ग्वालियर : करोड़ों की जमीन, पटवारी बोला- सरकारी . ?

करोड़ों की जमीन, पटवारी बोला- सरकारी …
यौन प्रताड़ना के मामले में हटने से पहले तत्कालीन तहसीलदार कर गए निजी
  • नौगांव की जमीन का है पूरा मामला, शिकायत के बाद उठे सवाल - Dainik Bhaskar
नौगांव की जमीन का है पूरा मामला, शिकायत के बाद उठे सवाल …

यौन प्रताड़ना के आरोपों से विवादों में घिरे सिटी सेंटर तहसील के तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है। यौन प्रताड़ना का आरोप, उसके बाद केदारपुर की एक जमीन को लेकर गलत आदेश और उस पर स्टे के बाद अब नौगांव में करोड़ों की जमीन को शासकीय से निजी बताने के आदेश पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कलेक्टर कार्यालय में एक शिकायत आई है, जिसमें इस आदेश को सांठगांठ कर आदेश करना बताया गया है।

जब इस नौगांव की जमीन बारे में पटवारी अमरसिंह से बात की गई तो उनका कहना है कि जमीन शासकीय है। आरआई मिथलेश से बात की गई तो उनका कहना है कि मैंने कोई रिपोर्ट नहीं दी। पिछले तहसीलदार सहित हाईकोर्ट कोई भी जमीन को निजी नहीं मान रहे थे। अब तहसीलदार ने हटने से कुछ समय पहले इस जमीन को निजी करने का आदेश पारित किया था। शिकायतकर्ता ने इसी बात पर सवाल उठाते हुए जांच की मांग की है। इस प्रकरण का नंबर 0030/ बी-121/2022-23 भी RCMS पोर्टल पर किसी महिला के आर्थिक सहायता का दिख रहा है।

तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान
तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान

ऐसी जमीन को निजी किया, जिसको लेकर कई दावे खारिज हुए
विवादों से घिरे सिटी सेंटर क्षेत्र के तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान एक के बाद एक मुसीबत से घिरते जा रहे हैं। एक महिला से यौन उत्पीडन की शिकायत पर नपने से पहले नौगांव क्षेत्र की करोड़ों रुपए की शासकीय भूमि को निजी करने का आरोप अब लगा है। यह भूमि शिवपुरी लिंक रोड पर टोयटा शोरूम के पास है जहां एक बीघा जमीन की कीमत दो से तीन करोड़ रुपए से कम नहीं है। जानकारी के मुताबिक महिला उत्पीडन की शिकायत पर जिलाधीश रुचिका चौहान ने तत्कालीन तहसीलदार चौहान को 06 अप्रैल को पद से हटाकर कलेक्ट्रेट में अटैच कर दिया लेकिन इसके ठीक दो दिन पहले उन्होंने एक ऐसी जमीन को निजी घोषित कर दिया जिसे लेकर पहले ही कई दावे खारिज किए जा चुके थे।

ऐसे समझिए पूरा मामला
सिटी सेंटर के तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान ने ग्राम नौ गांव तहसील सिटी सेंटर में सर्वे क्रमांक 110/2 रकवा 1.630, सर्वे 111/2 रकवा 2.508 कुल किता दो रकवा 4.138 हेक्टेयर यानी कि करोड़ों रुपए कीमत की 18 बीघा जमीन को स्व शंकर सिंह गुर्जर के पुत्रों और अन्य वारिसों के नाम करने के आदेश जारी किए हैं। जबकि वर्ष 2009-10 के खसरे में शंकर सिंह का नाम था ही नहीं। उसकी मृत्यु 2 मार्च 2009 में होने के बाद वारिसों द्वारा उक्त भूमि अपने नाम किए जाने के आवेदन को शत्रुघन चौहान से पहले तहसीलदार ने 7 मई 2018 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि भूस्वामी का नाम कंप्यूटर अभिलेख में दर्ज नहीं है। इसके बाद अपील की गई साथ ही मामला उच्च न्यायालय भी पहुंचा। याचिका क्रमांक 2040/2020 में न्यायालय ने 7 फरवरी 2020 को अपने आदेश में पट्टे की वैद्यता की जांच के लिए कहा। जिसके खिलाफ रिट अपील 392/2020 प्रस्तुत की गई।

ये हुई है तत्कालीन तहसीलदार के आदेश पर शिकायत
ये हुई है तत्कालीन तहसीलदार के आदेश पर शिकायत

बार-बार निरस्त हुआ आवेदन
इस आदेश के पालन में तहसीलदार न्यायालय ने 4 जनवरी 2023 जांच उपरांत आवेदन निरस्त कर दिया। इसके बाद एसडीएम झांसी रोड के माध्यम से जिलाधीश न्यायालय तक मामला पहुंचने पर उन्होंने भी 22 अगस्त 2023 आवेदन निरस्त कर दिया। इसमें अपील करने की स्वतंत्रता दी गई। जिस पर एसडीएम के यहां की जिसका निराकरण 21 दिसंबर 2023 को झांसी रोड एसडीएम ने करते हुए 4 मई के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही याचिका क्रमांक 392/2020 में दिए आदेश के क्रम में आदेश पारित किया। इसमें कहा गया था कि अभिलेख का सूक्ष्मता से परीक्षण कर निराकरण करें। बस इसी के बाद तत्कालीन तहसीलदार ने सारी जमीन निजी घोषित कर दी। साथ ही यह लेख किया कि शासकीय भूमि को निजी भूमि के रूप में परिवर्तित करने का अधिकार जिलाधीश को है।
पटवारी ने कहा कांटछांट हुई
इस मामले में इस इलाके के पटवारी अमर सिंह ने बताया कि उनसे तत्कालीन तहसीलदार चौहान ने कोई रिपोर्ट फिलहाल नहीं मांगी थी। वहीं पुराने खसरों में अलग स्याही से कांटछांट कर नाम चढ़ाए जाना दिखाई दे रहा है। यह आरोप अपने आप में गंभीर हैं।
आरआई ने भी झाड़ा पल्ला
इस मामले में संबंधित एरिया के आरआई मिथलेश कुमार से बात की गई तो उन्होंने इस आदेश से पल्ला झाड़ लिया। उनका कहना है कि मुझसे न कोई रिपोर्ट मांगी न ही इस आदेश के बारे में मुझे कुछ पता है। यह उन्हीं (तत्कालीन तहसीलदार) का आदेश है।
सही दिया है आदेश
तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह पहले ही अपने आदेश को सही कह चुके हैं। उनका कहना है कि एक-एक बात और तथ्य सही हैं। बिना किसी आधार के कोई आदेश नहीं दिया जाता है।

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