NEET कितनी क्लीन?
NEET कितनी क्लीन? बच्चों के साथ इस तरह मज़ाक़ क्यों?
यह सही है कि सरकार या परीक्षा लेने वाली संस्था का कोई इंटेंशन तो हो ही नहीं सकता। है भी नहीं। लेकिन सच यह भी है कि ग्रेस मार्क्स दिए जाने में परीक्षा नियंत्रक संस्था (एनटीए) से गड़बड़ी हुई है। किस हड़बड़ी में यह गड़बड़ी हुई, यह तो संस्था ही जाने।
उसके डीजी ग्रेस मार्क्स की प्रक्रिया को पवित्र और निष्पक्ष बताते रहे। वो होगी भी, लेकिन एक स्टूडेंट को डेढ़ सौ तक ग्रेस मार्क्स देना समझ से परे है।

यही वजह है कि साढ़े छह सौ मार्क्स लाने वाले जिन विद्यार्थियों का पहले सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन आसानी से हो जाता था उनकी रैंक इस बार पचास हज़ार से भी ऊपर चली गई। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद कुछ शांति मिली है।
अब ग्रेस मार्क्स पाने वाले स्टूडेंट्स की दोबारा परीक्षा होनी है। हो सकता है इससे उन स्टूडेंट्स के साथ न्याय हो पाए जो बिना किसी ग्रेस मार्क्स के अच्छे नंबर लाए हैं।
हालाँकि पूरी परीक्षा को ही रद्द करके दोबारा कराने वाली याचिकाओं पर कोई निर्णय नहीं हो सका है क्योंकि सरकार का कहना है कि पेपर लीक होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।
बात केवल ग्रेस मार्क्स की ही नहीं है। एक ही सेंटर से परीक्षा देने वाले कई बच्चों का टॉपर होना भी शक तो पैदा कर ही रहा है। इस परीक्षा में शामिल होने वाले कई बच्चे भी यही सवाल उठा रहे हैं, लेकिन फ़िलहाल इस बारे में कोई डिसीजन नहीं हो पाया है।

अभी सिर्फ़ नतीजा यह निकला है कि ग्रेस मार्क्स पाने वाले 1563 बच्चों के लिए संस्था 23 जून को दोबारा परीक्षा आयोजित करेगी और तीस जून तक इस परीक्षा का रिज़ल्ट जारी कर दिया जाएगा।
एनटीए द्वारा गठित की गई कमेटी ने तो यह सुझाव भी दिया है कि ग्रेस मार्क्स हटाकर इन बच्चों के ओरिजिनल मार्क्स भी सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग का कहना है कि एनटीए पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना ठीक नहीं है क्योंकि यह बहुत ही विश्वसनीय संस्था है।
जहां तक बच्चों के भविष्य का सवाल है उनका नुक़सान नहीं होने दिया जाएगा। सरकार ने इसकी गारंटी ली है। फिर भी यह सवाल तो अपनी जगह बना हुआ ही है कि एक, दो या चार नहीं बल्कि 67 बच्चों को ऑल इंडिया रैंक 1 कैसे मिल गई?