शाम ढलते ही शुरू होता है खनन ?

हमारी नदियों का सीना छलनी …..
शाम ढलते ही शुरू होता है खनन… चप्पे-चप्पे पर हथियारबंद, सुरक्षा ऐसी कि बिना अनुमति कोई खदान तक नहीं पहुंच सकता

पिछली किस्त में आपने पढ़ा कि कैसे रेत माफिया ने अपना पूरा सिस्टम खड़ा कर दिया है। यह सिस्टम कैसे काम करता है, इसका पर्दाफाश करने के लिए ….. रिपोर्टर रात के अंधेरे में रेत खदान तक पहुंचे। यहां हाईवे से ही भास्कर टीम के पीछे माफिया के गुर्गे लगे रहे। कई घंटे हमें रोके रखा। हथियारबंद माफिया के बीच जान का खतरा था। आज पढ़िए, कैसे म​फिया ने बना रखा है यहां अभेद्य किला….।

शहडोल में पटवारी और एएसआई की खनन माफिया द्वारा हत्या करने के बाद से सरकार सख्ती दिखा रही है। 24 मई से 1253 प्रकरण दर्ज किए, पर रेत माफिया उनसे चार कदम आगे है। जिन खदानों की स्वीकृति मिल चुकी है, वहां से तो रेत निकाली ही जा रही है, नदी के अंदर भी जेसीबी और नाव चल रही हैं। अवैध खनन के ​लिए खदान तक पहुंचने वाले रास्तों पर कई किलोमीटर तक युवा हथियार और डंडों से लैस होकर मुस्तैद रहते हैं। भास्कर टीम ने रायसेन के मोतलसिर गांव स्थित नर्मदा किनारे करीब 3 किमी खनन की स्थिति देखी, जो बेहद भयावह थी। यहां बिना रॉयल्टी पर्ची के ही 3-3 हजार में ट्रैक्टरों में रेत भरी जा रही थी।

खदान के अंदर तीन घंटे फंसी ,,,,, टीम, 3 किमी पैदल चलकर बाहर निकले

समय : शाम 7:30 से रात 11 बजे तक, जगह: मोतलसिर

जो पहले से काम कर रहे, उन्हें ही खदान में एंट्री

नर्मदा किनारे इस गांव में माफिया का संगठित गिरोह काम करता है। खदान तक जाने के लिए भास्कर रिपोर्टर हेल्पर बनकर एक ट्रैक्टर ड्राइवर के साथ हाईवे से 12 किमी दूर खदान की तरफ निकल गया। पक्की, लेकिन बेहद संकरी सड़क पर जगह-जगह कुछ लड़के मिले, जो आने वालों पर नजर रखते हैं। करीब 5 किमी चलने के बाद कुछ युवकों ने ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रुकवा रखी हैं।

वे हर भरी ट्रॉली से सौ रुपए वसूलते हैं। इसी बीच विकास चौहान नामक युवक ने आकर ट्रॉलियों को रवाना करवाया। विकास का लोडर खदान पर चलता है, इसलिए ट्रैक्टरों को निकलवाने की जिम्मेदारी उस पर है। मोतलसिर घाट के पहले ड्राइवर ने ट्रैक्टर रोका और फोन कर खदान में जाने जाने की मंजूरी ली। घाट से पहले बने एक घर में खदान से रेत भरकर आ रहे ट्रैक्टरों से 3,000 रुपए वसूले जा रहे हैं। मकान के आसपास 50 से अधिक युवक लाठी-डंडे और हथियार लेकर खड़े हैं। सिर्फ उन्हीं ट्रैक्टरों की एंट्री है, जो पहले से लगे हैं। नदी किनारे पहुंचने के बाद तकरीबन एक किमी दूर घनघोर अंधेरे में रेत का ढेर लगा है। यहां अनजान लोगों की एंट्री रोकने के लिए लठैत तैनात हैं।

यहां जिस लोडर से रेत भरी जा रही थी, उसका पट्‌टा टूट गया है। करीब 200 ट्रैक्टर लाइन में हैं। अब इन्हें मजदूरों से भरवाया जा रहा है। भास्कर रिपोर्टर जिस ट्रैक्टर से पहुंचे वह भी लाइन में करीब 50वें नंबर पर है। ऐसे में हम तीन घंटे यहां फंसे रहे। शराब के नशे में धुत हथियारबंद युवक सभी की पहचान कर रहे थे, ऐसे में एक जरा सी गलती भारी पड़ सकती थी। रिपोर्टर की मदद के बाहर खदान के बाहर पुल पर मौजूद टीम ने गूगल अर्थ की मदद से रिपोर्टर को लोकेशन बताई, इसकी मदद से वह लठैतों से बचकर तीन किमी पैदल चलकर पुल तक पहुंचा।

जगह : डोंगरवाड़ा, नर्मदापुरम

अंधेरे में बेरोकटोक खनन

समय : रात 11:30 से रात 2 बजे तक। बुदनी से नर्मदापुरम को जोड़ने वाले पुल के नीचे से भी अवैध खनन चलता दिखा। भास्कर रिपोर्टर पैदल ही निर्माणाधीन पुल से होते हुए नर्मदा किनारे पहुंचे। करीब दो किमी दूर नदी किनारे डोंगरवाड़ा में जेसीबी चलती दिखीं। थोड़ा आगे ट्रैक्टर-ट्रॉलियां भरी जा रही हैं। भास्कर टीम रेत के टीलों की आड़ में छिपते हुए खदान से 200 मीटर तक पहुंच गई। एक ट्रैक्टर भरकर जा रहा है तो दूसरा खाली आता दिख रहा था। डोंगरवाड़ा में पूरी पूरी तरह प्रतिबंधित है, इसलिए दिन में खनन की मशीनें पुल के नीचे खड़ी कर दी जाती हैं।

पीएस बोले- 24 मई से 1253 केस दर्ज, ‌‌330 करोड़ की मशीनरी जब्त
^सीएम के निर्देश के बाद 24 और 28 मई को सभी कलेक्टर व माइनिंग अफसरों को अवैध उत्खनन पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाने को कहा था। तब से 1253 केस दर्ज किए गए हैं। इसमें लिप्त 21 पोकलेन, 480 डंपर समेत करीब 380 करोड़ रुपए है। करीब 19 करोड़ रुपए का अर्थदंड भी लगाया जा रहा है। हमने 90% तक रोक लगा दी है। जिन खदानों के ठेके हो चुके हैं और पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिली है, उनमें खनन से सरकार को रेवेन्यू का कोई नुकसान नहीं है। क्योंकि हमें तो ठेकेदार से उतना राजस्व मिलना ही है।
– निकुंज श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव माइनिंग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *