विवाह में अपनी सम्पत्ति का प्रदर्शन कितना सही-गलत?
विवाह में अपनी सम्पत्ति का प्रदर्शन कितना सही-गलत?
सात महीने तक चली उत्सवों की शृंखला के बाद, अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट आखिरकार 12 जुलाई को मुंबई में विवाह-सूत्र में बंध गए। विवाह से पहले हुए उत्सवों में जामनगर में एक भव्य समारोह हुआ, जहां एयरफोर्स स्टेशन को नागरिक निजी जेट विमानों के लिए खोला गया था, उसके बाद भूमध्य सागर में चार दिवसीय लग्जरी क्रूज का आयोजन हुआ और अंतत: विवाह-समारोह में भी कई कार्यक्रम हुए।
इनमें भारतीय हस्तियों के अलावा रिहाना, जस्टिन बीबर, किम कर्दाशियां, बिल गेट्स, इवांका ट्रम्प जैसे अनेक अंतरराष्ट्रीय सितारे और गणमान्यजन उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रिसेप्शन में भाग लिया। पूरे विवाह में अनुमानित रूप से 5000 करोड़ रुपए का खर्च होना बताया जाता है। अकेले नीता अंबानी के पन्ना जड़ित हार की कीमत 500 करोड़ रुपए बताई गई थी, जिसको देखने के लिए लोग उत्सुक थे। इस पर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं। कुछ लोगों को धनबल का अंतहीन प्रदर्शन अनुचित लगा। कुछ अन्य का विचार था कि एक ऐसे देश में इतना भव्य सार्वजनिक जश्न अनुचित है, जहां आज भी बहुत सारे लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं।
हालांकि कई लोगों का तर्क था कि अगर अंबानी के पास पैसा है, तो वे इसे खर्च क्यों न करें? वैसे भी उन्होंने जो खर्च किया, वह उनकी कुल संपत्ति के अनुपात में बहुत ही कम था। कुछ लोगों ने ईर्ष्या के कारण आलोचना की, वहीं कुछ अन्य को लगा कि इसने विवाह, होटल और फूड-उद्योग के बढ़ते क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा दिया है।
सच यह है कि आज शादियां एक नयनाभिराम उत्सव बन चुकी हैं। यह सम्पन्न परिवारों और मध्यम-वर्ग दोनों पर लागू होता है। वहीं इससे गरीबों पर बहुत बोझ पड़ता है, जहां लड़की के परिवार को एक ‘उपयुक्त’ शादी की व्यवस्था करने के साथ ही दहेज की मांगों का भी प्रबंधन करना पड़ता है।
वो दिन गए, जब विवाह एक दिन का साधारण समारोह हुआ करता था। अब तो परिवारों द्वारा इस अवसर को अपने वैभव और स्टेटस की नुमाइश बनाने के लिए एक-दूसरे से होड़ की जाती है। लाइव परफॉर्मर, डीजे, भव्य सजावट, खाने से भरी टेबलें और कई शानदार कार्यक्रम होते हैं।
डेस्टिनेशन-वेडिंग में तो पूरे पांच सितारा होटल बुक कर लिए जाते हैं। वेडिंग-प्लानर और इवेंट-मैनेजर की बहुत मांग होती है। अगर हम अपने समाज पर नजर डालें तो पाएंगे कि अंबानी ने आखिर क्या गलत किया है?
यहां एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या भारतीयों का झुकाव संयम की ओर होता है? क्या वे दिखावे और नुमाइश से दूर रहते हैं? या फिर हम स्वभाव से ही दिखावटीपन और तड़क-भड़क पसंद करने वाले लोग हैं? हमारे राजनेता महात्मा गांधी को नमन करते हैं, लेकिन वे स्वयं भव्य बंगलों में रहते हैं और आलीशान लवाजमे के साथ चलते हैं।
भारतीय-गणतंत्र के राष्ट्रपति दुनिया के सबसे बड़े महल में रहते हैं। प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति ने भी अभी-अभी नए आलीशान आवास खरीदे हैं। ऐसे में धन बनाम संयम या सम्पत्ति बनाम सादगी के बीच का आदर्श मध्य-मार्ग कौन-सा हो सकता है?
हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो हमेशा इस बात पर जोर दिया गया है कि लक्ष्मी और सरस्वती यानी धन और विद्या-विवेक के बीच सही संतुलन होना चाहिए। अगर यह संतुलन खो गया, तो धन-सम्पदा की प्रदर्शनप्रियता अवश्य ही विवेक और संयम पर हावी हो जाएगी।
धन-संपत्ति के बेतहाशा प्रदर्शन के प्रलोभन को रोकने के लिए जरूरी आत्म-संयम हमारे देश में विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि यहां अधिकांश लोग आज भी गरीबी और अभावों में जी रहे हैं। जब समाज की आखिरी पंक्ति के लोग अमीरों की बेलगाम हरकतों को देखते हैं, तो उन्हें आश्चर्य होता होगा कि क्या वे भी इस नए ‘चमकते’ भारत का हिस्सा हैं?
अमीरों को अपनी सम्पत्ति दिखाने का अधिकार है, लेकिन अंततः सम्पन्नता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच सही संतुलन बनाना भी हर व्यक्ति का चयन होना चाहिए। रिलायंस फाउंडेशन का कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) में अच्छा रिकॉर्ड है।
अगर शादी पर खर्च की गई राशि का आधा भी अंबानी अपने चैरिटेबल फाउंडेशन को दे देते, तब भी उनका कार्यक्रम भव्यातिव्य होता, लेकिन साथ ही वे परोपकार में भी अग्रणी बन जाते। इससे उनके कॉर्पोरेट ब्रांड में इजाफा ही होता और नव-विवाहितों को भी कहीं अधिक मात्रा में आशीर्वाद प्राप्त होते।
हमारे ग्रंथों में इस पर जोर दिया गया है कि लक्ष्मी और सरस्वती यानी धन और विद्या-विवेक के बीच सही संतुलन होना चाहिए। अगर यह संतुलन खो गया, तो धन-सम्पदा की प्रदर्शनप्रियता अवश्य ही विवेक और संयम पर हावी हो जाएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)