हम अपने बच्चों को कैसे बड़ा कर रहे हैं ?

हम अपने बच्चों को कैसे बड़ा कर रहे हैं

दूसरे, 17 साल के किसी लड़के को शराब नहीं पीनी चाहिए (महाराष्ट्र में- जहां यह घटना घटी- शराब पीने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष है)। और तीसरे, किसी भी उम्र के व्यक्ति को शराब पीकर तो हरगिज गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। और इसके बावजूद, इस पोर्श कार वाले लड़के ने यह सब किया।

लड़का नाबालिग है (उसके 18 वर्ष का होने में अभी 4 महीने शेष हैं), इसलिए उस पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में मामला दर्ज किया गया। ऐसे मामलों में माता-पिता को उत्तरदायी माना जाता है। ‘पोर्श-बॉय’ जमानत का पात्र था, इसलिए उसे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने के असाइनमेंट के साथ तुरंत छुट्टी मिल गई। लेकिन मामला संगीन था।

एक अमीर बिल्डर का शराबी बेटा 2 करोड़ की कार चलाते हुए दो होनहार आईटी पेशेवरों को रौंद देता है और उनके परिवारों को कभी न खत्म होने वाला दर्द दे देता है। घटना के बाद भारी आक्रोश फैल गया। आरोपी के लिए कड़ी से कड़ी और तत्काल सजा की मांग की गई। पूरे पुणे के पब बंद कर दिए गए। इस सब से आक्रोश की अभिव्यक्ति तो हो जाती है, पर समस्या हल नहीं होती।

समाधान केवल अधिक सख्त किशोर-कानूनों से नहीं होगा। समस्या की जड़ इसमें है कि हम अपने बच्चों की पैरेंटिंग कैसे करते हैं। भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ ही समृद्ध भारतीयों की संख्या भी पिछले कुछ दशकों में कई गुना बढ़ गई है। इस समृद्धि का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन यह अपने साथ कुछ बड़ी समस्याएं भी लेकर आती है। इनमें से एक प्रमुख समस्या है- बच्चों की एक स्वस्थ माहौल में परवरिश करना।

चाहे जैसी भी आय-स्तर वाला व्यक्ति हो, पैरेंटिंग सभी के लिए कठिन है। यहां कोई यूजर-मैनुअल, स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम या प्रैक्टिस-गाइड काम नहीं आती। अगर हम बच्चे पर बहुत अधिक सख्त होते हैं, तो उसकी स्वतंत्रता और विकास को नुकसान पहुंच सकते हैं।

अगर बच्चे के प्रति अत्यधिक उदार होते हैं, तो उसे सीमाओं और अनुशासन के बारे में पता नहीं चल पाता। अब मान लें कि उदारता समृद्धि का परिणाम है, जिसमें बच्चे की हर मांग पूरी की जाती है। जिसमें माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे को प्यार करने का मतलब है उसे अधिक से अधिक संसाधन, पैसा और सेवाएं प्रदान करना और उसके रास्ते में आने वाली हर बाधा को दूर करना।

ऐसे में बच्चा एक ऐसे गुस्सैल, ‘एनटाइटल्ड’ व्यक्ति के रूप में बड़ा हो सकता है, जो अपनी पसंद की हर चीज को हासिल करने का आदी है। ऐसे में अत्यधिक-उपभोग, कम उम्र में शराब पीना और गाड़ी चलाना, अधिकारपूर्ण-व्यवहार के बावजूद बच्चा एक दु:खी व्यक्ति के रूप में बड़ा होता है।

उसकी परवरिश बिना किसी संघर्ष के और निरंतर सुख की तलाश के माहौल में होती है और यह तथाकथित लग्जरियस जीवन वास्तव में बरबादी का नुस्खा है। अगर पुणे वाली वह दुर्घटना नहीं भी हुई होती, तब भी वह ‘पोर्श-बॉय’ पहले ही शराबी बन चुका था।

वह रात 2 बजे शहर के पबों में अल्कोहल पर ही लाखों खर्च कर रहा था। समय के साथ, इस बात की पूरी सम्भावना थी कि वह ड्रग्स का आदी हो जाता, क्योंकि एक सीमा के बाद शराब उतना ‘हाई’ फील कराना बंद कर देती है।

इसी ‘हाई-चेसिंग’, ‘थ्रिल-सीकिंग’ व्यवहार के कारण उसे अंधाधुंध गति से गाड़ी चलाने की जरूरत महसूस हुई होगी। जब जीवन में पैसे खर्च करने और उपभोग करने के अलावा कोई और चुनौती, उद्देश्य या प्रयोजन नहीं होता, तो आप हादसों की ओर ही बढ़ रहे होते हैं।

ऐसे में माता-पिता के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि अपने बच्चों को अनुशासन और सही मूल्यों के साथ बड़ा करें। बच्चे पर भौतिक वस्तुएं न्योछावर कर देना ही प्यार नहीं हैै। किसी बच्चे को जल्द ही शराब पीने की अनुमति दे देना ‘कूल’ होना नहीं है।

पैरेंटिंग दो चीजों के बीच संतुलन बनाने के बारे में है- सहानुभूति और सीमाएं। ‘हां बेटा, मुझे पता है तुम बोरियत महसूस कर रहे होगे’- ये कहना सहानुभूतिपूर्ण है। लेकिन साथ ही हमें यह भी कहना होगा कि ‘बोरियत मिटाने के लिए घंटों अपने फोन पर मत रहो, कोई खेल खेलो या किताब पढ़ो।’ तब आप सीमाएं निर्धारित कर रहे होते हैं। एक और उदाहरण देखें।

ये कहना कि ‘हां बेटा, मुझे पता है कि दूसरे बच्चे महंगे ब्रांड्स का उपयोग करते हैं, जिससे तुम खुद को हीन महसूस करते हो,’ सहानुभूति का प्रदर्शन करना है। लेकिन इसके साथ यह जोड़ देना कि ‘अलबत्ता मैं तुम्हें डिजाइनर बैग खरीदकर नहीं दे सकता क्योंकि तुम अभी उसके लिए बहुत छोटे हो,’ सीमाएं तय करना है। या, ‘पोर्श बहुत शानदार कार है, लेकिन अभी तुम स्पोर्ट्स कार चलाने के बजाय पढ़ाई और दूसरे लक्ष्यों पर ध्यान दो।’

‘पोर्श-बॉय’ के मामले में ऐसी सीमाओं का निर्धारण नहीं किया गया था। आज ऐसे अनेक समृद्ध भारतीय माता-पिता हैं, जो बच्चे की मांगों के आगे झुक जाते हैं। वे प्यार के नाम पर या बच्चे से रिश्ते खराब न करने के लिए हार मान लेते हैं। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि सही सीमाएं तय करने से रिश्ते खराब नहीं होते। वास्तव में, हमारे बच्चे तो चाहते हैं कि हम उनके लिए ऊंची सीमाएं तय करें, जो उन्हें दुनिया में मुकाम बनाने में मदद करती हों।

बच्चे के लिए नियम और सीमाएं तय करना जरूरी…
चाहे उद्योग-घराने हों, राजनीतिक दल या बॉलीवुड : भारतीयों में संतान-मोह बहुत होता है। लेकिन बच्चे को प्यार और समर्थन देने के साथ-साथ उसके लिए नियम और सीमाएं तय करना भी जरूरी हैं। पुणे का हादसा हमारे लिए सबक है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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