जलसंकट के बीच बेंगलुरु छोड़ रहे लोग ?

जलसंकट के बीच बेंगलुरु छोड़ रहे लोग
दफ्तरों में वर्क फ्रॉम होम की मांग; स्विमिंग पूल में पीने का पानी डाला तो 5 हजार का जुर्माना
बेंगलुरु में जल संकट के बीच लोगों ने राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

देश में तीसरी सबसे अधिक ‎‎आबादी वाले शहर बेंगलुरु में जल संकट ‎‎गहरा गया है। इस कारण यहां रहने वाले ‎‎करीब 1.4 करोड़ लोगों में से एक वर्ग ‎‎वैकल्पिक समाधान तलाशने के लिए ‎‎मजबूर है। कई लोग शहर से पलायन‎ करने लगे हैं। दूसरी ओर जो लोग घर ‎‎खरीदना चाहते थे, वे अपना मन बदलने ‎‎लगे हैं।

इसके अलावा संस्थाओं, हाउसिंग ‎‎सोसाइटी, कंपनियों और लोगों ने भी संकट‎ के हिसाब से ढलने और पानी बचाने के ‎‎उपायों पर काम शुरू कर दिया है। लोग नलों‎ पर पानी बचाने वाले उपकरण लगाने से ‎‎लेकर हाथ और बर्तन धोने के लिए कैन ‎का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई हाउसिंग ‎‎सोसाइटी ने सुबह और शाम को 4 घंटे‎ तक पानी की सप्लाई बंद कर दी है।

बेंगलुरु वाटर सप्लाई बोर्ड ने पीने के पानी का स्विमिंग पूल में इस्तेमाल करने पर बैन लगा दिया है। बोर्ड ने कहा कि नियम का पालन नहीं करने पर 5 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा। ‎इससे पहले पीने लायक पानी का इस्तेमाल कार धोने, कपड़े धोने या पौधों में डालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसे न मानने पर 5 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है।

IT कंपनियों के लिए ‎वर्क फ्रॉम होम की मांग
सोशल मीडिया पर लोग राज्य के CM ‎सिद्धारमैया से IT कंपनियों के लिए ‎वर्क फ्रॉम होम अनिवार्य करने की गुहार‎ लगा रहे हैं, ताकि शहर में या उसके‎ बाहर घर जाकर इस परेशानी से निजात ‎पा सकें। कोचिंग सेंटर्स और स्कूलों ने ‎बच्चों को स्कूल आने के बजाय घर से‎ ही क्लास लेने की सलाह दी है।‎

IIM बेंगलुरु पानी के दोबारा इस्तेमाल पर काम कर रहा
एक अन्य ‎तकनीकी विशेषज्ञ दीपक राघव ने बताया ‎कि वह कोलकाता से आए हैं। उन्होंने‎ कहा कि उन्हें हर हफ्ते 6,000 लीटर‎ पानी के लिए 1,500 रुपए का भारी ‎भुगतान करना पड़ता है, क्योंकि किराए के ‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎‎घर में ट्यूबवेल सूख गया है।

भारतीय‎ प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु (IIM)‎ ने कहा- IIMB अपने सीवेज ‎ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के माध्यम से‎ प्रतिदिन ढाई लाख लीटर से अधिक‎ पानी को दोबारा उपयोग लायक बना रहा‎ है। इसका दायरा बढ़ाने के लिए 57‎ कृत्रिम गड्ढों की खुदाई की गई ‎है। 17 कुएं बन रहे हैं।‎

चेन्नई में 2019 में आया था ‎संकट, ट्रेन से पानी की ढुलाई‎
चेन्नई 2019 में ही भीषण जल‎संकट से गुजर चुका है। वहां हालात ऐसे हो गए थे कि वाटर ट्रेन से ‎पानी पहुंचाना पड़ा। दरअसल, देश ‎के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई को ‎पानी की आपूर्ति वहां के चार‎ जलाशयों से होती है, जो सूख गए ‎थे। मानसून में देरी के कारण संकट ‎विकराल हो गया। इस कारण‎ सरकार को रोज 1 करोड़ लीटर पानी‎ ट्रेन से मंगाना पड़ा, जिसके लिए 66 ‎करोड़ रुपए खर्च हुए।‎

हैदराबाद में भी संकट की आहट, टैंकर की मांग 4 गुना‎
हैदराबाद में भी जल संकट की आहट‎ सुनाई दे रही है। वहां पानी के दो ‎प्राथमिक स्रोत हैं- नागार्जुन सागर‎ जलाशय (कृष्णा नदी) और‎ येल्लमपल्ली जलाशय (गोदावरी‎ नदी)। इन दोनों जलाशयों में जल‎स्तर खतरनाक रूप से कम है। कई‎ इलाकों में पानी के टैंकरों की मांग‎ अचानक बढ़कर 10 गुना हो गई है।‎ मनीकोंडा इलाके में तो जल संकट के ‎चलते लोग सड़क पर उतरकर प्रदर्शन ‎करने लगे।‎

10 शहरों में इस दशक के‎ आखिर तक जल संकट‎
हाल ही में नीति आयोग की रिपोर्ट में‎ यह अनुमान लगाया गया है कि साल‎ 2030 तक भारत के करीब 10‎ शहरों में भारी जल संकट देखने को ‎मिल सकता है। रिपोर्ट में जिन शहरों‎ का नाम शामिल है इसमें- जयपुर,‎ दिल्ली, बेंगलुरु, गुजरात का‎ गांधीनगर, गुरुग्राम, इंदौर, अमृतसर,‎ लुधियाना, हैदराबाद, चेन्नई,‎ गाजियाबाद शामिल हैं।

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