यह असंतुलन चिंताजनक …. अमेरिका को पछाड़कर चीन हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है
व्यापार: चीन से बढ़ता आयात भी एक चुनौती है, कारोबारी भागीदारी में पिछड़ा अमेरिका; यह असंतुलन चिंताजनक
विगत 12 मई को आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में चीन 118.41 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। उसने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है।
पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में चीन से आयात 44.7 प्रतिशत बढ़कर 70.32 अरब डॉलर से 101.75 अरब डॉलर हो गया, जबकि चीन को भारत का निर्यात 16.66 अरब डॉलर रहा। प्रमुख रूप से लौह अयस्क, सूती धागा, कपड़े, हथकरघा, मसाले, फल और सब्जियां, प्लास्टिक और लिनोलियम जैसे क्षेत्रों में भारत का निर्यात बढ़ा है। चीन से आयात में वृद्धि के कारण भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 2023-24 में 85.09 अरब डॉलर हो गया।
यदि जीटीआरआई रिपोर्ट का विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि चीन से आयात में कमी नहीं आने के कई कारण हैं। भारत ने 2023-24 में चीन से 4.2 अरब डॉलर का टेलीकॉम व मोबाइल फोन आयात किया है, जो इस वर्ग में कुल आयात का 44 फीसदी है। इसी तरह, भारत ने कुल कंप्यूटर व प्रौद्योगिकी आयात का 77 प्रतिशत, नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े उपकरणों के आयात का 65.5 प्रतिशत, इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी के कुल आयात का 75 प्रतिशत हिस्सा चीन से मंगाया है। साफ है कि भारत आवश्यक व रणनीतिक तौर पर बेहद जरूरी सेक्टर में भी चीन से आयातित उत्पादों पर काफी निर्भर है।
हालांकि पिछले एक दशक से स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए हैं। चीनी सामान के बहिष्कार व सरकार द्वारा विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी सामान पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहन दिया है। पीएम मोदी द्वारा स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने व वोकल फॉर लोकल मुहिम के प्रसार ने स्थानीय उत्पादों की खरीद को पहले की तुलना में अधिक समर्थन दिया।
आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्यूफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टर को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटित किए। अब देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं।
चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए सरकार को और अधिक कारगर प्रयास करने होंगे, तो दूसरी ओर देश के उद्योग-कारोबार क्षेत्र को भी चीन से व्यापार असंतुलन दूर करने के लिए प्रतिस्पर्धा करने के प्रयास करने होंगे। भारतीय निर्यातकों के समक्ष आ रहे बाजार पहुंच के मुद्दों को सरकार को प्राथमिकता के आधार पर चीन से बात करनी होगी। देश से निर्यात बढ़ाने और आयात घटाने के लिए अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की रफ्तार तेज करने के साथ युवा श्रमशक्ति को कौशलयुक्त करना होगा। नई लॉजिस्टिक नीति और गति शक्ति योजना के कारगर क्रियान्वयन से लॉजिस्टिक लागत घट सकती है।
अब फिर से देशवासियों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग का संकल्प लेना होगा। यह समझना होगा कि चीन से व्यापार असंतुलन की गंभीर चुनौती के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि देश का उद्योग-कारोबार और कंपनियां भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने कलपुर्जे सहित संसाधनों के विभिन्न स्रोत और मध्यस्थ विकसित करने में प्रभावी भूमिका नहीं निभाई है। साथ ही बड़ी कंपनियां शोध एवं नवाचार में भी बहुत पीछे हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि जीटीआरआई रिपोर्ट के मद्देनजर भारत व्यापार घाटा कम करने के लिए रणनीतिक रूप से तेजी से आगे बढ़ेगा। यह भी उम्मीद है कि जिस तरह भारत ने भारतीय खिलौना उद्योग को पल्लवित–पुष्पित करके चीनी खिलौनों के आयात में भारी कमी की, उसी तरह उद्योग-कारोबार के अन्य क्षेत्रों में भी चीन से आयात घटाने व निर्यात बढ़ाने के नए उपाय किए जाएंगे। साथ ही देश के बाजार में चीनी उत्पादों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए प्रमुख उद्योग और कारोबार स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेंगे।