सेंगोल क्या है? इस पर फिर विवाद क्यों शुरू हुआ?

सेंगोल क्यों हटाना चाहती है सपा
क्या ये राजशाही का प्रतीक; नेहरू को किसने सौंपा था, पढ़िए 9 सवालों में सारे जवाब

उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने संसद से सेंगोल हटाकर उसकी जगह संविधान की कॉपी रखने की मांग की है। उन्होंने प्रोटेम स्पीकर को चिट्ठी लिखकर कहा है कि संविधान लोकतंत्र का एक पवित्र ग्रंथ है, जबकि सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है। संसद लोकतंत्र का मंदिर है, किसी राजा-रजवाड़े का राजमहल नहीं। देश आजाद हो चुका है, यह संविधान से चलेगा या राजा के डंडे से? संसद भवन से सेंगोल हटाकर उसकी जगह भारतीय संविधान की विशालकाय प्रति स्थापित की जाए।’

सेंगोल क्या है? इस पर फिर विवाद क्यों शुरू हुआ?-

क्या सच में सेंगोल राजशाही का प्रतीक है?

सवाल:1- सेंगोल पर दोबारा विवाद क्यों हो रहा है?
जवाब:
 28 मई 2024 को नए संसद भवन में सेंगोल लगने से पहले से ही विपक्ष इसका विरोध करता रहा है। कांग्रेस सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों का कहना है कि सेंगोल राजशाही व्यवस्था का प्रतीक है, जबकि लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था से ऊपर कुछ नहीं है। इधर जब से केंद्र में NDA की नई सरकार बनी है, विपक्ष लगातार संविधान के मुद्दे पर जोर दे रहा है। संसद सत्र के पहले दिन ही सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अखिलेश यादव जैसे बड़े विपक्षी नेताओं ने संविधान की प्रतियां लेकर संसद में प्रदर्शन किया।

राहुल गांधी और अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी नेताओं ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर शपथ ली। सेंगोल का मुद्दा उठाकर भी विपक्ष संवैधानिक मूल्यों पर अपने रुख को आगे बढ़ाना चाहता है।

आरके चौधरी के बयान के बाद कांग्रेस की तरफ से भी कहा गया, ‘इस बारे में हमारा साफ कहना है कि सेंगोल राजसत्ता का प्रतीक है और राजशाही का दौर खत्म हो चुका है।’

RJD सांसद और लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती ने भी कहा कि वह सेंगोल की जगह संसद में संविधान की प्रति लगाए जाने की मांग का स्वागत करती हैं।

वहीं BJP, विपक्ष की इस मांग को भारतीय संस्कृति के अपमान से जोड़ रही है। उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘सपा भारतीय इतिहास और संस्कृति का सम्मान नहीं करती है। यह विरोध खास तौर पर तमिल संस्कृति के प्रति इंडिया ब्लॉक की नफरत को भी दिखाता है। ’

वहीं बीते साल गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘14 अगस्त 1947 की रात को माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल सौंप कर देश की सत्ता का हस्तांतरण किया था। यह हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को हमारी आधुनिकता से जोड़ने की एक कोशिश है। हम चाहते हैं कि प्रशासन कानून के शासन से चले और सेंगोल हमें हमेशा इसकी याद दिलाता रहेगा। ’

सवाल:2- सेंगोल क्या है और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है?
जवाब:
 सेंगोल 5 फीट लंबी और 2 इंच मोटी एक ऐतिहासिक महत्व वाली छड़ी है। ‘सेंगोल’ तमिल भाषा के शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है- ‘संपदा से संपन्न।’ कहीं-कहीं इसका अर्थ ‘धार्मिकता’ भी बताया जाता है। हिंदी में आमतौर पर इसे राजदंड कहा जाता है। वैदिक परंपरा के मानने वाले कहते हैं कि सेंगोल शब्द संस्कृत के ‘सुंक’ शब्द से बना है। इसका अर्थ शंख होता है।

संसद में रखे सेंगोल पर सोने की परत चढ़ाई गई है। अगले हिस्से पर भगवान शिव के नंदी विराजमान हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक माना जाता है। सेंगोल के बाकी हिस्से पर गेहूं और चावल के दाने जैसे चित्र उकेरे गए हैं, जो खेती और समृद्धि को दर्शाते हैं।

सवाल:3- क्या सेंगोल राजशाही सत्ता का प्रतीक है और उसके ऊपर कोई सत्ता नहीं है?
जवाब:
 वैदिक परंपरा से जुड़ी कहानियों में खास रूप से दो मौकों पर शंख बजाया जाता है। एक पूजा के समय, दूसरा युद्ध के समय। वातावरण को शुद्ध करने के लिए पूजा से पहले शंख बजाया जाता है।

युद्ध के समय शंख बजाया जाना पौरुष का उद्घोष माना जाता रहा है। इसे राज्य के विस्तार, प्रभाव और उसकी संप्रभुता से जोड़ कर देखा जाता था। इसी तरह सेंगोल का वर्णन भी राज्य की संप्रभुता के प्रतीक के तौर पर किया जाता है।

राजशाही परंपरा में सेंगोल को राजदंड कहा गया। वह दंड जिसे राज्य का राजपुरोहित नए राजा को सौंपता था। वैदिक परंपरा में सत्ता के दो तरह के प्रतीक हैं। राजसत्ता के लिए राजदंड और धर्मसत्ता के लिए धर्मदंड। राजदंड, राज्य के राजा के पास होता था, जबकि धर्मदंड राजपुरोहित के पास।

भारतीय परंपरा में, राजाओं और शासकों को कभी भी सर्वोच्च सत्ता नहीं माना जाता था। राज्याभिषेक के समय राजसी पोशाक, मुकुट, कवच धारण करने वाले राजा को राजघराने के पुजारी यह भी याद दिलाते थे कि धर्म और नैतिक-आध्यात्मिक व्यवस्था ही एकमात्र सर्वोच्च सत्ता है।

राज्याभिषेक के अनुष्ठानों के अनुसार, राजा जब औपचारिक रूप से पहली बार सिंहासन पर बैठता है तो वह तीन बार घोषणा करता है- ‘अदंड्योस्मि’ यानी कोई भी मुझे दंडित नहीं कर सकता। इसके बाद राजपुरोहित अपने पवित्र धर्मदंड के साथ आगे आता है। राजा के मुकुट पर धीरे से अपना दंड रखता है और तीन बार कहता है- ‘धर्म दंड्योसि’- इसका अर्थ है, ‘धर्म तुम्हें दंडित करेगा। ’

तमिल भाषा में लिखे तिरुवल्लुवर के महाकाव्य ‘तिरुक्कुरल’ में कुल 1330 कुरुल (दोहे) हैं। इनमें से कई दोहों का एक पूरा अध्याय ‘सही राजदंड’ है। इसमें एक दोहे में कहा गया है कि ‘राजाओं को जीत भाले से नहीं मिलती, बल्कि न्याय से प्रभावित राजदंड से मिलती है।

सवाल:4- क्या नेहरू को सेंगोल सौंपकर अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण किया?
जवाब:
 बीते साल जब प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया कि वह नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित करेंगे, तब विपक्ष ने इस पर सवाल खड़े किए। इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि आजादी के समय तब के भारत के वायसराय लुइस माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से पूछा था कि ब्रिटेन द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित करने का प्रतीक क्या होगा और इसके लिए क्या आयोजन किया जाना चाहिए। उस समय नेहरू ने अपने सहयोगी सी. गोपालाचारी के कहने पर तमिलनाडु से सेंगोल मंगाया था।

14 अगस्त 1947 की रात माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल सौंपकर देश की सत्ता का हस्तांतरण किया था। यह पूरी बात सरकारी दस्तावेज में लिखी है, लेकिन यह भी गौरतलब है कि इस घटना का तब कोई दस्तावेजीकरण नहीं किया गया।

हालांकि, कुछ इतिहासकार माउंटबेटन द्वारा नेहरू को सेंगोल सौंपने की घटना से इत्तफाक रखते हैं। इतिहासकार अनिरुद्ध कनीसेट्टी ने ‘लॉर्ड्स ऑफ द डेक्कन: साउथर्न इंडिया फ्रॉम द चालुक्य टु द चोल’ नाम की किताब लिखी है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि राजदंड के लिए राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु के कई मठों से संपर्क किया था। इस प्रक्रिया में तमिलनाडु के तंजौर जिले के प्रसिद्ध मठ ‘थिरुवदुथुराई अथेनम’ से उन्हें सेंगोल मिला था।

हालांकि, तिरुवदुतुरै अधीनम के नेता श्री अंबलवाना देसिका परमाचार्य स्वामीगल कहते हैं कि किसी भी खास निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए दस्तावेजों का अभाव है। वह कहते हैं, ‘ये सब कहानियां हमने पुराने लोगों से सुनी हैं… हम जो जानते हैं वो इतना है कि जब भारत आजाद हुआ तो अधीनम मैथ ने नेहरू को एक सेंगोल भेंट किया था।’

सरकार के आधिकारिक दस्तावेज के अनुसार, अधीनम मठ ने सेंगोल बनाने का काम चेन्नई के वुम्मिडी बंगारू चेट्टी ज्वेलर्स को सौंपा था। जब बीते साल सेंगोल बनाने वाली इस फर्म से संपर्क किया गया तो उसकी तरफ से बताया गया कि उनके पास इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन यह भी माना कि सेंगोल बनाने जैसा कोई काम उन्होंने ही किया था।

सवाल:5- नेहरू को माउंटबेटन के हाथों सेंगोल दिए जाने की कहानी के क्या सबूत हैं?
जवाब:
 टाइम मैगजीन ने अपने 25 अगस्त 1947 के अंक में राजदंड का जिक्र किया है। Blessing with Ashes (राख से आशीर्वाद) सब-टाइटल के साथ छापे गए इस लेख में कहा गया है, ‘नेहरू जैसा एग्नॉस्टिक (अज्ञेयवादी, नास्तिक) व्यक्ति भी धार्मिक भावनाओं में डूब गए।’

इसमें आगे बताया गया कि तमिलनाडु के संत ने नेहरू को 5 फीट लंबा और 2 इंच मोटाई वाला सोने का राजदंड दिया। इसे सोने के धागों से बने पैटर्न वाले पीतांबर (पीले) में लपेटकर दिया गया। इसके साथ नेहरू को कुछ पके हुए चावल भी दिए गए जो भगवान नटराज को चढ़ाए जाने के बाद दिल्ली लाए गए थे।

सवाल:6- क्या टाइम के अलावा और कहीं भी जिक्र है?
जवाब:
 जी हां, लैरी कोलिन्स और डॉमिनिक लैपिएर ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में 14 अगस्त 1947 को दिल्ली में हुए एक समारोह का जिक्र किया है।

उन्होंने लिखा, ‘दो पुजारियों में से एक ने 14 अगस्त की शाम को एक बड़ी चांदी की थाली उठाई, जिस पर पीतांबर रखा हुआ था। दूसरे पुजारी के पास पांच फुट का राजदंड, तंजौर नदी के पवित्र जल का एक छोटा सा बर्तन, पवित्र राख की एक थैली और उबले हुए चावल की एक थैली रखी थी, यह सब मद्रास (अब चेन्नई) में भगवान नटराज के चरणों में सुबह ही चढ़ाया गया था।’

‘जुलूस दिल्ली की सड़कों से होता हुआ 17 यॉर्क रोड (अब मोती लाल नेहरू मार्ग) स्थित नेहरू के घर के सामने रुका। पुजारियों ने जवाहरलाल नेहरू पर पवित्र जल छिड़का, उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाई, उनकी बांहों पर राजदंड रखा और उन्हें पीतांबर ओढ़ाया।’

टाइम मैगजीन, कॉलिन्स और लैपिएर की किताब के अलावा यास्मीन खान ने अपनी किताब ‘द ग्रेट पार्टीशन: द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान’ ने भी इस समारोह का जिक्र किया है।

इतिहासकार मनु एस पिल्लई माउंटबेटन के एक भव्य समारोह में नेहरू को सेंगोल सौंपे जाने की बात को तथ्यपूर्ण नहीं मानते। वह कहते हैं, ‘यह बात मौखिक विवरणों और कुछ फैले हुए तथ्यों पर आधारित है, ऐसा लगता है कि नेहरू को तमिलनाडु के हिंदू नेताओं ने सेंगोल दिया था और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। ये यह कहना कि एक बड़ी घटना थी और माउंटबेटन ने सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर नेहरू को सेंगोल सौंपा, ये महज बढ़ा-चढ़ाकर किया गया एक दावा लगता है।

सवाल:7- नेहरू को माउंटबेटन के हाथों सेंगोल मिलने की कहानी आधिकारिक रूप से कहीं दर्ज क्यों नहीं है?
जवाब:
 कल्चर मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि आजादी के पहले और बाद में भारतीय और विदेशी मीडिया ने सेंगोल पर रिपोर्ट्स की थीं। देश के बंटवारे के दौरान देशभर में सांप्रदायिक हिंसा का माहौल था। इसके चलते सेंगोल समारोह बिना कोई औपचारिक आदेश के जल्दबाजी में आयोजित किया गया था, इसलिए तब इसे रिकॉर्ड नहीं किया जा सका।

मनु एस. पिल्लई कहते हैं कि इसका जवाब सिर्फ सरकार दे सकती है। हमें भरोसा है कि उन्होंने अपनी रिसर्च की होगी और जरूरी दस्तावेज और जानकारी पब्लिक डोमेन में डालेंगे। मनु के मुताबिक ये दावा जितना बड़ा है कि उसे उतने ही पुख्ता सबूतों के साथ साबित किया जाना चाहिए।

सवाल:8- आजादी के बाद सेंगोल सार्वजनिक रूप से कभी क्यों नहीं दिखा?
जवाब:
 देश की आजादी के बाद सेंगोल का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसे ऐतिहासिक धरोहर मानते हुए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के म्यूजियम में रख दिया गया। वहां इसे ‘नेहरू की सोने की छड़ी’ बताया गया था।

सेंगोल को दोबारा संसद भवन में स्थापित किए जाने से पहले अमित शाह ने कहा कि पवित्र सेंगोल को किसी म्यूजियम में रखा जाना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद अब तक सेंगोल भारतीयों के सामने क्यों नहीं आया।

उन्होंने कहा कि सेंगोल अंग्रेजों से सत्ता के भारतीयों के हाथ में आने का प्रतीक है और जब PM मोदी को इस परंपरा की जानकारी मिली तो लंबी चर्चा और विचार-विमर्श के बाद इसे संसद में स्थापित करने का फैसला लिया गया।

सवाल:9- प्रधानमंत्री मोदी को सेंगोल के बारे में सबसे पहले कैसे पता चला?
जवाब:
 मशहूर क्लासिकल डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने साल 2021 में प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा था। इसके पहले उन्होंने सेंगोल पर लिखे गए एक तमिल आर्टिकल का अनुवाद किया था।

उन्होंने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा, ‘तुगलक पत्रिका में सेंगोल के बारे में जो लिखा गया मैं उससे बहुत प्रभावित थी। इसमें लिखा गया था कि चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने 1978 में इसके बारे में अपने शिष्य डॉ. सुब्रमण्यम को बताया था, बाद में सुब्रमण्यम ने इसके बारे में अपनी किताब में भी लिखा। मैंने इसके बारे में पढ़ा तो, लेकिन आजादी के बाद सेंगोल कहीं दिखाई नहीं दिया। जब हम आजादी के 75 साल पूरे होने का उत्सव मन रहे थे तो मैंने सोचा कि सेंगोल के समारोह को भी फिर से दोहराना चाहिए।’

इसके बाद सेंगोल की खोजबीन शुरू हुई, 3 से 4 महीने बाद पता चला कि सेंगोल प्रयागराज के म्यूजियम में है। पद्मा सुब्रमण्यम ने ये भी कहा था कि उन्हें खुशी है कि सेंगोल को नए संसद भवन में भारत के गौरव के प्रतीक के रूप में स्थापित किया जाएगा।

इसके बाद PM मोदी ने 28 मई 2023 को नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना की थी। तमिलनाडु के अधीनम मठ के महंतों की मौजूदगी में लोकसभा में स्पीकर की कुर्सी के पास सेंगोल रखा गया। तब प्रधानमंत्री ने कहा था- ‘सेंगोल’ राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और जनता के प्रति समर्पित रहने का भी प्रतीक रहा है।

सवाल:10- मोदी सरकार द्वारा संसद में सेंगोल स्थापित करने के राजनीतिक मायने क्या हैं?
जवाब:
 मनु एस पिल्लई के मुताबिक संभव है कि सरकार आज इसे हिंदू राजनीतिक इतिहास बनाने के एक बड़े प्रोजेक्ट के हिस्से के तौर पर हाईलाइट करना चाहती है। एक तरह से नेहरू का सेंगोल, भारत की पहली सरकार के बजाय आज की वर्तमान सरकार की वैधता और स्टेटस को दिखाने का एक तरीका है। इसे एक ऐसे काम के तौर पर देखा जाना चाहिए, जिसके जरिए एक सांस्कृतिक दावा किया जा रहा है। सरकार एक नया प्रतीक और नए मायने स्थापित करना चाहती है।

नेहरू और उनके उत्तराधिकारियों ने जिस सेंगोल को संग्रहालय की चीज माना, उसे हमारे वर्तमान शासक, एक ऐसी परंपरा के तौर पर देखते हैं जिसे फिर से जीवित किया जाना चाहिए।

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