मध्य प्रदेश में दिखा नारी शक्ति का जलवा, 6 महिलाएं पहुंचेंगी संसद !

बीजेपी की 6 महिला सांसदों की स्ट्रगल स्टोरी …
10 की उम्र में हो गई थी भिंड सांसद की शादी, अनीता अब कर रहीं पीएचडी

महिला सांसदों की जीत का अंतर

लता वानखेड़े – 4 लाख 77 हजार 222

हिमाद्री सिंह – 3 लाख 97 हजार 340

सावित्री ठाकुर – 2 लाख 18 हजार 665

अनीता चौहान – 2 लाख 7 हजार 232

भारती पारधी – 1 लाख 74 हजार 512

संध्या राय – 64 हजार 840

मध्यप्रदेश में भाजपा के जीते सभी 29 सांसदों में 6 महिला सांसद भी हैं। ये पहली बार है, जब एक ही पार्टी से इतनी महिलाएं संसद में पहुंची हैं। राजनीति में संघर्ष के बाद ये महिलाएं संसद की दहलीज पर पहुंची हैं।

भिंड सांसद संध्या राय का बाल विवाह हुआ था। शादी के बाद उन्होंने न केवल आगे की पढ़ाई जारी रखी, बल्कि राजनीति में भी अपनी अलग छाप छोड़ी है। सागर की लता वानखेड़े कभी पति के साथ गांव की पंच चुनी गई थीं, अब पति बिजनेस संभाल रहे हैं और लता संसद पहुंच चुकी है।

बालाघाट की भारती पारधी दादा ससुर के बाद संसद में पहुंचने वाली परिवार की दूसरी सदस्य हैं। उनके दादा ससुर 62 साल पहले गैर कांग्रेसी सांसद चुने गए थे। अनीता नागर ने रतलाम में कांतिलाल भूरिया को हराकर एक नई लकीर खींची है। तो शहडोल से दूसरी बार जीत दर्ज करने वाली हिमाद्री सिंह अपनी मां व पिता की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। 

ससुराल पहुंच कर 10वीं से लेकर एलएलएम तक पढ़ाई की

भिंड-दतिया सीट से लगाता दूसरी बार जीतीं संध्या राय का स्ट्रगल और राजनीति में एंट्री की कहानी दिलचस्प है। पिता विकास प्राधिकरण में कार्यरत थे। इस कारण उनकी पढ़ाई भी अविभाजित एमपी के विभिन्न जिलों में हुई। आठवीं-नौंवी की पढ़ाई बिलासपुर में हुई।

संध्या राय कहती हैं कि राजनीति में ये मुकाम मिलेगा, कभी सोचा भी नहीं था। मेरे बड़े पिता जरूर मुरैना तहसील के कैमरा गांव के सरपंच रहे। पर तब मैं बहुत छोटी थी। उतनी राजनीतिक समझ भी नहीं थी।

1984 में पांचवीं में पढ़ रही थी, तभी सबलगढ़ निवासी सुमन राय से शादी हो गई। तब उनकी उम्र 10 साल थी। पांच साल बाद गौना हुआ। तब वो 10वीं में थीं। ससुराल पहुंच कर बोर्ड की परीक्षा दी। शादी के डेढ़ साल बाद ही एक बेटी की मां बन गईं थी। पर ससुराल में भी उनकी पढ़ाई जारी रही। ग्रेजुएशन, एलएलबी और एलएलएम पूरा किया।

पति को सिंचाई विभाग में नौकरी और गैस एजेंसी साथ-साथ मिली

संध्या राय के मुताबिक शादी के बाद उनके पति ठेकेदारी करने लगे थे। बाद में सरपंच का चुनाव भी लड़े। पटवा सरकार के समय वे सबलगढ़ के नॉमिनेट जनपद अध्यक्ष भी बने। 1991 में सिंचाई विभाग में सरकारी जॉब और अम्बाह में गैस की एजेंसी साथ-साथ मिली। किसी एक को चुनने की नौबत आई तो पति ने गैस एजेंसी चुनी।

इसके बाद उनके साथ बच्चों को लेकर में सबलगढ़ से अंबाह शिफ्ट हो गई। पति सुमन राय भाजपा में सक्रिय थे। वे एससी मोर्चा के प्रदेश मंत्री भी रहे। उन्होंने अम्बाह व दिमनी से विधानसभा टिकट मांगी, लेकिन नहीं मिला। पति के साथ संध्या राय भी एजेंसी के काम देखती थी।

कृषि उपज मंडी समिति अध्यक्ष से हुई राजनीति की शुरुआत

25 साल की उम्र में संध्या राय की राजनीति में एंट्री संयोग से हुई। दरअसल, 2000 में कृषि उपज मंडी समिति अध्यक्ष का पद महिला के लिए आरक्षित हुआ, तो पार्टी की ओर से उनके पति को सुझाव दिया गया कि संध्या का नॉमिनेशन करा दो। ये चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं हो रहे थे। लेकिन पार्टी समर्थित लोग ही मैदान में उतरे थे।

पार्टी के दबाव में पति ने फॉर्म तो भरवा दिया, लेकिन वे तीनों बच्चों के छोटे होने के चलते इसके लिए तैयार नहीं थे। संध्या के मुताबिक मुझे भी राजनीति का कोई अनुभव भी नहीं था। अभी तक वो घर ही संभाल रही थी। पति की मंशा थी कि आखिरी डेट में फॉर्म वापस ले लेंगे। फॉर्म वापस लेने वो पति के साथ गईं भी, लेकिन उस समय अम्बाह में पदस्थ एसडीएम गुप्ता ने सलाह दी कि संध्या को चुनाव लड़ने दो।

जब प्रचार की बारी आई तो पति ने कहा कि घर से नहीं निकलना है। पर हमारी युवा टीम और वोट देने वाले किसान इस पर अड़ गए कि प्रत्याशी को देखना है। वे ट्रैक्टर लेकर उनके दरवाजे पर पहुंच जाते थे। उनकी मांग और पार्टी के दबाव के आगे पति को झुकना पड़ा। आखिरी के चार दिन प्रचार के लिए वो निकली। संकोच और झिझक के साथ शुरुआत हुई, लेकिन महिला टीम का साथ और लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिलने से वो जीत गईं।

2003 में पहली बार विधायक, 16 साल बाद मिला सांसद का टिकट

2003 के विधानसभा में उन्हें दिमनी विधानसभा से सीटिंग एमएलए मुंशीलाल का टिकट काट कर प्रत्याशी बनाया, जबकि दावेदारी उनके पति ने की थी। वह ये चुनाव जीत गईं। उन्हें 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा में टिकट नहीं मिला, मगर वे संगठन में सक्रिय रहीं। 2017 में संध्या को राज्य महिला आयोग की सदस्य बनाया गया।

इसके बाद 2019 में उन्हें भिंड लोकसभा से प्रत्याशी बनाया गया। वे पहली बार सांसद का चुनाव जीतीं। संध्या के पति अब व्यवसाय में रम चुके हैं। उनकी बेटी की शादी हो चुकी है। बड़ा बेटा बीई के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगा है तो छोटा बेटा एमबीए कर चुका है।

जमुना देवी के बाद दूसरी और भाजपा की पहली महिला सांसद हैं अनीता

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से चुनाव जीतीं अनीता नागर चौहान इस क्षेत्र की दूसरी महिला सांसद हैं। 1962 में जमुना देवी यहां से पहली महिला सांसद बनी थीं। रतलाम लोकसभा सीट से बीजेपी की किसी महिला उम्मीदवार ने पहली बार सांसद का चुनाव जीता है।

अनिता के पति नागर सिंह चौहान चौथी बार के विधायक और प्रदेश सरकार में वन मंत्री हैं। अनीता कहती हैं कि उनके माता-पिता खेती करते हैं। वे भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। मायके में राजनीति से दूर-दूर का नाता नहीं था। 2003 में उनकी नागर सिंह चौहान से शादी हुई। तब वे बीजेपी में सक्रिय थे।

2003 में बीजेपी ने नागर सिंह चौहान को पहली बार विधानसभा का प्रत्याशी बनाया, और वे चुनाव जीत गए। पति के राजनीतिक में सक्रिय होने की वजह से घर में राजनीतिक लोगों का आना-जाना लगा रहता था। इस राजनीतिक माहौल में अनीता भी घुल-मिल गई।

2007 में अनिता ने अलीराजपुर नगर पालिका अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। इसके बाद मंडी सदस्य के लिए निर्वाचित हुईं। 2015 में वो जिला पंचायत सदस्य और फिर निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। 2022 में मैं दूसरी बार जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। तब 13 सदस्यों में उन्हें 12 वोट मिले।

शादी के बाद किया ग्रेजुएशन, अब कर रहीं पीएचडी

अनीता कहती हैं कि जब उनकी शादी हुई तो वो 12वीं पास थीं। ससुराल पहुंची तो पति ने आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। ससुराल में उन्होंने ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन किया और अब पीएचडी कर रहीं हैं।

उनके दो बेटों में एक कॉलेज तो दूसरा 12वीं में पहुंच चुका है। अनीता के मुताबिक पार्टी लोकसभा में प्रत्याशी बनाएगी, ये उनके लिए चौंकाने वाली सूचना थी। भाजपा ने यहां से अपनी सीटिंग सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर उन्हें प्रत्याशी बनाया था।

उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को 2.07 लाख वोटों से हराकर ये सीट जीती है। पूरे चुनाव के दौरान कांतिलाल ने अनीता के परिवार पर व्यक्तिगत हमले किए। अनीता को इस सीट पर महिला वोटरों का भरपूर साथ मिला। सैलाना छोड़कर उन्होंने सभी 7 सीटों पर कांतिलाल को हराया है।

गांव की पंच से सीधे संसद में पहुंचने वाली लता सागर सीट से भाजपा की पहली महिला सांस

भाजपा ने सागर लोकसभा सीट से इस बार अपनी सीटिंग सांसद राजबहादुर सिंह का टिकट कर डॉ. लता वानखेड़े को प्रत्याशी बनाया था। लता ने इस सीट को 4.71 लाख के अंतर से जीता है। इस सीट से जीतने वाली वे दूसरी महिला सांसद हैं। इससे पहले यहां 1980 में कांग्रेस की सहोद्राबाई सांसद चुनी गई थीं। इस सीट पर भाजपा की वो पहली महिला सांसद हैं।

दमोह के पथरिया में जन्मी लता के पिता सरकारी विभाग में एग्रीकल्चर में इंजीनियर थे। पांच-भाई बहनों में तीसरे नंबर की लता ने एमए अर्थशास्त्र और पत्रकारिता से मास्टर डिग्री ली है। पत्रकारिता में ही उन्होंने पीएचडी भी की है। लता की 1991 में कांट्रेक्टर व भाजपा नेता नंदकिशोर उर्फ गुड्‌डू वानखेड़े से शादी हुई थी।

लता कहती हैं कि राजनीति में आना है ये सोचा नहीं था। 1995 में मेरे ससुराल का गांव महिला एससी सरपंच के लिए आरक्षित हुआ। पति के साथ मैंने पंच का चुनाव लड़ा। मेरे पति उपसरपंच चुने गए। 2000 में मैंने सरपंच का चुनाव जीता और 2015 तक तीन बार इस पद पर रही।

पति भाजपा में सक्रिय थे। उन्होंने भी 1992 में भाजपा जॉइन कर ली थी। 2003 में भाजपा महिला मोर्चा की महामंत्री बनी। फिर 2004 से 2010 तक दो बार भाजपा महिला मोर्चा सागर की जिलाध्यक्ष रहीं। भाजपा महिला की प्रदेश अध्यक्ष और महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं।

2013 में उन्होंने देवरी विधानसभा से उन्होंने टिकट मांगा, तो पार्टी ने ये कहते हुए मना कर दिया कि तुम्हें लोकसभा लड़ाएंगे। तब उन्हें आश्चर्य हुआ था। 2014 और 2019 में लोकसभा के लिए दावेदारी की, लेकिन अवसर नहीं मिला।

इस बार टिकट मिला, तो पहली बार में ही सांसद बन गईं। उनका एक बेटा है, जो बीटेक लास्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा है। लता कहती हैं कि पति ने मेरे खातिर राजनीति छोड़ बिजनेस संभाल लिया है। अब परिवार में मैं ही राजनीति में सक्रिय हूं।

पार्षद से संसद में पहुंचने वाली बालाघाट की पहली महिला बनीं भारती

बालाघाट सीट से चुनाव जीतीं भाजपा की भारती पारधी ने एक रिकॉर्ड बनाया है। वे बालाघाट सीट पर जीतने वाली पहली महिला सांसद हैं। भाजपा ने अपने सीटिंग सांसद ढाल सिंह बिसेन का टिकट काटकर उन्हें मैदान में उतारा था। उनका मुकाबला कांग्रेस के सम्राट सिंह सारस्वत से था। भारती ने ये चुनाव 1.74 लाख के अंतर से हरा दिया। भारती पारधी ने पार्षद से सांसद का सफर तय किया है।

भारती पारधी के दादा ससुर भोलाराम रामजी 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सांसद चुने गए थे। संयोग देखिए कि अब 62 साल बाद परिवार की तीसरी पीढ़ी की बहू भारती को लोकसभा में बैठने का मौका मिला है।

भारती कहती हैं कि मेरे मायके और ससुराल दोनों परिवार राजनीति से जुड़ाव रखते हैं। मेरे ससुर डॉ. धन्नजय बिसेन पंवार समाज के पहले एमबीबीएस थे। बाद में उपभोक्ता भंडार के अध्यक्ष रहे। 1984 इस परिवार में भारती पारधी की शादी हुई ।

शादी के डेढ़ साल बाद ही वे भाजपा प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में निकलने लगी थीं। पंचायती राज का गठन होने पर लालबर्रा क्षेत्र क्रमांक 19 से उनके पति जिला पंचायत का चुनाव जीते थे। 1999 में ये सीट महिला ओबीसी के लिए आरक्षित हो गई। तब इस सीट से भारती पारधी ने जीत दर्ज की। वे जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की दावेदार थी, बहुमत भी भाजपा का था, लेकिन एक वोट से हार गईं।

2009 में वे बालाघाट शहर में आकर रहने लगीं। यहां भाजपा की महिला संगठन में सक्रिय हो गईं। भारती के मुताबिक नपा अध्यक्ष पार्षद से किसी को चुना जाना था। यही सोचकर उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ा था। पर यहां भी किस्मत ने धोखा दे दिया। अध्यक्ष भारती ठाकुर बन गईं।

2019 में उन्होंने बालाघाट लोकसभा के लिए दावेदारी की थी। उनका नाम भी संगठन को भेजा गया था। फिर 2023 विधानसभा चुनाव में बालाघाट से टिकट की दावेदारी की थी। इस बार पार्टी ने लोकसभा में प्रत्याशी बनाया और वे संसद में पहुंच गईं। उनका इकलौता बेटा रुद्राक्ष 12वीं का एग्जाम देकर जेई की तैयारी में लगा है।

मायके-ससुराल में कोई राजनीति में नहीं, लेकिन सावित्री दूसरी बार बनीं सांसद

10वीं पास धार की भाजपा सांसद सावित्री ठाकुर ने राजनीति में अपने दम पर मुकाम बनाया है। पिता राज्य वन विभाग से सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। पति तुकाराम ठाकुर किसान है। मायके और ससुराल में कोई भी राजनीति में नहीं था। सावित्री राजनीति में आने से पहले एनजीओ में को-ऑर्डिनेटर थीं।

इसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आईं। पढ़ी-लिखी महिला आदिवासी होने का फायदा सावित्री को मिला। वर्ष 2004 में सावित्री जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनने का मौका मिला। 2014 में भाजपा ने धार लोकसभा से प्रत्याशी बनाया। सावित्री ने इस चुनाव में कांग्रेस के उमंग सिंघार को हराया।

सावित्री ठाकुर को उद्योग पर बनी संसदीय समिति का सदस्य बनने का अवसर मिला। 2019 में उनका टिकट काटकर भाजपा ने छतर सिंह दरबार को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा ने इस बार छतर का टिकट काटकर फिर सावित्री को मौका दिया और वे दूसरी बार संसद में पहुंच गईं।

उन्होंने कांग्रेस के राधेश्याम मुवैल को 2.18 लाख वोटों के अंतर से हराया है। सावित्री कहती हैं कि मैं राजनीति में आउंगी, ऐसा सोचा भी नहीं था। एनजीओ में सक्रियता के चलते आरएसएस से जुड़ी और फिर मेरी राजनीति में एंट्री हुई। सावित्री के दो बेटे हैं।

मां-पिता दोनों सांसद, अब हिमाद्री बढ़ा रहीं राजनीतिक विरासत

शहडोल लोकसभा सीट से हिमाद्री सिंह लगातार दूसरी बार सांसद चुनी गईं। उन्होंने पुष्पराजगढ़ में 500 मीटर दूर रहने वाले फुंदेलाल मार्कों को 3.97 लाख वोटों के अंतर से हराया है। हिमाद्री का परिवार कांग्रेसी था। पिता दलवीर सिंह कांग्रेस सांसद रहते हुए केंद्र में दो बार मंत्री रहे। उनके निधन के बाद उनकी मां राजेश नंदिनी भी कांग्रेस से सांसद रहीं। खुद हिमाद्री 2016 में शहडोल लोकसभा उप चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर भाजपा के ज्ञान सिंह के खिलाफ प्रत्याशी थीं, लेकिन हार गईं।

2009 में मां राजेश नंदिनी के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनौती देने वाले नरेंद्र मरावी से 2017 में हिमाद्री ने शादी की। इस शादी ने हिमाद्री की किस्मत पलट दी। हिमाद्री ने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुईं। 2019 में भाजपा ने हिमाद्री को शहडोल लोकसभा का प्रत्याशी बनाया और वे जीत गईं।

हिमाद्री ने ये चुनाव कितनी मुश्किल में लड़ा होगा, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सांसद जीतने के 28वें दिन वे मां बनी थीं। उनकी एक बेटी है। हिमाद्री कहती हैं कि जब होश संभाला तो घर में राजनीतिक माहौल था।

ऐसे में शुरू से ही तय था कि मैं भी राजनीति में ही आउंगी, पर कांग्रेस छोड़ भाजपा में आना एक संयोग था। दरअसल हिमाद्री की शादी के बाद कांग्रेस का दबाव था कि उनके पति नरेंद्र कांग्रेस में शामिल हो जाएं, लेकिन हिमाद्री ने पति की बजाय खुद ही पाला बदलते हुए भाजपा में शामिल हो गईं।

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मध्य प्रदेश में दिखा नारी शक्ति का जलवा, 6 महिलाएं पहुंचेंगी संसद, जानें किस-किस ने मारी बाजी
Lok Sabha Election Results 2024: MP के लोकसभा चुनाव 2024 में रिकॉर्ड 6 महिला सांसद जीतीं. सागर से लता वानखेड़े सबसे बड़े अंतर से जीती हैं.
Mp Lok Sabha Election Result 2024: मध्य प्रदेश की आधी आबादी की आवाज बुलंद करने के लिए इस बार 6 महिला सांसद लोकसभा पहुंची है. महिला सांसदों में सबसे बड़ी जीत सागर सीट से लता वानखेड़े को मिली है, जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 4 लाख 77 हजार 222 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया है.

बीजेपी ने मध्य प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों सागर, शहडोल, रतलाम, धार, बालाघाट और भिंड से महिलाओं को टिकट दिया था. ये सभी छह महिलाएं जीतकर संसद में पहुंच गई है. जहां सबसे बड़ी जीत सागर से लता वानखेड़े की है, वहीं सबसे कम अंतर से भिंड से संध्या राय जीती हैं. 6 में से पांच महिलाओं की जीत का अंतर 1 लाख से अधिक मतों का है. शहडोल से हिमाद्री सिंह और भिंड से संध्या राय लगातार दूसरी बार जीतकर लोकसभा में पहुंची है. बाकी पांच महिलाएं पहली बार सांसद बनी है.

महिला सांसदों की जीत का अंतर

लता वानखेड़े – 4 लाख 77 हजार 222

हिमाद्री सिंह – 3 लाख 97 हजार 340

सावित्री ठाकुर – 2 लाख 18 हजार 665

अनीता चौहान – 2 लाख 7 हजार 232

भारती पारधी – 1 लाख 74 हजार 512

संध्या राय – 64 हजार 840

गौरतलब है कि पिछली लोकसभा (2019) में मध्य प्रदेश से चार महिलाएं जीतकर संसद में पहुंची थी. उस समय शहडोल से हिमाद्री सिंह और भिंड से संध्या राय के अलावा भोपाल से प्रज्ञा सिंह तथा सीधी से रीति पाठक चुनाव जीती थी. बीजेपी ने इस बार प्रज्ञा सिंह का टिकट काट दिया था. वही, रीति पाठक को विधानसभा का चुनाव लड़वाया गया था,जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी.

पहली बार चुनी गई है कोई महिला सांसद
बालाघाट ऐसा संसदीय क्षेत्र बना है, जहां पहली बार कोई महिला सांसद चुनी गई है. वहीं, सागर को 44 साल बाद महिला सांसद मिली है. राज्य में हुए इससे पहले के चुनावों पर गौर करें तो वर्ष 2009 में भी छह महिला सांसद लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई थीं. इनमें दो कांग्रेस की और चार बीजेपी की थीं. इसके अलावा वर्ष 2004 के चुनाव में दो और 2014 के चुनाव में पांच महिलाएं जीती थीं.

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