मुसलमान-विरोधी बातें बहुसंख्य हिंदू वोटरों को भी अच्छी नहीं लगीं

मुसलमान-विरोधी बातें बहुसंख्य हिंदू वोटरों को भी अच्छी नहीं लगीं

चुनाव नतीजों के माध्यम से मतदाताओं ने राजनीतिक वर्ग को यह संदेश दे दिया है कि वे सार्वजनिक वक्तव्यों में अशिष्टता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। मतदाताओं ने सत्ता-संरचना को चौंकाने वाला फैसला सुनाया है, लेकिन साथ ही इसमें एक सूक्ष्म और परिष्कृत संकेत भी है। धीरज भारतीयों की विशेषता है।

एक मुद्दत से वो ‘लव जिहाद’, ‘लैंड जिहाद’ आदि के जुमले सुनते आ रहे थे और आखिरकार अब वो उनसे उकता गए हैं। वे इसे और नहीं झेल सकते थे। और हमें समझना होगा कि मुसलमानों के प्रति इस तरह की भाषा से सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही नुकसान नहीं पहुंचता है, बल्कि बहुसंख्य हिंदुओं को भी ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं। ये चुनाव नतीजे सार्वजनिक-जीवन में अभद्र भाषा का सामूहिक प्रतिकार हैं।

भारत में मुसलमानों का क्रोनोलॉजिकल-नैरेटिव 1200 साल पहले शुरू नहीं होता है। आपको इतिहास के साथ ही भूगोल को भी ध्यान में रखना होगा। केवल अरब सागर ही अरब को केरल तट से अलग करता है। पैगम्बर की मृत्यु 632 ईस्वी में हुई थी, लेकिन 629 ईस्वी में ही कोच्चि के समीप क्रांगानोर के एक हिंदू रईस चेरुमन पेरुमल ने एक मस्जिद की स्थापना कर दी थी, और वहां आज भी नमाज अदा की जाती है।

वास्तव में अरब और केरल के बीच व्यापार इस्लाम के अस्तित्व में आने से एक सहस्राब्दी पहले से चलता आ रहा है। सदियों से ये व्यापारी कोझिकोड के आसपास के क्षेत्र में स्थापित हो गए थे। लेकिन उनके कुनबों की औरतों ने हिंदू रिवाजों को ही अपनाया था, जिसमें ‘​थली’ पहनना भी शामिल है।

मलयालम में ‘मंगलसूत्र’ को ‘थली’ ही कहते हैं। मैंने यहां पर ‘मंगलसूत्र’ का उल्लेख एक विशेष प्रयोजन से किया है। अगर सैकड़ों रैलियां करने के बावजूद भाजपा बहुमत नहीं ला पाई है तो यह इस बात का संकेत है कि नई सरकार हाशिए के मुसलमानों को नजरअंदाज करके अपनी नीतियां नहीं बना सकती है।

  • अगर सैकड़ों रैलियां करने के बावजूद भाजपा बहुमत नहीं ला पाई है तो यह संकेत है कि सरकार हाशिए के मुसलमानों को नजरअंदाज करके नीतियां नहीं बना सकती।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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