भारतीय मजदूरों के बाहर देशों में हाल ठीक नहीं  ?

भारतीय मजदूरों के विदेशों में नहीं हैं ठीक हालात, भारत सरकार को करनी चाहिए बात
कुवैत में अभी हाल ही में हुई अगलगी की घटना में काफी भारतीय मारे गए है. ये सबके लिए बहुत दुखद स्थिति है और बहुत चिंता का विषय है. इस समय वहां का तापमान 45 और 50 के बीच में होगा. ये आग लगने का एक मुख्य कारण है. ये भी हो सकता है कि लगातार लोग एयर कंडीशनर का उपयोग कर रहे हैं. कई बार मशीनें इतना हेवी लोड नही ले पाती. दूसरी चिंता की बात ये है कि वहां लेबर यानी कि मजदूर की काफी ही खराब हालत है. मजदूर पैसे के चक्कर में दूसरे देश जाते हैं कि भारत से अच्छी रकम उनको बाहर में मिल जाएगी लेकिन वहां पर एक कमरे में 10-10 लोग रहने को मजबूर होते हैं. कतर में जब स्टेडियम बन रहा था तब भी काफी लोग मरे थे. इस विषय को लेकर भी इंटरनेशनल ह्यूमन राइस ऑर्गेनाइजेशन को लिखा गया है. 

भारत करे कुवैत से बात 

गवर्नमेंट के सुझाए और सिफारिशी नियमों को कोई फॉलो नहीं करता और इस पर कोई जोर भी नहीं दिया जाता. समय आ गया है कि कम से कम भारत इस बात पर संज्ञान ले. वो बाहरी देशों से बात करे कि लिविंग कंडीशन अच्छी होनी चाहिए. भारत कुवैत का मित्र देश है, गवर्नमेंट चाहती है कि सिचुएशंस अच्छी बनी रहे और क्योंकि वहां पर इंडियन डायस्पोरा के लाखों लोग काम करते हैं. उनका काफी कुवैत के विकास में योगदान है. इंडिया लगातार इस विषय पर आवाज उठाता रहता है . अब कुवैत की सरकार द्वारा लेबर को ठीक से कंपनसेशन दें या दिलाएं क्योंकि मजदूर लोग अपनी जमीन बेच कर या उधार लेकर वहां पर कमाने की दृष्टि से जाते है . ऐसे में अगर उनके आदमी मर जाएं तो फिर उनके परिवार के सामने लिए एक बहुत बड़ी समस्या आ जाती है. कुवैत की कुल आबादी का 21 फीसदी भारतीय कामगार हैं, लेकिन फिर भी उनका शोषण होता है. जो कांट्रैक्टर होते हैं वो अच्छे पैसों का लालच देकर भारत से इनको लेके जाते हैं और फिर धोखा देते हैं. अब धोखा देना थोड़ा कम हुआ है जब से सरकार ने सख्ती की है. सरकार ने ये तय कर दिया है कि जो भी कंपनी इनको भेजती है वो पंजीकृत होनी चाहिए. तब भी मजदूर वर्ग की लिविंग कंडीशन वहां पर बहुत खराब होती है खासतौर से उन मज़दूरों की जो साइट पर काम कर रहे हैं, मैन्युअल काम करते हैं, उनके लिए बड़ी समस्या हो जाती है. उनको मकान बनाने की अच्छी जगह नहीं मिलती. पैसा कमाने के लिए उन्हें जानवरों की तरह रहना पड़ता है.

स्वास्थ्य सुविधा अच्छी नहीं

अगर में ये कहें कि किसी एक वर्ग में मजदूर जाकर काम करते हैं तो ये गलत है.  मिस्त्री, ड्राइवर, कारपेंटर इनकी एक बहुत बड़ी संख्या है जो वहां के कंस्ट्रक्शन से जुड़ी है. वहां पर कंस्ट्रक्शन लगातार चलता रहता है, डेवलपमेंट या पुरानी सड़कें ठीक से मेंटेन हो रही है. इनके बहुत से काम होते हैं जहां ये लेबर काम करते है. काफी समय तक उनसे पैसे के लालच देकर काम लिया जाता है. वहां पर बहुत सी जगहों पर हेल्थ फेसलिटी भी अच्छी नहीं है. बड़ी बड़ी कंपनियों में तो कुछ हद तक व्यवस्था काफी ठीक रहती है लेकिन कंस्ट्रक्शन लाइन से जुड़े लोगों की हाल काफी खराब रहती है. अगर भारत इन तरह के देशों से बात करेगा तो वहां पर रह रहे लोगों को काफी हद तक फायदा होगा.  एक साल पहले ही कुवैत ने एक डाटा जारी किया था, इसमें बताया गया था कि दिसंबर 2023 तक कुवैत की कुल आबादी 49,00,000 थी. इसमें से 15,00,000 तो स्थानीय लोग थे, बाकी 39% लोग प्रवासी थे. उसमें भी सबसे अधिक भारतीय मजदूर थे. भारत से लोगों की कुवैत या खाड़ी देश जाने के पीछे की वजह बेरोजगारी है और दूसरा वहां पर सैलरी अच्छी मिलती है. ये लोग 5 साल वहां पर काम कर लेते हैं उसके बाद यहां आकर छोटा व्यवसाय शुरू कर देते हैं. वहां पर लंबे समय तक रह कर काफी पैसा बचा लेते हैं उसके बाद मकान बना लेते हैं, बच्चों को पढ़ा लेते हैं. कुवैत को भी मजदूरों से काफी फायदा होता है. फिलहाल तो सबसे जरुरी ये है कि उनके रहने की कंडीशन में सुधार आए और जो लोग मरे हैं उनको मुआवजा ठीक से मिले. इनके लोगों के लिए स्कूल और हेल्थ सर्विसेज होनी चाहिए.

कफाला सिस्टम है आफत की जड़

खाड़ी देशों का एक सिस्टम है. यह सिस्टम कफाला’ नाम से जाना जाता है. यह खाड़ी देशों में दशकों से चली आ रही एक कानूनी प्रणाली है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत और ओमान में विदेशी कामगारों का इसी प्रक्रिया से नौकरी दी जाती है. जॉर्डन, लेबनान और इराक इस प्रणाली में शामिल नहीं है. ईरान ‘कफाला’ सिस्टम को मानता तो है, लेकिन वहां पर ज्यादा संख्या में प्रवासी श्रमिक काम करने के लिए नहीं जाते. इस प्रथा में काम देनेवालों को असीमित अधिकार हैं, जबकि श्रमिकों को बेहद कम। इन लोगों का पासपोर्ट उनके पास होता है. उनको डर होता है कि वो लोग इनकी टिकट का खर्चा कर उनको बुलाते है, अपने यहां रखते है तो ऐसा न हो कुछ दिनों के बाद ये दूसरी नौकरी पकड़ लें. दूसरी ये कि जब वो छुट्टी लेंगे तो उनको पासपोर्ट मिलेगा तो भारत आएंगे. ये भी एक समस्या है. ये छोटी-छोटी चीजें हैं. लॉ मिनिस्ट्री और दूसरी भारत की मिनिस्ट्री को उनके ऑफिसर से मिलकर बात करनी चाहिए ताकि सारी समस्याओं का हल हो सके. अब हालात पहले से कुछ ठीक हुए है लेकिन और भी बदलाव की जरूरत है.

सऊदी में भी हालात खराब 

सऊदी से भी ऐसी खबरें आती हैं कि वहां पर स्थिति बहुत ही गड़बड़ है. वहां ऐसी खबर आती है कि जानवर की तरह मजदूरों को बंद कमरे में रखा जाता है. खाने-पीने या किसी तरह की बीमारी में मेडिकल ट्रीटमेंट का कोई इंतजाम नहीं होता और अचानक से किसी की मौत हो जाती है. लगभग दुनिया भर में ओवरआल वर्कर्स के हालात अच्छे नहीं है. उनमें से ही एक सऊदी अरब भी है. वहां कोई ट्रेड यूनियन नहीं है, कोई उनसे लड़ने वाला नहीं, डेमोक्रेसी भी नहीं है. मीडिया में खबरें नहीं आती कि पता चले कि कहां क्या हो रहा है? कोई खबर बाहर नहीं आती है. जो कोई आती है उसे सरकार की तरफ से दबा दिया जाता है.  इन लोग का काम करना ऐसे में मुश्किल होता है. हालांकि जो ह्वाइट क़ॉलर और ब्लू कॉलर जॉबस है उनकी थोड़ी कंडीशन बेहतर होती है, उनको मकान भी मिलता है, उनको रहने खाने पीने की सुविधा भी होती है और अच्छा पैसा मिलता है. कंस्ट्रक्शन वर्कर और मैन्युफैक्चरिंग में काम कर रहे हैं लोगों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  ….न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *