आदिवासियों को अधिकार देने वाले कानून की हकीकत ?

आदिवासियों को अधिकार देने वाले कानून की हकीकत
20 जिलों में 5 हजार बैठकें, फिर भी लोगों को ‘पेसा’ का पता ही नहीं
शहडोल/झाबुआ ……

मध्यप्रदेश में पेसा कानून (PESA Act) यानी पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट लागू हुए करीब 2 साल हो चुके हैं। लेकिन, आदिवासी क्षेत्रों में ये एक्ट पूरी तरह से लागू नहीं हो सका है। न ही इसके बारे में लोगों को जानकारी है।

जबकि 15 नवंबर 2022 को जब ये एक्ट लागू हुआ था तब मध्यप्रदेश सरकार के पंचायत विभाग ने प्रदेश के 20 जिले और 89 विकासखंड में ग्राम सभा की 5 हजार बैठकें कर इस कानून के बारे में जानकारी देने का दावा किया था। पंचायत विभाग की वेबसाइट पर आज भी इन बैठकों की जानकारी दर्ज है।

 यह कानून एमपी में आदिवासियों के अधिकारों को बढ़ाएगा। एमपी में आदिवासियों की जनसंख्या बाहुल्य में है। आदिवासी परम्परा, रीति-रिवाजों, संस्कृति का संरक्षण के लिए यह एक्ट बनाया गया है।

 ……आदिवासी जिलों में जाकर जब इस एक्ट की हकीकत देखी तो पता चला कि ग्राम सभा की बैठकें ही नहीं होतीं। ग्राम सभा के पदाधिकारियों का कहना है कि सारे फैसले अफसर ही लेते हैं। पेसा कानून को जिस स्वरूप में लागू करना चाहिए था वो जमीन पर नहीं उतरा है। पढ़िए रिपोर्ट…

अधिनियम का उद्देश्य, महत्व क्या है:-
भारत में आदिवासी परम्परा, रीतिरिवाजों, संस्कृति आदि का संरक्षण करना एवं उनके अधिकारों की रक्षा के लिए यह अधिनियम बनाया गया है इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सभा में एक ग्राम समिति होगी उस समिति का अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति समुदाय का व्यक्ति होगा एवं ग्राम के महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम समिति द्वारा लिए जाएंगे जैसे कि ग्राम पंचायत में होने वाले विकास, अनुसूचित जनजाति समुदाय की भूमि का संरक्षण करना, ग्राम में नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाना, बाजारों की देख रेख एवं ऋण वसूली आदि करना, बेरोजगारी के कारण गाँव छोड़कर पलायन करने वाले जनजाति समुदाय के व्यक्ति की जानकारी रखना आदि सभी अधिकार ग्राम सभा समिति के पास होंगे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि ग्राम सभा समिति ग्राम की समस्याओं को सीधे राज्य सरकार के समक्ष भेज सकती है एवं समस्या का निदान प्राप्त कर सकती है इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी आदिवासी समुदाय के लोगों से ग्राम साहूकार  बंधक मजदूरी नहीं करवा सकते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों एवं उनकी प्रथाओं, रीति-रिवाजों का संरक्षण करना इस अधिनियम का महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं।

बिरसा मुंडा की जयंती पर एमपी में लागू हुआ था पेसा एक्ट

तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नवंबर 2022 को शहडोल से पेसा एक्ट लागू करने का ऐलान किया था। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु भी शामिल हुई थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था- कई बार छल कपट, लालच और धर्मांतरण कर आदिवासियों की जमीन छीन ली जाती है, लेकिन अब मध्यप्रदेश की धरती में ये सब नहीं होगा।

पेसा एक्ट लागू होने से ग्राम सभा उस जमीन को वापस उसके असली मालिक को दिला सकेगी। खदान, खनिज का पट्टा का अधिकार पहले बहनों और फिर भाइयों का होगा। गांव में तालाबों का प्रबंध ग्राम सभा करेगी। अगर मछली पैदा करना है, सिंघाड़ा लगाना है ये सब ग्राम सभा तय करेगी।

सरकार की इस घोषणा के बाद 20 जिलों के 89 ब्लॉक, 5212 ग्राम पंचायत और 12350 गांवों में ये एक्ट लागू हो गया। केंद्र ने 1996 में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) (पेसा) अधिनियम लागू किया था। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना के साथ ही ये मध्यप्रदेश में भी लागू हुआ था। लेकिन,मप्र में अधिकार सीमित थे। नए नियमों के बाद ग्राम सभा को सशक्त बनाने का दावा किया गया ।

15 नवंबर 2022 को शहडोल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा एक्ट लागू किया था।
15 नवंबर 2022 को शहडोल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा एक्ट लागू किया था।

अब समझिए क्या है जमीनी हकीकत…

राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री गांव आए, मगर नहीं बदले हालात

पेसा एक्ट की जमीनी हकीकत जानने के लिए भास्कर की टीम शहडोल पहुंची। शहडोल बैगा आदिवासी बाहुल जिला है। यहीं से पेसा एक्ट की शुरुआत हुई थी इसलिए ग्राम पंचायत भवनों पर पेसा एक्ट के स्लोगन तो लिखे थे, लेकिन ग्रामीणों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है।

यहां मुलाकात हुई रामसहाय बैगा से। रामसहाय पकरिया ग्राम पंचायत की पेसा एक्ट समिति के अध्यक्ष है। रामसहाय से पेसा एक्ट की जमीनी हकीकत के बारे में पूछा तो वे बोले- जब पेसा एक्ट लागू हुआ तो हम लोग बड़े खुश थे। सोचा था कि अब गांव का खूब विकास होगा, स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेगा तो ग्रामीणों की आय भी बढ़ेगी, इससे गांव के तरक्की के रास्ते खुलेंगे।

वे कहते हैं कि हमारे गांव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु तक आ चुकी हैं। लेकिन, पेसा एक्ट का यहां पालन ही नहीं हो रहा। एक्ट लागू होने के बाद ग्राम सभा की बैठक ही नहीं हुई। अभी भी सारे फैसले अफसर ही ले रहे हैं।

राम सहाय कहते हैं, ग्रामीणों को तो पेसा एक्ट की जानकारी तक नहीं है। इसके क्या नियम है, ग्रामीणों को क्या फायदा होगा, कोई भी अफसर ये नहीं बताता। यहीं से इसकी शुरुआत हुई थी तो गांव में पेसा एक्ट को अच्छे से लागू कर मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता था।

नवलकिशोर बोले- शुरुआत में काम हुआ अब तो बैठक ही नहीं होती

इसी गांव के नवलकिशोर सिंह कहते हैं कि पेसा एक्ट पर तेजी से काम शुरू हुआ था। यहां के सरपंच का निधन होने के बाद उप चुनाव हुए। उसके बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव के चलते कोई काम नहीं हो रहा। 2022 में पेसा एक्ट लागू हुआ तो इक्का दुक्का काम ही तेजी से हुए थे, अब तो बैठक ही नहीं हो रही है।

वे कहते हैं कि एक्ट के फायदे आदिवासी अब तक समझ नहीं पाए हैं। पेसा एक्ट उनके अधिकार की बात तो करता है, लेकिन ग्रामीणों को इसके बारे में बताया ही नहीं गया।

झाबुआ-अलीराजपुर में भी किसी को एक्ट के बारे में नहीं पता

इसके बाद भास्कर टीम झाबुआ-अलीराजपुर जिले में पहुंची। इस सीट से सांसद रहे दिलीप सिंह भूरिया की सिफारिश पर ही इस एक्ट को देश में लागू किया गया था। यहां भी ग्राम पंचायतों की दीवारों पर तो पेसा एक्ट लिखा था, लेकिन ग्रामीणों को एक्ट के बारे में जानकारी नहीं थी।

ग्रामीणों ने तो पेसा एक्ट का नाम तक नहीं सुना था, उन्हें नहीं पता था कि इस एक्ट से उन्हें कोई फायदा हो सकता है। झाबुआ के बोरा गांव के बुध सिंह कहते हैं, पेसा एक्ट को लेकर 2 साल में कोई बैठक नहीं हुई है, जनजातीय समाज को आज भी जल, जंगल, जमीन का अधिकार नहीं मिल पाया है। ग्राम सभा के पास कोई बड़ा अधिकार ही नहीं है।

सेमलखेड़ी गांव में रहने वाले रमेश सिंह घर में बैठे थे, भास्कर टीम को देखकर बोले, गर्मी में गांव में कोई काम ही नहीं है। मैं खेती करता हूं, लेकिन पानी नहीं होने से तीन माह तक खेती से दूर रहना पड़ता है। टीम ने जब उनसे पूछा कि पेसा एक्ट लागू हुआ है तो इसका फायदा ग्रामीणों को मिल रहा है या नहीं।

इस सवाल पर रमेशन ने कहा – ये पेसा एक्ट क्या होता है, मुझे इसकी जानकारी ही नहीं है। खेड़ा गांव के मंगल सिंह कहते हैं गांव में किसी को पेसा एक्ट के बारे में नहीं पता है, पेसा एक्ट में ग्रामीणों की भागीदारी होगी तो रोजगार के लिए गुजरात नहीं जाना पड़ेगा, गांव का विकास होगा।

झाबुआ के विजय सिंह( बाएं) और रमेश( दाएं) को पेसा एक्ट के बारे में कुछ नहीं पता।
झाबुआ के विजय सिंह( बाएं) और रमेश( दाएं) को पेसा एक्ट के बारे में कुछ नहीं पता।

पेसा एक्ट के उल्लंघन पर हाईकोर्ट सरकार को दे चुका है नोटिस

मंडला के जनपद उपाध्यक्ष संदीप सिंगौर ने पिछले दिनों हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका(WP/11465/2024) लगाते हुए कहा कि मंडला के आदिवासी गांवों में बगैर ग्राम सभा की अनुमति के 26 रेत खदानों का ठेका निजी कंपनी को दिया गया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सरकार से 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।

हाईकोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी मध्य प्रदेश शासन, प्रमुख सचिव, खनिज विभाग, प्रमुख सचिव, जनजातीय कार्य विभाग, प्रमुख सचिव ग्रामीण विकास विभाग, मैनेजिंग डायरेक्टर,मध्य प्रदेश माइनिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड, जिला माइनिंग ऑफिसर मण्डला, जिला माइनिंग ऑफिसर जबलपुर, कलेक्टर मंडला, कलेक्टर जबलपुर, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी मंडला, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी जबलपुर और वंशिका कंस्ट्रक्शन राजमार्ग जिला नरसिंहपुर नोटिस जारी किया है।

कांग्रेस का आरोप- भाजपा ने मूल स्वरूप से की छेड़छाड़

झाबुआ से कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया कहते हैं, इस एक्ट को देश में लागू कराने के लिए कांग्रेस ने ही कमेटी बनाई थी। तत्कालीन कांग्रेस सांसद दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी। 1995 में भूरिया समिति के आधार पर 1996 में संसद ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम पारित किया।

इसे आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और तेलंगाना में अधिनियमित किया गया था। भूरिया कहते हैं, भाजपा ने इसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ की है।

जयस के प्रदेश अध्यक्ष बोले- अफसर पेसा एक्ट को मानते ही नहीं

आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन के प्रदेश अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा का कहना है कि पेसा एक्ट केवल नाममात्र के लिए लागू किया गया है। सरकार ने पेसा ड्रिस्ट्रिक्ट कोआर्डिनेटर और ब्लॉक कोआर्डिनेटर भी बनाए हैं।

डिस्ट्रिक्ट कोआर्डिनेटर को 40 हजार और ब्लॉक कोआर्डिनेटर को 25 हजार रु. महीना सरकार दे रही है। लेकिन, ये अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। मुजाल्दा का आरोप है कि कोआर्डिनेटर न तो ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं और न ही पेसा एक्ट को लागू करवाने में कोई रुचि दिखा रहे हैं।

वे कहते हैं कि जो थोड़े बहुत लोग इस एक्ट को जानते हैं, उसकी बात को कोआर्डिनेटर खारिज कर देते हैं। कानून लागू होने के बाद पेसा एक्ट ग्राम सभा के अध्यक्ष बनाए गए थे। बाकायदा मुनादी कर उनके बारे में जानकारी दी गई थी, लेकिन दो महीने बाद उनका रोल भी खत्म हो गया है।

मुजाल्दा का कहना है कि नियम के मुताबिक हर महीने ग्राम सभा की बैठक होना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। अफसर भी इस एक्ट को मानने को तैयार नहीं है।

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