अक्सर क्यों गलत साबित हो जाते हैं एग्जिट पोल्स!

लोकसभा चुनाव 2024: अक्सर क्यों गलत साबित हो जाते हैं एग्जिट पोल्स! ये हैं पांच बड़ी वजहें
हाल ही में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल की काफी भद्द पिटी. इन चुनाव में 10 एजेंसियों ने एग्जिट पोल तैयार किए थे, जिसमें से किसी का भी एग्जिट पोल सही साबित नहीं हुआ. 

मतदान खत्म होने के बाद और मतगणना से पहले के समय को चुनावी दुनिया में एग्जिट पोल का दौर कहा जाता है. एग्जिट पोल को चुनाव परिणाम का आखिरी ओपिनियन कहते हैं. यह संख्या बताने का एक सिस्टम भी है, जो चुनाव परिणाम से पहले राजनीतिक दलों के बारे में भविष्यवाणी करता है.

भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत 1980 में हुई थी. उस वक्त एग्जिट पोल लोगों के मुद्दे को लेकर प्रकाशित किए जाते थे.  

वोटिंग पैटर्न और मुद्दे जानने के लिए शुरू किया गया एग्जिट पोल अब सरकार बनाने और बिगाड़ने का आंकड़ा जारी करता है. हालांकि, 2004 के बाद से बहुत कम ही ऐसे मौके आए, जब एग्जिट पोल के नतीजे चुनाव परिणाम से मिलता-जुलता रहा हो.

हाल ही में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल की काफी भद्द पिटी. इन चुनाव में 10 एजेंसियों ने एग्जिट पोल तैयार किए थे, जिसमें से किसी का भी एग्जिट पोल सही साबित नहीं हुआ. 

पिछले 5 सालों का आंकड़ा देखा जाए तो बिहार चुनाव (2020), बंगाल चुनाव (2021), यूपी चुनाव (2022) और हिमाचल चुनाव (2022) में भी सर्वे एजेंसियों का एग्जिट पोल फेल हो चुके हैं. 

शायद यही वजह है कि विपक्षी दलों ने इस बार एग्जिट पोल पर होने वाले डिबेट का बहिष्कार कर दिया है. विपक्षी दलों का कहना है कि एग्जिट पोल के आंकड़े सही नहीं होते हैं. यह इसलिए जारी किया जाता है, ताकि सत्ताधारी दल मतगणना के दिन फायदा मिल सके.

कैसे तैयार किया जाता है एग्जिट पोल?
मतदान के दिन संबंधित सीट का डेमोग्राफिक्स डेटा के साथ सर्वे करने वाली एजेंसी के लोग बूथ के बाहर तैनात किए जाते हैं. यहां पर सम और विषम फॉर्मूले के आधार पर मतदान देकर आ रहे लोगों से राय ली जाती है.

जानकारी लेने में लिंग, जाति और धर्म का खास ख्याल रखा जाता है. बूथ भी बदले जाते हैं. डेटा कलेक्शन के बाद एजेंसी के लोग इसका विश्लेषण करते हैं. 

विश्लेषण के बाद आखिर में एग्जिट पोल के इस डेटा को प्री-पोल के डेटा से मिलाने का काम किया जाता है. अगर 10 प्रतिशत से कम मार्जिन रहता है तो एग्जिट पोल का डेटा फाइनल कर दिया जाता है.

लोकसभा चुनाव 2024: अक्सर क्यों गलत साबित हो जाते हैं एग्जिट पोल्स! ये हैं पांच बड़ी वजहें

क्यों फेल हो जाता है एग्जिट पोल?

1. समय की कमी का होना- भारत में आखिरी चरण के मतदान और चुनाव परिणाम के बीच काफी कम गैप रहता है. सर्वे करने वाली एजेंसियों को इसी बीच में एग्जिट पोल तैयार करना रहता है. एग्जिट पोल गलती होने की सबसे बड़ी वजह समय की कमी को ही माना जाता है. 

भारत में सर्वे एजेंसी CSDS के साथ काम कर चुके अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता सैम सोलोमोन कहते हैं- एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के पास वक्त बहुत ही कम रहता है. इस कारण कई बार डेटा इकट्ठा करने में बुनियादी मानदंड का भी ख्याल नहीं रखा जाता है. 

सोलोमोन के मुताबिक जब डेटा गलत इकट्ठा होगा, तो पोल कैसे सही हो सकता है?

दक्षिण भारत में एग्जिट पोल पर काम कर रहे सर्वे एजेंसी केस स्टडी के विकास कुमार के मुताबिक, एग्जिट पोल तभी सही होगा जब किसी सीट को आप चुनाव से 3 महीने पहले से लगातार ट्रैक करोगे. ऐसा नहीं करने पर एग्जिट पोल का गलत होना तय है. 

विकास कुमार आगे कहते हैं- पोल करने वालों की एक बड़ी परेशानी मतदाताओं से बात करने की होती है. मतदान करने के बाद अधिकांश लोग बात नहीं करते हैं. अगर करते भी हैं, तो उन पर किसी पार्टी का प्रभाव रहता है, जिससे सैंपल ही गलत हो जाता है.

2. डेमोग्राफी की समझ न होना- भारत में लोकसभा की 543 सीटें हैं, जो अलग-अलग प्रांत में है. सभी सीटों का समीकरण और मतदाताओं के बीच की विविधताएं अलग-अलग है. सैंपल जुटाने के वक्त इस बात का खासा ख्याल रखना जरूरी होता है. 

विकास कुमार के मुताबिक अधिकांश एग्जिट पोल बनाने वाली कंपनियां इसको ध्यान में नहीं रखती है. आखिरी चरण के सीट की रिपोर्ट तो एजेंसी की तरफ से समीकरण के आधार पर ही तैयार कर दिया जाता है, जिससे मतदान के तुरंत बाद रिपोर्ट पब्लिश की जा सके.

2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव में आखिर चरण की सीटों पर एनडीए ने क्लीन स्विप किया था, जिसकी वजह से क्लोज फाइट में गठबंधन को जीत मिली थी, लेकिन चुनाव बाद के अधिकांश एग्जिट पोल में गठबंधन को हारते हुए दिखाया गया था. 

3. एक प्रतिशत के फॉर्मूले का पालन नहीं- एग्जिट पोल के सैंपलिंग में कम से कम हर सीट पर एक प्रतिशत लोगों की राय जानना जरूरी है. इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक और अस्थिरता का भी ध्यान रखना जरूरी होता है. भारत में हर लोकसभा सीट पर औसतन 15-20 लाख मतदाता हैं.

इस हिसाब से एग्जिट पोल तैयार करने में हर सीट पर कम से कम 15-20 हजार लोगों से बातचीत जरूरी है. हालांकि, इसके बावजूद सीट का प्रेडिक्शन काफी मुश्किल काम है. 

ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय के मुताबिक किसी भी एग्जिट पोल में सीट की संख्या बता पाना सबसे मुश्किल काम है. भारत में मतदाताओं का जो व्यवहार है, उसमें यह काम और भी कठिन हो जाता है. 

वार्ष्णेय आगे कहते हैं- भारत में एग्जिट पोल बनाने वाली एजेंसियां यह काम कैसे करती है, यह भी समझ से परे है.

लोकसभा चुनाव 2024: अक्सर क्यों गलत साबित हो जाते हैं एग्जिट पोल्स! ये हैं पांच बड़ी वजहें

4. वाररूम एग्जिट पोल का चलन- केस स्टडी के विकास कुमार के मुताबिक भारत में टेलीविजन के आने से एग्जिट पोल तैयार करने का तरीका भी बदल गया है. भारत में कई एजेंसियां पुराने डेटा के सहारे वाररूम एग्जिट पोल तैयार करती है.

विकास आगे कहते हैं-  समीकरण आधारित तैयार इस रिपोर्ट को क्रॉस चेक करने के लिए कुछ स्थानीय लोगों से बात कर लेते हैं और फिर उसे प्रकाशित कर देते हैं.

एजेंसियां यह काम क्यों करती है के सवाल पर विकास कहते हैं- संसाधन मुख्य मसला है. एजेंसियों के पास लोगों की कमी होती है, जिस कारण वाररूम स्ट्रैटजी अपनाया जाता है.

5. गलत एग्जिट पोल की जिम्मेदारी न लेना- भारत में हर चुनाव के बाद सर्वे एजेंसी की तरफ एग्जिट पोल जारी किया जाता है. कुछ मौकों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकांशत: एग्जिट पोल गलत ही साबित हुए हैं. 

दिलचस्प बात है कि एग्जिट पोल बनाने वाली एजेंसी इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती. चुनाव बाद गलत होने पर एजेंसी की तरफ से चुप्पी साध लेना भी एग्जिट पोल के बार-बार फेल होने की मुख्य वजह है.

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20 साल का पूरा हिसाब, जानिए कब पास और कब फेल हुए EXIT POLLS, जानें सबकुछ
Exit Poll भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में चुनाव का विश्लेषण करना बहुत पेचीदा काम है. कहीं जाति का गणित है, तो कहीं सियासी समीकरण धर्म में उलझा हुआ है. आखिर मतगणना से पहले नतीजों की भविष्यवाणी कैसे की जाती है? 1999 से 2019 तक चुनावी चाणक्य कितने सही रहे और कितनी बार उनका डिब्बा हुआ गुल जानिए…
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे चार जून को आएंगे, लेकिन उससे पहले हर तरफ Exit Polls की चर्चा है. लंबे समय तक चली चुनावी गर्मी के बाद Exit polls बारिश के पहले वाली हल्की बूंदाबांदी की तरह चैन तो पहुंचाते ही हैं. खुद को चुनावी चाणक्य बताने वाले विश्लेषक और उनके Exit Polls सटीक अनुमान का दावा करते हैं, लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है और राजनीतिक पार्टियों का संभावित रिपोर्ट कार्ड बनाने वाले चाणक्यों की समीक्षा भी जरूरी है. चलिए पता करते हैं कि 1999 से 2019 तक चुनावी चाणक्य कितने सही रहे और कितनी बार उनका डिब्बा गुल हुआ.

1998 के चुनावों में Exit Poll लगभग सही

भारत में Exit Poll का सफर तो 60 के दशक से ही शुरू हो गया था. लेकिन सही मायने में लोगों तक ये नब्बे के दशक में पहुंचा. Exit Poll भारत में बड़े पैमाने पर 1998 के चुनावों से शुरू हुए. 1998 के चुनावों में प्रमुख चार चुनावी Exit Poll किए गए और इनमें भारतीय जनता पार्टी को आगे दिखाया गया. देश में राजनीतिक अस्थिरता और मजबूत चेहरे के अभाव वाली सरकारों की वजह से बीजेपी को फायदा हुआ. चुनावी चाणक्यों की भविष्यवाणी सही साबित हुई और भाजपा के 250+ सांसद चुनकर आए.

1998 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

1998 लोकसभा चुनाव के Exit Polls और परिणाम.

इसी दौरान Exit Polls वाले चाणक्यों और चुनाव आयोग के बीच संघर्ष भी शुरू हुआ. इन चुनावों में चुनावी चाणक्यों का तीर बिल्कुल निशाने पर लगा और Exit Polls के आंकड़े लगभग चुनावी नतीजों में भी दिखे. जोड़तोड़ से बनी सरकार ज्यादा वक्त के लिए नहीं चल पाई और देश 1999 में फिर एक बार चुनावों के लिए तयार हुआ.

1999 में Exit Polls ने भांप लिया था हवा का रुख

1999 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी बढ़त बनाए हुई थी. प्रमुख पांच पोल एजेंसी के Exit Polls में भाजपा को 300 से अधिक सीटें दिखाई गई थीं. चुनावी चाणक्यों ने भाजपा की अगुवाई में सरकार बनेगी यह भी बताया था, हालांकि वे बीजेपी के लिए सटीक आंकड़े बताने में चूक गए. यही नहीं चुनावी चाणक्यों ने क्षेत्रीय दलों के आंकड़ों और उनके असर भी Exit Polls में कम आंके थे.

1999 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

1999 लोकसभा चुनाव के Exit Polls और परिणाम.

1999 में एक्जिट पोल्स में बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो बीजेपी सरकार तो बना रही थी, लेकिन Exit Polls द्वारा अनुमानित सीटें उन्हें नहीं मिली. बेशक सही आकंड़े एक्जिट पोल नहीं पेश कर पाया, लेकिन हवा के रुख को उन्होंने भांप लिया था.

2004 के चुनावों ने तो राजनीति के चाणक्यों को हैरान ही कर दिया था

2004 के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने चुनावी चाणक्यों को पूरी तरह से चौका दिया था. ‘शाइनिंग इंडिया’ वाली भाजपा की रणनीति पूरी तरह से परास्त हो गई. कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चुनाव जीती. सारे अनुमान गलत साबित हुए और चुनावी चाणक्य भारत की जनता को समझने में नाकाम हुए. 2009 लोकसभा चुनावों में कड़ा मुकाबला बताने वाले Exit Polls भी गलत साबित हुए. भारतीय मतदाता ने एक बार फिर चुनावी चाणक्यों को गलत साबित किया. यूपीए एक के कार्यकाल को देखते हुए मतदाताओं ने एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को मौका दिया.

2004 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

2004 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

2009 के चुनाव चुनावी पंडितों की समझ से परे

2009 के लोकसभा चुनाव परिणाम एक बार फिर चुनावी पंडितों की समझ से परे निकले. इन चुनावों में यूपीए ने अपने 2004-09 तक के कार्यकाल में किए गए कामों की बदौलत लोगों का विश्वास जीता. इसी विश्वास की गवाही चुनाव के नतीजे दे रहे थे. राजनीति पंडितों की समझ देश के चुनावी नतीजों में त्रिशंकु स्थिति की संभावना बता रही थी, लेकिन नतीजों यूपीए ने में अच्छी बढ़त के साथ खुद को मजबूत किया और फिर क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर सरकार बनाई.

2009 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

2009 लोकसभा चुनाव के Exit Polls और परिणाम.

इन चुनावों में Exit Polls ने कांग्रेस और साथी दलों के 200 से कम सांसद आएंगे यह अनुमान लगाया था, लेकिन असलियत में कांग्रेस + के 262 सांसद चुनकर आए जो उनकी 2004 के चुनाव नतीजों से भी ज्यादा थे. 2009 के लोकसभा चुनाव का गणित समझने में चुनावी चाणक्य चूक गए थे. त्रिशंकु स्थिति का अनुमान लगाए बैठे Exit Polls कांग्रेस और यूपीए-1 के कार्यकाल को लेकर मतदाताओं की सोच को नहीं पकड़ पाए.

Exit Polls ने 2014 में भाजपा को कम आंका था

2014 लोकसभा चुनाव के ऐतिहासिक परिणाम देखकर चुनावी चाणक्य और उनके Exit Polls सन्न रह गए थे. इन चुनावों में पोल का अनुमान भाजपा की सरकार आ रही है, यह जरूर था, लेकिन इतने भारी बहुमत की भविष्यवाणी वे नहीं कर पाए थे. 2014 के चुनावों में चली ‘मोदी लहर’ के सामने विपक्ष परास्त हुआ और कांग्रेस सिर्फ 44 सांसदों तक सिमट गई. भाजपा इस चुनाव में 282 सांसदों के साथ सत्ता में दाखिल हुई.

2014 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

2014 लोकसभा चुनाव के Exit Polls और परिणाम.

Exit Polls में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ जनता में आक्रोश दिखाई दे रहा था, लेकिन उसका इतनी सीटों में तब्दील होना राजनीतिक एक्सपर्टों को हैरान करने वाला था. 

2019 के चुनाव में Exit Poll लगभग सही साबित हुए

 2019 के चुनाव Exit Polls और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक बार फिर चौंकाने वाले थे. पोल में फिर एक बार नरेंद्र मोदी भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटेंगे यह तो सही बताया था, लेकिन Exit Polls ने भाजपा की सीटें कम आने की संभावना जताई थी. उस समय के एक्जिट पोल्स की बात करें तो सबसे सटीक अनुमान एक्सिस-इंडिया टुडे का था, जिसने भाजपा की 339-365 सीटें मिलने की संभावना जताई थी. 

2019 लोकसभा चुनाव के Exit Poll और परिणाम.

2019 लोकसभा चुनाव के Exit Polls और परिणाम.

चुनाव जब भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में हो तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर क्षेत्र में अपने मुद्दे और स्थानीय समीकरण हावी हो सकते है. राष्ट्रीय मुद्दों से लेकर स्थानीय समस्याओं को ध्यान में रखकर चुनाव का विश्लेषण करना अपने आप में एक शिवधानुष्य उठाने जैसा मुश्किल काम है. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि कई बार चुनावी चाणक्य और उनके Exit Polls इस काम को करने में सफल रहे तो कई बार सटीक तस्वीर पेश करने से दूर.

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