जम्मू के हिंदू गांव आतंकियों के निशाने पर…. 3 साल में 42 जवान शहीद !
जम्मू के हिंदू गांव आतंकियों के निशाने पर
3 साल में 42 जवान शहीद, कश्मीर में क्या है लश्कर-जैश की नई स्ट्रैटजी
कठुआ से करीब 150 किमी दूर बिलावर के माशेडी गांव का दुर्गम पहाड़ी इलाका। किंडली-मल्हार रोड पर पहाड़ से ही लगी एक परचून की दुकान पर 70 साल के पूरनचंद कस्टमर्स को सामान दे रहे थे। तभी सामने से आर्मी के दो ट्रक गुजरे। यहां आर्मी के ट्रकों की आवाजाही सामान्य बात है। ऐसा हर दूसरे-तीसरे दिन होता ही है।
हालांकि, उस दिन ऐसा नहीं था। ट्रक गुजरने के चंद सेकेंड बाद ही जोर की आवाज आई और फिर एक धमाका हुआ। ये आवाज फायरिंग और ग्रेनेड ब्लास्ट की थी। घात लगाकर बैठे आतंकियों ने आर्मी ट्रक पर हमला किया था। हथियारों से लैस आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की। ट्रक में सवार 22 गढ़वाल राइफल्स के 5 जवान शहीद हो गए और पांच घायल हुए।
ये कोई अकेली आतंकी घटना नहीं है। पिछले एक महीने में जम्मू में लगातार 6 से 7 आतंकी हमले हुए। वहीं, 2021 के बाद से अकेले जम्मू में 21 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। इन 3 सालों में 42 जवान शहीद हुए और 23 नागरिकों की भी मौत हुई। पिछले कुछ सालों में आतंक का शिफ्ट कश्मीर से जम्मू रीजन में हो रहा है और निशाने पर हिंदू गांव हैं।
आखिर इस शिफ्ट की वजह क्या है? इन हमलों के पीछे किन आतंकी संगठनों का हाथ है? हमलों का पैटर्न और मौजूदा टाइमिंग क्यों अहम है? सिक्योरिटी फोर्सेज को अब कैसे अपनी रणनीति बदलनी होगी? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमने जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP, सेना के रिटायर्ड अधिकारी और अलग-अलग सिक्योरिटी फोर्सेज के अधिकारियों से बात की।
सबसे पहले कठुआ आतंकी हमले की बात…
चश्मदीद बोले: जम्मू में ऐसे आतंकी हमले पहले कभी नहीं देखे
कठुआ में जिस जगह पर ये आतंकी घटना हुई, वो बाडनोटा गांव के करीब है। ये हिंदू बहुल गांव है। जम्मू के कठुआ, सांबा और डोडा जैसे जिलों में आमतौर पर हिंदू मुस्लिम आबादी 50-50 होती है। पहाड़ों पर भी दोनों कम्युनिटी की मिली-जुली आबादी रहती है। आतंकियों ने सेना पर घात लगाने के लिए हिंदू गांव को ही चुना।
सिक्योरिटी फोर्सेज में मौजूद भास्कर के सोर्सेज बताते हैं कि आतंकियों ने जानबूझकर ये लोकेशन चुनी, ताकि आस-पास के गांव वालों पर शक ना हो। जिस जगह पर ट्रक रोके गए, वहां आस-पास घना जंगल था।
हमले के चश्मदीद परचून की दुकान चलाने वाले पूरनचंद बताते हैं, ‘जब आर्मी के ट्रक सामने से गुजरे तो दुकान में मेरे साथ 4-5 लोग और थे। गाड़ी थोड़ी दूर ही गई थी कि अजीब सी आवाजें आने लगीं। पहले हमें लगा कि गांव के बच्चे शोर कर रहे होंगे। चंद सेकेंड बाद धमाके की आवाज आई और फायरिंग शुरू हो गई।’
‘सेना के दो ट्रकों में जवान बैठे थे। पहला ट्रक दूसरे से करीब 50 मीटर आगे था। ट्रकों पर ग्रेनेड दागे गए और अंधाधुंध फायरिंग की गई।’
पूरनचंद आगे बताते हैं, ‘दोनों तरफ से अंधाधुंध फायरिंग के बीच ही आर्मी का एक जवान लड़खड़ाते हुए दुकान के सामने आकर खड़ा हो गया। उसके पैर में चोट लगी थी और बहुत खून बह रहा था। हमारे पास ज्यादा कुछ तो नहीं था। हमने जवान के पैर पर कपड़े को ही पट्टी की तरह बांध दिया। फिर उसे पानी पिलाया।’
‘जब फायरिंग कम हुई तब हमने घायल जवानों की मदद की। घटनास्थल पर कांच और लोहे के टुकड़े बिखरे पड़े थे।’
हमला करने वाले कौन, किस आतंकी संगठन से है कनेक्शन
जम्मू में पिछले एक महीने में छोटे-बड़े 7 हमले हो चुके हैं। हाल में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर (KT), द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) जैसे नए नाम वाले गुटों ने ली है। जम्मू-कश्मीर में पिछले 20 साल में तीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM), लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिजबुल मुजाहिद्दीन (HM) सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। 2019 के बाद आतंकी गुटों ने प्रॉक्सी नाम रखने शुरू किए।
सिक्योरिटी फोर्सेज के अधिकारी बताते हैं कि आतंकी गुटों ने ऐसा तीन वजहों से किया। 1. नए नामों के जरिए वो ये साबित करना चाहते हैं कि कश्मीर में मिलिटेंसी की नई लहर आई है। 2. सेक्युलर दिखने वाले नाम रखे गए, ताकि ये धर्म के आधार पर आए युवाओं के संगठन न लगें। 3. ऐसे नामों से लोकल कनेक्ट दिखेगा और लगेगा कि ये लोकल युवाओं वाला मिलिटेंट ग्रुप है।
जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व DGP एसपी वैद कहते हैं, ‘पाकिस्तान की डीप स्टेट ISI दुनिया के सामने ये तस्वीर दिखाना चाहती है कि कश्मीर के लोकल लोग आजादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन ये बिल्कुल गलत है। जम्मू में जो आतंकी गतिविधियां हो रही हैं, उसमें जम्मू के स्थानीय आतंकी नहीं हैं, इनमें से ज्यादातर फॉरेन टेररिस्ट हैं।’
’90 के दशक में जम्मू में मिलिटेंसी के वक्त यहां के कई लोकल लोग पाकिस्तान ट्रेनिंग करने गए थे। बाद में वो लौटे नहीं और वहीं बस गए। ऐसे लोगों का जम्मू में अब भी नेटवर्क है। ऐसे लोगों की ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW) नेटवर्क बनाने में मदद ली जा रही है। लोकल लोगों की मदद के बिना जम्मू में ये आतंकी हमले संभव ही नहीं हैं।’
पिछले 5 सालों से ये आतंकी ग्रुप एक्टिव
मार्च, 2023 में राज्यसभा में सवालों का जवाब देते हुए सरकार ने UAPA के तहत बैन किए गए इन आतंकी संगठनों के नाम बताए और इससे जुड़ी जानकारी दी।
1. द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF): ये 2019 में अस्तित्व में आया। भारत सरकार का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये आतंकी संगठन सुरक्षाबलों के जवानों की हत्या, निर्दोष नागरिकों की हत्या, आतंकी गतिविधियों के लिए सीमा पार से ड्रग्स और हथियार की तस्करी में शामिल रहा है। भारत सरकार ने इस गुट को UAPA के तहत बैन किया है।
2. पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF): ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये भी 2019 में बना था। ये कश्मीर में युवाओं को आतंकी गुट में रिक्रूट करने और हथियारों की ट्रेनिंग देने का काम करता है। ये सुरक्षाबलों, राजनेताओं और लोगों को धमकियां जारी करता है। सरकार ने इसे UAPA के तहत बैन कर रखा है।
3. जम्मू एंड कश्मीर गजनवी फोर्स (JKGF): ये गुट 2020 में बना। इसका काम अलग-अलग आतंकी संगठनों जैसे-लश्कर और जैश के कैडर का इस्तेमाल कर टेरर एक्टिविटीज को अंजाम देना है। भारत सरकार ने इस गुट को भी UAPA के तहत बैन किया है।
4. कश्मीर टाइगर्स (KT): कश्मीर टाइगर्स भी जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी टेरर ग्रुप है। कश्मीर टाइगर्स ने ही कठुआ में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है।
कश्मीर के बजाय अब जम्मू में क्यों बढ़ रहे आतंकी हमले?
जम्मू-कश्मीर में 15 कॉर्प के पूर्व कमांडर और सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन बताते हैं, ‘आतंकवाद पानी की तरह होता है। ये वहां बहता है, जहां अड़चन कम होती है। कई सालों से आतंकी गतिविधियों का फोकस कश्मीर में था, लेकिन 2019 में आर्टिकल-370 को हटाए जाने के बाद वहां सुरक्षाबलों की इंटेलिजेंस नेटवर्किंग पहले से मजबूत हुई है।’
‘टेरर मॉड्यूल खत्म होने की वजह से कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देना मुश्किल हो चुका था। पाकिस्तान के डीप स्टेट की पकड़ से अलगाववाद का गढ़ रहा कश्मीर छूटता जा रहा था, इसलिए ये शिफ्ट हुआ।’
सेना में अधिकारी रहते हुए जम्मू में अपनी सेवाएं देने वाले पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं, ‘पिछले 30-35 सालों में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में जो भी निवेश किया है, उसका असर खत्म होता जा रहा था। अगर आतंकी संगठन अपनी रणनीति नहीं बदलते, तो ये असर पूरी तरह खत्म हो जाता।’
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व DGP एसपी वैद कहते हैं, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की सख्ती और मजबूत इंटेलिजेंस नेटवर्क की वजह से अब पुलवामा जैसे बड़े आतंकी हमले कर पाना मुमकिन नहीं रहा। ज्यादा सिक्योरिटी फोर्सेज की तैनाती घाटी और चीन बॉर्डर पर है। जम्मू पिछले 20 साल से काफी शांत है, इसलिए यहां सिक्योरिटी फोर्सेज की तैनाती कम है। आतंकियों ने इसी का फायदा उठाया है।’
‘लद्दाख में चीन के साथ आईबॉल कॉन्टैक्ट है और कश्मीर में भी जबरदस्त सुरक्षा है। ऐसे में जम्मू क्षेत्र में आतंकी घटनाओं को अंजाम देना आसान है, इसलिए इसे टारगेट किया जा रहा है।’
आतंकी हमलों की टाइमिंग भी खास
आतंकी हमले के लिए किसी खास वक्त को चुनने की बात पर एसपी वैद कहते हैं, ‘रियासी में यात्री बस पर जो हमला हुआ, वो ठीक उस दिन हुआ जब PM नरेंद्र मोदी दिल्ली में शपथ ले रहे थे। कठुआ हमला भी 8 जुलाई को हुआ। इसी दिन 2016 में सुरक्षाबलों ने एनकाउंटर में आतंकी बुरहान वानी को मार गिराया था।’
‘पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिफ मुनीर के एक्सटेंशन की भी बातें चल रही हैं, आतंकी हमलों की टाइमिंग में ये भी अहम फैक्टर हैं।’
एसपी वैद आगे कहते हैं, ‘जम्मू-कश्मीर में इस बीच आतंकी हमले बढ़ने की एक वजह ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने यहां 30 सितंबर तक चुनाव कराए जाने की बात कही है। ऐसे में आतंकी गुट चुनाव प्रभावित करने की रणनीति के तहत भी ऐसा कर रहे हैं।’
आतंकी हमलों का पैटर्न क्या है?
जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व DGP एसपी वैद और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी आतंकी हमलों का पैटर्न बताते हुए कहते हैं, ‘हमलों की शुरुआत 2021 में जम्मू के नॉर्थ में पीर पंजाल के पहाड़ी जिले पुंछ और राजौरी से हुई। इसका भी एक पैटर्न था। सीमा पार से घुसपैठ कर आए आतंकियों ने पहले घात लगाकर सिक्योरिटी फोर्सेज पर हमला किया। फिर आतंकी घने जंगलों की तरफ भाग गए।’
‘जब सेना ने जंगलों में सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया तो गुरिल्ला टैक्टिक्स से घात लगाकर आर्मी को फिर निशाना बनाया। इसके बाद दो-तीन बार इसी तरह से सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमले किए गए। फिर जम्मू में शिवखोड़ी की यात्री बस पर हमला किया गया। इसमें आम लोग और खास तौर पर हिंदू तीर्थ यात्रियों को टारगेट किया गया।’
वे आगे बताते हैं, ‘आतंकियों का एक बड़ा ग्रुप इंटरनेशनल बॉर्डर से घुसपैठ कर जम्मू में दाखिल हुआ। कठुआ में दो आतंकी किसी के घर पानी मांगने गए थे। इसके बाद परिवार ने पुलिस को खबर दे दी और एनकाउंटर में दोनों को मार गिराया गया। वहीं, घुसपैठ कर आया आतंकियों का एक ग्रुप उधमपुर की तरफ वसंतगढ़ इलाके में पहुंचा, वहां VDG से उनकी मुठभेड़ हुई।’
‘इसके बाद यही ग्रुप डोडा की तरफ बढ़ा। भदरवा से ये ग्रुप दो हिस्सों में बंट गया। एक हिस्सा गंडोह गया, जबकि दूसरा ग्रुप कठुआ की तरफ गया। ये वही ग्रुप है जिसने माशेडी में आर्मी ट्रक पर हमला किया, जिसमें 5 जवान शहीद हुए।’
वैद कहते हैं, ‘जम्मू के शांतिपूर्ण इलाकों में इस तरह के आतंकी हमले कर ये गुट लोगों में डर पैदा करना चाहते हैं। ये मैसेज देना चाहते हैं कि जो इलाके 90 के दशक की मिलिटेंसी में भी शांत थे, अब वहां भी आतंकी घटनाएं हो रही हैं।’
जम्मू-कश्मीर के DGP आरआर स्वैन ने कहा- कुछ विदेशी आतंकी घुसपैठ करने में कामयाब हुए हैं। सुरक्षाबलों ने इन आतंकियों को मारने के लिए एंटी-टेरर ऑपरेशन की रफ्तार तेज कर दी है।’
सीनियर ऑफिशियल्स के मुताबिक, पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर आए आतंकी घात लगाकर हमला कर रहे हैं। लोकेशन चुनने के लिए ट्रैकर्स से इस्तेमाल किए जाने वाले मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
पिछले साल मई में सरकार ने 14 मैसेजिंग ऐप बैन किए थे, जिनका इस्तेमाल आतंकी गुट अपने ओवर ग्राउंड वर्कर्स से बातचीत में कर रहे थे। हाल में जो एनकाउंटर हुए, उसमें चाइनीज टेलीकॉम डिवाइस भी जब्त की गई है। ये हैंडसेट GSS और CDMA जैसे परंपरागत मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम की बजाय रेडियो वेव ट्रांसमिशन पर बेस्ड हैं, जो सीधे पाकिस्तान और चीन के सैटेलाइट से कनेक्टेड रहता है।