समझें ‘अमृत’ बूंदों का मोल, कल के लिए सहेजें जल…

वर्षा जल सहेजने में कोताही। इंदौर में एक लाख रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लक्ष्य की तुलना में तीन हजार ही बनाए…

ग र्मी में पानी की किल्लत की कहानी शहरों और गांवों में एक जैसी होती है। भू-जल स्तर पाताल में जाने से घरों के बोर सूखने लगते हैं। मांग बढ़ने से स्थानीय निकाय हांफने लगते हैं। दिन-रात टैंकर दौड़ाने के बावजूद पेयजल की मारामारी कम नहीं होती। परिणामस्वरूप परेशान-हलाकान लोगों का गुस्सा जिम्मेदारों पर फूटता है। दफ्तरों का घेराव तक होता है। उस वक्त निश्चित ही अधिकारियों को पानी के लिए पसीना छूटता है। तब शायद जहन में पानी सहेजने के ढेर सारे आइडिया कौंधने लगते होंगे। कहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना चाहिए?, पाइप लाइन का विस्तार कहां से कहां तक करने में संकट से उबरा जा सकता है?, तैयार पानी की टंकियों को पाइपलाइन से कहां-कहां पुख्ता तरीके से जोड़ना है?, वगैरह-वगैरह… लेकिन जैसे ही गर्मी गुजरी और हाल फिर ढाक के तीन पात… ।जाहिर है, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम समय रहते बनवाए जाएंगे तभी बरसात की अमृत बूंदों को सहेज पाएंगे। इसके लिए केवल फाइलों से निकलने वाले प्रयास नहीं बल्कि मुहिम की जरूरत है, तभी हर साल बढ़ रही भीषण समस्या से निपट सकेंगे। हैरानी तब होती है, जब वाटर प्लस का तमगा हासिल करने वाले शहर इंदौर के जिम्मेदारों में ही जागरूकता की कमी दिखाई देती है। यहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवाने के आंकड़ों में गिरावट दर्ज हो रही है। इससे साफ है कि इस बार कोई खास प्रयास ही नहीं किए। बीते वर्ष एक लाख से अधिक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए। वहीं, इस साल यह संख्या महज 3 हजार के आसपास ही सिमट गई। यानी 96 हजार से अधिक सिस्टम लगाने का लक्ष्य अधूरा रह गया। अब बारिश में क्या खाक जल संरक्षण कर पाएंगे? एक अनुमान के मुताबिक, बारिश के इस सत्र में शहर से नौ अरब लीटर पानी बिना सहेजे बह जाएगा। कायदे से 1500 वर्ग फीट पर निर्माण, बहुमंजिला भवन बनाने या किसी घर में बोरिंग करवाने पर अनिवार्य रूप से यह सिस्टम लगाना होता है। पिछले साल हुए प्रयास के इंदौर में बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। कुछ क्षेत्रों में टैंकर पर निर्भरता बहुत कम हुई है। चिंता की बात यह है कि इंदौर में 10 बड़े क्षेत्र ऐसे हैं, जो अतिदोहन श्रेणी में होने के कारण ब्लैक और रेड जोन में हैं। इसलिए सख्ती से जल संरक्षण के हर संभव प्रयास होने चाहिए।

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