नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज क्या है, कैसे करेगा ये काम !

नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज क्या है, कैसे करेगा ये काम, आम जनता को क्या फायदा?
नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज एक नया हेल्थ डिजिटल प्लेटफॉर्म है. अगर सरकार का यह प्रयास सफल हो जाता है तो देश के हेल्थ इंश्योरेंस इकोसिस्टम में बड़ा बदलाव होगा.

स्वस्थ्य मंत्रालय और IRDAI मिलकर मरीजों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं जल्दी और कम खर्चे में उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने एक नया डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX)’ शुरू किया जा रहा है. ये प्लेटफॉर्म बीमा कंपनियों, अस्पतालों और सरकारी बीमा योजनाओं को जोड़ने का काम करेगा.

अस्पताल में इलाज कराने के बाद बीमा कंपनी से क्लेम लेने में अक्सर काफी देरी हो जाती है और पेपरवर्क का झंझट भी होता है. NHCX इसी समस्या को दूर करने के लिए बनाया गया है. इस नई व्यवस्था में सारी जानकारी सही और भरोसेमंद होती है. अब अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच का लेन-देन कागज रहित और सुरक्षित होगा.

क्या है नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज
अभी तक अस्पतालों को अलग-अलग बीमा कंपनियों के लिए अलग-अलग पोर्टल पर मरीजों की जानकारी डालनी पड़ती है. अभी अलग-अलग बीमा कंपनियों, TPA (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) और अस्पतालों के दावे जमा करने के अपने-अपने तरीके हैं. NHCX की वजह से अब एक ही जगह पर सारी जानकारी जमा हो जाएगी. इससे क्लेम करने की प्रक्रिया आसान और तेज हो जाएगी.

अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच का काम अब कागज रहित हो जाएगा. इससे दस्तावेजों को संभालने में होने वाली परेशानी कम हो जाएगी. बीमा क्लेम जल्दी सेटल होने पर मरीजों को भी फायदा होगा. उन्हें इलाज कराने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी. अभी तक 12 बीमा कंपनियां और एक TPA (Third Party Administrator) NHCX से जुड़ चुके हैं. आने वाले समय में और भी बीमा कंपनियां इससे जुड़ने की उम्मीद है.

कैशलेस क्लेम के बारे में क्या?
अब अस्पताल से डिस्चार्ज मिलने के बाद कैशलेस इंश्योरेंस क्लेम को जल्द से जल्द निपटाया जाएगा. भारतीय बीमा विनियामक प्राधिकरण (IRDAI) ने बीमा कंपनियों को एक तय समय दिया है. इसके मुताबिक, अस्पताल से डिस्चार्ज मिलने का प्रमाण मिलने के 3 घंटे के अंदर ही कैशलेस क्लेम को प्रोसेस करना होगा. 

यह नया नियम 31 जुलाई से लागू हो जाएगा. इस तारीख तक सभी बीमा कंपनियों को अपना सिस्टम दुरुस्त करना होगा ताकि मरीजों को जल्दी से जल्दी कैशलेस भुगतान मिल सके. हालांकि अभी तक NHCX और क्लेम निपटारे की शुरुआत नहीं हुई है.

NHCX कैसे काम करेगा?
NHCX से जुड़ने के लिए दो चरण हैं. पहले चरण में एक तरह का टेस्ट होता है. इसे “सैंडबॉक्स टेस्टिंग” कहते हैं. इसमें भाग लेने वाले अस्पताल, बीमा कंपनियां और TPA एनएचसीएक्स पर अभ्यास करते हैं. इससे उन्हें असली मरीजों का डेटा इस्तेमाल किए बिना इस सिस्टम को समझने में मदद मिलती है. इस टेस्टिंग को पास करने के बाद ही उन्हें NHCX का असली इस्तेमाल करने की इजाजत मिलेगी.

टेस्टिंग और मंजूरी मिलने के बाद असली काम शुरू होता है. NHCX उन्हें एक खास पहचान नंबर और एक पासवर्ड देगा. इसी पहचान नंबर और पासवर्ड की मदद से वो असली मरीजों के लिए NHCX का इस्तेमाल कर सकेंगे. इस तरह अस्पताल, बीमा कंपनियां और TPA आपस में मरीजों के दावों से जुड़ी जानकारी को आसानी से साझा कर सकेंगे.

NHCX को क्यों लाया गया?
भारत में प्राइवेट बीमा कराने वाले लोग ज्यादा बीमार नहीं पड़ते हैं. एक अध्ययन में ये पाया गया है कि सरकारी बीमा योजनाओं के मुकाबले प्राइवेट बीमा कराने वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के मामले ज्यादा सामने आए हैं. अध्ययन के मुताबिक, हर 1 लाख लोगों में से 54.4 लोग जिन्होंने प्राइवेट बीमा कर रखा है, उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है. वहीं सरकारी बीमा योजनाओं के अंतर्गत हर 1 लाख लोगों में से सिर्फ 60.4 लोगों को अस्पताल जाने की जरूरत पड़ी है.

अगर हम शहरों और गांव की बात करें तो वहां भी यही रुझान देखने को मिलता है. शहरों में रहने वाले लोग ज्यादा बीमा कराते हैं और अस्पताल भी ज्यादा जाते हैं. वहीं, गांव में रहने वाले लोग भले ही कम बीमा कराते हैं लेकिन प्राइवेट बीमा कराने वालों की संख्या ज्यादा है. यही कारण है कि नेशनल हेल्थ क्लेम एक्सचेंज (NHCX) लाया गया. 

इस नए सिस्टम से उम्मीद है कि बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच का काम आसान हो जाएगा. मरीजों को जल्दी इलाज मिल सकेगा. अस्पताल के बिलों के पेमेंट में देरी नहीं होगी और ये नया सिस्टम पूरे स्वास्थ्य बीमा सिस्टम को ज्यादा बेहतर बनाएगा.

आम जनता को क्या फायदा?
अभी अस्पताल के बिलों में कई बार ये समझ नहीं आता कि किस चीज का कितना पैसा लिया जा रहा है. NHCX की वजह से अस्पतालों के बिल एक ही तरीके से बनेंगे. इससे मरीजों को ये पता चल सकेगा कि इलाज पर कुल कितना खर्च हुआ और बीमा कंपनी कितना चुकाएगी. कुल मिलाकर, इलाज के खर्च में ज्यादा पारदर्शिता आएगी.

अभी ज्यादातर काम कागजों पर होता है, जिससे काफी खर्चा होता है और गलती की भी गुंजाइश रहती है. NHCX एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है. इससे सारा काम ऑनलाइन हो जाएगा और कागजों की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे अस्पतालों और बीमा कंपनियों का पैसा भी बचेगा. क्लेम जल्दी से जल्दी निपटाए जा सकेंगे. साथ ही अस्पतालों का पैसा भी समय पर आ जाएगा. 

NHCX लागू करने में क्या चुनौतियां हैं?
अभी अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच में काफी तालमेल की कमी है. कई बार अस्पताल के बिलों को लेकर पेमेंट में देरी हो जाती है. NHCX तो जरूर फायदेमंद होगा लेकिन इसके लिए अस्पतालों को अपने कंप्यूटर सिस्टम को अपडेट करना होगा और अपने कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग देनी होगी. बीमा कंपनियों को भी अपने सिस्टम में बदलाव करना होगा. 

कई बार मरीजों को अस्पताल से डिस्चार्ज होने में देरी हो जाती है क्योंकि अस्पताल और बीमा कंपनी के बीच किसी बात को लेकर सहमति नहीं बन पाती है. NHCX से ऐसी दिक्कतें कम होंगी लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होंगी. वहीं मरीजों को इस नए सिस्टम पर पूरा भरोसा तभी होगा जब उन्हें जल्दी और आसानी से इलाज मिल पाएगा. उनका क्लेम जल्दी से जल्दी सेटल हो जाएगा. 

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