आरटीओ दफ्तर चला रहे एवजी ?
4 बड़े शहरों के आरटीओ दफ्तर चला रहे एवजी …..
किराए के इन कर्मचारियों के पास गोपनीय फाइलों से लेकर सॉफ्टवेयर के पासवर्ड भी
मध्यप्रदेश के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय यानी RTO का सारा कामकाज यहां के कर्मचारी नहीं, बल्कि एवजी संभाल रहे हैं। यानी किराए के कर्मचारी। एवजी यानी ऐसे लोग जिन्हें सरकार ने नियुक्ति नहीं किया, बल्कि आरटीओ के कर्मचारियों ने इन्हें अपना काम करने के लिए तैनात किया है।
……की टीम ने लगातार तीन दिन तक मध्यप्रदेश के चार बड़े शहर भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर के आरटीओ में जाकर देखा तो सारा काम ये एवजी करते मिले। …..की टीम ने इन एवजियों की तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद की। एक्सपर्ट का कहना है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपना काम करने के लिए किसी दूसरे को नियुक्त नहीं कर सकता। ये नियम के खिलाफ है।
इस रिपोर्ट में आपको ये भी बताएंगे कि आखिर एवजी किस-किस तरह के काम कर रहे हैं। इनकी सैलरी कौन देता है। किस अधिकारी ने कितने एवजी रखे हैं। उनके नाम क्या है और वे किस तरह से पूरा आरटीओ दफ्तर चला रहे हैं। आरटीओ के दलाल और एवजी में क्या फर्क है और इस मामले में मप्र के परिवहन मंत्री का क्या कहना है। सबसे पहले समझिए कौन होते हैं एवजी
अब बताते हैं भोपाल RTO पर कैसे है एवजियों का कब्जा…
भोपाल: महिला कर्मचारी मोबाइल पर बात कर रही, एवजी पूरा काम कर रहा
राजधानी भोपाल में आरटीओ का दफ्तर कोकता एरिया में है। अभी नई बिल्डिंग बनी है। यहां अंदर दाखिल होते ही अलग- अलग विभागों की विंडो नजर आती है। लर्निंग लाइसेंस शाखा की विंडो के काउंटर पर दो लोग बैठे हुए हैं। इनमें से एक महिला हैं जिनका नाम रजनी है, जो इस शाखा की बाबू यानी क्लर्क है। दूसरे शख्स का नाम हरि है।
दैनिक भास्कर की टीम पर जब यहां पहुंची तो देखा कि रजनी मोबाइल पर बात कर रही है। हरि, काउंटर पर पूछताछ करने आने वाले लोगों से बात कर रहा है। वह लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले लोगों का डेटा कंप्यूटर पर भी फीड कर रहा है।
हरि जो काम कर रहा है उसे वो कर ही नहीं सकता। उसे अधिकार भी नहीं है क्योंकि वह आरटीओ का कर्मचारी ही नहीं है। वह एक एवजी है। अपना काम करने के लिए क्लर्क रजनी ने हरि को नियुक्त किया है। हरी की सैलरी भी वो ही देती है।
डेटा एंट्री से लेकर गोपनीय फाइल संभालने का काम कर रहे हैं एवजी
ये केवल एक शाखा का मामला नहीं है। आरटीओ में जिस शाखा में जाएंगे वहां एवजी ही नजर आएंगे। आरटीओ में कर्मचारियों की संख्या महज 34 है, लेकिन आरटीओ से लेकर बाबू तक ने 50 से ज्यादा एवजी तैनात किए हैं। खुद आरटीओ अधिकारी संजय तिवारी ने अपने दफ्तर में 6 एवजी तैनात किए हुए हैं। कई शाखाओं में तो बाबुओं की संख्या से तीन गुना एवजी काम कर रहे हैं।
ये एवजी सरकारी फाइलों की प्रक्रिया को पूरा करने से लेकर सॉफ्टवेयर डेटा एंट्री तक का काम संभालते हैं। इनके पास अलग अलग शाखाओं के सॉफ्टवेयर के पासवर्ड तक मौजूद हैं। गोपनीय दस्तावेजों के रख रखाव के साथ ये अपने अफसरों के लिए दलालों से वसूली का काम भी करते हैं।
अब समझिए एवजी और दलाल में क्या अंतर है…
दैनिक भास्कर ने आरटीओ के बाहर बैठने वालों दलालों से ही समझा कि दलाल और एवजी में क्या अंतर है। दोनों के काम किस तरह से अलग है।
दलाल : दलाल यानी एजेंट, आरटीओ से जुड़े जितने भी काम जैसे लाइसेंस बनवाना, फिटनेस सर्टिफिकेट, परमिट दिलाना। ये सभी काम दलाल करते हैं। दलाल इन कामों के एवज में कमीशन लेते हैं।
मान लीजिए आपको टू व्हीलर का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है तो लाइसेंस प्रक्रिया की फीस 1400 रु. है। यदि यही काम दलाल के जरिए करवाते हैं तो दोगुना पैसा देना पड़ता है। आरटीओ के अलग-अलग कामों के लिए दलालों का कमीशन भी अलग अलग होता है।
एवजी : आरटीओ से जुड़े जो काम दलाल अपने हाथ में लेते हैं उन्हें एवजी पूरा करते हैं। एवजी दफ्तर के भीतर मौजूद होते हैं। वे फाइलों को आगे बढ़ाने और उसे संबंधित अधिकारी तक पहुंचाने का काम करते हैं।
दलाल आम आदमी से जो कमीशन लेता है उसका एक हिस्सा अधिकारी का भी होता है। अधिकारी इसी हिस्से में से कुछ राशि एवजी को देता है।
अब जानिए किस शाखा में कितने एवजी..
आरटीओ के पास 6, दूसरे नंबर पर है ट्रांसफर- टैक्स समायोजन शाखा
भास्कर की टीम ने जब आरटीओ दफ्तर का जायजा लिया तो चौंकाने वाली हकीकत सामने आई। क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी यानी आरटीओ के ऑफिस में 6 एवजी काम करते हैं। सभी शाखाओं से जुड़े काम आखिर में आरटीओ के पास आते हैं। यहां सभी काम एवजी के जरिए ही होते हैं।
इसके बाद सबसे ज्यादा एवजी वाहन ट्रांसफर और टैक्स समायोजन शाखा में है। यहां इनकी संख्या 5 हैं। इस शाखा में अन्य राज्यों के वाहनों का फिटनेस सर्टिफिकेट, नाम परिवर्तन, रजिस्ट्रेशन, फिटनेस अपडेट, ट्रैवल लाइसेंस, पीयूसी लाइसेंस जैसे काम किए जाते हैं। इन सभी कामों को एवजी ही पूरा करते हैं।
महिला कर्मचारी भी एवजी तैनात करने में पीछे नहीं
आरटीओ में महिला कर्मचारियों की संख्या 12 हैं। और इन्होंने अपना काम करने के लिए 22 एवजियों को तैनात किया हुआ है। ज्यादातर महिला कर्मचारी लाइसेंस ट्रांसफर, न्यू रजिस्ट्रेशन और वाहन ट्रांसफर शाखा में तैनात है।
यहां विंडो से जमा होने वाली फाइल लेने से लेकर टीप लगाने तक का काम और डेटा सॉफ्टवेयर में अपलोड करने का काम भी एवजी ही करते हैं। बाबू सिर्फ अपनी साइन की हुई फाइल को आगे बढ़ा देते हैं। इसके बाद एवजी इसे अगले अधिकारी के एवजी तक पहुंचा देता है।
अब समझते हैं कहां से आता है इनकी सैलरी का पैसा
परिवहन विभाग की शाखाओं में दलाल काम लेकर आते हैं। इन दलालों के काम कराने की जिम्मेदारी एवजियों की होती हैं। काम पूरा होने पर अफसर और बाबुओं के लिए रिश्वत की रकम वसूल करने का काम एवजी करते हैं।
इसके बदले बाबू उन्हें वेतन या कहें कि दलाली में हिस्सा देते हैं। वेतन की ये राशि एवजी के अनुभव और एजेंट से आए काम पर निर्भर करती है। एक एवजी की कमाई 30 हजार रुपए से ज्यादा की होती है। कई एवजियों को 40 हजार रुपए महीना तक मिल रहा है।
आरटीओ में 50 से ज्यादा एवजी काम कर रहे हैं, इस हिसाब से देखें तो इन्हें आरटीओ के बाबू और अफसर 15 से 17 लाख रु. दे रहे हैं। यानी महीने का 60 से 90 हजार रुपए वेतन पाने वाला एक बाबू 30 से 40 हजार रुपए तो एवजी को ही वेतन के रूप में दे रहा हैं।
अब इंदौर आरटीओ का हाल…
हर किसी के हाथ में फाइल, कौन कर्मचारी, कौन एवजी पता नहीं चलता
दैनिक भास्कर की टीम जब पत्थर मुंडला स्थित आरटीओ दफ्तर पहुंची तो यहां हर व्यक्ति के हाथ में फाइल नजर आई। कौन एजेंट है, कौन कर्मचारी पता ही नहीं चलता। इनका मूवमेंट ऑनलाइन बिल्डिंग से लेकर मुख्य ऑफिस तक देखा जा सकता है।
नया लाइसेंस बनाना हो, लाइसेंस रिन्यूअल करवाना हो या फिर गाड़ी के पेपर ट्रांसफर करवाना हो या कोई और काम। हर काम को गारंटी से कराने का दावा किया जाता है। हां, इसके लिए तय फीस से दो से तीन गुना चार्ज देना होता है। बिल्डिंग में हर तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लेकिन एजेंट और कर्मचारी तालमेल बनाकर सब कुछ मैनेज करते हैं।
5500 रुपए में एक दिन में लाइसेंस रिन्यू का भरोसा
भास्कर ने एक एजेंट से 2022 में एक्सपायरी हो चुके फोर व्हीलर के लाइसेंस को रिन्यू करने के लिए कहा। वो बोला- 2 साल की 2 हजार रुपए पेनाल्टी और 1300 रुपए फीस समेत करीब 3500 रुपए लगेंगे। दो महीने बाद लाइसेंस घर पहुंचेगा। आगे बोला- तुरंत चाहिए तो 5500 रुपए लगेंगे और दूसरे दिन लाइसेंस घर पर पहुंच जाएगा। उसने जरूरी डॉक्यूमेंट की जानकारी भी दी और कहा कि मेडिकल की चिंता नहीं करें, सब कुछ हो जाएगा। उससे ये भी पूछा कि दूसरे राज्य का लाइसेंस रिन्यू करना है तो वो बोला- कहीं जाने की जरूरत नहीं सारी व्यवस्थाएं हैं।
एक और एजेंट बोला- कर्मचारियों की जेब गर्म करो और काम कराओ
वहीं आरटीओ दफ्तर में मौजूद एक एजेंट ने बताया कि आम आदमी के लिए ये सारी प्रोसेस काफी लंबी होती है। जो इस भ्रष्ट सिस्टम को जानता है उसके लिए काम कराना बेहद आसान है। उसने काम कराने का रास्ता भी बताया, बोला- ऑनलाइन वाले के पास बैठो। वो सारी जानकारी निकाल देगा। उसे डॉक्यूमेंट दो, थोड़ी जेब गर्म करो तो तत्काल काम हो जाएगा।
जबलपुर आरटीओ में रिटायर्ड कर्मचारी ही ‘दलाल’
जबलपुर आरटीओ ऑफिस में कुछ ऐसे कर्मचारी है जो कि रिटायर होने के बाद भी ऑफिस में जमे हुए हैं। ये आरटीओ अफसर की गैरमौजूदगी में दफ्तर आते हैं। कुछ घंटे काम करते हैं और लौट जाते हैं। कई बार तो ये रिटायर कर्मचारी अधिकारी के केबिन में पहुंचकर फाइलों की जांच भी करते हैं।
कर्मचारियों ने भी काम करने के लिए एवजी रखे
वहीं जो मौजूदा कर्मचारी है उन्होंने भी काम करने के लिए एवजियों को रखा है। जैसे वाहन ट्रांसफर शाखा के तुलसी बाबू और मधुरिका तिर्की, फिटनेस शाखा के खरे बाबू, लाइसेंस रिन्युअल शाखा के सरबजीत सिंह इन्होंने तीन-तीन लड़के काम पर रखे हैं। रजिस्ट्रेशन शाखा के तोमर बाबू की मदद के लिए दो लड़के हैं। परमिट शाखा के जैन बाबू के पास एक लड़का है।
अब बताते हैं ग्वालियर आरटीओ का हाल…
ग्वालियर में 16 कर्मचारियों ने रखे 22 एवजी
यहां आरटीओ कार्यालय में 16 कर्मचारी काम करते हैं। इन्होंने 22 एवजी यानी किराए के कर्मचारी रखे हुए हैं। इसके अलावा 10 से 12 बाबू ऐसे हैं जिन्होंने अपने पर्सनल एवजी रखे हुए हैं। एवजियों के अलावा यहां एक सैकडा दलाल भी सक्रिय हैं।
नर्मदापुरम की आरटीओ बोलीं- अब कोई एवजी नहीं
नर्मदापुरम की आरटीओ निशा चौहान पर आरोप लगता है कि उनका जिस जिले में ट्रांसफर होता है वो वहां अपने एवजी लेकर जाती हैं। सूत्रों के मुताबिक निशा चौहान के पास पांच एवजी सुनील शर्मा, राजकुमार पांडे, धीरज, पंकज और गोलू तैनात हैं। यानी अधिकारी का जहां तबादला होता है वहां इनके एवजी का भी ट्रांसफर हो जाता है।
इन आरोपों की सच्चाई जानने दैनिक भास्कर ने नर्मदापुरम की आरटीओ निशा चौहान से फोन पर बात की तो उन्होंने ये माना कि पहले उनके दफ्तर में एवजी काम करते थे, लेकिन उन्होंने कार्रवाई कर सभी को हटा दिया है।
लोकायुक्त की कार्रवाई के बाद भी अफसर-बाबू को नहीं डर
परिवहन विभाग के दफ्तर में ये खेल सालों से चल रहा है। 2017 में लोकायुक्त ने भोपाल के तत्कालीन आरटीओ सुनील राय सक्सेना और बाबू विपल्व बुचके को दफ्तर में एवजी रखने जैसी अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर केस दर्ज किया था।
बस ऑपरेटर प्रताप सिंह यादव ने इसकी शिकायत लोकायुक्त को की थी। शिकायत में कहा गया था कि दोनों बाबू.जावेद और अनस नाम के एवजियों के जरिए अवैध तरीके से वसूली कर रहे हैं। इस शिकायत के बाद दोनों बाबुओं ने एवजियों को बदल दिया, लेकिन बुचके के पास अब भी एवजी काम कर रहे हैं।
एवजियों के बारे में अधिकारियों को पता है, मगर कार्रवाई नहीं
आरटीओ का सारा काम एवजियों के हाथ में है। इसकी जानकारी आरटीओ से लेकर अधिकारी तक को है, लेकिन वे सालों से चली आ रही व्यवस्था को खत्म करने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाते।
नए परिवहन आयुक्त डीपी गुप्ता ने फरवरी में आयुक्त का पद ग्रहण करते समय कहा था कि विभाग में 50 फीसदी पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। इस कारण काम करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश में 10 क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी, 10 अतिरिक्त क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी और 32 जिला परिवहन अधिकारी कार्य कर रहे हैं।