जिंदगी में जीतने के लिए इन चार बिंदुओं को जोड़ें!

जिंदगी में जीतने के लिए इन चार बिंदुओं को जोड़ें!

साल 2004 में जब वह 17 साल का था तो उसे 1500 रु. सैलरी मिलती थी और आज 2024 में 37 साल की उम्र में 400 ड्राइवर्स, कई सहायकों और दुकान परिचारकों को सैलरी देता है। अभी उसका टर्नओवर 36 करोड़ रु. है और महत्वाकांक्षा ड्राइवर्स के साथ 500 कार रखने की है, क्या पता कि उसकी कमाई 50 करोड़ को छू ले।

एक और उदाहरण लेते हैं। साल 2022 में 15 साल का एक लड़का चोरी में पकड़ा गया और बाल सुधार गृह भेजा गया और आज 2024 में 17 साल की उम्र में वो राज्य स्तर पर कैरम चैंपियन है। वह इकलौता नहीं है, हैदराबाद के ऐसे 5 बाल सुधार गृह में करीब 200 किशोर तीरंदाजी, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, चेस, कैरम जैसे कई खेलों का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

इनमें कई राज्य स्तरीय तो कुछ राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में जा चुके हैं। हैदराबाद के चंचलगुड़ा होम में ये कैरम चैंपियन रेस्क्यू करके पुनर्वासित किए 13 से 18 साल की उम्र के उन 60 बच्चों में से एक है, जिन्हें प्रोफेशनल कोचिंग मिल रही है।

थोड़ा पीछे चलते हैं, जब अशफाक पूनावाला को दसवीं के बाद परिवार को सपोर्ट करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी और 2004 में एक रिटेल स्टोर में अटेंडेंट की नौकरी मिली। थोड़े-थोड़े पैसों के लिए वो नौ सालों में कई नौकरियां बदलते हुए कपड़ों की दुकान में मैनेजर बना। पर परिवार के सपोर्ट के लिए और पैसों की जरूरत थी, तब उसने साल 2013 में उबर ड्राइवर बनना तय किया।

स्टोर से वह 35 हजार कमाता और ड्राइविंग से 15 हजार। उसने वो अतिरिक्त कमाई बचानी शुरू कर दी और उसकी बहन ने उसे सेकंड हैंड कार खरीदने में मदद की। इसके बाद अशफाक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

तीन सेकंड हैंड कार खरीदने के लिए 10 लाख रु. का लोन काम आया। ज्यादा ड्राइवर्स के साथ ज्यादा कमाई होती गई और वो पैसे बचाता गया। बचत से उसने और कारें लेने के लिए नए लोन लिए, आज 2024 में उसके पास मुंबई में 400 कारों का बेड़ा है।

अब हैदराबाद के चिल्ड्रंस होम को देखें। साल 2023 की शुरुआत तक 16 साल का ये लड़का बाल मजदूर था। रेस्क्यू के बाद, इस युवा में तीरंदाजी की प्रतिभा का पता चला। एक साल बाद वो नेशनल लेवल का तीरंदाज है और अपने आयु वर्ग में तेलंगाना का प्रतिनिधित्व कर रहा है।

वो हाल ही में गुजरात में तीरंदाजी चैंपियनशिप में 800 प्रतियोगियों के बीच 150वें स्थान पर रहा, इस जीत ने उसके जीवन के लक्ष्य के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया है। तेलंगाना के सुधारात्मक सेवा विभाग की देखरेख में ये बच्चे रोज औसतन तीन घंटे अपने कौशल को निखारने में बिताते हैं।

ये बच्चे, जिनमें से अधिकांश किसी से बात नहीं करते थे और झगड़ों में पड़ जाते थे, अब अनुशासित, शांत और मिलनसार हैं। हालांकि यहां सबको खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, बच्चे और अधिकारी (पढ़ें गुरु) ऐसी टीमें बनाने पर फोकस करते हैं जो टूर्नामेंट में भाग ले सकें। उनका चयन फिटनेस टेस्ट और एक व्यवस्थित स्क्रीनिंग से होता है। अंततः ये घर उनकी क्षमताओं को प्रदर्शित करने की जगह बन गई है, जिन्हें अन्यथा अपराधी के रूप में जाना जाता था।

याद रखिए, हमारा प्रोत्साहन ही हमारी शुरुआत कराता है, हमारी आदतें ही हमें आगे ले जाती हैं, किसी गुरु या मार्गदर्शक के सामने खुद को अर्पित कर देने से हम भटकते नहीं और अंततः आत्म-अनुशासन हमें सफल बनाता है। अशफाक के लिए उसकी बहन उसका सहारा बनी, तो इन बच्चों के लिए अधिकारी उनके साथ डटकर खड़े रहे।

 …जब जिंदगी आपको चुनौतियां दे तो प्रेरणा, आदतों, खुद को समर्पित करने और आत्मानुशासन के बीच की कड़ियां जोड़कर हम जीवन में विजेता के तौर पर उभरते हैं।

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