भारत में कितने तरह का वसूला जाता है टैक्स ?
भारत में कितने तरह का वसूला जाता है टैक्स, आम जनता कहां-कहां है दायरे में?
चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही का नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 4.62 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 22 प्रतिशत ज्यादा है.
भारत का सरकारी खजाना एडवांस टैक्स के मामले में तेजी से बढ़ा है. दरअसल 16 जून आए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष यानी 2024-25 में सरकार का एडवांस टैक्स कलेक्शन 1.48 लाख करोड़ रुपये हो गया है. यह पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में लगभग 28 प्रतिशत ज्यादा है. रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही का नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 4.62 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 22 प्रतिशत ज्यादा है.
हाल ही में आए एक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2024-25 (FY25) के लिए भारत का डायरेक्ट टैक्स संग्रह वित्त वित्तीय वर्ष 2024 की समान अवधि की तुलना में पहली तिमाही के 16 जून तक 9.81 प्रतिशत बढ़कर 4.62 ट्रिलियन रुपये हो गया है.
वहीं नेट कॉर्पोरेट टैक्स की बात करें तो वित्तीय वर्ष में यह 1.60 लाख करोड़ हो गया है. इतना ही नहीं सरकार की नेट पर्सनल इनकम टैक्स से हुई कमाई 3.79 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है. इसके अलावा ग्रॉस टैक्स 5.15 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वित्तयी वर्ष 2024-25 की तुलना में 22.89 फीसदी ज्यादा है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि भारत में कितने तरह का वसूला जाता है टैक्स, आम जनता कहां-कहां है दायरे में?
भारत में कितने तरह के होते हैं टैक्स
भारत में टैक्स को मुख्य रूप से दो कैटेगरी में विभाजित किया जा सकता है. प्रत्यक्ष कर यानी डायरेक्ट और अप्रत्यक्ष यानी इनडायरेक्ट कर
1. डायरेक्ट टैक्स: डायरेक्ट टैक्स वह टैक्स होता है जो सीधा किसी व्यक्ति या संस्था की आय पर लगाए जाते हैं. इनका भुगतान भी सीधा सरकार को किया जाता है. डायरेक्ट टैक्स में इन करों को शामिल किया गया है
- आयकर: यह टैक्स किसी भी व्यक्ति, कंपनियों, और अन्य इकाइयों पर लगाया जाता है.
- कैपिटल गेन्स टैक्स: यह टैक्स संपत्ति, स्टॉक आदि की बिक्री से होने वाले लाभ पर लगाया जाता है.
- सिक्योरिटीज ट्रांसक्शन टैक्स: यह टैक्स भारतीय शेयर बाजार या एक्यूटीज़ पर लागू किया जाता है. इस कर को भारतीय शेयर बाजार में ट्रेडिंग अवधि के दौरान लागू किया जाता है और इसे केंद्रीय सरकार निर्धारित और नियंत्रित करती है.
- कॉर्पोरेट कर: यह कर कंपनियों की आय पर लगाया जाता है.
- गिफ्ट टैक्स: यह कर उपहारों पर लगाया जाता है (हालांकि यह अब आयकर अधिनियम के तहत आता है).
2. इनडायरेक्ट टैक्स: अप्रत्यक्ष कर वह कर हैं जो किसी भी वस्तुओं और सेवाओं की खरीदे जाने के वक्त लगाया जाता है और इनका भुगतान उपभोक्ता करता है लेकिन इन्हें सरकार को व्यापारी द्वारा जमा किया जाता है.
- वस्तु एवं सेवा कर: इसमें वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगाया जाता है. इसे आगे कई भागों में बांटा गया है.
- केन्द्रीय जीएसटी: वो कर जो केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है.
- राज्य जीएसटी: कर, जो राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है.
- समेकित जीएसटी: जो अंतरराज्यीय लेन-देन पर लगाया जाता है.
- मूल उत्पाद शुल्क: यह कर विनिर्माण स्तर पर लगाए जाते हैं.
- सीमा शुल्क : यह टैक्स आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है.
- मूल्य वर्धित कर : यह कर राज्य सरकार द्वारा विशेष वस्तुओं पर लगाया जाता है (कुछ वस्तुओं पर अभी भी लागू है).
- केंद्रीय बिक्री कर : यह टैक्स अंतरराज्यीय बिक्री पर लगाया जाता है, लेकिन जीएसटी लागू किए जाने के बाद इसके महत्व में कमी आई है.
- सेवा कर: यह टैक्स सेवाओं पर लगाई जाती थी, हालांकि अब GST के अंतर्गत आ गया है.
किसी भी देश को टैक्स लगाने की क्या जरूरत है
दरअसल किसी भी देश को चलाने के लिए टैक्स लेना बेहद जरूरी है. आसान भाषा में समझें तो टैक्स सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोत होता है. जिसकी मदद से वह अपने कार्यक्षेत्र में कार्य कर सकती है और नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण सेवाओं को प्रदान कर सकती है.
आम जनता को कहां कहां भरना पड़ता है टैक्स
आयकर- आम जनता के लिए सबसे महत्वपूर्ण टैक्स है इनकम टैक्स. जिसे हर इंसान को अपनी कमाई से देना पड़ता है. यह सभी आय वर्गों के लिए लागू होता है, जैसे सैलरी, बिजनेस आय, ब्याज आय, वित्तीय निवेशों से मिली कमाई आदि.
सेल्स टैक्स- सेल्स टैक्स उस टैक्स को कहते हैं जिसे उत्पादन और सेवाओं के सेल्स पर लागू किया जाता है, जैसे भारत में जीएसटी या अमेरिका में सेल्स टैक्स. इसे उत्पादक या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा भुगतान किया जाता है, लेकिन इसे आमतौर पर उपभोक्ता की ओर से जमा किया जाता है.
मूल्य जोड़ कर- यह टैक्स उस प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें उत्पाद के अलग अलग चरणों में मूल्य जोड़ा जाता है, जैसे कि भारत में एक्साइज ड्यूटी या अमेरिका में यूएसडी.
संपत्ति कर- यह टैक्स किसी भी तरह की संपत्ति यह किसी भी प्रकार की संपत्ति, जैसे कि भूमि, घर, वाणिज्यिक संपत्ति आदि पर लागू किया जाता है.
प्रॉपर्टी टैक्स- इस कर को किसी भी जमीन या घर के मालिक को भुगतान किया जाता है, और इसका इस्तेमाल स्थानीय सरकारों किया जाता है, ताकि वे स्थानीय सेवाओं को वित्तीय समर्थन प्रदान कर सकें.
भारत में टैक्स व्यवस्था का इतिहास
हमारे देश में कर लेने की व्यवस्था का काफी पुराना इतिहास है, जो समाज के विकास और सरकारी कार्यों को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है.
अन्याय कर (जिज्ञासा मुद्रा): भारत में जब ब्रिटिश शासन था उस वक्त, भारतीय सामाजिक और आर्थिक संरचना को व्यवस्थित करने के लिए जो टैक्स लिया जाता था उसे “अन्याय कर” के रूप में जाना जाता है. इसमें स्थानीय राजा या शासन अपने क्षेत्र में लोगों को हर साल कितना टैक्स देना है ये निर्धारित करते थे. यह आमतौर पर शताब्दियों से चली आ रही प्रथा थी.
ब्रिटिश शासन के दौरान: साल 1860 में ब्रिटिश व्यवस्थापनिक सुधारों के तहत ‘आयकर अधिनियम’ की स्थापना की गई थी, जो टैक्स की पहली प्रारंभिक रूपरेखा मानी जाती है. यह अधिनियम आय के अलग अलग स्रोतों से कमाई के अनुसार कर निर्धारित करता था.
स्वतंत्रता के बाद: देश को आजादी मिलने के बाद सत्ता में आई सरकार ने अलग अलग तरह के टैक्स और शुल्कों की व्यवस्था की, जिनमें आयकर, व्यापारिक कर, बिक्री कर, मूल्य जोड़ कर, एक्साइज ड्यूटी, संपत्ति कर, सेवा कर शामिल हैं.
वर्तमान में: अभी की बात की जाए तो वर्तमान में, भारतीय आयकर विभाग (Income Tax Department) और अन्य सरकारी विभाग अधिकारियों द्वारा टैक्स को संभाला जाता है, और निर्धारित नियमों के अनुसार लागू किया जाता है.