अभय मुद्रा पर क्यों छिड़ी है बहस?
Fact-Check: कितना सही है राहुल गांधी का दावा- क्या बौद्ध, जैन और ईसाई धर्म में भी होती है अभय मुद्रा?
संसद से उठा ‘अभय मुद्रा का तूफान’ अभी तक थमा नहीं है. कांग्रेस चट्टान की तरह अपने नेता राहुल गांधी के पीछे खड़ी हुई है वहीं सत्ता पक्ष लगातार राहुल गांधी को इस मुद्दे पर घेर रहा है. क्या सच में अभय मुद्रा को हर धर्म से जोड़कर बताना राहुल का एक राजनीतिक स्टंट था या फिर इतिहास में इसके कुछ मजबूत प्रमाण भी हैं. पढ़ें, स्पेशल रिपोर्ट
शायद ही किसी ने सोचा होगा कि प्राचीन काल के दो शब्द लोकसभा की बहस का रुख ही मोड़ देंगे. संसद में उन्हें लेकर जोरदार हंगामा हो जाएगा. 1 जुलाई को ऐसा ही हुआ जब लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने बार-बार अभय मुद्रा शब्द का इस्तेमाल किया. अपनी बात की पुष्टि के लिए उन्होंने अलग-अलग धर्मों के महापुरुषों की अभय मुद्रा वाली तस्वीरें भी दिखाईं. इसे लेकर संसद में जोरदार बहस हुई.
मुद्रा क्या है?
मुद्रा हाथ उठाकर किसी खास तरह का संदेश देने का एक कलात्मक प्रतिरूपण है. अधिकतर मुद्राएं दरअसल उंगलियों की स्थितियां हैं. इनका अभिप्राय दैवीय शक्ति की अनुभूति और किसी एक जगह ध्यान केंद्रित करने के लिए होता है. सारे हिंदू देवता किसी न किसी तरह की मुद्रा दर्शाते हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्रा पद्म मुद्रा, गदा मुद्रा और अभय मुद्रा है. भगवान नटराज सहित अधिकतर हिंदू देवता अभय मुद्रा में नजर आते हैं जिसका अर्थ होता है डरो मत, मैं आपकी रक्षा करूंगा.
बौद्ध धर्म में अभय मुद्रा
गुप्त काल की भगवान बुद्ध की ऐसी कई मूर्तियां और चित्र देखने को मिल जाते हैं जिसमें वो अपना एक हाथ ऊपर उठाए हुए अभय मुद्रा में हैं. इसमें उनकी दो अवस्थाएं गौर करने लायक हैं. एक- जिसमें वो खड़े हुए बुद्ध या वॉकिंग बुद्ध की अवस्था में हैं. दूसरी में- बुद्ध शाक्यमुनि रूप में हैं. द मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट, न्यूयॉर्क में गुप्त काल की उनकी एक मूर्ति रखी हुई है जिसमें वो खड़े हुए हैं और अभय मुद्रा में हैं.
शिव यानी नृत्य के देवता नटराज
तमिलनाडु की 11वीं सदी की इस चोल काल की नटराज की मूर्ति देखिए. शिव की नटराज छवि उन्हें ब्रह्मांड के निर्माता, संरक्षक और विध्वंसक की भूमिकाओं से जोड़ती है. नटराज के दाहिने हाथ में डमरू (जो सृष्टि की पहली आवाज़ बनती है) है, ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि (वह आग जो ब्रह्मांड को नष्ट कर देगी) है और निचले दाहिने हाथ से वह अभय मुद्रा (भय को दूर करने वाला इशारा) में हैं. इन प्रतीकों का अर्थ है शिव में विश्वास के माध्यम से भक्त मोक्ष हासिल कर सकते हैं.
ईसाइयों में अभय मुद्रा
अभय मुद्रा के प्रमाण ईसाई धर्म में भी देखने को मिलते हैं. ईसाई संत सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी का जन्म 1118 में इटली में हुआ. ईसाई समाज में उनका शुमार एक महान संत के रूप में होता है. इटली के पेसिया में मौजूद चर्च सेन फ्रांसिस्को में लकड़ी के ऊपर उनकी एक तस्वीर उकेरी गई है, जिसमें वो एक हाथ ऊपर उठाए हुए हैं अभय मुद्रा में. इटली के गोथिक आर्टिस्ट बोनावेंतुरा बर्लिंगेरी ने ये तस्वीर बनाई है. दरअसल ये तस्वीर बेजेंटाइन स्टाइल में बनाई गई है.
चार भुजाओं वाली भगवान महावीर की यक्षिणी
चार भुजाओं वाली भगवान महावीर की यक्षिणी की मूर्ति बदामी (कर्नाटक के बगलकोट जिला) की जैन गुफाओं से मिली है. इसके ऊपरी दाएं हाथ में कोई हथियार है जबकि निचला दायां हाथ अभय मुद्रा में है. बाएं हाथ में एक और हथियार है जबकि निचले बाएं हाथ में वह एक पात्र थामे हुए है.
सिख और इस्लाम- इन दोनों धर्मों में ऐसी कोई प्रमाणिक तस्वीर तो नहीं है लेकिन अभय मुद्रा का जो संदेश है उससे जुड़ी कई बातें जरूर मौजूद हैं. इस्लामिक विद्वान इख्तियार जाफरी कहते हैं कि न डरने को लेकर काफी कुछ कहा गया है. मसलन कुरान की सूरत नंबर 41, आयत नंबर 30 पर लिखी इस पंक्ति को देखें- ‘ला तखा़फ़ू वला तहज़नू’ इसका अर्थ है डरो मत और अफसोस भी ना करो.
इसी तरह सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब का पहला मंत्र है, इक ओंकार सतनाम करता पुरख निर्भउ निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सेभ गुर प्रसाद ॥. इसका अर्थ है कि “वह केवल एक परमेश्वर है, जिसका नाम सत्य है. वह सृष्टा है, निडर है, बिना किसी द्वेष भाव के है. वह कालातीत (समय से परे) है, उसका रूप अविनाशी है. उसने स्वयं ही जन्म लिया है और गुरू की कृपा से प्राप्त होता है.” यानी सिख धर्म भी निडरता और अभय की बात कहता है.
संदर्भ-
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ वेस्टर्न इंडिया, रिपोर्ट्स, ओल्ड सीरीज (वॉल्यूम 9-10)
एंसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदू गॉड्स और गॉडेसेस
जैन रूप मंदना, वॉल्यूम 1, उमाकांत प्रेमानंद शाह, 1987