विधायकों ने एक भी सवाल नहीं पूछा ?
एक साल में विधानसभा के तीन सत्र होते हैं। विधायकों का परफॉर्मेंस देखें तो कुल 163 विधायक ऐसे हैं जिन्होंने तीनों सत्रों में लगातार सवाल नहीं पूछे हैं। इनमें बीजेपी विधायकों की संख्या 143 और कांग्रेस के विधायकों की संख्या 20 है। भारत आदिवासी पार्टी के एक मात्र विधायक ने तीनों सत्रों में सवाल पूछे हैं।
वहीं आज से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र की बात करें तो 142 विधायकों ने कुल 1766 सवाल पूछे हैं। इनमें भी 37 विधायक ऐसे हैं जिन्होंने पांच दिन की बैठक के लिए 20 सवाल पूछे हैं। दरअसल, एक विधायक एक दिन में अधिकतम 4 सवाल पूछ सकता है।
जिन 56 विधायकों ने एक भी सवाल नहीं पूछा उनमें दो पूर्व मंत्री जयंत मलैया और भूपेंद्र सिंह भी शामिल है। हालांकि, भूपेंद्र सिंह ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव की सूचना दी है। जिन विधायकों ने सवाल नहीं पूछे उनसे भास्कर ने कारण पूछा तो किसी ने कहा- वे बिजी थे, तो कोई बोला- सत्र छोटा है सवाल पूछने का कोई औचित्य नहीं। 16वीं विधानसभा के एक साल में विधायकों का परफॉर्मेंस कैसा रहा?
अब सिलसिलेवार जानिए किस सत्र में क्या रहा विधायकों का परफॉर्मेंस
दिसंबर 2024: तीन नए विधायक शपथ लेंगे आज से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में विजयपुर, बुधनी और अमरवाड़ा सीट के नवनिर्वाचित विधायक, विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ लेंगे। दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह और विजयपुर से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत बीजेपी में शामिल हो गए थे।
जुलाई के महीने में अमरवाड़ा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े कमलेश शाह जीते। वहीं विजयपुर सीट पर रामनिवास रावत की हार हुई है। उनकी जगह कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने ये चुनाव जीता है। इसी तरह केंद्रीय मंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी सीट से इस्तीफा दे दिया था। इस सीट से रमाकांत भार्गव चुनाव जीते हैं।
इसके अलावा तकनीकी शिक्षा राज्य मंत्री गौतम टेटवाल नगर पालिका द्वितीय संशोधन अध्यादेश पटल पर रखेंगे। प्रश्नकाल के अलावा अजय सिंह और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा होगी।
इस सत्र में विधायकों का परफॉर्मेंस मौजूदा सत्र में 198 विधायकों में से 142 विधायकों ने कुल 1766 सवाल पूछे हैं। इनमें से बीजेपी के 83 तो कांग्रेस के 58 विधायक शामिल है। भारत आदिवासी पार्टी के कमलेश्वर डोडियार ने इस सत्र में भी सवाल पूछे हैं। खास बात ये है कि बीजेपी और कांग्रेस के 37 विधायकों ने एक दिन में 4 सवाल पूछे हैं। इनमें से कांग्रेस के 24 तो बीजेपी के 12 विधायक हैं।
जुलाई 2024: 5 दिन में बजट पास, हंगामे के बाद सत्रावसान
ये बजट सत्र था। जिसमें मोहन सरकार का पूर्ण बजट पेश किया गया। 1 जुलाई से 19 जुलाई तक चलने वाले 19 दिवसीय सत्र में 14 बैठकें निर्धारित थीं। 1 और 2 जुलाई को सदन की कार्यवाही हुई। तीसरे दिन यानी 3 जुलाई को वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने बजट पेश किया।
बजट की विभागीय अनुदान मांगों पर चर्चा नहीं हुई बल्कि सभी मांगों पर एक साथ चर्चा हुई। इस प्रक्रिया को गिलोटिन कहते हैं। इस सत्र में स्थगन प्रस्ताव की 37 सूचनाएं विपक्ष की तरफ से दी गई थी जिसपर चर्चा नहीं हुई। साथ ही ध्यानाकर्षण की 503 सूचनाओं में से केवल 7 पर चर्चा हुई।
सत्र के दौरान सरकार की तरफ से 11 विधेयक पेश किए गए थे। ज्यादातर विधेयक बिना चर्चा के पास हो गए। 5 जुलाई को हंगामे और शोर शराबे के बाद सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी।
कैसा रहा विधायकों का परफॉर्मेंस
बजट सत्र की अवधि बाकी दो सत्रों से ज्यादा होती है, इसलिए विधायकों ने कुल 4287 सवाल पूछे थे। उस समय कांग्रेस के विधायक रामनिवास रावत को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था, इसलिए मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की संख्या 31 ही थी। इस तरह बीजेपी, कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी के 198 विधायकों में से 161 विधायकों ने सवाल पूछे थे। जबकि 37 विधायकों ने सवाल नहीं पूछे।
फरवरी 2024: 9 दिन के बजाय 6 दिन में सत्रावसान
दिसंबर 2023 में 16वीं विधानसभा के गठन के बाद ये मोहन सरकार का पहला विधानसभा सत्र था। 7 फरवरी से 19 फरवरी तक सत्र की निर्धारित अवधि थी। 13 दिन के सत्र में 9 बैठकें होना थीं। मगर, सत्र केवल छह दिन चला। इस सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर वोट ऑफ थैंक्स, दूसरा अनुपूरक बजट और लेखानुदान पास किया गया।
साथ ही हरदा पटाखा फैक्ट्री पर विपक्ष की तरफ से लाए गए स्थगन प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई। ओला पाला से फसलों के खराब होने के लोक महत्व के मुद्दे पर भी सदन में चर्चा की गई। मगर इस दौरान सदन में जमकर हंगामा हुआ इसलिए 14 फरवरी को सत्रावसान हो गया।
विधायकों का कैसा रहा परफॉर्मेंस
इस सत्र में विधायकों की तरफ से कुल 2303 सवाल पूछे गए थे। मंत्रिमंडल के 31 सदस्य और विधानसभा अध्यक्ष को छोड़ दें तो 198 विधायकों में से 129 ने ये सवाल पूछे थे। जबकि 69 विधायकों ने कोई सवाल नहीं पूछा था।
अब जानिए क्या कहते हैं सवाल न पूछने वाले विधायक
सरकार सभी काम कर रही, इसलिए नहीं पूछे सवाल: सरला रावत
मुरैना जिले की सबलगढ़ की विधायक सरला रावत कहती है कि सरकार मेरे क्षेत्र में विकास कार्य कर रही है। जिला स्तर पर ही समस्याओं का समाधान हो रहा है। ऐसे में विधानसभा में सवाल पूछने की जरूरत नहीं है। वे कहती हैं कि जब जरूरत महसूस होगी, तो सवाल पूछा जाएगा।
मलैया बोले- बिजी था इसलिए सवाल नहीं लगाए
पूर्व मंत्री जयंत मलैया ने भी इस सत्र में कोई सवाल नहीं किया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से वे काफी बिजी चल रहे हैं, इसलिए उन्हें सवाल लगाने का मौका नहीं मिला। अगले सत्र में जरूर पूछूंगा।
सत्र छोटा है इसलिए नहीं पूछे सवाल: नरेंद्र सिंह कुशवाह
भिंड से बीजेपी विधायक नरेंद्र कुशवाह ने कहा कि सत्र महज पांच दिन का है। पहले दिन सदन की कार्यवाही नहीं चलती, ऐसे में ये सत्र चार दिन का है, इसलिए सवाल पूछने का कोई औचित्य ही नहीं है।
अब वो विधायक जिन्होंने 4-4 सवाल पूछे हैं
किसान खाद के लिए परेशान हैं: यादवेंद्र सिंह
टीकमगढ़ से कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह ने पिछले दोनों सत्रों में 38 सवाल लगाए थे। इस बार 20 सवाल लगाने के सवाल पर वे कहते हैं- टीकमगढ़ में सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार है। किसान खाद के लिए परेशान हैं। राजस्व अभियान सिर्फ औपचारिकता बन गया है है। ऐसे कई सवाल विधानसभा के माध्यम से सरकार से पूछे हैं।
क्षेत्र के साथ प्रदेश स्तर के सवाल उठाता हूं: अभिलाष पांडे
जबलपुर उत्तर से भाजपा विधायक अभिलाष पांडे ने भी इस सत्र में 20 सवाल के जवाब सरकार से मांगे हैं। वे कहते हैं – मैं अपने क्षेत्र के साथ प्रदेश स्तर के सवाल विधानसभा में उठाता हूं। पिछले सत्र में फायर सेफ्टी एक्ट लागू करने को लेकर सरकार से सवाल पूछे थे। इस सत्र में मैने रोजगार और नर्मदा सफाई को लेकर सवाल लगाए हैं।
अफसर सुनते ही नहीं, तो सवाल लगाने पड़ेंगे: सिद्धार्थ कुशवाहा
सतना से कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा ने सरकार से इस सत्र में हर दिन 4 सवालों के जवाब सरकार से मांगे हैं। वे कहते हैं- अफसर सुनते ही नहीं हैं। जरूरतमंदों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
सत्र की अवधि छोटी हो रही है, विधायकों को मौका नहीं मिल रहा
विधानसभा के पूर्व मुख्य सचिव भगवानदेव इसराणी कहते हैं कि बैठकों का कम होना सबसे बड़ी चिंता की वजह है। विधानसभा जनहित के मुद्दे उठाने का सबसे प्रभावी मंच है। इसे लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। इसी जगह लोगों की बात नहीं रखी जाएगी तो उनका पहले से जो भरोसा कम हुआ है वो और कम होगा।
वे बताते हैं कि विधानसभा की बैठकों की कम होती संख्या का मुद्दा कई बार पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में उठ चुका है।साल 2003 में लोकसभा में ऐसा ही सम्मेलन हुआ था। जिसमें सभी राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष और सचिवों ने हिस्सा लिया था। इसमें सुझाव आया कि संसद में 100 दिन की बैठकें होना चाहिए।
एमपी, यूपी, राजस्थान जैसी बड़ी विधानसभाओं के लिए 75 बैठकों का सुझाव दिया गया। ये सब तय हुआ, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ।