नीट का मामला हमें भीतर तक झकझोरेगा

उम्मीद है कि नीट का मामला हमें भीतर तक झकझोरेगा

राष्ट्रीय स्तर की मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट एक गड़बड़झाला बन गई है। पेपर लीक, कुप्रबंधन, अनुचित मार्किंग योजनाओं और नतीजों के अविश्वसनीय पैटर्न के आरोप उस पर लग रहे हैं। यह न केवल परीक्षा देने वाले लाखों छात्रों के लिए तनावपूर्ण है, बल्कि उनके लिए भी है, जो आने वाले वर्षों में इसकी योजना बना रहे हैं।

भारतीय प्रवेश परीक्षाएं पहले ही बहुत तनावपूर्ण हैं। और नीट तो बेहद प्रतिस्पर्धी है। अनुमानित रूप से लगभग 24 लाख छात्र अच्छे सरकारी मेडिकल कॉलेजों की 30,000 सीटों में से एक को पाने के उद्देश्य से परीक्षा देते हैं। यानी इसमें लगभग 1.25% की चयन दर या 98.75% की अस्वीकृति दर है।

निजी कॉलेजों को शामिल करने पर भी कुल मेडिकल सीटें 100,000 से कुछ ही अधिक हैं, जिससे कुल चयन दर लगभग 3.3% हो जाती है। ऐसे में सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीटों के लिए शीर्ष 30,000 रैंक में से एक पाने के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा की कल्पना करें। कई अन्य प्रवेश परीक्षाओं की यही कहानी है- उनमें धांधली से पैसा कमाने का स्कोप इतना है कि बात लाखों करोड़ रुपयों की हो जाती है। ऐसे में इन परीक्षाओं से पैसे कमाने का उद्योग खड़ा हो जाए तो क्या आश्चर्य?

हमारी कुछ बेहद कठिन लेकिन कथित रूप से ईमानदार परीक्षाओं में व्यापक पैमाने पर होने वाली नकल हमें अंदर तक हिला देती है। यह सिर्फ छात्रों तक ही सीमित नहीं है, यह हम सभी के बारे में है, जिन्हें लगता है कि आज किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता और आखिरकार सबकुछ सत्ता और पैसे का ही खेल है। नीट, जेईई, यूपीएससी जैसी परीक्षाएं हमारे देश में लोगों के लिए अपने वर्ग से ऊपर उठने का एक रास्ता हैं। कोई उनके जरिए अपने और अपने माता-पिता के लिए सम्मान की बेहतर जिंदगी पाना चाहता है।

उम्मीद ही की जा सकती है कि यह नीट वाला मामला हमें झकझोरकर जगाएगा। यह हमें अहसास दिलाएगा कि ईमानदारी, योग्यता, कड़ी मेहनत जैसे मूल्य किसी भी चीज से ऊपर हैं। और इनकी रक्षा करने की जरूरत है। मनुष्य में खामियां तो होती ही हैं। अगर धांधली और धोखाधड़ी करने का बड़ा अवसर मिले, तो सिस्टम में कुछ लोग निश्चित रूप से ऐसा करेंगे। इसलिए हमें नागरिकों के रूप में सतर्क रहना चाहिए।

नीट की मौजूदा समस्या के मूल में एनटीए या नेशनल टेस्टिंग एजेंसी जैसी संस्थाएं जिम्मेदार हैं। वे बिना किसी अच्छे सिस्टम के इन महत्वपूर्ण परीक्षाओं का आयोजन करती हैं। जहां लाखों करोड़ की गड़बड़ी का अंदेशा हो, वहां संस्थान का फुल-प्रूफ होना बहुत जरूरी है।

नीट जैसी परीक्षाओं के लिए कई पेपर सेट किए जा सकते हैं, जिसमें किसी को पता नहीं हो कि ऐन परीक्षा के दिन कौन-सा पेपर इस्तेमाल किया जाएगा। केंद्रों को प्रतिष्ठित और सुरक्षित होना चाहिए। यदि पर्याप्त अच्छे केंद्र उपलब्ध नहीं हैं, तो चुनाव की तरह परीक्षाएं चरणबद्ध तरीके से आयोजित की जा सकती हैं।

इनके लिए एक से अधिक प्रश्न-पत्र सेट किए जा सकते हैं। ईमानदारी से परीक्षा आयोजित करना संभव है, बशर्ते आयोजकों में सही मूल्य-प्रणाली हो। वहीं पेपर लीक करना तो सीटों को बेच देने जैसा है। यह भारत के युवाओं की योग्यता, ईमानदारी और कड़ी मेहनत को दांव पर लगा देना है। हम ऐसा नहीं होने दे सकते।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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