मप्र पर पहले ही भारी कर्ज, इसे चुकाने के लिए और कर्ज ले रहा ?
विधानसभा में रिपोर्ट पेश…:मप्र पर पहले ही भारी कर्ज, इसे चुकाने के लिए और कर्ज ले रहा
मध्य प्रदेश सरकार का वित्तीय प्रबंधन लगातार बिगड़ रहा है। शुक्रवार को विधानसभा में पेश की गई लेखा महापरीक्षक (कैग) की वित्त पर लेखा प्रतिवेदन रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मप्र सरकार को पुराना कर्ज चुकाने के लिए भी नया कर्ज लेना पड़ रहा है। पिछले पांच साल में हर साल लिए गए कर्ज में से औसतन 32.63% राशि का इस्तेमाल पुराना कर्ज चुकाने (रीपेमेंट) में किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आदर्श रूप में कर्ज की राशि का उपयोग कैपिटल क्रिएशन और विकास के कामों में किया जाना चाहिए। पुराने बकाया कर्ज और उसके ब्याज भुगतान के लिए नए कर्ज का उपयोग टिकाऊ व्यवस्था के लिए ठीक नहीं हैं।
2022-23 में बिना बजट प्रावधान के खर्च कर डाले 2.37 करोड़ : संविधान का अनुच्छेद 204 के मुताबिक विनियोग (एप्रोपिएशन) के बिना राज्य की संचित निधि से कोई भी राशि खर्च नहीं की जा सकती। राज्य की आकस्मिकता निधि से भी रीएप्रोपिएशन या एडवांस या अतिरिक्त राशि प्राप्त करने के अलावा भी कोई व्यय बिना योजना या सेवा के खर्च नहीं किया जा सकता। लेकिन ऑडिट में पाया गया है कि वर्ष 2022-23 में 8 बार बिना बजट प्रावधान के 2.37 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। इनमें तीन बार गृह विभाग ने एक बार, पीएचई और वित्त, जल संसाधन और लोक ऋण के मदों से यह राशि खर्च की गई।
रीवा कलेक्टर ने नियम विरुद्ध राशि बैंक अकाउंट में रखी
1. कैग ने बतौर सैंपल रीवा कलेक्टर के अभिलेखों की जांच की, जिसमें पाया गया कि यहां नियम विरुद्ध प्रभारी अधिकारी और नाजिर के नाम से जिला सहकारी बैंक में एक खाता चल रहा है। इसमें 2018 से 2023 के बीच 6.21 करोड़ की राशि निकाली गई। 31 मार्च 2023 तक खाते में 59.79 लाख दिखाए गए, जबकि रोकड़ बही में केवल 36.69 लाख दर्ज थे। यानी 23.10 लाख का अंतर था, जिसका मिलान ही नहीं किया गया। 1997 से चल रहे इस खाते को 2009 में ही बंद करने के निर्देश जारी कर दिए गए थे, पर यह चल रहा है।
2. ग्वालियर कलेक्टर ने भी ओहदपुर जिला न्यायालय के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण 11.88 करोड़ का मुआवजा बांटने और 29.71 लाख की प्रशासनिक लागत की राशि प्राप्त की, पर इसे राज्य की संचित निधि में जमा नहीं किया। 28 जनवरी 2020 की स्थिति में ग्वालियर कलेक्टर के नाम से सीएम राहत कोष का एक बैंक खाता चालू पाया गया, जिसमें 31 मार्च 2023 की स्थिति में 8.47 करोड़ रु. जमा थे। इस खाते को बंद नहीं किया और ना ही राशि को संचित खाते में ट्रांसफर किया। इससे राजस्व में कुल 29.76 लाख का नुकसान हुआ।

कोविड के दौरान 2020-21 में तो राजस्व व्यय के लिए भी कर्ज की राशि का इस्तेमाल करने की नौबत आ गई थी। तब 20,899.89 करोड़ की कर्ज राशि राजस्व व्यय (रेवेन्यू एक्सपेंडिचर) में उपयोग की गई।
सलाह- नया कर्ज लेने से पहले मौजूदा राशि का उपयोग करें
- रिपोर्ट में अनुशंसा की गई है कि नया कर्ज लेने से पहले राज्य शासन को जरूरत के आधार पर लोन लेने और मौजूदा नगदी शेष का उपयोग करने पर विचार करना चाहिए।
- घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रमों के कामकाज की समीक्षा करें और सुधार की रणनीति बनानी चाहिए।
- राजस्व बढ़ाने के नए उपायों पर विचार करना चाहिए।
बजट पर भी सवाल : वित्त वर्ष 2022-23 में आवंटित धनराशि और खर्च के बीच 50 हजार करोड़ का अंतर घटिया बजट प्रबंधन
कैग ने वित्त वर्ष 2022-23 की अनुदान मांगों (टोटल ग्रांट) और विनियोग (एप्रोप्रिएशन एंड एक्सपेंडिचर) के बीच भारी अंतर और बचत को घटिया बजट प्रबंधन का नमूना बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 के दौरान 3,21,658.21 करोड़ की कुल अनुदान मांगें और विनियोगों के बीच 50543.75 करोड़ की बचत हुई थी। सामान्य भाषा में अनुदान को किसी सरकारी विभाग को आवंटित की गई धनराशि कह सकते हैं और विनियोग को सामान्य भाषा में वास्तविक खर्च कह सकते हैं। इससे पता चलता है कि कई अनुदान मांगें काल्पनिक या बोगस थीं।
बजट की प्लानिंग ठीक से नहीं की गई। इस कारण जो धनराशि जरूरी विकास कार्यों पर खर्च किया जा सकता था, उसका उपयोग नहीं हुआ और लैप्स हो गया। कैग ने बजट तैयार करने वाले अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी ठीक से सिखाने की सिफारिश की है। बजट को बचत और अधिक व्यय दोनों को कम करते हुए वास्तविक होना चाहिए, इसके लिए मॉनिटरिंग और कंट्रोलिंग सिस्टम ठीक करने की जरूरत बताई है।
रिपोर्ट में उठाए ये 3 गंभीर सवाल
वर्ष 2022-23 में 53 अनुदानों और 7 विनियोगों में ही 42421.41 करोड़ का अनुपूरक (सप्लीमेंट्री) प्रावधान कर दिए गए। जबकि 28 अनुदानों और 4 विनियोगों में वास्तविक जरूरत 24448.10 करोड़ रुपए की थी। इस कारण 17973.31 करोड़ का अधिक सप्लीमेंट्री प्रावधान कर दिया गया।
2381.53 करोड़ के खर्च को राजस्व व्यय में दर्ज करने के बजाए पूंजीगत व्यय (केपिटल एक्सपेंडिचर) में दर्ज कर दिया। इससे राजस्व व्यय कम करके दिखाया और पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर दिखा दिया। वर्ष 2011-12 से वर्ष 2020-21 तक कुल 1678 करोड़ की राशि का अधिक खर्च विधायी अनुमोदन लिए बिना ही कर दिया गया। जिसे मप्र विधानसभा में अभी तक नियमित नहीं किया गया है।