मोहन भागवत ने क्यों कहा 3 बच्चे पैदा करना जरूरी, इसके क्या नुकसान होंगे ?
मोहन भागवत ने क्यों कहा 3 बच्चे पैदा करना जरूरी, इसके क्या नुकसान होंगे ?
दुनिया का हर छठा शख्स भारतीय है, फिर भी RSS प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि समाज नष्ट न हो इसलिए सभी को कम से कम 3 बच्चे पैदा करना जरूरी है। भागवत ने 3 बच्चों की बात क्यों की और इसके क्या नुकसान और फायदे हैं;
सवाल-1: मोहन भागवत के बयान का पूरा मामला क्या है?
जवाबः 1 दिसंबर को नागपुर में ‘कठाले कुल सम्मेलन’ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत शिरकत करने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने भारतीय कुटुंब और जनसंख्या को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा,
देश की जनसंख्या नीति 1998-2002 में तय की गई थी। इसके मुताबिक जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो समाज अपने आप नष्ट हो जाएगा। अब कोई इंसान 0.1 पैदा तो नहीं होता… इसलिए यह कम से कम तीन होना चाहिए।
सवाल-2: फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर का मतलब क्या है?
जवाबः किसी भी देश, समाज या समूह की एक महिला अपने जीवनकाल में औसतन कितने बच्चों की मां बनती हैं, इसे उस देश, समाज या समूह का फर्टिलिटी रेट कहते हैं। जैसे यदि भारत की एक महिला अपने पूरे जीवनकाल में औसतन तीन बच्चों की मां बनती है तो भारत का फर्टिलिटी रेट 3 होगा। किसी भी देश की जनसंख्या चक्रवृद्धि दर से बढ़ती है यानी आगे चलकर बच्चों के भी बच्चे होते हैं। इस फार्मुले के मुताबिक अगर किसी देश, समाज या समूह की प्रजनन दर 2.1 है तो आने वाले समय में उसकी मौजूदा आबादी नई आबादी से रिप्लेस हो जाएगी।
सवाल-3: क्या भागवत जनसंख्या पर पहले भी कोई बयान दे चुके हैं ?
जवाबः इससे पहले भी मोहन भागवत ऐसे बयान दे चुके हैं…
अक्टूबर 2022: विजयादशमी के मौके पर भागवत ने कहा था कि जनसंख्या असंतुलन पर हमें नजर रखनी होगी। देश को जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है, जो सभी पर बराबरी से लागू होती हो, ताकि किसी को भी रियायत न मिल सके। कुछ साल पहले फर्टिलिटी रेट 2.1 था। दुनिया की आशंकाओं से उलट हमने बेहतर किया और इसे 2 तक लेकर आए, लेकिन और नीचे आना खतरनाक हो सकता है।
अक्टूबर 2021: विजयादशमी उत्सव में भागवत ने कहा था कि साल 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में दूसरे पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88% से घटकर 83.8% रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.24% हो गया है। असंतुलन पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा था कि जनसंख्या नीति होनी चाहिए।
सवाल-4: इस वक्त भारत की प्रजनन दर क्या है, पिछले 70 सालों में कितनी बदली?
जवाबः यूनाइटेड नेशंस के डेटा के मुताबिक भारत की मौजूदा प्रजनन दर 2 के आसपास है। 2019 में ये आंकड़ा 2.12 था, जो धीरे-धीरे घटकर 2023 में 1.975 हो गया है।
यूनाइटेड नेशंस की पॉपुलेशन रिपोर्ट के मुताबिक 2062 में भारत की आबादी 170 करोड़ तक पहुंच जाएगी और ये पीक पर होगी। 2062 में जनवरी से जुलाई के बीच जनसंख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी। 2063 में देश की आबादी में 1.15 लाख की कमी होगी, जो 2064 में बढ़कर 4.37 लाख और 2065 में 7.93 लाख होगी।
वहीं 2054 तक भारत की 20 से 64 साल के लोगों की जनसंख्या बढ़ती जाएगी। यानी वर्किंग ऐज बढ़ती जाएगी। 2080 तक 65 साल से अधिक उम्र के लोग, 18 साल से कम उम्र के लोगों से ज्यादा हो जाएंगे। ऐसे ही पूरी दुनिया की आबादी 2083 तक बढ़ती रहेगी। 1020 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इसके बाद ये भी घटने लगेगी।
सवाल-5: क्या मौजूदा प्रजनन दर से नीचे आना चिंता की बात है; अगर हर कपल 3 बच्चे पैदा करे तो क्या होगा? जवाबः पॉपुलेशन एक्सपर्ट मनु गौर बताते हैं कि अगर प्रजनन दर 2.1 से नीचे आती है तो जनसंख्या कम होने लगती है। ऐसा जैन और पारसी समुदाय के साथ हुआ भी है।
UN की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर लंबे समय तक प्रजनन क्षमता में गिरावट जारी रहती है, तो कुल आबादी में काम करने लायक लोगों का हिस्सा घटता है और बूढ़े लोगों का हिस्सा बढ़ता है। साथ ही डिपेंडेंसी रेश्यो बढ़ता है।
अगर किसी देश की प्रजनन दर 2.1 है तो वह अपनी आबादी को आसानी से रिप्लेस कर सकता है। जिन देशों में 2.1 से कम प्रजनन दर होती है, वहां जनसंख्या की उम्र तेजी से बढ़ती है। साथ ही जनसंख्या में कमी आती है।
सरल शब्दों में कहें तो एक पीढ़ी को अपने बराबर की अगली पीढ़ी तैयार करने के लिए प्रजनन दर 2.1 होना जरूरी है। यानी इसके लिए हर 10 महिलाओं को 21 बच्चों को जन्म देना होगा। भारत की प्रजनन दर के हिसाब से अगर महिलाएं 2 बच्चों को जन्म देती हैं तो हर 10 में से एक महिला को 3 बच्चों को जन्म देना होगा। साथ ही लिंगानुपात बनाए रखने के लिए जितने लड़के उतनी ही लड़कियों का भी होना जरूरी है।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा कहती हैं कि इस तरह के ट्रेंड्स से देश में बूढ़ी होती आबादी, लेबर फोर्स में कमी और लड़का या लड़की की इच्छा के कारण सामाजिक असंतुलन जैसी दिक्कतें आ सकती है। हालांकि, भारत को इन दिक्कतों का सामना करने में दशकों लगे सकते हैं, लेकिन हमें आज ही कारगर कोशिश अपनानी होंगी।
पॉपुलेशन एक्सपर्ट मनु गौर कहते हैं, ‘अगर सभी 3 बच्चे पैदा करने लगेंगे तो हर जगह हर चीज के लिए कतारें लगने लगेंगी। विश्व की 2.4% जमीन भारत के पास है, जिसमें विश्व की करीब 18% आबादी रहती है। 4% जल संसाधन है। सप्लाई-डिमांड की चेन बिगड़ेगी। ऐसे में बेरोजगारी बढ़ेगी, संसाधनों का दोहन और प्रदूषण भी बढ़ेगा। इससे लोगों के जीवन जीने की क्वालिटी में कम आएगी।’
रिसर्च जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक भारत की प्रजनन दर 1.29% पहुंच सकती है। यानी 10 महिलाएं महज 13 बच्चे ही पैदा कर पाएंगी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक 204 में से 155 देशों की प्रजनन दर 2.1% से कम होगी। 2100 तक ये आंकड़ा बढ़कर 198 देशों तक पहुंच सकता है।
सवाल-6: इतनी बड़ी जनसंख्या के क्या नुकसान हैं?
जवाब: इंग्लिश विद्वान थॉमस माल्थस के मुताबिक आबादी जितनी तेजी से बढ़ती है, उसके मुकाबले संसाधनों का उत्पादन और उसकी आपूर्ति बहुत धीमी गति से बढ़ती है। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के चलते रहने खाने-पीने और यातायात जैसी जरूरतें ठीक से पूरी नहीं हो पातीं। वहीं प्रदूषण और बेरोजगारी जैसी समस्याएं फैलने लगती हैं…
- 1950 में भारत के हर एक स्क्वायर किमी में 120 लोग रहते थे, 2024 में उतने ही एरिया में 488 लोग रहते हैं। यानी पिछले 73 सालों में भारत की पॉपुलेशन डेंसिटी 4 गुना बढ़ गई है।
- करीब 68.5 हजार किमी लंबे रेलवे रूट के साथ भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। इसके बावजूद रिजर्वेशन में महीनों की वेटिंग का सामना करना पड़ता है।
- भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में भारत 142वें स्थान पर है।
- भारत सरकार की ओर से हर साल करीब 2.05 लाख करोड़ रुपए की फूड सब्सिडी दी जाती है। इसके बावजूद भारत 121 देशों के हंगर इंडेक्स में 105 नंबर पर है।
- दुनिया का 25% दूध पैदा कर भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिल्क प्रोड्यूसर है, लेकिन दुनिया में मिल्क एक्सपोर्ट करने की रैंकिंग में 55वें नंबर पर है। दरअसल, भारत में ही 20.3 करोड़ मीट्रिक टन दूध की खपत हो जाती है।
- बढ़ती आबादी के कारण ज्यादा वाहनों का इस्तेमाल होने से दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित देशों में भारत तीसरे नंबर पर आता है। वहीं टॉप 50 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में भारत के 42 शहर आते हैं।
- भारत के हर इलाके में नौकरी के बराबर अवसर नहीं है, इसलिए करीब 45 करोड़ लोग किसी न किसी तरह के माइग्रेशन के शिकार हैं। आबादी बढ़ने के साथ नौकरी का संकट और भी बढ़ेगा।
सवाल-7: क्या दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी के कुछ फायदे भी हैं?
जवाबः अगर मूलभूत सुविधाओं और जरूरतों को छोड़ दें तो ज्यादा बच्चे पैदा करने के कुछ फायदे भी हो सकते हैं…
- दुनिया भर में 25 साल से कम उम्र के हर पांच लोगों में से एक भारतीय है। भारत के 47% लोगों की उम्र 25 साल से कम है। यानी भारत सबसे बड़े स्केल पर सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है।
- ये सबसे बड़ा बाजार तो तैयार करेंगे ही, साथ ही लेबर फोर्स बढ़ाएंगे। पूरी दुनिया की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी में भारतीयों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा होगी।
- भारत को अगर डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जनसांख्यकीय लाभांश लेना है तो उसे अपने युवाओं के लिए उसी हिसाब से नौकरियां पैदा करनी होंगी। जैसा चीन ने करके दिखाया।
- भारत में महिलाओं को भी नौकरी की जरूरत होगी, क्योंकि अब वो बच्चों को जन्म देने और उनके पालन पोषण में कम वक्त देती हैं। फिलहाल भारत में वर्क फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 10% है।
हालांकि मनु गौर मानते हैं कि भारत के लिए ज्यादा बच्चे पैदा होना फायदेमंद नहीं है। वे कहते हैं,
भारत के परिप्रेक्ष्य में ज्यादा बच्चे पैदा करने में फायदे नहीं, नुकसान ही हैं।
भारत इस साल के मध्य तक चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी 1.428 अरब हो जाएगी जो कि यूरोप (74.4 करोड़) या अमेरिकी महाद्वीप (1.04 अरब) से भी ज़्यादा है.
1960 और 1980 के बीच भारत की आबादी तेज़ी से बढ़ी और महज 70 साल में आबादी में एक अरब का इजाफा हुआ.
अभी भी जनसंख्या बढ़ ही रही है लेकिन उस दर से नहीं जैसा 40 साल पहले होता था. तो इसका मतलब है कि भविष्य में भारत की आबादी घटने लगेगी?
रिकॉर्ड समय में भारत के जनसंख्या विस्फ़ोट और आने वाले समय में क्या होने वाला है इसे इन पांच चार्ट से समझ सकते हैं.
1-रिकॉर्ड टाइम में एक अरब आबादी
भारत में 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है इसलिए हम नहीं जानते कि 2023 में भारत की सटीक जनसंख्या क्या है.
हालांकि पहले की जनगणनाओं से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या में 1950 से 1980 के बीच तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई.
1951 में जनसंख्या 36.1 करोड़ थी जो 1981 में बढ़ कर 68.3 करोड़ हो गई. इस बीच भारत की आबादी में 32.2 करोड़ का इजाफ़ा हुआ.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, बीते सत्तर सालों में भारत की आबादी में एक अरब की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
लेकिन बीते तीन दशकों में जनसंख्या वृद्धि में एकरूपता दिखी क्योंकि उसी दौरान जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार धीमी होनी शुरू हुई थी.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पापुलेशन साइंसेज के प्रोफ़ेसर डॉ. उदय शंकर मिश्रा के अनुसार, भारत की जनसंख्या वृद्धि धीमी हुई है लेकिन अभी भी इसका बड़ा होना जारी है.
चीन की भी आबादी सालों से 1.4 अरब है, लेकिन इसकी आबादी घट रही है, जबकि भारत की आबादी बढ़ रही है.
प्रो. उदय शंकर कहते हैं, “जनसंख्या में मौजूदा वृद्धि को देखते हुए, हम कम से कम अगले चार दशक तक बढ़ते रहेंगे और उसके बाद जनसंख्या वृद्धि दर में ठहराव आएगा.”
साल 1950 से 1990 के बीच भारत की जनसंख्या वृद्धि दर दो प्रतिशत से अधिक थी. जनसंख्या वृद्धि दर देश में मृत्युदर और जन्मदर के अंतर से निकाली जाती है. साथ ही आबादी में कुल विस्थापन दर का भी ध्यान रखा जाता है.
प्रो. उदय शंकर के अनुसार, “भारत में मृत्यु दर सालों से कम होती जा रही है. हालांकि जन्मदर में कमी, भारत की गिरती जनसंख्या वृद्धि दर का बड़ा कारक है.”
साल 2021 में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 0.68% तक गिर गई थी. अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान से तुलना करें तो, 2017 में जनसंख्या वृद्धि दर 2% से ऊपर बनी हुई थी.
इसका साफ़ मतलब है कि अब पहले अधिक लोग लंबी उम्र तक जी रहे हैं और कम बच्चे पैदा कर रहे हैं, जिससे वृद्धि दर का ग्राफ़ नीचे जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, अबसे 2050 तक आबादी में कुल वृद्धि सब सहारा अफ़्रीकी और कुछ एशियाई देशों समेत उन देशों में देखने को मिलेगी जहां प्रजनन दर अधिक है.
जबकि भारत की प्रजनन दर पिछले दो दशकों से गिर रही है.
3-गिरती प्रजनन दर
नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, भारत के सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर कम हो रही है.
हिंदू भारत की आबादी का क़रीब 80% हिस्सा हैं और इस धार्मिक समूह में प्रजनन दर प्रति महिला 1.9 जन्म है. जबकि 1992 में ये प्रति महिला 3.3 जन्म थी. यानी 1992 से 2019 के बीच प्रति महिला 1.4 बच्चों की कमी आई.
इसी तरह मुसलमानों में 1992 के बाद प्रजनन दर में तेज़ी से गिरावट दर्ज की गई.
हाल के सालों में जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, मुस्लिम और हिंदु समूहों में प्रति व्यक्ति कम बच्चे पैदा हुए.
लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आने वालों सालों में भारत की जनसंख्या में अचानक ही कमी आएगी.
प्रो. उदय शंकर के मुताबिक़, “हालांकि कम उम्र की महिलाओं में प्रजनन दर में गिरावट दिख रही है, लेकिन बड़ी उम्र की महिलाओं में अभी भी उच्च प्रजनन दर है, जोकि अगले 40 साल तक भारत की जनसंख्या वृद्धि को बनाए रखेगी.”
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगर समय के साथ प्रजनन दर का लगातार गिरना जारी रहता है, जैसा कि पिछले दशकों में भी बना रहा, तो 2100 तक भारत की आबादी 1.5 अरब हो जाएगी.
अगर पिछले दशकों की जनसंख्या वृद्धि पर नज़र डालें तो ये बहुत मामूली वृद्धि है.
प्रो. उदय शंकर विभिन्न सामाजिक आर्थिक कारणों का भी ज़िक्र करते हैं जिनकी वजह से आबादी में वृद्धि की रफ़्तार धीमी हुई है, जैसे कि बच्चे पैदा न करने का विकल्प चुनना.
मौजूदा समय में भारत की प्रजनन दर अमेरिका (1.6 बच्चे प्रति महिला) और चीन (1.2 बच्चे प्रति महिला) से बेहतर है लेकिन अपने ही 1932 (3.4 बच्चे प्रति महिला) और 1950 (5.9 बच्चे प्रति महिला) से काफ़ी कम है.
4- युवा भारत
भारत एक युवा देश है और अगले 50 सालों तक ऐसा ही बना रहेगा. 25 साल से कम उम्र के लोग कुल आबादी का 40% हैं.
हालांकि देश की आधी आबादी की उम्र 25 से 64 साल के बीच है, यानी आबादी की औसत उम्र 28 साल है.
अमेरिका में आबादी की औसत उम्र 38 साल जबकि चीन की 39 साल है.
भारत की बुज़ुर्ग होती आबादी (65 साल से ऊपर) बहुत कम है, कुल आबादी का महज 7% है.
लेकिन अगर भारत की जनसंख्या वृद्धि दर इसी तरह गिरना जारी रही तो बुज़ुर्ग होती आबादी का भार बढ़ता जाएगा.
5-नौजवान बना बुज़ुर्ग आबादी
अमेरिका, चीन और जापान की तरह भारत में बुज़ुर्ग आबादी में तेज़ वृद्धि की समस्या नहीं है.
चीन में हर 10 लोगों में 1.4 लोगों की उम्र 65 साल से ज़्यादा है जबकि अमेरिका में ये 1.8 है.
भारत में 2100 तक 65 साल से ऊपर की आबादी में 23% की वृद्धि का अनुमान है.
प्रो. उदय शंकर के अनुसार, “हर उम्र के समूह के घटकों को बारीक से देखने की ज़रूरत है. समय के साथ, कम उम्र के समूह के लोग बूढ़े होते जाएंगे. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि ये ग्रुप ओपरलैप करेंगे.”
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, मौजूदा दौर में भारत की 40% आबादी की उम्र 25 साल से नीचे है. जबकि 2078 तक ये गिर कर 23.9% हो जाएगी.
अनुमान के मुताबिक, 2063 तक भारत की बुज़ुर्ग आबादी का प्रतिशत 20 के नीचे ही बना रहेगा और इसलिए अन्य देशों के मुकाबले भारत की आबादी फिर भी युवा ही रहेगी.
……………………………………..
विश्व जनसंख्या दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है जो हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य न केवल बढ़ती जनसंख्या और समाज, राष्ट्र और पर्यावरण पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाना है, बल्कि इसे नियंत्रित करने के लिए जनता को शिक्षित करना भी है।
यह दिवस तब अस्तित्व में आया जब 1987 में विश्व की जनसंख्या 500 करोड़ तक पहुंच गई, जिसका उद्देश्य जनहित को संबोधित करना तथा लोगों को जनसंख्या से जुड़े मुद्दों जैसे परिवार नियोजन के लाभ, लैंगिक समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, मानवाधिकार आदि के बारे में शिक्षित करना था।
इस वर्ष 2024 में विश्व जनसंख्या दिवस की थीम है ” किसी को पीछे न छोड़ें, सभी की गिनती करें। ” पिछले तीस वर्षों में, दुनिया भर के देशों ने जनसांख्यिकीय डेटा संग्रह, विश्लेषण और उपयोग में जबरदस्त प्रगति की है। आयु, जातीयता, लिंग और अन्य मानदंडों के आधार पर अलग-अलग किए गए नए जनसंख्या अनुमान हमारे समाज की विविधता को अधिक सटीक रूप से दर्शाते हैं।
इन नवाचारों ने वैश्विक स्वास्थ्य सेवा वितरण में काफी सुधार किया है, जिसके परिणामस्वरूप यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों का प्रयोग करने और विकल्प चुनने की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। नई तकनीकें लोगों के अनुभवों का अधिक विस्तृत और समय पर मापन करने की अनुमति देती हैं।
विश्व जनसंख्या दिवस के लिए वर्ष दर वर्ष थीम
- विश्व जनसंख्या दिवस 2023 का थीम: लैंगिक समानता की शक्ति को उजागर करना: हमारी दुनिया की अनंत संभावनाओं को खोलने के लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को बुलंद करना
- विश्व जनसंख्या दिवस 2022 का थीम: 8 बिलियन का विश्व: सभी के लिए एक लचीले भविष्य की ओर – अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना
- विश्व जनसंख्या दिवस 2021 की थीम: कोविड-19 महामारी का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव
- विश्व जनसंख्या दिवस 2020 की थीम: कोविड-19 महामारी के बीच महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और अधिकारों की सुरक्षा कैसे करें
- विश्व जनसंख्या दिवस 2019 की थीम: आईसीपीडी के 25 वर्ष: वादे को पूरा करना
- विश्व जनसंख्या दिवस 2018 का थीम: परिवार नियोजन एक मानव अधिकार है
विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की तत्कालीन गवर्निंग काउंसिल द्वारा बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न जनसंख्या संबंधी मुद्दों की तात्कालिकता और महत्व को संबोधित करने के लिए की गई थी; 1987 में, विश्व की जनसंख्या 500 करोड़ तक पहुँच गई थी। इस आंकड़े ने जनसंख्या संबंधी मुद्दों, जिसमें पर्यावरण और विकास से उनका संबंध भी शामिल है, के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित दिन रखने के विचार को जन्म दिया।
1990 में विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने इस आयोजन को जारी रखने का निर्णय लिया और पहला आयोजन 11 जुलाई 1990 को 90 देशों में देखा गया।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के अनुसार, यद्यपि आने वाले दशकों में वैश्विक जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट जारी रहेगी, फिर भी 2020 की तुलना में 2050 में विश्व की जनसंख्या संभवतः 20-30% अधिक होगी।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया की बढ़ती आबादी मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है। 2017 में दुनिया की आबादी करीब 700 करोड़ थी, इस साल यानी 2024 में यह 810 करोड़ बताई जा रही है। बढ़ती आबादी की वजह से दुनिया के प्राकृतिक संसाधन हर दिन बेहद कम होते जा रहे हैं।
स्वास्थ्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति ने माँ और बच्चे की मृत्यु दर को कम किया है और जीवन काल को बढ़ाया है। हालाँकि, यह स्पष्ट है कि बढ़ती जनसंख्या जलवायु परिवर्तन के लिए एक चुनौती है और बहुत से लोगों द्वारा सामना की जाने वाली हिंसा अभी भी उनके लिंग, जातीयता, वर्ग, धर्म, यौन अभिविन्यास, विकलांगता और मूल के आधार पर होती है।
इसलिए, स्वस्थ समाज के लिए खतरे को रोकने और आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर और टिकाऊ भविष्य प्रदान करने के लिए, लोगों में अधिक जनसंख्या से जुड़े जोखिम के बारे में जागरूकता पैदा करना और उन्हें शिक्षित करना आवश्यक है।
- युवाओं को कामुकता और देर से विवाह के बारे में शिक्षित करना, जब तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों को न समझ लें।
- विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य दोनों लिंगों के युवाओं को संरक्षित और सशक्त बनाना है।
- अवांछित गर्भधारण को रोकने के लिए युवा-अनुकूल उपायों को बढ़ावा देना।
- समाज में लैंगिक रूढ़िवादिता से बचने के लिए लोगों को शिक्षित करना।
- आवश्यक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के भाग के रूप में, यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक दम्पति को प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक निर्बाध पहुंच प्राप्त हो।
- गर्भावस्था से संबंधित बीमारियों के बारे में दम्पतियों को शिक्षित करना ताकि उन्हें समय से पहले प्रसव के खतरे के बारे में जागरूक किया जा सके।