जलवायु गतिविधियों का अर्थशास्त्र समझना जरूरी है

जलवायु गतिविधियों का अर्थशास्त्र समझना जरूरी है

लगभग तीन दशकों से वैश्विक जलवायु वार्ताएं एक ही चीज पर केंद्रित रही हैं, क्लाइमेट एंबीशन। लेकिन क्लाइमेट एक्शन क्या रहे? जलवायु परिवर्तन एक आर्थिक समस्या भी है। ऐसे में क्लाइमेट एक्शन पर गौर करना ज्यादा जरूरी है।

आइए एक उदाहरण से देखते हैं। पिछले साल ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 2.8 ट्रिलियन डॉलर निवेश का आकलन रहा। इसमें से 1 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा-सा अधिक निवेश जीवाश्म ईंधन में हुआ, जबकि 1.8 ट्रिलियन डॉलर का निवेश स्वच्छ ऊर्जा में आया।

इसके अलावा वैश्विक स्तर पर एक साल में स्वच्छ ऊर्जा का बुनियादी ढांचा 50% बढ़ गया। लेकिन चीन को छोड़कर उभरते बाजारों में स्वच्छ ऊर्जा में निवेश स्थिर बना रहा। सवाल उठता है कि कैसे हम इन खरबों डॉलर के निवेश को ग्लोबल साउथ में लाएं?

किसी भी क्लाइमेट एक्शन के लिए ये समझना जरूरी है कि कैसे विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं मिलकर काम करती हैं। इसे पानी और हवा के उदाहरण से समझते हैं। पानी कृषि के अर्थशास्त्र से होकर बहता है। हम चीन और अमेरिका के सम्मिलित भूजल दोहन की तुलना में अधिक भूजल निकालते हैं।

इसलिए, पानी के उपयोग को अधिकतम स्तर तक कुशल बनाना सिर्फ पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है। अभी भारत अपने शहरों से निकलने वाले 30% से भी कम वेस्टवॉटर का ट्रीटमेंट करता है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के विश्लेषण के अनुसार, अकेले 2021 में ट्रीटेड वेस्ट वॉटर को सिंचाई में इस्तेमाल करने पर 966 अरब रु. का राजस्व मिल सकता था।

इसके अलावा, उपलब्ध ट्रीटेड वेस्टवॉटर से 6,000 मीट्रिक टन पोषक तत्व भी मिल सकते थे। फिर भी वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट सिर्फ पूंजीगत व्यय का मामला नहीं है, यह संसाधनों की सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ाता है।

स्वच्छ हवा भी आर्थिक संपदा है। हम देख रहे हैं कि ब्रिक्स देशों में एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब होने से एफडीआई घटा है। यदि हम निवेश बढ़ाना चाहते हैं, तो जलवायु, स्वच्छ हवा, स्वच्छ ऊर्जा और पानी, सभी को साथ लाना होगा।

इस आर्थिक समीकरण में जिस कमी को दूर करना सबसे ज्यादा जरूरी है, वह है तालमेल। ग्लोबल साउथ में निवेश की लागत बहुत ज्यादा है। क्योंकि मैक्रो इकोनॉमिक्स के जोखिम हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। यदि फेड रिजर्व अपनी ब्याज दरें बढ़ाता है तो उभरते बाजारों में निवेश करने वालों के लिए कर्ज का खर्च बढ़ जाता है।

जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर बैंकों के गवर्नर ब्याज दरों में तालमेल बनाएं, ताकि जलवायु परिवर्तन से समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर और स्वच्छ तकनीकी से सृजित अवसरों को ज्यादा न्यायसंगत ढंग से संभाला जा सके।

दूसरा, हमें अपनी सप्लाई चेन में समन्वय लाने की जरूरत है। नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचने और जलवायु वादों को पूरा करने के लिए भारत को अगले दशक तक प्रत्येक घंटे 10-12 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा स्थापित करनी होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि हमारी सप्लाई चेन व्यवस्थित रहे। इसके लिए विभिन्न देशों में तालमेल जरूरी है।

और अंत में, नियामकीय क्षेत्राधिकारों में भी तालमेल लाने की जरूरत है। भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादक देश है। ऐसे में यदि विभिन्न देशों में अलग-अलग नियम हैं तो हम ग्रीन हाइड्रोजन के लिए वैश्विक बाजार नहीं बना सकते।

जब हम संसाधनों की एक सर्कुलर इकोनॉमी बनाएंगे, स्वच्छ वातावरण से मिलने वाले लाभों को महत्व देंगे और अधिकतम परिणाम हासिल करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में तालमेल लाएंगे, तब निवेश सही दिशा और सही भौगोलिक क्षेत्रों में आने लगेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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