क्या दक्षिण से भाजपा को कुछ मिलेगा?
राजनीति में जनाधार …
क्या दक्षिण से भाजपा को कुछ मिलेगा? चार जून के जनादेश से मिलेगा ठोस जवाब
दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं, इसलिए केंद्र में सरकार बनाने के लिए दक्षिण भारतीय राज्य महत्वपूर्ण हैं। हालांकि वहां क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है, लेकिन मोदी के मजबूत नेतृत्व, राम मंदिर निर्माण एवं मुफ्त राशन योजना की वजह से भाजपा इस बार मजबूत स्थिति में है।
दक्षिण भारत में राजनीतिक विवाद बहुत ज्यादा हैं। दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों में एक सामान्य प्रवृत्ति नई दिल्ली के खिलाफ है, खासकर भाजपा के, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्रमुक का मुकाबला करने के लिए भाजपा का जनाधार बढ़ाने पर काफी जोर दिया है। वह पहली बार के मतदाताओं के जेहन में अलगाववादी सोच और क्षेत्रवाद के खिलाफ राष्ट्रवाद की भावना लाना चाहते हैं। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी सांस्कृतिक पुनरुत्थान लाना चाहते हैं। दक्षिण भारत की छह राजनीतिक पार्टियों ने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बहुत ज्यादा अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
अब दक्षिण भारत में चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है और लोग बेसब्री से चार जून को आने वाले नतीजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं। दक्षिण भारत की राजनीति में छह क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है-द्रमुक, अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस, तेलुगू देशम, जनता दल (एस) और भारत राष्ट्र समिति। भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की स्थिति वहां नगण्य है। हालांकि कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस का शासन है। इससे पहले भाजपा ने तीन बार कर्नाटक की सत्ता संभाली है। फिलहाल भाजपा पुदुचेरी में सरकार में शामिल है।
द्रमुक ने प्रधानमंत्री मोदी का डटकर विरोध किया है। असल में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन डरे हुए हैं। वर्ष 2014 में कांग्रेस को पूरी तरह ध्वस्त करने के बाद नरेंद्र मोदी ने द्रविड़ राजनीति को खत्म करने की भविष्यवाणी की थी। हालांकि वर्ष 2019 में द्रमुक ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया था, लेकिन इस बार राहुल के वायनाड चुनाव में द्रमुक ने राहुल गांधी के लिए प्रचार नहीं किया।
अन्नाद्रमुक राजग (एनडीए) गठबंधन से बाहर हो गई है। मोदी ने एक ही झटके में अन्नाद्रमुक नेता एडापट्टी पलानीस्वामी के महत्व को कम कर दिया और एमके स्टालिन को ही अपना मुख्य विरोधी माना। मोदी के बार-बार तमिलनाडु दौरे पर जाने पर भी द्रमुक ने आपत्ति जताई। आंकड़े बताते हैं कि जबसे लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई है, प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण के छह राज्यों की 64 बार यात्रा की है।
दक्षिण भारत में साक्षरता दर ज्यादा है। शायद यही कारण है कि मतदाता राहुल गांधी को मनोरंजनकर्ता के रूप में लेते हैं। राजनेता किसी नीति के बगैर अनाप-शनाप बातें करते हैं। जैसा कि राहुल गांधी ने हैदराबाद में कहा कि वह गरीबों के खाते में एक लाख रुपये खटा-खट भेजेंगे। कांग्रेस इतने पैसे का इंतजाम कैसे करेगी? कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी की तुलना नवीन पटनायक से करते हुए कहा कि नवीन पटनायक और नरेंद्र मोदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ओडिशा में नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी के रूप में वीके पांडियन का उभार हो, या अरविंद केजरीवाल का शराब घोटाले में दक्षिण लॉबी से गठजोड़ हो या रायबरेली से चुनाव लड़कर राहुल गांधी का वायनाड की जनता को अंधेरे में रखना हो, ये सब दक्षिण में चर्चा के मुद्दे रहे हैं।
भाजपा ने जगन रेड्डी पर हिंदुओं को ईसाई बनाने का आरोप लगाया। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने कहा कि वायनाड से राहुल गांधी को हराया जाना चाहिए। इधर यौन शोषण मामले में वांछित जनता दल (एस) सांसद प्रज्वल रेवन्ना को पकड़ने का दबाव बढ़ रहा है, जो फरार हैं। इस मामले में कांग्रेस जान-बूझकर भाजपा पर दोष मढ़ रही है, जबकि नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि रेवन्ना को बख्शा नहीं जाएगा। केंद्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा के लिए दक्षिण भारत के छह राज्य महत्वपूर्ण हैं। भले ही कांग्रेस की कर्नाटक एवं तेलंगाना में सरकार है, लेकिन उसके लिए भी यह आसान नहीं है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और पुदुचेरी में लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं।
नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और मुफ्त राशन की कल्याणकारी योजना के चलते भाजपा मजबूत स्थिति में है। जाहिर है, भाजपा दक्षिणी राज्यों के सांसदों पर निर्भर नहीं है। याद रहे कि 2019 में मोदी-शाह की जोड़ी ने जब पश्चिम बंगाल को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था, तो वहां भाजपा के 18 सांसद चुने गए थे। उसी तरह इस जोड़ी ने इस बार दक्षिण पर जोर दिया है। यही नहीं, मोदी ने केरल पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया। अब दूसरे विवादों की बात करते हैं, जिनका इस्तेमाल द्रमुक ने राजनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी के अल्पसंख्यकों पर दिए बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। नवीनतम विवाद बीजद नेता नवीन पटनायक पर मोदी की टिप्पणी को लेकर है। भाजपा ओडिशा की राजनीति में एक तमिल आईएएस वीके पांडियन के वर्चस्व के खिलाफ हो गई है। कई बीजद नेता वहां भाजपा को विकल्प के रूप में देखते हैं। नवीन पटनायक के कई विश्वासपात्र साथ छोड़कर चले गए हैं। मोदी ने ओडिशा की चुनावी रैली में पांडियन के खिलाफ तीखी टिप्पणी की, जिसे द्रमुक ने तमिल पहचान से जोड़ते हुए तोड़-मरोड़कर पेश किया। तमिलनाडु के भाजपा नेता कहते हैं कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन प्रशंसकों से घिरे रहते हैं, जो उन्हें तमिलनाडु के भीतर और बाहर की घटनाओं से दूर रखते हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी ने ओडिशा की सभा में क्या कहा, इसे बिना संदर्भ के समझे ही वह बात कर रहे हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी की उस टिप्पणी के लिए ‘नफरत फैलाने’ का आरोप लगाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ओडिशा के पुरी में खजाना भंडार की गायब चाबियां तमिलनाडु भेजी गई हैं। मोदी की टिप्पणी ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के करीबी सहयोगी वीके पांडियन को लेकर थी, जो मूलतः तमिलनाडु के हैं। हालांकि दक्षिण की ये छह पार्टियां नदी जल बंटवारे के मुद्दे पर एक-दूसरे का विरोध करती हैं, लेकिन मोदी विरोध के नाम पर एकजुट हो जाती हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्व सरमा दक्षिण भारत के कॉलेज छात्रों के प्रिय नेता हैं।
मोदी ने चुनावी रैलियों में रेत माफिया, ड्रग माफिया, तमिल सिनेमा में ड्रग के खतरे पर जमकर निशाना साधा। दक्षिणी राज्यों में मोदी के धुआंधार प्रचार ने कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रभाव को कम कर दिया है। अब यह तो चार जून को ही पता चलेगा कि भाजपा अपने उद्देश्यों में कितनी सफल रही।