मोरबी हादसा : दोषियों को सजा मिलनी चाहिए
किसी प्राइवेट पार्टी को पुल लीज पर देने से नगरपालिका का काम खत्म नहीं हो जाता। क्या किसी सीनियर अधिकारी ने मौके पर जाकर कभी ये जांच की कि पुल की ठीक से मरम्मत हो रही है या नहीं ? पुलिस ने कंपनी के मालिक से पूछताछ क्यों नहीं की ?
गुजरात के मोरबी शहर में रविवार को झूलते पुल वाले हादसे में एक तरफ जहां बच्चों की मौत पर मांओं की सिसकियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं, वहीं इस फुटब्रिज की मरम्मत, संचालन और सुरक्षा जांच को लेकर अधिकारियों द्वारा बरती गई घोर लापरवाही से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। हादसे में एक ही परिवार के 12 सदस्यों की मौत हो गई। सभी के शव कतार में दाह संस्कार के लिए रखे गए थे। इस हादसे में जिन 135 लोगों की मौत हुई उनमें से 33 बच्चे ऐसे थे जिनकी उम्र एक से 10 साल के बीच थी। 44 किशोरों की उम्र 11 से 20 साल के बीच थी। 75 से ज्यादा लोग अभी-भी अस्पताल में भर्ती हैं। ये सब दिल दहलाने वाले तथ्य हैं।
इस झूलते पुल को पांच दिन पहले मरम्मत के बाद आम जनता के लिए खोला गया था। पिछले 7 महीने से यह पुल मरम्मत के लिए बंद था। इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने यह पता लगाने की कोशिश की कि जिस पुल की सात महीने तक मरम्मत की गई हो, वह 100 घंटे से भी कम वक्त में कैसे गिर गया?
हमारे रिपोर्टर्स ने जब तहकीकात की तो कई हैरान करने वाली बातें सामने आईं। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि पुल की मरम्मत और देखभाल का काम एक प्राइवेट कंपनी को 15 साल की लीज पर दिया गया था। लेकिन इस कंपनी ने पुल को जनता के लिए खोलने से पहले कोई फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया। दूसरे शब्दों में स्थानीय प्रशासन प्रकारान्तर में यह कह रहा है कि पुल को फिर से खोलने के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी।
पूरे मोरबी शहर में कई दिनों तक कंपनी के प्रबंधन ने इस पुल के फिर से खुलने को लेकर धुआंधार कैंपेन चला रखा था। विज्ञापन छप रहे थे कि ‘झुलतो पुल’ खुल गया है। पुल का उद्घाटन कंपनी के मालिकों ने किया था। सारे शहर को पता था कि पुल खुल गया है। लेकिन स्थानीय प्रशासन का कहना है कि उसे अंधेरे में रखा गया। स्वाभाविक तौर पर यह सवाल उठता है कि जब बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के पुल का उद्घाटन कर दिया गया, तो स्थानीय प्रशासन ने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या अफसर किसी हादसे का इंतजार कर रहे थे?
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘ …… रिपोर्टर्स ने विस्तार से दिखाया कि कैसे 143 साल पुराने इस पुल की मरम्मत सिर्फ दिखावे के तौर पर कराई गई । स्टील के तारों के ज़ंग लगे हिस्से को वेल्डिंग करके जनता की जान के साथ खिलवाड़ किया गया। जब आप ये सबूत देखेंगे तो आप भी कहेंगे कि इस हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी और अफसरों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का नहीं, बल्कि जानबूझकर सामूहिक हत्या का केस दाखिल होना चाहिए।
इस झूलते पुल को ब्रिटिश राज के दौरान 1879 में बनाया गया था। यह 233 मीटर लंबा और साढ़े चार फीट चौड़ा था। इस साल मार्च में मोरबी नगरपालिका ने इस ब्रिज को ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज से जुड़े ट्रस्ट को 15 साल की लीज पर दिया। इसके तहत पुल के रख-रखाव, साफ-सफाई, सिक्योरिटी और टिकट वसूली की जिम्मेदारी इस कंपनी की थी। मार्च से लेकर अक्टूबर तक यानी 7 महीने कंपनी ने इस पुल में रेनोवेशन का काम कराया। यह दावा किया गया कि इस काम में करीब 2 करोड़ रूपये खर्च हुए।
गुजराती नव वर्ष दिवस (25 अक्टूबर) पर कंपनी के मालिक जयसुखभाई पटेल की पोती ने पुल का उद्घाटन किया था। शनिवार को जयसुखभाई पटेल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह दावा किया था कि मरम्मत के बाद यह पुल अब इतना मजबूत हो गया है कि इसे कोई भी अगले 8 से 10 वर्षों तक हिला नहीं सकता । उन्होंने यह भी दावा किया कि यह पुल मोरबी आने वाले सभी एनआरआई गुजरातियों के लिए आकर्षण होगा। ये भी कहा कि रात में इस पुल पर रोशनी की जाएगी। ये सारे दावे ऐसे वक्त किए जा रहे थे जब न तो पुल का सेफ्टी ऑडिट कराया गया था और न ही नगर पालिका से कोई मंजूरी ली गई थी। रविवार दोपहर को भारी भीड़ के कारण लगभग 500 टिकट बिके, लेकिन पुल की क्षमता अधिकतम 100 लोगों की थी।
……. रिपोर्टर पवन नारा ने सोमवार को टूटे हुए पुल के हिस्सों को चेक किया और पाया कि मरम्मत के नाम पर सिर्फ फ्लोरिंग बदली गई थी , केवल दिखावे के तौर पर कुछ बदलाव किए गए थे। जिन लोहे के तार पर ब्रिज का वजन होता है, वो किनारे से गल चुके थे। तारों को बदलने की बजाय एक लोहे की रॉड से वल्डिंग कर दी गई थी । यह भी अजीब है कि ये पुल पांच दिन तक कैसे लोगों को ढोता रहा। इसे तो पहले दिन ही टूट जाना चाहिए था।
पुल की मरम्मत का काम ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को सौंपा गया था। यह कंपनी इलेक्ट्रॉनिक घड़ी, कैलकुलेटर, घरेलू उपकरण और LED बल्ब बनाती है। यानी पुल, सड़क या सिविल इंजीनियरिंग के किसी काम का इसके पास कोई अनुभव नहीं था । पुल को जल्द खोलने के चक्कर में जानलेवा लापरवाही बरती गई। ज़ंग लगे सरियों में रंगाई-पुताई करके और पुल की फ्लोरिंग बदलकर ये मान लिया गया कि पुल अब मजबूत हो चुका है। पुल का जो हिस्सा नदी में गिरा था उसे निकालकर साइड में रखा गया है। हमारे रिपोर्टर ने बताया कि पुल में लगे नट-बोल्ट्स हों और क्लिप्स, सबके सब बुरी तरह जर्जर हो चुके थे। इनके हाल ऐसे थे कि ये हल्का सा वजन भी सहने की हालत में नहीं थे और इसी वजह से पुल गिर गया।
मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह का कहना है कि उन्हें न तो मरम्मत में इस्तेमाल सामग्री के बारे में कोई जानकारी थी और न ही कंपनी ने नगर पालिका को इस संबंध में कोई सूचना दी। मोरबी पुलिस ने अब तक तीन सुरक्षा गार्ड, दो टिकट बुकिंग क्लर्क, दो ठेकेदार और ओरेवा कंपनी के दो मैनेजरों समेत 9 लोगों को गिरफ्तार किया है। गुजरात पुलिस राजकोट रेंज के आईजी ने दावा किया कि हादसे की जांच वैज्ञानिक तरीके से की जा रही है और दोषी पाए जानेवालों को बख्शा नहीं जाएगा। सच्चाई ये है कि कंपनी और नगर पालिका के सीनियर अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
किसी प्राइवेट पार्टी को पुल लीज पर देने से नगरपालिका का काम खत्म नहीं हो जाता। क्या किसी सीनियर अधिकारी ने मौके पर जाकर कभी ये जांच की कि पुल की ठीक से मरम्मत हो रही है या नहीं ? पुलिस ने कंपनी के मालिक से पूछताछ क्यों नहीं की ? एसआईटी और फॉरेंसिंक साइंस लेबोरेटरी के अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण कर लिया है। फॉरेसिंग टीम को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पुल के सस्पेंशन तार इतने कमजोर थे कि उन्हें आसानी से हाथों से मोड़ा जा सकता था।
इसमें कोई संदेह नहीं कि मरम्मत करनेवाली कंपनी की तरफ से घोर लापरवाही हुई। गुजरात के पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि मरम्मत से लेकर पुल के दोबारा खोले जाने तक किसी भी स्तर पर राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं रही। उन्होंने कहा कि नगर पालिका ने कंपनी को लीज क्यों दिया, यह जांच के बाद ही पता चल पायेगा।
नेताओं और अधिकारियों के लिए यह कहना आसान है कि दोषी पाए जानेवालों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन उन परिवारों के बारे में सोचें जिन्होंने अपनों को खो दिया है। इस हादसे में राजकोट के सासंद मोहन कुंदारिया ने अपने 12 रिश्तेदारों को खो दिया है। एक परिवार के आठ लोग नदी में डूब गए। चार दोस्त पुल पर घूमने गए थे और चारों की मौत हो गई। इन लड़कों की उम्र बीस साल के आसपास थी। मोरबी के शमशान में चारों दोस्तों की चिताएं एक साथ जली।
ये सही है कि गुजरात पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, वायु सेना और नेवी की टीम ने ब्रिज गिरने के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन का काम मुस्तैदी से किया। इस मामले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि कंपनी के मालिक और उसके सीनियर अधिकारियों का नाम एफआईआर में क्यों नहीं है। कंपनी के मालिक और जिला कलेक्टर के बीच लीज एग्रीमेंट हुआ। सवाल ये है कि वो अधिकारी कौन थे जिन्होंने इस पुल की मरम्मत की जांच किए बगैर उसे पब्लिक के लिए खोलने की इजाजत दी? क्या जिस कंपनी को पुल की मरम्मत और रखरखाव का काम दिया गया था उसके पास ऐसा काम करने का कोई अनुभव था? इन सारे सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं।
सबसे जरूरी ये है कि जनता के मन में ऐसी धारणा नहीं बननी चाहिए कि सरकार किसी को बचाने की कोशिश कर रही है। ज्यादातर मामलों में बात तभी बढ़ती है जब लगता है कि सरकार कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है या किसी की काली करतूतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। जब-जब ऐसा होता है तो राजनैतिक विरोधियों को पूरा मौका मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मोरबी का दौरा किया और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पूरे मामले की जांच हो और दोषियों को दंडित किया जाए।