सही वक्त पर मार्गदर्शन से ही मिलती है बुलंदियां छूने की राह

शिक्षा और रोजगार : युवाओं के व्यक्तित्व को निखारने तथा आत्मविश्वास बढ़ाने पर खास ध्यान देने की जरूरत

सही वक्त पर मार्गदर्शन से ही मिलती है बुलंदियां छूने की राह

हर युवा चाहता है कि उसे समाज में रहने के दौरान सुख-सुविधाएं, अच्छी नौकरी या कारोबार और प्रतिष्ठा मिले। यह चाहत ही उसे सुरक्षित भविष्य तलाशने के लिए प्रेरित करती है। एक दौर था जब व्यक्ति इस बात पर जोर देता था कि वह स्वावलम्बी बने। सरकारी नौकरियों की चाहत होती भी तो इतने अवसर नहीं होते थे। अवसर बढ़े तो स्पर्धा भी बढ़ने लगी। इस स्पर्धा के माहौल के बीच आज का युवा स्वरोजगार की बजाय नौकरियों की तरफ भाग रहा है, जबकि सब जानते हैं कि हमारे देश में आबादी के अनुपात में सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरियों की तादाद अपेक्षाकृत कम है। रही-सही कसर हमारी शिक्षा प्रणाली ने पूरी कर दी है जिसमें शिक्षित बेरोजगारों की फौज साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। उपलब्ध नौकरियां ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ साबित हो रही हैं। इसी कारण से शिक्षित बेरोजगारों की भीड़ बढ़ती जा रही है।

बेरोजगारों की बढ़ती हुई फौज और उपलब्ध नौकरियों की संख्या में भारी अंतर होने की वजह से बेरोजगारों में अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है। यह अवसाद इसलिए भी बढ़ने लगा है क्योंकि आज हर अभिभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में देखना चाहता है। यही दबाव बच्चों को चौदह-पन्द्रह वर्ष की उम्र में ही नीट व जेईई परीक्षाओं की तैयारियों में झोंक देता है। अवसाद के दौर में रही-सही कसर इन परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थाओं का फैलता जाल पूरी करने लगा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाल ही जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि पढ़ाई के दबाव और दूसरे कारणों से 15 से 19 आयु वर्ग के युवाओं के आत्महत्या करने तथा इसके लिए प्रयास करने वाले आंकड़ों में काफी बढ़ोतरी हुई है। आजादी से पूर्व भारत गांवों में बसता था तथा लोगों को अपनी माटी से लगाव रहता था। काश्तकार होना तब गौरव का विषय समझा जाता था। आजादी के 76 वर्ष के बाद किसान परिवारों का भी खेती-बाड़ी से मोह भंग हो रहा है तथा ग्रामीण युवा शहर की तरफ पलायन तो कर ही रहे हैं, गांव भी शहर बनने को आतुर हैं।

इस समूचे परिदृश्य के बीच सवाल यह उठता है कि युवाओं को करियर की राह कैसे बताई जाए? प्रारंभिक शिक्षा के बाद विद्यार्थी अपनी योग्यता व रुचि के अनुरूप करियर का चुनाव करें, यह ज्यादा जरूरी है। इसके लिए ऐसे मार्गदर्शक की जरूरत होती है जो उसे समय-समय पर राह दिखाने का काम करे। गुरु और अभिभावकों की भूमिका इस दिशा में काफी अहम साबित हो सकती है। विद्यालय के स्तर पर ही यह काम प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। बच्चों की कमजोरी व मजबूती के आधार पर ही उनमें संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए। ऐसा होने पर ही परीक्षाओं के दबाव के चलते युवा अवसाद में जाने से बचेंगे। बेहतर काउंसलिंग हो तो ही बच्चों को भविष्य तय करने में मदद मिल सकेगी। जरूरत इस बात की भी है कि काउंसलिंग के जरिए यदि करियर चुनाव की कोई बात की जाए तो उसमें घर-परिवार का दखल नहीं होना चाहिए।

मोटे तौर पर युवाओं को संबंधित विषयों का चयन करते वक्त सावधानी बरतनी होगी। युवाओं के व्यक्तित्व को निखारने तथा आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए न केवल आईक्यू (इंटेलिजेंस कोशेंट) बल्कि ईक्यू (इमोशनल कोशेंट) पर ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति के अनुरूप भावनात्मक जुड़ाव से संबंधित विषयों के आधार पर आज के युवाओं का भविष्य तय होना चाहिए। सामाजिक सजगता और आध्यात्मिक सोच के जरिए युवा पीढ़ी में नकारात्मक विचारों को निकालने का काम बखूबी हो सकता है। जरूरत इस बात की भी है कि हमारे युवा मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ बने रहने की तरफ ध्यान दें। शिक्षण व कोचिंग संस्थाएं पौष्टिक भोजन और योग शिक्षा को स्वास्थ्य रक्षा का जरिया बना सकती हैं। और सबसे आगे बढ़कर यह कि स्कूली स्तर पर ही पाठॺक्रम में सफल व्यक्तियों के संघर्ष की कहानियों व उनकी आत्मकथाओं को पढ़ाया जाना चाहिए। खासतौर पर ऐसी कहानियां, जो युवाओं में भविष्य चयन को लेकर आत्मविश्वास बढ़ा सकें।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जो पहले सेना में चयनित नहीं होने पर निराश हो चुके थे। लेकिन, सही मार्गदर्शन मिला तो वे न केवल मिसाइल मैन के रूप में पहचान बना पाए, बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग हो तो युवाओं को सही दिशा बताने का काम हो सकता है। आज तो हालत यह है कि सोशल मीडिया की बुराइयां ज्यादा हावी हो रहीं है और युवाओं को भटकाने का काम कर रहीं हैं। सोशल मीडिया युवा पीढ़ी को समाज में अपनों से दूर करता जा रहा है, इस खतरे को अभिभावकों को भी समझना होगा।

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