निजी संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है ?

निजी संपत्ति पर किसका अधिकार, सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर अब तक क्या हुआ?
निजी संपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट जिस मामले में सुनवाई कर रही है, वो केस संख्या- 1012/2002 से जुड़ा हुआ है. इसमें प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन और अन्य वादी हैं. महाराष्ट्र सरकार प्रतिवादी. 

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच इस पूरे मामले की सुनवाई कर रही है. कोर्ट इस मामले में 2 सवालों का जवाब तलाश रही है, जिसे इस मुद्दे का आसानी से हल निकाला जा सके. 

इस स्टोरी में इस पूरे मसले को आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं…

निजी संपत्ति का यह केस कोर्ट कैसे पहुंचा?
महाराष्ट्र में 1986 में राज्य की सरकार ने एक कानून के तहत जमीन और घर को प्राप्त करने के लिए महाराष्ट्र हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट ऑथोरिटी (MHADA) के नियमों में एक बदलाव किया. 

महाराष्ट्र में हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट ऑथोरिटी एक विभाग है, जो प्रॉपटी से जुड़े कामकाज को देखती है. 

इसके मुताबिक मकान में रहने वाले 70 प्रतिशत लोग अगर अनुरोध करते हैं तो सरकार उस मकान या जमीन को अधिग्रहित कर सकती है. मुंबई में यह उस वक्त एक बड़ा मसला बन गया था. 

सरकार का कहना था कि हम इन मकानों को नीति के तहत जरूरतमंद लोगों को देंगे. इस कानून के खिलाफ कई लोगों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की. यह मामला 1992 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तब से मामला उच्च न्यायालय में ही है.

2 सवालों का जवाब ढूंढ रही है सुप्रीम कोर्ट
निजी संपत्ति के इस केस में सुप्रीम कोर्ट 2 सवालों का जवाब ढूंढ रही है. इनमें पहला सवाल है,  क्या कंपनी अथवा निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है?

दूसरा सवाल इन मामलों में समुदाय को परिभाषित करना है. सुप्रीम कोर्ट के इन 2 सवालों की जद में संविधान के अनुच्छेद 39(B) और 31(C) है. कोर्ट सुनवाई में यह देखेगा कि संविधान के इस अनुच्छेद कितना औचित्य है?

अनुच्छेद 39 (B) में कहा गया है कि राज्य अपनी नीति से यह सुनिश्चित करेगा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए जो आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो’.

अनुच्छेद 31 (C) 1971 में संसोधन कर लाया गया है. इसे लाने का मकसद यह था कि अनुच्छेद 39 (बी) और 39 (सी) का अदालत में  अनुच्छेद 14 (समानता) और 19 (स्वतंत्रता) से किया जा सके.

9 जजों की संवैधानिक बेंच के पास है केस
इस मामले की सुनवाई 9 जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है, जिसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. 

यह मामला 2001 में 7 जजों की बेंच के सामने गया था, जिसके बाद 2002 में इसे वापस 9 जजों के पास भेजा गया, लेकिन उस वक्त समय और परिस्थिति की वजह से इस मामले में बेंच गठित नहीं हो पाई थी. 

2024 में सीजेआई चंद्रचूड़ के कहने पर 9 जजों की बेंच बनाई गई, जो विस्तार से यह देखेगी कि इस मामले का कैसे हल निकाला जा सकता है?

सुप्रीम सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ है?
इस मामले में अब तक 3 दिन की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो चुकी है. केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रहे हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में अब तक जो सबसे अहम टिप्पणी की है, वो इस प्रकार है- यह कहना गलत होगा कि सरकार किसी निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती है. अगर हम ऐसा कहते हैं तो यह अतिवाद होगा.

आगे पढ़िए सुनवाई में और क्या-क्या हुआ है?

अटॉर्नी जनरल- जब संविधान बना, तब बहुत सारे बाहरी और आंतरिक फैक्टर्स थे. इसलिए अब मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व को 2 विपरीत ध्रुव नहीं मान सकते हैं. 

चीफ जस्टिस- क्या कोई कार या सेमीकंडक्टर या मोबाइल का उत्पादन करने वाला निगम समुदाय के भौतिक संसाधनों का गठन करेगा?

अटॉर्नी जनरल- यूटोपियन या समाजवादी विचारधाराओं से उधार लिए गए सार्वजनिक भलाई के संसाधनों का प्रारंभिक ध्यान कारखानों या भूमि जैसी मूर्त संपत्तियों तक ही सीमित रहा होगा. 

खासकर 18 वीं और 19 वीं शताब्दी में. संसाधन का सही अर्थ हमेशा राज्य की जनहित जिम्मेदारी पर केंद्रित होगा.

कोर्ट- समुदाय की व्याख्या आप कैसे करते हैं, किसे समुदाय आप मानते हैं?

अटॉर्नी जनरल- समुदाय एक राष्ट्र हो सकता है या राष्ट्र का एक हिस्सा. यह एक भौगोलिक क्षेत्र जहां लोगों का जीवन जीने का एक व्यवस्थित तरीका है, एक समुदाय है. 

जस्टिस नागरत्ना- संविधान की प्रस्तावना में 3 न्याय (सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक) को शामिल किया है. इसलिए संविधान द्वारा तय किए गए इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास अनुच्छेद 39 है.

कोर्ट-  क्या कंपनी अथवा निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है?

अटॉर्नी जनरल- अनुच्छेद 39 बी हमेशा से सभी राजनीतिक और आर्थिक ​सिद्धांतों से स्वतंत्र रहा है. संसाधनों और जरूरतों के बारे में समाज की व्याख्या समय के साथ परिपक्व होती रहती है, ऐसे में अनुच्छेद 39बी को आर्थिक चश्मे से देखना गलत होगा.

जस्टिस बिंदल- 31(C) पहले ही रद्द हो चुका है. क्या प्रावधान रद्द होने के बाद संसद संशोधन, हटाने, जोड़ने आदि करने के लिए भी बाध्य हैं?

एड. अंध्यारुजिना- इसको लेकर चीफ जस्टिस ने भी एक बार कहा था कि रद्द किए गए कानून किताबों में इटैलिक शब्दों में लिखे होंगे, जो यह संकेत देंगे कि इसे रद्द कर दिया गया है. यह सिर्फ जानने और पढ़ने के लिए रखा गया है. 

इस केस में अभी और सुनवाई होनी है, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट इस पर फाइनल फैसला देगा.

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