कैंसर का कारण हो सकता है आर्टिफिशियल स्वीटनर !

र्टिफिशियल स्वीटनर्स से बढ़ता हार्ट अटैक का खतरा ….
बिस्किट, चॉकलेट और केक में भी मौजूद, WHO ने बताया कर्सिनोजेन
देश के 38% शहरी करते हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल, लो कैलोरी ड्रिंक से भी बढ़ रहा धड़कन अनियमित होने का खतरा

वजन घटाने के लिए या डायबिटीज के चलते अगर आप किसी आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये। हाल के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर दिल की लय-ताल बिगाड़ सकते हैं। इनका रोजाना इस्तेमाल करने पर दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। WHO ने भी आर्टिफिशियल स्वीटनर के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी है।

 वजन घटाने के लिए या डायबिटीज के चलते अगर आप किसी आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये। हाल के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर दिल की लय-ताल बिगाड़ सकते हैं। इनका रोजाना इस्तेमाल करने पर दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह में दो लीटर तक लो कैलोरी ड्रिंक के नाम पर पेय पदार्थ पीने वाले युवाओं में दिल की धड़कन अनियमित होने का खतरा 20 फीसदी बढ़ गया। WHO ने भी हाल की एक रिपोर्ट में आर्टिफिशियल स्वीटनर के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के एक सर्वे के मुताबिक देश के शहरों में रहने वाले लगभग 38 फीसदी लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं। ये सोडा, शुगर फ्री गम्स सहित कई अन्य उत्पादों में डाला जाता है।

डाइट कोक, चॉकलेट, जैम…, शुगर फ्री के नाम पर ये चीजें बना सकती हैं कैंसर का मरीज

यूरोपियन हार्ट जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल (Xylitol) का हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवस्कुलर डिजीज से सीधा कनेक्शन है। इसके लगातार इस्तेमाल से भविष्य में हार्ट डिजीज के कारण होने वाली मौतों की संख्या और बढ़ सकती है।

पिछले साल यानी जुलाई, 2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी थी कि चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम (Aspartame) से टाइप-2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ सकता है। WHO और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) की साझा स्टडी के बाद एस्पार्टेम को कार्सिनोजेन की कैटेगरी में रखा गया। इसका मतलब है कि एस्पार्टेम कैंसर का भी कारण बन सकता है। इसके बाद विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे सभी तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को लेकर चेतावनी दी गई।

दो महीने पहले पंजाब के पटियाला में एक 10 साल की लड़की मानवी की बर्थडे केक खाने से मौत हो गई थी। जांच में सामने 

 आर्टिफिशियल स्वीटनर्स की। साथ ही जानेंगे कि-

  • आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का हार्ट हेल्थ से क्या कनेक्शन है?
  • क्या आर्टिफिशियल स्वीटनर कैंसर की भी वजह बन सकते हैं?
  • इनके इस्तेमाल से किन बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है?

भारत के शहरों में 38% लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का कर रहे इस्तेमाल

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को लेकर इन स्टडीज के सामने आने के बाद विशेषज्ञ फिक्रमंद हैं। स्टेटिस्टा में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक पूरी दुनिया में अभी एक साल में करीब 120 करोड़ किलोग्राम आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल हो रहा है। यह अगले 4 साल में बढ़कर 2028 तक करीब 145 करोड़ किलोग्राम हो सकता है।

भारत में भी चीनी के विकल्प के तौर पर इनका इस्तेमाल बढ़ रहा है। लोकल सर्कल की स्टडी के मुताबिक भारतीय शहरों में करीब 38% शहरी लोग चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में 42 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज का शिकार हैं और ज्यादातर डायबिटिक लोग मीठे स्वाद के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को सुरक्षित मानकर इस्तेमाल कर रहे हैं।

 

भारत में 6 आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को है FSSAI की मंजूरी

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से होने वाले नुकसान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया की कई बड़ी हेल्थ बॉडीज चिंता जता चुकी हैं। इसके बावजूद इनके इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाई गई है। भारत समेत ज्यादातर देशों ने आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल को मंजूरी दे रखी है।

भारत में 6 तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स इस्तेमाल होते हैं। आइए ग्राफिक में देखते हैं।

दुनिया के कई बड़े डॉक्टर्स भी उठा चुके हैं सवाल

दुनिया के तमाम बड़े डॉक्टर्स आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल पर सवाल उठा चुके हैं। फेमस डॉक्टर जैसन फंग ने अपनी किताब ‘द डायबिटीज कोड: प्रिवेंट एंड रिवर्स टाइप 2 डायबिटीज नैचुरली’ में आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को मिथ बताया है। वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंडोक्रोनॉलजी विभाग में प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट लस्टिग ने अपनी किताब ‘फैट चांस’ में इसे स्वास्थ्य के लिए असुरक्षित बताया है।

आर्टिफिशियल स्वीटनर में ब्लड क्लॉटिंग टेंडेंसी

क्लीवलैंड क्लिनिक में कार्डियोवस्कुलर और मेटाबॉलिक साइंसेज के चेयरपर्सन डॉक्टर स्टेनली हेजेन के मुताबिक, कई पैकेज्ड फूड्स में आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल मिला हुआ है। इसके लगातार इस्तेमाल से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ जाता है, जो हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बनता है। उन्होंने यह भी कहा है कि सभी आर्टिफिशियल स्वीटनर्स पर फोकस्ड स्टडी की जरूरत है। इससे डायबिटीज और मोटापा दोनों बीमारियों का भी खतरा है।

कैंसर का कारण हो सकता है आर्टिफिशियल स्वीटनर

WHO के साथ की गई साझा स्टडी में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के मुताबिक आर्टिफिशिल स्वीटनर कर्सिनोजेन यानी कैंसर का कारक हो सकता है। जॉइंट FAO/WHO एक्सपर्ट कमिटी ऑन फूड एडिटिव्स ने भी इसे कैंसर का कारक माना है। इसमें एस्पार्टेम को अधिक खतरनाक माना गया है। चूंकि दुनिया की हर छठवीं मौत कैंसर के कारण होती है। इसलिए WHO ने इसे कम-से-कम इस्तेमाल करने को कहा है।

खाने की किन चीजों में इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स

कई बार डायबिटिक लोग मीठी चाय का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। इसके लिए वे शुगर फ्री टेबलेट्स और क्यूब्स इस्तेमाल करते हैं। असल में ये शुगर फ्री टेबलेट्स आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से ही बनी होती हैं। इसके अलावा मार्केट में मिल रहे ज्यादातर पैकेज्ड फूड्स में आर्टिफिशियल शुगर ही इस्तेमाल होती है।

 

हार्ट डिजीज और कैंसर के अलावा किन बीमारियों का खतरा

हार्ट डिजीज और कैंसर जैसी बीमारियां इनके बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल के बाद होती हैं, जबकि शुरुआत ओवर ईटिंग, ओबिसिटी और हेडेक जैसी समस्याओं से होती है।

ओवर ईटिंग का बड़ा कारण हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर्स

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के लगातार इस्तेमाल से खाने के बाद तृप्ति का अहसास कराने वाला हॉर्मोन लेप्टिन प्रभावित हो जाता है। इसलिए बार-बार खाने की क्रेविंग होती रहती है। यह ओवर ईटिंग की वजह बन रहा है।

बढ़ रही ओबिसिटी की समस्या

पूरी दुनिया में वेट लॉस के दीवानों की संख्या बढ़ रही है। हर कोई स्लिम-फिट दिखना चाहता है। इसकी खातिर बड़ी संख्या में लोग चीनी भी छोड़ रहे हैं। कुछ लोग चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि स्टडीज का दावा इसके विपरीत है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर्स हमारे बढ़ते वजन और मोटापे के लिए जिम्मेदार हैं।

हेडेक और डिप्रेशन का भी कारण

हेल्थ जर्नल हेडेक में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, आर्टिफिशियल स्वीटनर्स सिरदर्द, डिप्रेशन और बेहोशी की वजह बन सकते हैं। ऐसी समस्याएं छोटे बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती हैं।

गट हेल्थ प्रभावित होती है

हमारे गट बैक्टीरिया चीनी की तुलना में आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के साथ अलग तरह से रिएक्ट करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक जब सैकरीन और सुक्रोलोज जैसे स्वीटनर्स हमारे माइक्रोबायोम्स के संपर्क में आते हैं तो डिस्बिओसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि गुड गट बैक्टीरिया की तुलना में हानिकारक गट बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है। इससे पेट में सूजन, ऑटो इम्यून कंडीशन, माइग्रेन और एंग्जायटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

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 कहीं मिठास के चक्कर में अपनी भूख तो नहीं कर रहें हैं कम, जानिए कैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स है हानिकारक
Artificial Sweetners
 Artificial Sweetners:  पिछले कुछ दशकों से खराब डाइट पैटर्न में लगातार तेजी हो रही है. जिसमें मोटापा, डायबिटीज और अन्य बीमारियां शामिल हैं. जिसमें से भी कई लोगों का मानना है कि अगर आप शुगर फ्री चीज़ें खाते हैं तो इससे आपका वजन और डायबिटीज कंट्रोल में रहती है.

लेकिन हाल ही में हुई स्टडी के मुताबिक हमारे खाने में मुख्य रूप से सिंपल कार्बोहाइड्रेट्स यानि शुगर शामिल होता है. जिससे हमारे शरीर में  हार्मोनल रिएक्शंस में परिवर्तन होता है जिससे वजन बढ़ता है और फैट का स्टोरेज बढ़ता है।

शक्कर में मिनरल्स, विटामिन्स और फाइबर जो भूख से जुड़ी समस्या को देखते हुए रिसर्चस ने शुगर फ्री चीजों का सेवन कम करने को कहा है.

    आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का होता है उपयोग 

Know how artificial sweeteners harm your health.- जानिए आपकी सेहत के लिए कितने खतरनाक हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर्स | HealthShots Hindi

आजकल लोग शक्कर की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर्स बहुत ज्यादा फेमस हो रहीं हैं. जिसमें भी सबसे ज्यादा आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का उपयोग मोटापा, डायबिटीज और मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी बीमारियों के लिए उपयोग होता है.

इस आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को और भी नामों से जाना जाता है जैसे नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स (NNS), कम कैलोरीज स्वीटनेस, इंस्टेंट स्वीटनेस. यह आर्टिफिशियल स्वीटनर्स न केवल खाने में बल्कि कोल्ड ड्रिंक्स, दवाई और माउथवॉश जैसी चीज़ों में भी इस्तेमाल होती है.

    आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से नुकसान तो नहीं 

अगर आप भी ऑर्टिफिशियल स्वीटनर से बने प्रोडक्ट्स का करते हैं इस्तेमाल तो हो जाइए सावधान...दिल की बीमारियों का हो सकते हैं शिकार - artificial sweeteners ...

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स, जैसे कि सुक्रालोज, एसपार्टेम, नेस्टा, और सिक्रालोज बिना शक्कर के मिठास लाने के लिए उपयोग किए जाते हैं, लेकिन ये शरीर के अंदर मीठे के ट्रीटमेंट के प्रति इंटरनल रेस्पोंसे को कम करते हैं। जिससे आपकी खाने की भूख कम होती है.

विशेषज्ञों के अनुसार, जब हम आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का सेवन करते हैं, तो यह हमारे मन को मिठास का अहसास कराता है, लेकिन यह शरीर को कोई कैलोरीज नहीं प्रदान करता। इस दौरान भोजन की इनिशियल सेंसिटिविटी कम होती है, जिससे हमें अधिक भोजन की जरूरत नहीं होती है.

इसके अलावा ,कुछ रिसर्च से पता चला है कि नकली चीनी खाने से आपके इंसुलिन के स्तर को स्थिर रखने में मदद मिल सकती है, जिससे आपको कम भूख लग सकती है.

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 चीनी से ज्यादा खतरनाक हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर्स:इसे खाने से बच्ची की मौत, बढ़ रहे ओबिसिटी, डायबिटीज और कैंसर के मामले

पिछले महीने पंजाब के पटियाला में एक 10 साल की लड़की मानवी का बर्थडे मनाया गया। केक काटा गया, सबने खाया और खुशियां मनाईं, लेकिन तभी अचानक मानवी का मुंह सूखने लगा। उसे पानी पिलाया गया, लेकिन यह काफी नहीं था। उसका मुंह सूखता रहा और तबीयत बिगड़ती गई। घर वाले अस्पताल लेकर गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। इसे लेकर फूड डिलीवरी कंपनी और बेकरी वाले घेरे में आए। सवाल उठा कि केक में कुछ जहरीला पदार्थ था। अब इस केस में नया खुलासा हुआ है।

जांच में पता चला है कि जिस केक को खाने से बच्ची की मौत हुई, उसमें सिंथेटिक स्वीटनर का अधिक मात्रा में इस्तेमाल हुआ था। आमतौर पर केक बनाने के लिए सैकरीन जैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर्स इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन इस केक में सैकरीन की मात्रा बहुत ज्यादा थी।

इसलिए केक को खाकर घर के सभी सदस्यों का ब्लड शुगर लेवल तो बिगड़ा, लेकिन उनकी मौत नहीं हुई। बच्ची ने चूंकि केक ज्यादा खाया था तो उसका ब्लड शुगर अचानक बहुत ज्यादा स्पाइक कर गया और उसकी जान चली गई।

कहने की जरूरत नहीं कि ब्लड शुगर अगर ज्यादा बढ़ जाए तो किडनी फेल होने से लेकर बॉडी के ऑगर्न डैमेज होने और आंखों की रौशनी जाने तक कुछ भी हो सकता है। यहां तक कि जान भी जा सकती है।

 आर्टिफिशियल स्वीटनर्स 

  • चीनी की जगह इन आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
  • किन बीमारियों को बुलावा देते हैं ये स्वीटनर्स?
  • ये स्वीटनर्स कितने खतरनाक हो सकते हैं?

कैसे काम करते हैं आर्टिफिशियल स्वीटनर्स?
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स हमारे टेस्ट बड्स को चीनी की तरह मीठे स्वाद का अहसास कराते हैं, जबकि ये चीनी से बहुत अलग होते हैं।

चीनी के विपरीत आर्टिफिशियल शुगर में 0% कैलोरी होती है। दावा किया जाता है कि इनसे ब्लड शुगर लेवल में कोई फर्क नहीं पड़ता है और ये स्वास्थ्य लिए सेफ हैं। इसलिए इन्हें शुगर के विकल्प के रूप में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी जो लोग डायबिटीज या किसी अन्य वजह से चीनी नहीं खा सकते हैं, वह भी आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के जरिए मीठे का स्वाद ले सकते हैं।

हालांकि, दुनिया के तमाम बड़े डॉक्टर्स इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंडोक्रोनॉलजी विभाग में प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट लस्टिग ने अपनी किताब ‘मेटाबॉलिकल’ में इसे स्वस्थ्य के लिए असुरक्षित बताया है।

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से बढ़ जाती है भूख
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से भूख बढ़ जाती है। असल में इन्हें खाने से तृप्ति का अहसास कराने वाला हॉर्मोन लेप्टिन प्रभावित होता है। जिससे अधिक मीठा खाने और ज्यादा कैलोरीज कंज्यूम करने की इच्छा बढ़ जाती है। इसलिए ज्यादा भूख लगती है।

बढ़ता है वजन और मोटापा
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को लोग वजन कम करने के लिए चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जबकि ये इसके ठीक विपरीत परिणाम दे रहे हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर्स हमारे बढ़ते वजन और मोटापे के लिए जिम्मेदार हैं।

डायबिटीज का खतरा
आमतौर पर राय बनी हुई है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से डायबिटीज का कोई खतरा नहीं है, जबकि नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक डाइट सोडा पीने से डायबिटीज का खतरा 123% तक बढ़ जाता है। इसके अलावा भी कई स्टडीज इस बात को मजबूती देती हैं।

बढ़ता है इंसुलिन लेवल
आर्टिफिशियल शुगर से ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ता है, लेकिन ये इंसुलिन का लेवल बढ़ा देते हैं। आप यह सोच सकते हैं कि जब आर्टिफशियल स्वीटनर से हमारे ब्लड शुगर पर कोई फर्क नहीं पड़ता है तो इंसुलिन कैसे स्पाइक हो सकता है। इसे कैनेडेनियन डॉक्टर जैसन फंग अपनी किताब ‘द डायबिटीज कोड: प्रिवेंट एंड रिवर्स टाइप 2 डायबिटीज नैचुरली’ में कुछ इस तरह एक्सप्लेन करते हैं-

गट माइक्रोब्स को पहुंचता है नुकसान
डॉ. मार्क हाइमन कहते हैं कि इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर हमारे हेल्दी गट माइक्रोबायोम्स को नष्ट कर गट बैलेंस को बिगाड़ने का काम करता है।

असल में हमारे गट बैक्टीरिया असली चीनी की तुलना में आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के साथ अलग तरह से रिएक्ट करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक जब सैकरीन और सुक्रालोज जैसे स्वीटनर्स हमारे माइक्रोबायोम्स के संपर्क में आते हैं तो डिस्बिओसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि गुड गट बैक्टीरिया की तुलना में हानिकारक गट बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है।

डिस्बिओसिस के ये लक्षण दिख सकते हैं

  • पेट में सूजन
  • इंटेस्टाइन वॉल का पतला होना
  • माइग्रेन
  • ऑटोइम्यून कंडीशन
  • मूड स्विंग
  • चिड़चिड़ापन
  • एंग्जायटी

बढ़ता है हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का खतरा
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक जो लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अधेड़ उम्र में हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता हैं।

मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर्स खाने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम का जोखिम बढ़ जाता है। इस हेल्थ कंडीशन में हार्ट डिजीज, डायबिटीज और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं।

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से बढ़ता है डिप्रेशन
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स खाने से सिरदर्द, एंग्जायटी और डिप्रेशन बढ़ने की आशंका रहती है। इसके लिए एस्पार्टेम नाम का स्वीटनर सबसे अधिक जिम्मेदार है। हेल्थ जर्नल ‘हेडेक’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम के सेवन से माइग्रेन और डिप्रेशन का जोखिम बढ़ जाता है।

भारत में 6 तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को मिली है FSSAI से मंजूरी
भारत समेत ज्यादातर देशों ने आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल को मंजूरी दे रखी है। भारत में 6 तरह के आर्टिफिशियल स्वीटनर्स इस्तेमाल होते हैं।

इन्हीं 6 आर्टिफिशियल शुगर्स को यूनाइटेड स्टेट और यूरोपियन कंट्रीज में इस्तेमाल की मंजूरी मिली हुई है। आइए ग्राफिक में देखते हैं।

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