अगर दुनिया दर्द में है तो उसे कम करने में आप भी योगदान दें!

अगर दुनिया दर्द में है तो उसे कम करने में आप भी योगदान दें!

वे 7,500 से अधिक छात्रों और उनके अभिभावकों को संबोधित करने आए थे, जो इस आयोजन के लिए निर्मित अस्थायी सभागार में अपने यूनिवर्सिटी जीवन के पहले दिन का हिस्सा बन रहे थे। मैं पहली पंक्ति में बैठा उन्हें ध्यान से देख रहा था।

वे दूसरे ऐसे नोबेल विजेता हैं, जिनसे मैं इस सप्ताह मिला हूं। उन्होंने दाहिना हाथ उठाया और उसे उनका अभिवादन कर रहे छात्रों की ओर हिलाया। लेकिन वे उसे और ऊपर नहीं उठा सकते थे, क्योंकि एक हमले में कुछ बच्चों को बचाते समय उनके दाहिने कंधे की हड्डी टूट गई थी।

उन्होंने मुझे बताया कि कैसे उन्होंने जान जोखिम में डालकर उन्हें बचाया था। डॉक्टरों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी थी, लेकिन वे इसका खर्च नहीं उठा सकते थे। उन्होंने देशी उपचार किए। वे आज भी एक सीमा से ऊपर अपना हाथ नहीं उठा पाते हैं। उन्होंने तुरंत अपना बायां हाथ उठाया, जो उनके कंधे और सिर के ऊपर आसानी से चला गया। वे आराम से अभिवादन स्वीकारते रहे। फिर उन्होंने बहुत सुकून से यह कहानी शुरू की।

उन्होंने कहा कि एक जंगल में आग लगी थी। सभी पशु-पक्षी उससे भाग रहे थे। आग की लपटें पूरे जंगल को अपनी चपेट में ले रही थीं। जंगल का राजा शेर भी वहां से जाने के लिए तैयार था। अचानक उसने एक गौरैया को आग की ओर जाते देखा। उसने कहा, ‘तुम यह आत्महत्या क्यों कर रही हो?’ गौरैया ने कहा, ‘मैं इस जंगल में पैदा हुई और अपना जीवन यहीं बिताया।

आज यहां आग लगी है तो मैं इसे छोड़कर भाग नहीं सकती। मेरी चोंच देखो। मेरे पास पानी है, मैं वहां जाऊंगी और आग को बुझाने की कोशिश करूंगी।’ वे कुछ पल के लिए रुके और छात्रों को कहानी के अंत का अनुमान लगाने दिया।

वे कैलाश सत्यार्थी थे, जो अंतरराष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त बाल-अधिकार कार्यकर्ता हैं। वे 1980 से ही बच्चों के शोषण को समाप्त करने के लिए वैश्विक-आंदोलन के अगुआ रहे हैं। बाल-दासता के खिलाफ संघर्ष करने के लिए ही उन्होंने एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में अपना आकर्षक करियर छोड़ दिया।

इस नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ने बुधवार को जयपुर में जेईसीआरसी विश्वविद्यालय में स्नातक और स्नातकोत्तर के छात्रों से अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि उन्हें उन चीजों के बारे में शिकायत करना बंद कर देनी चाहिए, जो उनकी अपेक्षा के अनुसार नहीं हो रही हैं और उन मुद्दों का समाधान प्रदान करना चाहिए, जो उन्हें परेशान करते हैं। वे उनसे अपील कर रहे थे कि उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की मदद के लिए यथाशक्ति पूरे प्रयास करने चाहिए, जो तकलीफ में है।

इस गुरुवार को जब कुछ छात्रों ने मुझसे पूछा कि उनके जैसे साधारण व्यक्ति किस तरह समाधान देने वाले बन सकते हैं, तो मैंने उन्हें डॉ. समिधा जौहरी की कहानी सुनाई, जो झुंझुनू, राजस्थान से आई थीं। वे भगवानदास खेतान अस्पताल, झुंझुनू में प्रमुख-विशेषज्ञ ईएनटी के पद से सेवानिवृत्त हुई थीं।

वे जयपुर में अपना सेवानिवृत्त जीवन बिताना चाहती थीं, लेकिन झुंझुनू के लोग चाहते थे कि उनकी सेवा जारी रहे। इसलिए नहीं कि वे वहां पर एकमात्र ईएनटी विशेषज्ञ हैं, बल्कि इसलिए वे कई और तरीकों से भी मरीजों की मदद करती हैं, जिससे वे अपना जीवन सुकून से बिता सकें।

वे कई स्थानीय लोगों और मरीजों के लिए परिवार की एक सदस्य की तरह हैं। यही कारण है कि उन्होंने वहां एक निजी अस्पताल में सप्ताह में 4 दिन की नौकरी की पेशकश स्वीकार कर ली और इस उम्र में उन्होंने बस में पांच-पांच घंटे यात्रा करके तीन दिन जयपुर में बिताए।

 किसी भी समस्या का दृढ़तापूर्वक किया गया समाधान ही संसार को और सुंदर बनाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *