क्या इस बार बुरे फंसे रामदेव ?
क्या इस बार बुरे फंसे रामदेव …
सुप्रीम कोर्ट में बिना शर्त माफी मांगी; पतंजलि के विज्ञापन और झूठे दावे का पूरा मामला
कार्यवाही की शुरुआत में ही जस्टिस कोहली ने पूछा, ‘अवमानना के नोटिस का जवाब कहां है?’
रोहतगी बोले, ‘जवाब दाखिल नहीं किया जा सका, ये बहुत छोटा जवाब था।’
इस पर जस्टिस कोहली ने कहा, ‘ये हमारे लिए अच्छी बात नहीं है। हमने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है। अगर आप जवाब दाखिल नहीं कर रहे हैं तो साफ है कि आदेश दिए जाएंगे और उसके परिणाम होंगे।’
रोहतगी के जवाब से नाखुश जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, ‘अब हम निर्देश देंगे कि आपके मुवक्किल अगली तारीख पर कोर्ट में पेश हों।’
इसके बाद कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) आचार्य बालकृष्ण और को-फाउंडर बाबा रामदेव को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दे दिया।
क्या इस बार बुरे फंसे रामदेव, भ्रामक विज्ञापन का पूरा मामला क्या है और पतंजलि ने कौन से कानून तोड़े हैं…
पूरा मामला क्या है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को तलब किया?
इसकी शुरुआत होती है 10 जुलाई 2022 को अखबारों में छपे एक विज्ञापन से। अंग्रेजी में छपे इस विज्ञापन का शीर्षक था- MISCONCEPTIONS SPREAD BY ALLOPATHY यानी एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां।
ऐड में सबसे ऊपर लिखा है- ‘बीपी, शुगर, थायरॉइड और अस्थमा जैसी बीमारियों की दवाई के लिए लोग एलोपैथी पर निर्भर रहते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी दवाइयों से कोई फायदा होता नहीं दिखता। उल्टा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। हमारा इलाज योग और आयुर्वेद पर निर्भर है और हमारी दवाइयों की कार्यक्षमता आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक द्वारा साबित की गई है।’
आगे ब्लड प्रेशर के बारे में लिखा है- सालों तक एलोपैथिक दवाइयां लेने के बावजूद लोगों को हार्ट और ब्रेन स्ट्रोक और किडनी फेलियर होता है। नियमित रूप से योग और प्राणायाम करने, लौकी का जूस पीने और मुक्तावटी खाने से ब्लड प्रेशर और उससे जुड़ी समस्याओं के करोड़ों मरीज पूरी तरह ठीक हुए हैं।
ऐड में इसी तरह थायरॉइड, आंख और कान की बीमारियों, कोलेस्ट्रॉल, लिवर, स्किन डिजीज, आर्थराइटिस, अस्थमा और कई अन्य बीमारियों के इलाज में एलोपैथी को नाकाम बताया गया है और साथ ही पतंजलि की दवाइयों और योग द्वारा इन सभी बीमारियों को पूरी तरह ठीक करने के दावे किए गए हैं।
इस विज्ञापन में गलत क्या है और ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पहुंचा?
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी IMA ने सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन को लेकर याचिका दायर की थी। IMA का तर्क था कि हर कंपनी को अपने प्रोडक्ट्स का प्रचार करने का हक है, लेकिन पतंजलि के दावे ‘ड्रग्स एंड अदर मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954’ और ‘कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019’ का सीधा उल्लंघन करते हैं।
- IMA ने एलोपैथी और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली (मॉडर्न सिस्टम ऑफ मेडिसिन) के बारे में फैलाई जा रहीं गलत सूचनाओं पर चिंता जताई। याचिका में कहा गया कि पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन एलोपैथी की निंदा करते हैं और कई बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे दावे करते हैं।
- IMA ने केंद्र सरकार, ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) और सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (CCPA) से मांग की थी कि आयुष चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एलोपैथी को अपमानित करने वाले विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
- याचिका में बाबा रामदेव के दिए कुछ विवादास्पद बयानों का भी जिक्र किया गया। मसलन, एलोपैथी को ‘बेवकूफ और दिवालिया बनाने वाला विज्ञान’ बताना, कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान एलोपैथिक दवाओं के इस्तेमाल से लोगों की मौत का दावा करना वगैरह।
- IMA ने यह भी आरोप लगाए कि पतंजलि ने कोविड की वैक्सीन के बारे में अफवाह फैलाई, जिससे लोगों में वैक्सीन लगवाने को लेकर डर पैदा हो गया। याचिका में ये भी कहा गया कि पतंजलि ने कोरोना के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश कर रहे युवाओं का उपहास उड़ाया। आयुष मंत्रालय ने ASCI के साथ एक समझौता किया है, इसके बावजूद पतंजलि ने निर्देशों का उल्लंघन किया।
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन के मामले में कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ?
- IMA की याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2022 में तब के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा, ‘बाबा रामदेव अपनी चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बना सकते हैं, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना क्यों करनी चाहिए। हम सभी उनका सम्मान करते हैं। उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाया, लेकिन उन्हें दूसरी प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।’
- 21 नवंबर 2023 को कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को भ्रामक विज्ञापन और बीमारियों के इलाज के झूठे दावे करने के लिए फटकार लगाई। जस्टिस अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र की बेंच ने ऐसे विज्ञापनों पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी।
- इसके बाद पतंजलि के वकील ने कोर्ट में आश्वासन दिया था कि अब ऐसे विज्ञापन नहीं जारी किए जाएंगे। मीडिया में भी कोई कैजुअल स्टेटमेंट नहीं देंगे। कोर्ट ने पतंजलि के इस वादे को अपने आदेश में दर्ज किया था।
- हालांकि वादे के उलट पतंजलि ने विज्ञापन जारी रखे। इस पर कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और आचार्य बालकृष्ण को अवमानना का नोटिस जारी कर दिया। साथ ही कोर्ट ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) एक्ट 1954 में बताई गई बीमारियों के इलाज से जुड़े पतंजलि आयुर्वेद के प्रोडक्ट्स का विज्ञापन और ब्रांडिंग करने से भी रोक दिया। कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को किसी भी चिकित्सा प्रणाली के खिलाफ बयान देने से भी मना किया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार से भी नाराजगी व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि वह इस मुद्दे को ‘एलोपैथी बनाम आयुर्वेद’ की बहस नहीं बनने देना चाहता। इस बारे में सरकार को सोचना चाहिए।
- कोर्ट ने पतंजलि के विज्ञापनों में किए जा रहे दावों को लेकर केंद्र सरकार से ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) एक्ट 1954 के तहत कार्रवाई करने को कहा 19 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव को सुनवाई की अगली तारीख 2 अप्रैल को पेश होने का आदेश दे दिया।
- इसके बाद पतंजलि आयुर्वेद और उसके MD आचार्य बालकृष्ण ने गुमराह करने वाले भ्रामक दवा विज्ञापन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी है।
- इस माफीनामे में विज्ञापन को फिर से प्रसारित न करने का भी वादा किया गया है। आचार्य बालकृष्ण का कहना है कि कंपनी के मीडिया विभाग को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी।
केंद्र सरकार ने इस मामले में अब तक क्या किया है?
- नवंबर 2023 के अपने आदेश में कोर्ट ने सरकार से इस विवाद का एक व्यावहारिक समाधान ढूंढने को कहा था, लेकिन अब तक सरकार ने क्या कार्रवाई की या कौन से कदम उठाए, इस बारे में अब भी सरकार के जवाब का इंतजार है।
- 19 मार्च को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार ने जो भी कार्रवाई की है, उसका विस्तृत हलफनामा तैयार किया जाएगा। हालांकि, जब केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से हलफनामे के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि हलफनामा कल यानी एक दिन पहले दायर कर दिया गया है।
- इस पर कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी जोड़ा कि, ‘केंद्र की तरफ से पेश वकील ने अदालत को बताया कि भारत संघ द्वारा दायर हलफनामा पर्याप्त नहीं था। इसलिए नया हलफनामा दायर करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कल शाम 5:45 बजे हलफनामा दायर किया गया है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि वह रिकॉर्ड में नहीं है।’
- सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आशीष कुमार पांडेय कहते हैं, ‘सामान्य तौर पर कोई हलफनामा दाखिल करने के बाद कोर्ट का रजिस्ट्री कार्यालय उसकी जांच करता है। देखा जाता है कि सभी जरूरी तथ्य सम्मिलित हैं या नहीं। कोई भी हलफनामा दाखिल करते समय सुप्रीम कोर्ट के नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है, इसलिए सामान्य तौर पर हलफनामा दाखिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड तक आने में 4 से 5 दिन का समय लग जाता है।’
रामदेव के साथ आगे क्या हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आशीष कुमार पांडेय कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति या संस्थान चाहे कितना भी प्रभावशाली हो, उसे कोर्ट के आदेश का पालन करना ही होगा। अब अगर कोर्ट के अगले आदेश के अनुसार बाबा रामदेव और पतंजलि कोर्ट में पेश नहीं होते हैं तो उन्हें इसका उचित कारण बताना होगा।
सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से तय करेगा कि उनका कारण कितना उचित है। अगर कारण उचित नहीं लगता है तो बाबा रामदेव और पतंजलि के पास एक ही विकल्प है कि वह आकर बिना शर्त माफी मांगें। उन्होंने फिलहाल माफी मांगी भी है. सुनवाई की तय तारीख पर कोर्ट में पेश न होने पर उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की जा सकती है।
सामान्य तौर पर व्यक्ति जब माफी मांग लेता है तो कोर्ट उसे स्वीकार कर लेता है और आगे कार्रवाई नहीं करता, लेकिन अगर कोई व्यक्ति बिना उचित आधार के जानबूझकर कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करता है, तो कोर्ट उस पर जुर्माना लगा सकता है या फिर जमानती वारंट से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने का आदेश भी दे सकता है। ये कोर्ट के अपने विवेकाधिकार पर निर्भर है।
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन केस में आगे क्या होगा?
- सुप्रीम कोर्ट यह कह चुका है कि वह आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की बहस को बढ़ाना नहीं चाहता। इस मामले में पतंजलि के अलावा ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया, सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाया गया है। कोर्ट ने उन्हें जरूरी निर्देश भी दिए हैं।
- पतंजलि को कोर्ट में अपनी बात कहने का मौका दिया गया था। वह अपनी दवाइयों की गुणवत्ता पर कोर्ट में अपना पक्ष रख सकते थे, लेकिन वह अब तक कोर्ट में नहीं आए। ऐसे में ये दोहरा आरोप होता है। एक तो उन्होंने कोर्ट के आदेशों की अवमानना करते हुए भ्रामक प्रचार जारी रखा और दूसरा वह कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद अपना पक्ष रखने के लिए कोर्ट में नहीं आए। हालांकि उन्होंने विज्ञापन जारी रखने के लिए बिना शर्त माफी मांग ली है और कहा है कि कंपनी के मीडिया विभाग को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी।
- केंद्र सरकार को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के तहत कार्रवाई करने को कहा गया था। सरकार क्या एक्शन ले रही है, इस बारे में भी हलफनामा फाइल करने को कहा गया था। हालांकि अभी कोर्ट के रिकॉर्ड में हलफनामा नहीं आया है। हलफनामा सामने आने के बाद ही पता चल सकेगा कि सरकार ने क्या कार्रवाई की है।
मेडिकल एसोसिएशन की आपत्ति की असली वजह क्या है?
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष अश्विनी डालमिया कहते हैं, ‘बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का दूर-दूर तक आयुर्वेद से भी कोई लेना-देना नहीं है। हमें नहीं पता है कि उनके पास आयुर्वेद की कौन सी डिग्री है। अगर बाबा रामदेव के पास कोई डिग्री भी है तो भी उन्हें ये कहने का अधिकार नहीं है कि एलोपैथी की दवाइयां गलत हैं और हमारी दवाइयां ठीक हैं। एलोपैथी का दुष्प्रचार करना हमें स्वीकार नहीं है। देश की जनता अभी भी बहुत जागरूक नहीं है। ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के चलते लोग एलोपैथी का इलाज बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती है।’
अश्विनी आगे कहते हैं, ‘अगर कोई पैथी किसी दूसरी पैथी से बेहतर है या अच्छा इलाज कर रही है, तो ये मरीज के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किस पद्धति से अपना इलाज करवाएगा। किसी भी चिकित्सा पद्धति से एलोपैथी या IMA को कोई समस्या नहीं है और न ही हम किसी पैथी के खिलाफ कोई दावा करते हैं, जबकि बाबा रामदेव लगातार टीवी चैनलों पर एलोपैथी के खिलाफ बयान देते रहते हैं।’
आपातकाल की स्थिति में मरीजों के लिए एलोपैथी एक आम विकल्प है, लेकिन लंबी चलने वाली लाइफस्टाइल की दिक्कतों जैसे बीपी, शुगर आदि का पूर्ण इलाज एलोपैथी में भी नहीं है, जबकि पतंजलि के विज्ञापन में ऐसी बीमारियों को पूरी तरह ठीक करने के दावे हैं।
अश्विनी कहते हैं, ‘एलोपैथी ये दावा नहीं करती कि हम किसी बीमारी को पूरी तरह ठीक कर देते हैं, बल्कि हम यह कहते हैं कि हम किसी बीमारी को नियंत्रित करते हैं। एलोपैथी में कोई भी दवाई लंबी वैज्ञानिक प्रक्रिया और कई चरणों के ट्रायल के बाद अस्तित्व में आती है। मरीज आयुर्वेद, होम्योपैथी या किसी और तरह का इलाज लेने के लिए भी स्वतंत्र है। हमें उससे ऐतराज नहीं है। हमारी शिकायत ये है कि बाबा रामदेव के विज्ञापन एलोपैथी को गलत तरीके से बदनाम करते हैं।’
बाबा रामदेव पहले भी कई विवादित दावे कर चुके हैं
- रामदेव बाबा ने कोविड-19 के दौरान दावा किया था कि उनके प्रोडक्ट कोरोनिल और स्वसारी से कोरोना का इलाज किया जा सकता है। इस दावे के बाद कंपनी को आयुष मंत्रालय ने फटकार लगाई और इसके प्रमोशन पर तुरंत रोक लगाने को कहा था।
- साल 2015 में कंपनी ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च करने से पहले फूड सेफ्टी एंड रेगुलेरिटी ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) से लाइसेंस नहीं लिया था। इसके बाद पतंजलि को फूड सेफ्टी के नियम तोड़ने के लिए लीगल नोटिस का सामना करना पड़ा था।
- साल 2015 में ही कैन्टीन स्टोर्स डिपार्टमेंट ने पतंजलि के आंवला जूस को पीने के लिए अनफिट बताया था। इसके बाद CSD ने अपने सारे स्टोर्स से आंवला जूस हटा दिया था। 2015 में ही हरिद्वार में लोगों ने पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियां मिलने की शिकायत की थी।
- 2018 में भी FSSAI ने पतंजलि को मेडिसिनल प्रोडक्ट गिलोय घनवटी पर एक महीने आगे की मैन्युफैक्चरिंग डेट लिखने के लिए फटकार लगाई थी।
- कोरोना के अलावा, रामदेव बाबा कई बार योग और पतंजलि के प्रोडक्ट्स से कैंसर, एड्स और होमोसेक्शुअलिटी तक ठीक करने के दावे को लेकर विवादों में रहे हैं।