16 साल की उम्र क्यों है इतनी नाजुक ?

क्या करें जब टीनएज बच्चे को प्यार हो जाए
16 साल की उम्र क्यों है इतनी नाजुक, इस समय पेरेंट्स की भूमिका बहुत अहम

साल 1981 में एक फिल्म आई थी- ‘एक दूजे के लिए।’ इस फिल्म में एक गाना है, जिसे लता मंगेशकर और एस. पी. बालासुब्रमण्यम ने आवाज दी है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत से सजे इस गाने के बोल हैं-

सोलह बरस की बाली उमर को सलाम

ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम…..

उम्र तो 1 से लेकर 80-90 या 100 साल भी हो सकती है। फिर उर्दू के नामचीन शायर ‘सोलह बरस की बाली उमर’ को ही सलाम क्यों करते हैं।

साहित्य और सिनेमा के इस सवाल का जवाब बायलॉजी की किताबों में मिलता है। पेरेंटिंग टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 13 से 18 साल की उम्र बदलाव और विकास की दृष्टि से सबसे अहम होती है। यही वह उम्र है, जिसमें टीनएजर्स बचपन की डगर छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रखते हैं। उनके शरीर में हॉर्मोन्स का उतार-चढ़ाव होता है। इस दौरान उनका शरीर और मन तेजी से बदल रहा होता है। पहली बार उनके मन में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण देखने को मिलता है। यही वह उम्र होती है, जिसमें टीनएजर्स प्यार में पड़ते हैं।

टीनएजर्स के रिश्ते की वजह इमोशन नहीं बायलॉजी
पेरेंटिंग टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 14-15 साल के टीनएजर्स के प्यार की गिरफ्त में आने की असल वजह इमोशनल नहीं बल्कि बायलॉजिकल होती है। इस उम्र में वे प्यार और इमोशन को ठीक से समझ भी नहीं पाते। वे सिर्फ नए अनुभवों से गुजरना चाहते हैं, जो उन्हें आनंद भी देता है।

क्या करें, अगर आपके बच्चे को प्यार हो जाए

पेरेंट्स की नजर में उनके बच्चे हमेशा नादान ही रहते हैं, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो। 15-16 साल की उम्र तो वैसे भी नादानी की ही होती है। इस उम्र में बच्चों से परिपक्वता या तार्किक फैसलों की उम्मीद नहीं की जाती।

ऐसे वक्त में बच्चे के प्यार में पड़ने की खबर पड़ते ही कई मां-बाप आगबबूला हो जाते है। उन्हें लगता है कि शायद उनकी परवरिश में ही कोई कसर रह गई है। इसलिए बच्चे ऐसा ‘गलत कदम’ उठा रहे हैं। पेरेंट्स के लिए अपने बच्चों के प्यार को स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता है। कई पेरेंट्स तो जोर-जबरदस्ती से ‘प्यार के भूत’ को उतारने की कोशिश भी करते हैं।

लेकिन क्या ऐसा करना सही है? मां-बाप को अपने टीनएजर्स के प्यार पर किस तरह रिएक्ट करना चाहिए?

पेरेंट्स बनें बच्चों के पहले लव गुरु तो वे रिश्ते के लिए होंगे तैयार
रिलेशनशिप काउंसिलर जिम फे की एक किताब है- ‘पेरेंटिंग किड्स विद लव एंड लॉजिक।’ इस किताब में जिम फे बच्चों के प्यार को सही तरीके से डील करने के कुछ टिप्स बताते हैं।

जिम के मुताबिक बच्चों के प्यार को पूरी तरह से अस्वीकार करना या फिर उन्हें खुली छूट देना, दोनों खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि इस उम्र में बच्चे इतने परिपक्व और इमोशनली मैच्योर नहीं होते कि रिश्ते की गहराई को समझ सकें। दूसरी ओर, इसी उम्र में बच्चे घर की दहलीज से बाहर कदम रख कर दुनिया को जान-समझ रहे होते हैं। वे पहली बार मां-बाप की छाया के बगैर रिश्ते एक्सप्लोर कर रहे होते हैं। ऐसे में पेरेंट्स की किसी भी बंदिश या रोक-टोक पर वे विद्रोही रुख अपना सकते हैं। विद्रोह की यह भावना उन्हें ‘ज्यादा गलत’ करने के लिए प्रेरित कर सकती है।

इसलिए सबसे बेहतर यही है कि पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ दोस्ताना संबंध बनाते हुए उनके दोस्त और रिलेशनशिप कोच की भूमिका निभाएं। अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए उन्हें सही-गलत की सीख दें। ध्यान रखें कि इस दौरान उन पर अपनी सोच थोपने की कोशिश बिल्कुल भी न करें।

पेरेंट्स के साथ बच्चे के रिश्ते से तय होते उनके बाकी रिश्ते
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कोई बच्चा कितने दोस्त बनाएगा, बढ़िया प्रेमी बन पाएगा या नहीं, ये बातें काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती हैं कि उस बच्चे का अपने मां-बाप के साथ रिश्ता कैसा है। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की रिसर्च यह कहती है।

रिसर्च के मुताबिक बच्चा नए रिश्ते को किस तरह संभाल पाएगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे का अपने पेरेंट्स के साथ संबंध कितना मधुर है।

अगर बच्चे और पेरेंट्स के बीच फ्रेंडली रिलेशन हो, दोनों साथ में समय बिताते हों तो इसकी पूरी संभावना है कि वह बच्चा दूसरों के लिए इंपैथी रखेगा। सामाजिक रूप से फ्रेंडली और मुखर होगा। अच्छा लवर साबित होगा। जबकि जो बच्चे अपने पेरेंट्स से डरते और बात करने से कतराते हैं, उनमें दोस्तों की कमी या कम उम्र में टॉक्सिक रिश्ते की आशंका बढ़ जाती है।

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