1 जुलाई से लागू नए कानूनों में कुछ सजाएं सख्त और कुछ पर विवाद

अब बेवफाई और झूठे वादे बर्दाश्त नहीं: 1 जुलाई से लागू नए कानूनों में कुछ सजाएं सख्त और कुछ पर विवाद
भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं, बच्चों से जुड़े अपराधों में पहले से ज्यादा सख्त सजा का प्रवधान है. इतना ही नहीं कई अपराधों के लिए अलग से भी कानून बनाया गया है.

भारत में 1 जुलाई से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं. इन तीन कानूनों में से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) ने 51 साल पुराने सीआरपीसी की जगह ले ली है. वहीं भारतीय न्याय अधिनियम (BNS) ने भारतीय दंड संहिता की और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) ने इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह ली है. 

इन तीन कानूनों में कई ऐसे प्रावधान हैं जिसके तहत महिलाओं, बच्चों और जानवरों से जुड़े अपराधों की सजा को पहले से ज्यादा सख्त कर दिया गया है. इसके अलावा भी कई बदलाव किए गए हैं. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि 1 जुलाई से लागू तीनों नए कानूनों में क्या खास है, किस तरह के सजाओं का प्रावधान है और किन सजाओं पर विवाद चल रहा है?

बेवफाई और झूठे वादे नहीं किए जाएंगे बर्दाश्त 

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने तीन नए कानून लागू होने के बाद बताया कि इन कानूनों में बदलते वक्त के अनुसार सुधार किया है. ऐसे में इस नए कानून के आने के बाद काफी कुछ बदल जाएगा. 

इस नए प्रावधान में एक नई धारा जोड़ी गई है. शादी, रोजगार और प्रमोशन का झूठा वादा कर किसी भी महिला के साथ यौन शोषण करने को अपराध की कैटेगरी में रखा गया है. ऐसे मामले में शामिल पाए जाने पर आरोपी को 10 साल तक की सजा मिल सकती है. 

इसके अलावा पहचान छुपा कर शादी करने पर भी 10 साल सजा का प्रावधान है. गर शादी के रिश्ते में 7 साल के भीतर महिला के जलने, चोट लगने व संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाने के मामले में मौत का कारण पति या ससुराल वालों से प्रताड़ित होना पाया जाता है तो इसके लिए 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस सजा को आजीवन कारावास तक भी बढ़ाई जा सकती है.

नाबालिग से गैंगरेप में फांसी की सजा 

नए कानून के तहत नाबालिग से गैंगरेप मामले में भारतीय न्याय संहिता की धारा 70(2) के तहत फांसी की सजा हो सकती है. धारा 70(1) के तहत किसी व्यस्क महिला के साथ गैंगरेप जैसे अपराध को अंजाम देने पर आरोप की 20 साल से उम्र कैद तक की सजा हो सकती है. 

नाबालिग पत्नी से जबरदस्ती रिश्ता बनाना रेप 

भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 के अनुसार कोई व्यक्ति अगर अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध बनाता है तो वो रेप में नहीं माना जाएगा, लेकिन अगर पत्नी की उम्र 18 साल से कम है तो ऐसी स्थिति में यह मामला रेप के दायरे में आएगा.

आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित किया गया 

पहली बार आतंकवादी गतिविधि को भारतीय न्याय संहिता के तहत पेश किया गया था. नए कानून में अब आर्थिक सुरक्षा को खतरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत आएगा.

इसके अलावा तस्करी या नकली नोटों का उत्पादन करके देश की वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के अंतर्गत आएगा. भारत में रक्षा या किसी सरकारी उद्देश्य के लिए गए संपत्ति को विदेश में नष्ट करना भी आतंकवादी गतिविधि का ही हिस्सा होगा.

देश में सरकार को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेना या किसी भी व्यक्ति का अपहरण करना भी आतंकवाद गतिविधि ही माना जाएगा.

इन अपराधों के लिए भी अलग से कानून 

भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग को लेकर भी अलग से कानून बनाया गया है. भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(2) अगर पांच या उससे ज्यादा लोगों का एक समूह जाति, धर्म, भाषा, लिंग, नस्ल और आस्था जैसी वजहों के कारण किसी व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या करता है तो ऐसे मामले में उस समूह में शामिल हर व्यक्ति को फांसी की सजा होगी. इस मामले में उम्र कैद और जुर्माने का भी प्रावधान है. 

बता दें कि पहले देश में मॉब लिंचिंग को लेकर अलग से कोई कानून नहीं था. पहले मॉब लिंचिंग के दोषियों पर IPC की धारा 302 के तहत हत्या का मामला भी दर्ज किया जाता था.

इसके अलावा ऑर्गनाइज्ड क्राइम के लिए भी अलग से कानून बना है. इसमें समूह में डकौती, चोरी, कब्जा, तस्करी, साइबर क्राइम शामिल है. वहीं आतंकवादी को क्रिमिनस कानून में शामिल किया गया है.

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के बड़े अपडेट

  • पुलिस स्टेशन जाए बगैर कर सकेंगे FIR: धारा 173 के मुताबिक अब घर बैठे आनलाइन FIR दर्ज कराई जा सकती है.
  • फोन पर मिलेगी केस की जानकारी: धारा 193 के मुताबिक, केस में हो रही हर अपडेट की जानकारी आपको फोन पर मिल पाएगी.
  • अरेस्ट होने पर देनी होगी जानकारी: सेक्शन 36 के अनुसार अरेस्ट होने पर किसी एक व्यक्ति को गिरफ्तारी की जानकारी दे पाएंगे. 
  • गंभीर मामलों में फॉरेन्सिक जांच अनिवार्य: धारा 176 में गंभीर मामले में फॉरेन्सिक जांच को अनिवार्य किया गया है. 
  • महिला बच्चों के मामले में जल्द कार्रवाई: धारा 193 के मुताबिक महिलाओं और बच्चों के मामलों को 2 महीनें में खत्म करना है. 

भारतीय न्याय संहिता से क्या हटा

अडल्ट्री क्रिमिनल कानून में शामिल नहीं. यानी अब इसे अपराध नहीं माना जा सकता. इसके अलावा बच्चों से जुड़े ज्यादातर अपराधों में लैंगिक असमानता को हटा दिया गया है.

नए कानून के तहत अब जबरन अप्राकृतिक संबंध बनाना भी गैर कानूनी नहीं है. इसके अलावा आईपीसी की धारा 310 (ठगों के खिलाफ कानून) को खत्म कर दूसरी धाराओं में शामिल किया गया.

नए क्रिमिनल कानूनों में क्या हो सकती मुश्किलें?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने इस सवाल के जवाब में बताया कि 1 जुलाई से पहले यानी 30 जून तक जितने भी मामले दर्ज किए गए हैं उनका ट्रायल और अपील पुराने कानून के अनुसार किया जाएगा. वर्तमान में भारत के सभी अदालतों को मिला दें तो 5.13 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं. इन 5.13 करोड़ में से लगभग 3.59 करोड़ मामले 69.9% क्रिमिनल मामलों से जुड़े हैं. ऐसे में इन मामलों का निपटारा पुराने कानून के तहत ही किया जाएगा.

ऐसे में जजों के पास सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि पहले पुराने मुकदमों में फैसला करें और करोड़ों मामले पेंडिंग होने के कारण अब जजों को एक ही विषय पर तरह के कानून में महारथ हासिल करनी पड़ेगी, ताकी पुराने नए मुकदमों में कन्फ्यूजन न हो.

वकील विराग गुप्ता ने कहा कि इस नए कानून से पुलिस को भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में समझिये की अब एक ही मामले पर उन्हें दो अलग अलग कानूनों का याद रखने पड़ेंगे. पुराने केस में कोर्ट में पैरवी के लिए उन्हें पुराने कानून की जानकारी चाहिए होगी, जबकि नए मुकदमों की जांच नए कानून के अनुसार होगी.

वकीलों का भी बढ़ेगा कन्फ्यूजन 

वकील विराग गुप्ता ने कहा कि नई धाराएं और नए कानून के बाद अब वकीलों को दो कानूनों की जानकारी रखनी पड़ेगी. नए कानून में मुकदमों के जल्द फैसले का प्रावधान तो है, लेकिन अभी तक पुराने मुकदमों का निपटारा भी नहीं हुआ है ऐसे में आने वाले समय में वकीलों और जजों पर कई तरह के दबाव बढ़ेंगे.

नए कानूनों पर विवाद क्यों 

भले ही देश भर में इन तीन नए क्रिमिनल लॉ को लागू कर दिया गया है लेकिन तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में विपक्ष इन कानूनों को लेकर विरोध किया जा रहा है. 

उनका कहना है कि इस कानून को आनन फानन में विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति में पारित कर दिया गया गया था. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तमिलनाडु के एम के स्टालिन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कानूनों को लागू न करने की मांग की थी.

तमिलनाडु और कर्नाटक ने इस क़ानून के नाम पर भी आपत्ति जताई थी. उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में कहा गया है कि संसद में पेश किए जाने वाले कानून अंग्रेज़ी में होने चाहिए. 

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