नौजवानों को साइलेंट अटैक क्यों?
नौजवानों को साइलेंट अटैक क्यों?
MP में 40 से कम उम्र वाले 13 हजार लोगों को दिल का दौरा; दिमाग-शरीर में नहीं बनता तालमेल
डॉक्टर ने जांच की तो उसकी दो आर्टरी (ह्रदय की धमनी) में 90 फीसदी ब्लॉकेज था। करण और उसके परिवार के लिए ये खबर किसी सदमे से कम नहीं थी, क्योंकि करण न तो स्मोकिंग करता था न ही उसे शराब पीने की लत थी। घर में किसी को भी हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज की शिकायत नहीं थी।
करण की हार्ट की समस्या का समय पर पता चल गया इसलिए उसकी जान बच गई। मगर, इंदौर के 22 साल के भरत सिंह और 17 साल की मनीषा इस मामले में खुशकिस्मत नहीं रहे। दोनों को साइलेंट अटैक आया था। परिजन उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन बचाया नहीं जा सका।
मनीषा और भरत सिंह भी किसी तरह का नशा नहीं करते थे। परिवार में भी किसी की पुरानी मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी। तो फिर सवाल उठता है कि इन युवाओं को हार्ट की समस्या क्यों हुई ? क्या पुरानी मेडिकल हिस्ट्री, स्मोकिंग, शराब, हेल्दी डाइट या एक्सरसाइज न करने जैसे पारंपरिक जोखिमों से हार्ट की समस्या का कोई वास्ता नहीं रहा है?
एक्सपर्ट का कहना है कि पारंपरिक जोखिमों के साथ कुछ नए जोखिम भी सामने आए हैं जिन्हें इग्नोर नहीं किया जा सकता। उनमें शरीर में होमोसिस्टीन लेवल का बढ़ना भी एक बड़ी वजह है। वहीं तनाव की वजह से शरीर और दिमाग के बीच हॉर्मोन्स का तालमेल बिगड़ रहा है।
नेशनल हेल्थ मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में 2023 में 36 हजार से ज्यादा हार्ट अटैक के मामले सामने आए हैं, जिनमें 13 हजार पेशेंट्स की उम्र 40 साल से कम है। ……ने राजधानी के 5 हार्ट स्पेशलिस्ट से जाना कि 18 से 30 साल के युवाओं में हार्ट अटैक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं? इसकी वजह क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
संडे स्टोरी में पढ़िए आपकी दिल की सेहत दुरुस्त रखने के हर सवाल का जवाब।
क्या होता है साइलेंट अटैक, क्या है बचाव
सर्दी के मौसम में हार्ट अटैक की समस्या कॉमन होती है, क्योंकि दिल की मांसपेशियां ठंड की वजह से सिकुड़ जाती है। जिन्हें कोलेस्ट्रॉल या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होती है उन्हें सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन, अब साइलेंट अटैक के मामले गर्मी के मौसम में भी हो रहे हैं। इसे लेकर दैनिक भास्कर ने राजधानी के पांच हार्ट स्पेशलिस्ट से बात कर समझा कि आखिर इसकी क्या वजह है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
क्या होता है साइलेंट हार्ट अटैक
साइलेंट हार्ट अटैक को साइलेंट मायोकार्डियल इन्फ्रेक्शन कहा जाता है। इसमें हार्ट अटैक आने पर सीने में दर्द महसूस नहीं होता। हालांकि, कुछ दूसरे सिंप्टम्स महसूस होते हैं।
कई बार ब्रेन तक दर्द का एहसास पहुंचाने वाली नस या स्पाइनल कॉर्ड में समस्या की वजह से या फिर साइकोलॉजिकल कारणों से व्यक्ति दर्द की पहचान नहीं कर पाता। इसके अलावा ज्यादा उम्र वाले या डायबिटीज के पेशेंट में ऑटोनॉमिक न्यूरोपेथी के कारण भी दर्द का एहसास नहीं होता है।
कोरोना के बाद 90 प्रतिशत केस में मिल रहा बढ़ा हुआ होमोसिस्टीन लेवल
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. किसलय श्रीवास्तव का कहना है, कम उम्र में हार्ट अटैक के 60 से 70 फीसदी मामलों में होमोसिस्टीन लेवल बढ़ने की एक वजह सामने आ रही है। होमोसिस्टीन एक रसायन है जो आपके रक्त में कम मात्रा में मौजूद होता है।
विटामिन बी6, बी9 और बी12 होमोसिस्टीन को तोड़ने में मदद करते हैं और इसे आपके शरीर के लिए आवश्यक अन्य पदार्थों में बदलते हैं। इस प्रक्रिया से रक्त में होमोसिस्टीन का स्तर बहुत कम रह जाना चाहिए।
वे कहते हैं कि दिल्ली और भोपाल में मैंने 6 साल तक इस पर स्टडी की है। कोरोना से पहले जो हार्ट के मरीज आते थे, उनमें 40 वर्ष से कम उम्र के 35 प्रतिशत मरीजों में ही होमोसिस्टीन लेवल बढ़ा हुआ होता था।
पिछले दो साल में मैंने एम्स भोपाल में भी जो केस देखे, उसमें युवाओं के 90 प्रतिशत मामलों में होमोसिस्टीन लेवल बढ़ा हुआ था। होमोसिस्टीन लेवल माइल्ड या मॉडरेट होने पर भी यह 30 से 40 प्रतिशत आर्टरी को ब्लॉक कर देता है।
डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं, होमोसिस्टीन लेवल बढ़ने पर इसका तुरंत पता नहीं चल पाता। इसके कारण आर्टरी ब्लॉक होने पर हार्ट की समस्या होने पर ही मरीज इलाज के लिए पहुंचता है। यदि बॉर्डर लाइन पर भी इसका पता चल जाए तो साइलेंट अटैक से होने वाली मौतों को रोकना काफी आसान होगा।
दिमाग-शरीर में तालमेल ना होने से हार्ट को हो रहा नुकसान
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुब्रतो मंडल कहते हैं, मैं पिछले 30 साल से प्रैक्टिस कर रहा हूं, लेकिन पिछले पांच साल में हार्ट पेशेंट के केस में तीन गुना तक वृद्धि हुई । आम तौर पर माना जाता है कि, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर ही हार्ट अटैक का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इससे भी बड़ा कारण है तनाव। युवा दिमाग और शरीर में बैलेंस नहीं बना पा रहे हैं, इससे ब्रेन जो सिग्नल रिलीज करता है उसकी शरीर को जरूरत ही नहीं होगी। ऐसे में इसका साइड इफेक्ट शरीर में हो रहा है।
वे उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब कोई युवा मोबाइल पर फुटबॉल खेल रहा है तो खेलते हुए उसके दिमाग को लगता है कि किक करने के लिए हार्मोन रिलीज करना है, जबकि वह बैठा हुआ है। ऐसे में जो हार्मोन निकलेंगे वो शरीर को नुकसान ही पहुंचाएंगे।
युवाओं में अब स्थिति ये बन रही है कि माइंड को तो तनाव लग रहा है, लेकिन शरीर को तनाव महसूस ही नहीं हो रहा। मैंने इसे लेकर एक स्टडी भी की है। स्टडी के अनुसार 80 फीसदी मामलों में कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने की वजह तेल नहीं बल्कि लिवर है।
आम धारणा है कि नॉनवेज खाने से कॉलेस्ट्रोल बढ़ता है। मेरे पास जो मरीज आते हैं, वे पूरी तरह से वैजिटेरियन होते हैं। लेकिन, उनका भी कोलेस्ट्रॉल लेवल हाई होता है। महज 15 से 20 प्रतिशत मामलों में कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने की वजह तेल या फिर खानपान है।
स्मोकिंग की वजह से 18 साल की उम्र में ही आ रही एंजियोप्लास्टी की नौबत
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक त्रिपाठी कहते हैं, कुछ दिनों पहले मेरे पास एक केस आया, जिसमें महज 18 साल के युवक को सीने में दर्द की शिकायत थी। एंजियोग्राफी की तो पता चला उसे हार्ट अटैक आया था। तुरंत उसकी एंजियोप्लास्टी की गई।
जब उसकी हिस्ट्री चैक की गई तो पता चला कि वह स्मोकिंग करता था। इसी तरह 19 साल का युवा भी इसी कंडीशन में भर्ती हुआ था और वह भी चेन स्मोकर था। उसका होमोसिस्टीन लेवल भी बढ़ा होने से उसकी दो आर्टरी 80 प्रतिशत तक डैमेज हो गई थी। उसकी लाइफस्टाइल में एक्सरसाइज शामिल ही नहीं थी।
साइलेंट हार्ट अटैक के केस 60 प्रतिशत तक बढ़े
कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. जीसी गौतम कहते हैं, पहले हमारे पास जो केस आते थे, 90 से 95 प्रतिशत मामलों में मरीज की उम्र 50 वर्ष से ज्यादा ही होती थी। साइलेंट अटैक के केस बहुत कम होते थे। अब हर सप्ताह 8 से 10 मरीज 25 से 30 साल की उम्र के आ रहे हैं। साइलेंट अटैक के केस में भी 60 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
गौतम कहते हैं- लाइफ स्टाइल के साथ डाइट हिस्ट्री और स्मोकिंग जैसे पहलुओं की जांच के बाद ये सामने आ रहा है कि युवाओं में स्ट्रेस भी इसका एक बड़ा कारण है। ऐसा नहीं है कि अटैक से पहले मरीज को सिंप्टम्स का पता नहीं चलता।
ये कई बार इतने अलग होते हैं कि मरीज इसे नजर अंदाज कर देता है। उसे पता ही नहीं चल पाता कि वह हार्ट अटैक की स्टेज पर पहुंच चुका है। डॉ. गौतम कहते हैं, सिगरेट पीना सिर्फ़ दिल के लिए ही नहीं, पूरे कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है।
एक्सपर्ट बोले- अटैक के सिंप्टम्स बदले हैं
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. पंकज मनोरिया कहते हैं कि अब अटैक से पहले के सिंप्टम्स में बदलाव आया है। इनमें अचानक तेज पसीना आना, घबराहट होने के साथ उल्टी आने जैसे लक्षण होते हैं। युवा सोचता है कि उसे गैस की समस्या हो रही है, उसे 20-22 साल की उम्र में अटैक आ ही नहीं सकता।
परिवार और यहां तक कि डॉक्टर भी अटैक के बारे में नहीं सोच पाते। वह उल्टी की दवाई लेकर घर में बैठा रहता है। इस कारण मरीज को अस्पताल तक लाने में देरी हो जाती है। वे एक केस के बारे में बताते हैं कि 22 साल के एक युवक के भाई एमडी मेडिसिन थे।
एक दिन अचानक उसे उल्टी होने के साथ ही दिल में दर्द होने लगा तो उसके भाई ने इसे गैस की समस्या बताते हुए दवाई दी। जब आराम नहीं मिला तो दूसरे डॉक्टर को दिखाया गया, अटैक के लक्षण होने पर मेरे पास लाया गया।
उसकी हार्ट की पंपिंग कैपेसिटी 60 प्रतिशत तक कम हो गई थी। 99 प्रतिशत ब्लॉकेज था, उसकी एंजियोप्लास्टी कर एक स्टंट डालना पड़ा। जब मैंने उसकी केस हिस्ट्री चेक की तो पता चला वह नौकरी के कारण तनाव में रहता था, साथ ही तंबाकू भी खाता था।
आईसीएमआर कह चुका- वैक्सीनेशन से हार्ट अटैक का खतरा नहीं
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने 1 अक्टूबर 2021 से 31 मार्च 2023 के बीच देशभर के 47 बड़े अस्पतालों में एक स्टडी की। इसमें 729 केस और 2,916 कंट्रोल्स को शामिल किया गया था। इस स्टडी में 18 से 45 साल के उन लोगों पर फोकस किया गया जो स्वस्थ थे और जिन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, इसके बावजूद अस्पष्ट कारणों से उनकी अचानक मौत हो गई।
इस स्टडी के मुताबिक, कोरोना के दौरान अस्पताल में भर्ती होने, अचानक मौतों की फैमिली हिस्ट्री और कुछ लाइफस्टाइल आदतों के चलते अचानक होने वाली मौतों में बढ़ोतरी हुई है। इन लाइफस्टाइल आदतों में मौत से 48 घंटे पहले तक लगातार शराब पीना, ड्रग्स या किसी और नशीले पदार्थ का सेवन करना और मौत से 48 घंटे पहले अलग-अलग तरीके की इंटेंस फिजिकल एक्टिविटी करना शामिल है।