का खर्च आता है जबकि अफोर्डेबल आईवीएफ तकनीक से प्रजनन की कीमत 40,000 रुपए तक होती है.  सामान्य आईवीएफ में आमतौर पर 10 से 12 अंडों का निर्माण किया जाता है जबकि अफोर्डेबल आईवीएफ में तीन से चार अंडों का निर्माण करते हैं.

दुनियाभर में लगभग 80 लाख बच्चें आईवीएफ प्रोसेस से ले रहे हैं जन्म

एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में हर साल आईवीएफ के जरिए लगभग 80 लाख बच्चे जन्म लेते हैं और वहीं भारत की बात करें तो इस देश में एक साल में  2 से 2.5 लाख लोगों का आईवीएफ फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की मदद से माता-पिता बनने का सपना साकार होता है.

क्या आईवीएफ के पैदा हुए बच्चे कमजोर होते हैं? 

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर निभा कहती हैं कि वर्तमान में टेक्‍नोलॉजी ने काफी तरक्की कर ली है. हां कुछ लोगों को आज भी यही लगता है कि आईवीएफ  बेबी नैचुरली कंसीव किए गए बच्चों से कमजोर होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है टेस्ट ट्यूब बेबी और नैचुरल तरीके से हुए बच्‍चों में कोई फर्क नहीं होता है. 

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बांझपन से जूझ रहा हर छठा कपल:8 बुरी आदतें छीनतीं मां बनने की क्षमता, ‘बेबीमेकर’ भी हो रहे फेल

देशभर में ढाई हजार से ज्यादा फर्टिलिटी क्लिनिक खुल चुके हैं। अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा आईवीएफ ट्रीटमेंट भारत में लिया जा रहा है, लेकिन इलाज के बावजूद 40 से 50 फीसदी महिलाओं को ही IVF के जरिए गर्भ ठहरता है।

आखिर महिलाओं में कंसेप्शन रेट क्यों घट रहा है, IVF प्रक्रिया भी क्यों फेल हो रही और प्रजनन क्षमता क्यों कम होती जा रही है, जानिए ऐसे ही कई और सवालों के जवाब…

सेहत बिगाड़ने वाली आदतों से प्रेग्नेंसी मुश्किल
NCBI पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक नेचुरल तरीके से गर्भधारण करने की कोशिश करने वाले कपल्स पर 1 साल तक रिसर्च की गई। जिसमें हेल्दी लाइफस्टाइल जीने वाले 83 फीसदी कपल एक साल के अंदर गर्भधारण में सफल रहे।

वहीं, जिन कपल में लाइफस्टाइल बिगाड़ने वाली सिर्फ एक बुरी आदत भी मौजूद थी, उनमें 71% महिलाएं ही प्रेग्नेंट हुईं। सेहत बिगाड़ने वाली 4 बुरी आदतों की शिकार महिलाओं में सिर्फ 38 फीसदी ही प्रेग्नेंसी को लेकर सफल रहीं। नशा, जंक फूड, मोटापा, बीमारियां और उम्र बढ़ने के साथ प्रेग्नेंसी मुश्किल हो जाती है।

ये 8 बुरी आदतें बच्चे को जन्म देने की क्षमता छीन लेती हैं…
1. स्मोकिंग: 
तंबाकू में पाए जाने वाले कैडमियम और कोटिनिन जैसे जहरीले तत्व डीएनए डैमेज करते हैं, जिससे फर्टिलिटी घटती है। स्मोकिंग करने वाली महिलाओं का एग प्रोडक्शन घट जाता है, उनके एग में ‘जोना पेलूसिडा’ नाम की दीवार मोटी हो जाती है, जिससे स्पर्म उसके अंदर नहीं जा पाता। इन महिलाओं का मेनोपॉज भी 3 से 4 साल पहले हो जाता है।

2. एल्कोहल: ड्रिंक करने की आदत महिलाओं के लिवर, दिल और नवर्स सिस्टम के साथ ही प्रजनन क्षमता घटाती है। इस आदत से शरीर में विटामिन बी, जिंक, आयरन, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व कम हो जाते हैं, जो प्रेग्नेंसी के लिए जरूरी हैं। इन महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी 3 गुना मुश्किल हो जाता है। अगर वे प्रेग्नेंट हो भी जाएं तो अबॉर्शन का रिस्क 2.21 गुना बढ़ जाता है।

3. रिस्की सेक्शुअल बिहेवियर: नशे की लत सेक्शुअल बिहेवियर को भी बिगड़ सकती है। एक से ज्यादा पार्टनर के साथ असुरक्षित संबंध बनने के मौके बढ़ जाते हैं। जिससे क्लैमाइडिया और एड्स जैसी बीमारियां हो सकती हैं। असुरक्षित संबंध बनाने से फैलने वाली इन बीमारियों से इनफर्टिलिटी को बढ़ावा मिलता है।

4. गर्भनिरोधक: असुरक्षित संबंध बनाने के बाद गर्भधारण से बचने के लिए लड़कियां गर्भनिरोधक दवाएं यूज करती हैं। आमतौर पर गर्भनिरोधक गोलियां सेफ होती हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी से बचने के लिए इंजेक्शन के जरिए ली जाने वाली दवा से महिलाओं की प्रेग्नेंट होने में एक साल तक का समय लग सकता है।

5. चाय-कॉफी की लत: 2 कप से ज्यादा चाय, कॉफी पीना, रोज एनर्जी ड्रिंक्स लेना प्रेग्नेंसी के आड़े आता है। अगर प्रेग्नेंसी ठहर भी जाए, तो इस दौरान बॉडी में कैफीन की मात्रा ज्यादा होने से मिसकैरेज और स्टिलबर्थ का खतरा होता है।

6. मोटापा: बॉडी वेट बढ़ने से हॉर्मोनल इम्बैलेंस होता है। आईवीएफ के दौरान ज्यादा दवाएं खानी पड़ती हैं। ज्यादा बॉडी वेट से मिसकैरेज के खतरे बढ़ जाते हैं। इसलिए मां बनने के लिए BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स 30 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

7. खानपान: हेल्दी डाइट से महिला जल्दी कंसीव करती है। फल, हरी सब्जियां और एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाना तन और मन दोनों को स्वस्थ रखता है। जबकि जंक फूड स्पर्म और एग दोनों को नुकसान पहुंचाता है।

8. एक्सरसाइज: लाइफस्टाइल खराब हो और एक्सरसाइज भी न की जाए तो रिप्रोडक्शन सिस्टम तेजी से बिगड़ने लगता है। जबकि, योग, ध्यान और एक्सरसाइज से इसमें सुधार आता है, सेहत अच्छी रहती है। जिससे कंसीव करने में मदद मिलती है।

इन वजहों के अलावा शादी और मां बनने में देरी का फैसला भी मुश्किलें बढ़ा देता है…

20 से 25 की उम्र में प्रजनन क्षमता सबसे ज्यादा, 35 की उम्र तक एग में 200 गुना कमी
बिड़ला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर में कन्सल्टेंट डॉ. मीनू वशिष्ठ आहूजा के मुताबिक जन्म के समय नवजात बच्ची में 40 से 50 लाख एग्स होते हैं। वह अपनी पूरी लाइफ में 400-500 बार एग रिलीज कर पाती है। बाकी एग्स बॉडी के अंदर ही खत्म हो जाते हैं। कभी-कभी 35 की उम्र तक महिलाओं के पास करीब 25 हजार एग्स ही बचते हैं।

मुंबई स्थित नानावटी मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में सीनियर कन्सल्टेंट डॉ. सुरुचि देसाई कहती हैं कि 20 से 25 साल की उम्र में महिलाओं की प्रजनन क्षमता सबसे ज्यादा होती है, लेकिन, 25 से 30 साल की उम्र तक कंसीव कर लेना बेहतर है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर कमजोर होने लगता है। स्पर्म और एग्स की संख्या और क्वालिटी में कमी आने लगती है। बीमारियों और मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है।

खराब मेंटल हेल्थ और समस्याओं के बुरे चक्र से बढ़ती परेशानी
साइकोलॉजिस्ट डॉ. अमिता पुरी बताती हैं कि लड़के-लड़कियों पर पहले से करियर का प्रेशर रहता है। इसी बीच परिवार भी शादी का दबाव बनाता है। शादी के बाद जब तक वे एक-दूसरे को समझते हैं, उनके ऊपर परिवार बढ़ाकर सेटल होने का दबाव भी बढ़ जाता है।

ऐसी अफरा-तफरी में बार-बार कोशिश के बाद भी प्रेग्नेंसी नहीं ठहरती। तब महिलाओं को स्ट्रेस, एंग्जाइटी, डिप्रेशन, इरिटेशन, एग्रेशन और फ्रस्ट्रेशन सभी एक साथ होने लगता है। प्रेग्नेंसी प्लान को लेकर स्ट्रेस इतना बढ़ जाता है जो महिला की सेहत पर नेगेटिव असर डालता है।

शरीर में बढ़ा निगेटिव हार्मोन घटा देता है प्रेग्नेंसी रेट
इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि इन मानसिक समस्याओं की वजह से कंसीव करने की क्षमता कम होती है। दरअसल, स्ट्रेस के दौरान शरीर में डोपामाइन, सेरोटोनिन, एंडोर्फिन और ऑक्सीटोसिन जैसे हैप्पी हार्मोन रिलीज होने बंद हो जाते हैं और नेगेटिव हार्मोन ‘कॉर्टिसोल’ का लेवल बढ़ता है। जिन महिलाओं के बालों के सैंपल में कॉर्टिसोल का स्तर ज्यादा मिला, उनका प्रेग्नेंसी रेट उतना ही कम पाया गया।

बच्चा न होने पर महिलाओं को आते हैं आत्महत्या के ख्याल
बांझपन से जूझने वाली अधिकतर महिलाएं भीतर ही भीतर घुटती हैं और बाहर झूठी मुस्कान ओढ़े रहती हैं। NCBI पर मौजूद रिपोर्ट्स बताती हैं कि मां न बन पाने वाली महिलाओं में डिप्रेशन लेवल कैंसर मरीजों के बराबर पहुंच जाता है।

मां-बाप न बन पाने से 32 फीसदी पुरुष और 56 फीसदी महिलाएं डिप्रेशन की चपेट में आ जाती हैं। 61 फीसदी पुरुष और 76 फीसदी महिलाएं एंग्जाइटी का शिकार हो जाती हैं। करीब 10 फीसदी महिलाएं आत्महत्या करने के बारे में भी सोचने लगती हैं।

इमोशनल बॉन्डिंग कमजोर हो तो IVF ट्रीटमेंट भी काम नहीं आता
डॉ. अमिता बताती हैं कि संबंधों को बचाने के लिए बच्चे की जरूरत और बढ़ जाती है। तब कपल डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। टेस्ट के बाद कई बार दंपती में कोई कमी नहीं मिलती, फिर भी गर्भ नहीं ठहरता।

काउंसलिंग से पता चलता है कि उनके बीच इमोशनल बॉन्डिंग कमजोर है। दोनों एक-दूसरे को समझ नहीं पा रहे। अगर संबंधों में दूरियां पैदा हो गई हैं, इमोशनल कनेक्शन अच्छा नहीं है, तो आईवीएफ भी मदद नहीं कर सकता।

हर आईवीएफ क्लिनिक में साइकोलॉजिस्ट जरूरी
साइकोलॉजिस्ट कपल के संबंधों को सुधारने की कोशिश करते हैं, ताकि दूरियां खत्म हों और वे रिलैक्स होकर बात कर सकें। तब प्रेग्नेंसी की उम्मीद बढ़ जाती है। इसीलिए अब सरकार ने नियम बना दिया है कि हर आईवीएफ सेंटर में साइकोलॉजिस्ट जरूरी हैं।

साइकोलॉजिस्ट कपल को रिलैक्सेशन और हिप्नो थेरेपी देते हैं। सेहत (SEHT) यानी सबकॉन्शस एनर्जी हीलिंग थेरेपी, योग और मेडिटेशन से महिलाओं की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक सेहत में सुधार आता है। बॉडी और माइंड हेल्दी बनता है, जिससे मुश्किलें आसान हो जाती हैं।

कपल को IVF ट्रीटमेंट के लिए कब जाना चाहिए
डॉ. सुरुचि कहती हैं कि अगर माहवारी समय पर नहीं आती, या उससे जुड़ी कोई समस्या है, तब बिना देर किए गाइनेकोलॉजिस्ट से मिलें। अगर 1 साल तक फैमिली प्लान करने में नाकामयाब होते हैं और महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा हो, तब फर्टिलिटी चेकअप कराएं।

आमतौर पर डॉक्टर की सलाह पर अमल और बेसिक ट्रीटमेंट से सफलता मिल जाती है। इसके बाद भी गर्भ नहीं ठहरता, तो डॉक्टर आईवीएफ की सलाह देते हैं।

माहवारी के दूसरे दिन शुरू होता है ट्रीटमेंट
डॉ. मीनू बताती हैं कि माहवारी के दूसरे दिन से आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू होता है। इंजेक्शन लगाए जाते हैं। ओवरी में फॉलिकल्स (द्रव से भरी थैलियां, जिनमें एग होते हैं) परिपक्व हो जाते हैं, तो उन्हें निकालकर एग्स को सुरक्षित रख लेते हैं। इसके बाद पति के स्पर्म से एग को फर्टिलाइज कराते हैं। इससे तैयार भ्रूण को तीसरे या फिर 5वें दिन महिला के गर्भ में ट्रांसफर किया जाता है।

हर स्टेप पर फॉलिकल्स, एग्स और भ्रूण की संख्या घटती जाती है। इसलिए जब एग्स और भ्रूण की संख्या ज्यादा होती है, तब ट्रांसफर के लिए 5वें दिन तक इंतजार करते हैं, जिससे कंसीव करने की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन जब इनकी संख्या कम होती है, तो तीसरे दिन ही भ्रूण को गर्भ में ट्रांसफर कर देते हैं।

आईवीएफ फेल होने से बढ़ता मेंटल डिसऑर्डर्स का खतरा
जब बांझपन की कोई वजह पता चलती है और आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू होता है, तो महिलाएं उम्मीदों से भर उठती हैं कि अब जल्द ही वे मां बन सकेंगी, लेकिन यह इतना भी आसान नहीं होता। आईवीएफ के एक साइकल में 4 से 6 हफ्ते लगते हैं।

कुछ महिलाएं पहली बार में ही कंसीव कर लेती हैं, तो कुछ को महीनों, सालों तक बार-बार आईवीएफ की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। एक प्रक्रिया में सवा लाख से 4 लाख रुपए तक खर्च होते हैं। इलाज के दौरान वे इमोशनली अपसेट होती हैं।

मेडिकल जर्नल BMJ के मुताबिक लैब में तैयार भ्रूण को यूट्रस में ट्रांसफर करने के बाद का समय महिलाओं को सबसे ज्यादा स्ट्रेस देता है। IVF ट्रीटमेंट में 2 हफ्ते का यह वेटिंग पीरियड इस स्ट्रेस की वजह है। बार-बार आईवीएफ फेल होने से वे मेंटल डिसऑर्डर की शिकार होने लगती हैं। कई बार महिलाएं इलाज बीच में ही छोड़ देती हैं।

अब इन 8 टिप्स पर भी ध्यान दीजिए जिससे आईवीएफ की मदद से प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ जाती है…

दवाओं के साइड इफेक्ट से भी बढ़ सकती है परेशानी
जर्नल BMJ के मुताबिक आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान दी जाने वाली कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट से भी एंग्जाइटी और डिप्रेशन जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। महिलाओं को लगता है कि उनमें ही कोई खोट है, जिसकी वजह से इलाज का भी असर नहीं हो रहा है।

वे जलन, दुख और हताशा में डूब जाती हैं। खुद को अलग-थलग महसूस करने लगती हैं। ये सभी समस्याएं जितनी गहरी होती जाती हैं, फर्टिलिटी और आईवीएफ का सक्सेस रेट उतना ही कम होता जाता है।

खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही लैब में गड़बड़ियों से भी आईवीएफ ट्रीटमेंट फेल हो सकता है…

‘लैब हेल्थ’ में कमी से भी फेल हो सकता है प्रोसेस
डॉ. मीनू के मुताबिक आईवीएफ फेल होने की कई और वजहें भी हो सकती हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने के लिए लैब में मां के गर्भ जैसा वातावरण तैयार किया जाता है।

इसके लिए हाइटेक मशीनों की मदद से तापमान, ह्यूमिडिटी को कंट्रोल किया जाता है। हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन जैसी गैसों से लेकर सूक्ष्म कणों तक का ख्याल रखा जाता है। इन सबके लिए ‘लैब हेल्थ’ टर्म का इस्तेमाल किया जाता है।

डॉक्टरों, एम्ब्रियोलॉजिस्ट और लैब टीम का एक्सपीरियंस भी बहुत मायने रखता है। इलाज के तरीके से लेकर दवाओं तक का फैसला वही लेते हैं। यह टीम अनुभवी हो तो प्रेग्नेंसी में आसानी होती है।

डॉ. मीनू कहती हैं कि दुनिया भर में IVF सेंटर्स का औसतन सक्सेस रेट 40-50 फीसदी ही है। जबकि ‘लैब हेल्थ’ की हाईटेक और IVF क्वॉलिफाइड टीम की वजह से बिड़ला आईवीएफ में सक्सेस रेट 60 से 70 फीसदी तक है।

एग फ्रीजिंग और आईवीएफ ने दी देर से मां बनने की ताकत
डॉ. सुरुचि देसाई कहती हैं कि आईवीएफ जैसी तकनीक ने महिलाओं को लेट प्रेग्नेंसी की आजादी दी है। 30 साल की उम्र तक करियर में सफल होने के बाद लड़कियां एग फ्रीजिंग के बारे में सोचना शुरू करती हैं।

38 से 40 की उम्र के बीच वे एग फ्रीज करा लेती हैं, ताकि भविष्य में मां बनने का सपना पूरा कर सकें। कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज शुरू होने से पहले भी एग फ्रीज करा लेने चाहिए। हेल्दी लाइफस्टाइल और नियमित जांच से कई परेशानियों को काफी हद तक दूर कर सकते हैं।

महिला की उम्र 50 और पुरुष 55 से ज्यादा हो तो नहीं करा सकते आईवीएफ…

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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