कांवड़ यात्रा पर फरमान से ऐसा लग रहा जैसे एक वर्ग को संदेश !

कांवड़ यात्रा पर फरमान से ऐसा लग रहा जैसे एक वर्ग को संदेश, ‘तुम इस देश के नहीं हो’

एक खेमा दूसरे को कह रहा है कि तुम मुस्लिम तुष्टिकरण करते हो, इन शब्दों का खुलेआम प्रयोग किया जाता है. एक वर्ग जो अपने आपको प्रो हिन्दू कहता है, वो मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाता है. जो मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपित लोग हैं, वो कहते हैं कि आप अतिवादी हिन्दुत्व की बात कर रहे हैं.

मैंने इन दिनों दोनों ही खेमों के अलग-अलग विचार भी सुने और उसके आधार पर एक मंतव्य बनाने का प्रयास किया. इसके बाद मुझे ये लगा कि निश्चित रुप से भारतीय जनता पार्टी ने अपने दोनों कार्यकालों में कई नए शब्द गढ़े, जिनमें एक शब्द है नैरेटिव.

बीजेपी ने गढ़े नए शब्द

बीजेपी ने नैरेटिव शब्द गढ़ा और उसका काफी प्रचार प्रसार किया. अब उन्हें जो कुछ भी कहना है, उन्हें वे नैरेटिव बना देते हैं. अगर उस नैरेटिव शब्द का प्रयोग किया जाए, तो एक नैरेटिव लंबे समय से बनाया जा रहा है, जिसमें- थूक जेहाद आ गया, पेशाब आ गया. अतिवादी हिन्दुत्व लोग अजीब शब्द गढ़ रहे हैं कि आपके खाने में वो पेशाब मिला देते हैं. आपके खाने में थूक मिला देते हैं.

जाहिर सी बात है कि ऐसी बातें किसी को दो-चार बार बोली जाए तो वो इसे सुनकर सिहर उठेगा. ये माइंड ट्रेनिंग की बात है. ये पॉलिटिकल एजेंडा है कि जो मुस्लिम वर्ग है, उसको एक तरह से कट-ऑफ कर दो. उसको छोड़कर बाकियों को एकीकृत कर लो, ताकि तुम्हारी विजय यात्रा अक्षुण्ण रहे.

इसके लिए रोज नए उपक्रम लाए जाते हैं. मेरी निगाह में ये पूरी कहानी जो चल रही है, वो उसी श्रृंखला का एक और अगला कदम है. मैं खुद 56 साल को हो चुका हूं, लेकिन 7-8 साल में पहली बार देख रहा हूं कि एक वर्ग विशेष के लिए (वर्ग विशेष से मतलब मुस्लिम से है) इस देश में अशोभनीय, अनुचित और भ्रांतिपूर्ण व अपमानजनक बातें कही जा रही है. प्रोत्साहित की जा रही है, सम्मानित की जा रही है.

ऐसा लग रहा है जैसे एक वर्ग को ये स्पष्ट तौर पर संकेत देने की कोशिश की जा रही है कि तुम इस देश के नहीं हो. भारत का संविधान और आईपीसी और अब जो नया कानून आया है- सुरक्षा संहिता, उसमें तो ये स्पष्ट अपराध है.

देश की बुनियाद पर प्रहार

दरअसल, जहां तक पुलिश-प्रशासन की बात है तो उसे आप सरकार से अलग नहीं समझ सकते हैं. पुलिस प्रशासन पहले भी था, अभी और दो कदम आगे बढ़ा ही है. जैसे आनंद फिल्म में गाना बना था कि ‘तुम दिन को कहो रात तो हम रात कहेंगे’, ये बात हीरो-हिरोइन के लिए नहीं बल्कि पुलिस-प्रशासन के लिए था कि जो उनके चाहने वाले हैं, उन पर राज कर रहे हैं, पॉलिटिक मास्टर्स हैं, वो जो भी कहेंगे उनका पूर्ण अनुसरण, पूरी तरह से अनुपालन करेंगे.

इसमें मैं एक-दो दृष्टांत और जोड़ना चाहूंगा. मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, उस वक्त उन्हें जो सरकारी बंगला मिला था, उसके बगल में तीन-चार और बड़े-बड़े बंगले हुआ करते थे.

मायावती ने ये फैसला किया था कि वो सारे बंगला गिरेंगे और उनका एक बड़ा बंगला बनेगा. रातों-रात वो करोड़ों रुपये के बंगले नेस्तनाबूद कर दिए गए. ऐसे ही सैफई में मुलायम सिंह यादव ने उसी धौंसपट्टी में न जाने क्या-क्या बनवा दिए.

यानी, पहले भी लोगों ने किया और अब भी कर रहे हैं, वो अपना एजेंडा कर रहे थे, ये अपना एजेंडा कर रहे हैं. इनको लगता है कि हमेशा वो ही राज करेंगे. एक जो भारी भूल कर रहे हैं वो ये कि पुलिस प्रशासन खुद को स्वतंत्र नहीं मानता. पुलिस प्रशासन उन्हीं की झाड़ भी खाते हैं और उन्हीं की गुलामी भी करते हैं.

पुलिस-प्रशासन पर सवाल

उदाहरण के तौर पर देखिए कि एक बड़े अस्पताल का मालिक, जो एक बड़ा आदमी है, उसने एडिशनल एसपी को रातों-रात हटवा दिया. दारोगा के साथ गाली गलौज हुआ लेकिन एफआईआर तक नहीं दर्ज की गई. इसलिए पुलिस का स्वतंत्र वजूद नहीं माना जा सकता है, ये वही कर रहे हैं जो सरकार चाह रही है. सरकार चाहती है कि पूरी तरह से समाज में अतिवाद फैल जाए और ये दोबारा कभी न मिल पाएं.

इस आदेश को आइसोलेशन के तौर पर नहीं देखा जा सकता है. इसका लार्जर नैरेटिव ये है कि हम 20 प्रतिशत आबादी को इस प्रकार से अशोभनीय तरीके से प्रस्तुत कर दें कि बाकी 80 फीसदी पूरी तरह से हमारे समर्थक हो जाएं. ये एक बुनियादी चिंतन है.

बीजेपी की ये बुनियादी पॉलिटिकल सोच है और इससे उनको लाभ भी मिल रहा है. अभूतपूर्व विजय प्राप्त हुई. इस अभूतपूर्व विजय  के लिए जो भी जिनको बेहतर महसूस होता है, वो कर रहे हैं. ऐसे पहली कभी नहीं देखा गया कि किसी वर्ग विशेष के लिए, उनके पैगंबरों के लिए, उनके रहनुमाओं के लिए इस तरह की बातें, शब्द सीधे बोले और निडर होकर बोलें.

मुजफ्फरनगर एक छोटी सी घटना है, इसके बड़े दुष्परिणाम हैं, जिसका ये बहुत छोटा हिस्सा दिख रहा है. मैं अपनी बात बताऊं एक बार मैं जब एसपी था और मायावती एक जिले में आयी हुई थीं. वहां के जिला मजिस्ट्रेट ने परदे तक का रंग नीला करवा दिया था. बेड भी नीला, टेबल भी नीला. अगर उनका वश चलता तो दीवारें भी नीली करवा देते. वे बिल्कुल ही अजीबोगरीब नीलापन लाए हुए थे, पूरे माहौल में.

वे नीलापन लेकर आए और अब ये भगवापन लेकर आ रहे हैं. अफसर खुद कांवड़ पर पुष्प वर्षा कर रहे हैं. ये एक विद्रूपता है. ताकत मूल रूप से जो सरकार में जो पॉलिटकल मास्टर्स हैं उनके पास है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]  

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