भोपाल नगर निगम में जीवित श्रमिकों को मरा बताकर डकार गए अनुग्रह राशि !

भोपाल नगर निगम में जीवित श्रमिकों को मरा बताकर डकार गए अनुग्रह राशि, जांच में जुटे अधिकारी
लगभग सवा सौ श्रमिकों के नाम पर यह भ्रष्टाचार किया गया। इस मान से यह राशि चार करोड़ रुपये से अधिक होती है। कर्मकार मंडल में पंजीकृत कम्मू का बाग के एक मजदूर अब्दुल सबूर की शिकायत पर मामले का राजफाश हुआ।
  1. लोकायुक्त पुलिस ने आठ जोनल अधिकारी
  2. छह वार्ड प्रभारी सहित 17 पर दर्ज की एफआइआर
  3. फाइल गायब होने के आधार पर ही पुलिस ने आरोपित बनाए हैं
 भोपाल।  इंदौर नगर निगम में घोटाला पकड़े जाने के बाद अब  भोपाल नगर निगम में भी चार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सामने आया है। निगम के अधिकारी-कर्मचारियों ने जीवित श्रमिकों को मृत बताकर उनके नाम पर संबल योजना के अंतर्गत मिलने वाली अनुग्रह राशि डकार गए। अलग-अलग मद में यह राशि दो से चार लाख रुपये तक मिलती है।
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सबूर ने विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त में शिकायत कर बताया था कि उसे मृत बताकर निगम अधिकारियों व कर्मचारियों ने सैयद मुस्तफा नामक व्यक्ति के बैंक खाते में दो लाख रुपये की राशि डाल दी है। लोकायुक्त पुलिस ने मामले की जांच में 118 प्रकरणों को संदिग्ध पाया था। जांच के बाद पुलिस ने आठ जोनल अधिकारी, छह वार्ड प्रभारी सहित 17 लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की है।

भोपाल नगर निगम के इन अधिकारियों/कर्मचारियों पर एफआईआर 
नगर निगम भोपाल द्वारा विभागीय स्तर पर करवाई गई जांच एवं स्थल सत्यापन कार्यवाही में एकत्रित दस्तावेजों और साक्ष्यों तथा विशेष पुलिस स्थाना लोकायुक्त भोपाल की जांच में निम्न अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है:-
  • जोन-14 के तत्कालीन जोनल अधिकारी सत्यप्रकाश बडगैया, 
  • जोन-4 के तत्कालीन जोनल अधिकारी परितोष रंजन, 
  • जोन-11 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अवध नारायण मकोरिया, 
  • जोन-19 के तत्कालीन जोनल अधिकारी मयंक जाट, 
  • जोन-9 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अभिषक श्रीवास्तव, 
  • जोन-3 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अनिल कुमार शर्मा, 
  • जोन-20 के तत्कालीन जोलन अधिकारी सुभाष जोशी, 
  • जोन-17 के जोनल अधिकारी मृणाल खरे, 
  • वार्ड-35 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी अनिल प्रधान, 
  • वार्ड-69 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी चरण सिंह खंगराले, 
  • वार्ड-36 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी शिवकुमार गोफनिया, 
  • वार्ड-77 के वार्ड प्रभारी सुनील सूर्यवंशी, 
  • वार्ड-17 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी मनोज राजे, 
  • वार्ड-31 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी कपिल कुमार बंसल, 
  • जोन-9 के कम्प्यूटर ऑपरेटर सुधीर शुक्ला, 
  • जोन-18 के कर्मचारी नवेद खान, 
  • वार्ड-77 के 29 दिवसीय कर्मचारी रफत अली एवं अन्य। 
सवा सौ मजदूरों की मौत

 भोपाल नगर निगम के अलग-अलग जोन में लगभग सवा सौ पंजीकृत मजदूरों की मौत की फाइलें तैयार की गई। इन्हें भवन संनिर्माण एवं कर्मकार मंडल में भेजकर श्रमिकों को मिलने वाली सहायता राशि का भुगतान ले लिया। गड़बड़ी के लिए श्रमिकों का मृत्यु प्रमाण पत्र भी बनाकर फाइल में लगाया गया। गड़बड़ी करने वालों ने भ्रष्टाचार की राशि अपने किसी परिचित या श्रमिक के खाते में डलवाई।

95 प्रकरणों की फाइल ही नहीं मिली

विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त ने जब जांच के लिए 118 संदिग्ध मामलों की फाइलें नगर निगम  भोपाल से मांगी, तो इनमें 23 प्रकरणों की फाइलें ही लोकायुक्त पुलिस को उपलब्ध कराई गईं। अन्य 95 श्रमिकों की फाइलें नगर निगम के रिकार्ड में मिली ही नहीं। फाइल गायब होने के आधार पर ही पुलिस ने आरोपित बनाए हैं। इनके विरुद्ध दर्ज हुई एफआइआर सत्यप्रकाश बड़गैया तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन

14, परितोष रंजन परसाई तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -चार, अवधनारायण मकोरिया तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -11, मयंक जाट तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -19, अभिषेक श्रीवास्तव तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -नौ, सुभाष जोशी तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -20, मृणाल खरे तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन -17 और अनिल कुमार शर्मा तत्कालीन जोनल अधिकारी जोन तीन, तत्कालीन वार्ड प्रभारी अनिल प्रधान, चरण सिंह खगराले, शिवकुमार गोफनिया, सुनील सूर्यवंशी, मनोज राजे और कपिल कुमार बंसल, कंप्यूटर ऑपरेटर सुधीर शुक्ला, नगर निगम कर्मचारी नवेद खान व 29 दिवसीय कर्मचारी रफत अली।

ये गड़बड़ियां मिली

जोनल अधिकारियों ने अपने जोन के अतिरिक्त अन्य जोन के हितग्राहियों का ऑनलाइन लाग-इन कर भुगतान किया। जोनल अधिकारियों ने भुगतान संबंधी फाइलों का संधारण नहीं किया। – कई प्रकरणों में दस्तावेजों में हेरफेर या कूटरचित दस्तावेजों का निर्माण कर भुगतान करना पाया गया। जोनल अधिकारियों ने त्रुटिपूर्ण या गलत बैंक खातों में भुगतान किया। भवन संनिर्माण एवं कर्मकार मंडल ने भी ऐसे संदिग्ध प्रकरणों पर ध्यान नहीं दिया।

संबल योजना में मिलती है इतनी अनुग्रह राशि

श्रमिक की दुर्घटना में मौत होने पर चार लाख सामान्य मौत पर- दो लाख रुपये स्थायी अपंगता पर- दो लाख रुपये आंशिक स्थायी अपंगता पर एक लाख रुपये

…………………

नगर निगम के 17 अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त में मामला दर्ज

Bhopal Municipal Corporation की 17 अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा मामला दर्ज किया गया है। सभी के विरुद्ध आपराधिक षड्यंत्र, बेईमानी, दस्तावेजों की कूटरचित और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप है। 

भोपाल नगर निगम में अंत्येष्टि घोटाला
भोपाल लोकायुक्त और नगर निगम की प्रारंभिक जांच में 118 संदिग्ध प्रकरण की जांच की गई। इसमें सिर्फ 23 के ही दस्तावेज मिले। इसकी जांच में सामने आया कि 8 से 9 लोगों के जिंदा होने के बावजूद उनके पहले फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाए गए और कर्मकार मंडल में पंजीकृत मजदूरों को मृत्यु पर शासन की तरफ से मिलने वाले अंत्येष्टि के 6 हजार रुपये और अनुदान के 2 लाख रुपये की राशि किसी दूसरे के नाम पर निकाल ली गई। 
रिटायर्ड IAS के मृत बच्चों को जिंदा किया, मजदूर बनाया फिर मारा
सिर्फ सात से आठ ही प्रकरण सत्यापन में सही पाए गए। वहीं, कुछ में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, वरिष्ठ चिकित्सक समेत कई संपन्न लोगों के बच्चों की मृत्यु होने के बाद फर्जी मजदूरों के दस्तावेज बनाए गए। फिर उनके नाम पर राशि निकाल ली गई। वहीं, 95 प्रकरण में जोनल अधिकारियों ने डीएससी लगाकर ईपीओ जारी किए गए हैं, उनके द्वारा वह नस्तियां उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं होना बताया गया है।
अब तक क्या-क्या गड़बड़ी मिली
  • जोनल अधिकारियों ने अपने जोन के अलावा दूसरे जोन के हितग्राहियों का ऑनलाइन लॉगइन कर यानी डीएससी से भुगतान किया।  
  • भुगतान से पहले हितग्राही का आवेदन एवं उससे संबंधित अभिलेख प्राप्त कर नियमानुसार वार्ड प्रभारी से मृत्यु प्रमाण पत्र, हितग्राही का पता, बैंक से संबंधित अभिलेख का सत्यापन एवं प्रतिवेदन प्राप्त किया जाना था, नहीं लिया गया।
  • भुगतान से संबंधित निर्धारित नस्तियों का संधारण भी नहीं किया गया। 
  • कई प्रकरणों में दस्तावेजों में हेरफेर कर कूटरचित दस्तावेजों का निर्माण कर भुगतान किया जाना पाया गया। 
  • त्रुटिपूर्ण या गलत बैंक खातों में भुगतान किए गए।
  • भवन संनिर्माण एवं कर्मकार मंडल ने भी प्रकरणों की जांच सही नहीं की। 
  • फर्जी हितग्राहियों को अंत्येष्ठी एवं अनुग्रह राशि का भुगतान किया, मृत घोषित मजदूर जीवित पाए गए  
  • कई श्रमिक एवं हितग्राही डॉक्यूमेंट में लिखे हुए एड्रेस पर मिले ही नहीं।
ऐसे हुआ खुलासा 
भोपाल के कम्मू का बाग, 80 फीट रोड निवासी मोहम्मद कमर पिता अब्दुल सबूर ने 19 फरवरी को लोकायुक्त को शिकायत दी थी। उसमें उन्होंने लिखा था कि उनको मृत बता कर भोपाल नगर निगम ने दो लाख रुपये की सहायता राशि किसी सैयद मुस्तफा अली नाम के व्यक्ति के खाते में ट्रांसफर कर दी गई है। इस शिकायत की जांच में कई और मामले सामने आए। अब इस मामले में लोकायुक्त ने जांच शुरू कर दी है। 
  • भोपाल नगर निगम के इन अधिकारियों/कर्मचारियों पर एफआईआर 
    नगर निगम भोपाल द्वारा विभागीय स्तर पर करवाई गई जांच एवं स्थल सत्यापन कार्यवाही में एकत्रित दस्तावेजों और साक्ष्यों तथा विशेष पुलिस स्थाना लोकायुक्त भोपाल की जांच में निम्न अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है:-
    • जोन-14 के तत्कालीन जोनल अधिकारी सत्यप्रकाश बडगैया, 
    • जोन-4 के तत्कालीन जोनल अधिकारी परितोष रंजन, 
    • जोन-11 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अवध नारायण मकोरिया, 
    • जोन-19 के तत्कालीन जोनल अधिकारी मयंक जाट, 
    • जोन-9 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अभिषक श्रीवास्तव, 
    • जोन-3 के तत्कालीन जोनल अधिकारी अनिल कुमार शर्मा, 
    • जोन-20 के तत्कालीन जोलन अधिकारी सुभाष जोशी, 
    • जोन-17 के जोनल अधिकारी मृणाल खरे, 
    • वार्ड-35 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी अनिल प्रधान, 
    • वार्ड-69 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी चरण सिंह खंगराले, 
    • वार्ड-36 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी शिवकुमार गोफनिया, 
    • वार्ड-77 के वार्ड प्रभारी सुनील सूर्यवंशी, 
    • वार्ड-17 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी मनोज राजे, 
    • वार्ड-31 के तत्कालीन वार्ड प्रभारी कपिल कुमार बंसल, 
    • जोन-9 के कम्प्यूटर ऑपरेटर सुधीर शुक्ला, 
    • जोन-18 के कर्मचारी नवेद खान, 
    • वार्ड-77 के 29 दिवसीय कर्मचारी रफत अली एवं अन्य। 

मध्य प्रदेश में घोटाले होते रहते हैं, सरकार सिस्टम नहीं बनाती

मध्य प्रदेश में मृत व्यक्तियों को मजदूर की लिस्ट में बताना, सरकारी योजना में हितग्राही दर्ज करना, बहुत पुरानी परंपरा है। कभी-कभी कुछ खुलासे हो जाते हैं, लेकिन ज्यादातर खुलती नहीं होते, इसीलिए तो अधिकारी कर्मचारियों के हौसले बुलंद है। खाने को मध्य प्रदेश में पूरा सरकारी कामकाज ऑनलाइन हो गया है परंतु सरकार ने अब तक ऐसा कोई सिस्टम नहीं बनाया है जिसकी मदद से, ऐसे व्यक्ति को किसी भी सरकारी योजना में हितग्राही के रूप में दर्ज होने से रोका जा सके जिसका मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हो गया हो।

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