UP स्कूल-कॉलेज से नेता कैसे कमा रहे करोड़ों !
यूपी के स्कूल-कॉलेज से नेता कैसे कमा रहे करोड़ों
क्लास न आने के 5 हजार, एग्जाम न देने के 20 हजार वसूल रहे
आशीष (बदला हुआ नाम) ने प्रतापगढ़ के एक कॉलेज से डीएलएड किया। 41 हजार फीस जमा की। कॉलेज प्रशासन के सामने मजबूरी जताई कि रेगुलर क्लास नहीं अटेंड कर सकता। कॉलेज ने कहा- 5 हजार और दे दीजिएगा, क्लास की जरूरत नहीं पड़ेगी। आशीष ने 5 हजार और दे दिए। तब से वह प्रैक्टिकल या फिर परीक्षा देने ही कॉलेज जाते थे। 92% अंकों के साथ वह पास भी हो गए।
यूपी के कई प्राइवेट कॉलेजों में आशीष जैसे हजारों छात्र हैं, जो ‘ऊपरी’ पैसा देकर पढ़ रहे हैं। इनसे फीस के अलावा सुविधा शुल्क के नाम पर पैसा, परीक्षा प्रवेश पत्र के नाम पर पैसा, प्रैक्टिकल के नाम पर पैसा लिया जा रहा। एक नॉन प्रॉफिटेबल काम हाई प्रॉफिटेबल में बदल गया। इसके जरिए यूपी के नेता मोटी कमाई कर रहे। यही वजह है कि आज प्रदेश के 60% कॉलेज नेताओं के पास हैं।
प्राइवेट कॉलेज किस तरह कमाई कर रहे, दैनिक भास्कर इसका खुलासा करेगा। इसे पहले तीन केस से समझिए…
केस- 1: प्रैक्टिकल और नकल करवाने के रेट तय
अंकित प्रयागराज के एक फॉर्मेसी कॉलेज से डी-फॉर्मा कर रहे हैं। एडमिशन के वक्त उन्होंने 85 हजार रुपए फीस जमा की। कॉलेज ने प्रैक्टिकल के नाम पर सभी छात्रों से 5-5 हजार रुपए लिए। अंकित बताते हैं- कॉलेज अतिरिक्त पैसा लेने के लिए बीच में सेशनल एग्जाम रख देता है। जो लोग आते हैं, उन्हें तो 4-5 हजार ही देना होता है। लेकिन, जो इस परीक्षा में शामिल नहीं होना चाहते उनसे 15-20 हजार रुपए ले लिए जाते हैं।
अंकित कहते हैं- जो लड़के देरी से एडमिशन लेने का फैसला कर पाते हैं, उनका भी एडमिशन हो जाता है। लेकिन, फीस 85 हजार से बढ़कर 1 लाख हो जाती है। जबकि हम सबकी सरकारी फीस 45 हजार रुपए है। स्कॉलरशिप फॉर्म भरते वक्त कॉलेज हम लोगों से यही भरवाता है।
केस- 2ः कॉलेज नहीं आने पर 5 हजार अतिरिक्त देना है
मुकेश ने प्रयागराज के सिकंदरा में स्थित भीमराव अम्बेडकर महाविद्यालय से डीएलएड किया। एडमिशन के वक्त 41 हजार रुपए फीस जमा की। 9 हजार रुपए अलग से लगे। इसमें परीक्षा शुल्क के 1500 रुपए, प्रवेश पत्र के लिए 500, प्रैक्टिकल के लिए 2 हजार और कॉलेज नहीं आने के लिए 5 हजार रुपए शामिल हैं। मतलब साल भर में 9 हजार रुपए अतिरिक्त दे रहे हैं।
मुकेश के भाई सुमित ने प्रतापगढ़ के कुंडा स्थित नंदन पीजी कॉलेज से डीएलएड किया है। यह कॉलेज अब रज्जू भैया यूनिवर्सिटी से संबद्ध है। सुमित कहते हैं- फीस के अलावा परीक्षा शुल्क के नाम पर 1500 रुपए प्रति सेमेस्टर लिए जाते हैं। शुरुआत में तो क्लास ठीक चलती है, लेकिन आखिर के दो सेमेस्टर में क्लास बहुत कम चलती है। बीच-बीच में पैसा दे देने से नंबर अच्छे मिल जाते हैं।
केस- 3ः पेपर नहीं देने के लिए अलग चार्ज
राहुल सिंह ने प्रतापगढ़ जिले के एक लॉ कॉलेज से एलएलबी किया। यह कॉलेज रज्जू भैया यूनिवर्सिटी से अटैच है। राहुल ने पहले सेमेस्टर की फीस 7500 रुपए जमा की। 1500 रुपए प्रैक्टिकल के और 1500 रुपए अलग से सुविधा शुल्क के नाम पर दिए। राहुल कहते हैं- ये सुविधा शुल्क नकल करवाने के लिए लिया जाता है। जो लड़के पेपर नहीं देना चाहते, उनके लिए प्रति कॉपी रेट तय है। 1000-1500 रुपए में उनकी कॉपी भी लिख दी जाती है।
यहां तक हमने छात्रों की फीस और सुविधा शुल्क का मामला समझा। अब समझते हैं, कॉलेज मोटी कमाई कैसे करता है?
छात्र से 12 हजार लिए, यूनिवर्सिटी को 1 हजार दिए
हमने बाराबंकी में लॉ कॉलेज के एक प्रिंसिपल से बात की। उनसे पूछा कि कॉलेज कमाई कैसे करता है? वह कहते हैं- हमारे यहां एलएलबी की प्रति सेमेस्टर 12,500 रुपए फीस है। हम जिस यूनिवर्सिटी से अटैच हैं, वहां हमें सिर्फ 1 हजार रुपए देना है। बाकी के 11,500 रुपए कॉलेज के हुए। इसके अलावा परीक्षा शुल्क, सुविधा शुल्क के नाम पर भी 2-3 हजार रुपए प्रति छात्र लिया जाता है। कोई छात्र आने में असमर्थता जताता है, तब हमें उसके लिए अलग इंतजाम करना होता है। उसका भी चार्ज लगता है। इस तरह से अगर 100 लड़के हैं, तो आप कमाई का अनुमान लगा लीजिए।
जिन टीचर्स का नाम, वह कभी कॉलेज नहीं आते
कॉलेज छात्रों से तो ट्यूशन फीस और सुविधा शुल्क वसूलता है, लेकिन टीचर्स को नहीं देता। इसे लखनऊ के ही एक प्राइवेट कॉलेज में पढ़ा रहे टीचर बताते हैं। वह कहते हैं- एक बीएड कॉलेज में कम से कम 14 टीचर्स का स्टाफ होना चाहिए। इसी बेस पर मान्यता मिलती है। हर टीचर की शुरुआती सैलरी 21 हजार 500 रुपए होनी चाहिए। अगर अनुभवी है, तो उसकी सैलरी ज्यादा होनी चाहिए। लखनऊ यूनिवर्सिटी से अटैच कॉलेज में तो शुरुआती सैलरी 27 हजार 660 रुपए होनी चाहिए।
वह कहते हैं- लेकिन किसी भी कॉलेज में न तो 14 टीचर्स होते हैं और न ही किसी को मानक के मुताबिक सैलरी मिलती है। हमने कहा कि फिर कॉलेज मैनेज कैसे करता है? वह जो बताते हैं वह हैरान करता है। कहते हैं- कॉलेज 14 ऐसे लोगों को चिह्नित करता है जिनके पास डिग्री है। उन्हें सलाना 20-25 हजार दे देता है और उनके नाम का इस्तेमाल करता है।
ऐसे करते हैं गड़बड़ी: साइन चेक रखवा लेते हैं
प्राइवेट कॉलेज में पढ़ा रहे टीचर बताते हैं- ऐसे टीचरों का अकाउंट खुलवा दिया जाता है। उनसे चेकबुक साइन कर रखवा ली जाती है। एक तरफ उनके खाते में पैसा डाला जाता है और दूसरी तरफ से निकाल लिया जाता है।
लखनऊ के एक कॉलेज में पढ़ा रहे ये टीचर कहते हैं- मेरा नाम कई और कॉलेज में भी जुड़ा है। वहां से मुझे पैसे मिलते हैं। ये पूछने पर कि क्या यूनिवर्सिटी को ऐतराज नहीं होता? वह कहते हैं- किसी एक यूनिवर्सिटी से जुड़े एक कॉलेज में ही नाम हो सकता है। फैजाबाद, कानपुर, लखनऊ, रज्जू भइया समेत कई यूनिवर्सिटी हैं, उनसे जुड़े कॉलेज में नाम चलते हैं।
एससी-एसटी एडमिशन और स्कॉलरशिप में भी धांधली
कॉलेज, स्कॉलरशिप को लेकर भी धांधली करते हैं। इसे एक उदाहरण से समझिए। सचिन ने लखनऊ के सरदार भगत सिंह कॉलेज ऑफ हायर एजुकेशन से MBA किया। दलित वर्ग से आने के चलते उनसे एडमिशन फीस के रूप में सिर्फ 8 हजार रुपए लिए गए। इसके साथ सचिन के सारे डॉक्यूमेंट जमा करवा लिए गए। कॉलेज ने ही उनका स्कॉलरशिप फॉर्म भरा। जब करीब 82 हजार स्कॉलरशिप आई तो उसे अपने पास रख लिया। MBA के दौरान राहुल की दो बार स्कॉलरशिप आई, दोनों ही बार कॉलेज ने ले लिया।
मैनेजमेंट कॉलेज एससी-एसटी छात्रों के एडमिशन के लिए उन लोगों को भी पैसा देते हैं, जो कॉलेज में एडमिशन लेकर आते हैं। इसके लिए कॉलेज उन्हें 10 से 15 हजार रुपए तक देते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि एससी-एसटी छात्र-छात्राओं का स्कॉलरशिप आना 100% तय होता है।
सरकार की तरफ से अनुदान में मिलती है मोटी रकम
कॉलेजों को सरकार की तरफ से अनुदान भी मिलता है। जैसे कोई महिला डिग्री कॉलेज है, तो उसे बनाने और चलाने में कुल खर्च का 40% तक अनुदान मिलता है। विधायक और सांसद निधि के जरिए भी कॉलेज को अनुदान दिया जा सकता है। कई बार सरकारी जमीन भी कॉलेज निर्माण के लिए मिल जाती है।
कुल मिलाकर यह सिर्फ कहने की बात है कि स्कूल-कॉलेज नॉन प्रॉफिटेबल हैं। हकीकत यह है कि इससे हर साल करोड़ों रुपए कमाए जा रहे। यही वजह है कि नेताओं ने बड़ा निवेश कॉलेजों पर कर रखा है।
अब जानिए क्या कहते हैं कॉलेज चलाने वाले
कॉलेज ने कहा, आरोप कोई भी लगा सकता है
छात्रों के आरोप के बाद हमने प्रतापगढ़ के नंदन पीजी कॉलेज से संपर्क किया। यहां के एडमिशन सेल के हेड शरद शुक्ला ने आरोपों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा- हमारे यहां डीएलएड की सरकारी फीस के साथ 1000 रुपए प्रैक्टिकल के, 1000 परीक्षा फॉर्म और 600 रुपए इंटरनल फीस लगती है। इसके अलावा हमारे यहां कोई भी सुविधा शुल्क नहीं लिया जाता।
वहीं, भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के संतोष से बात हुई। वह सुविधा शुल्क लेने की बात को पूरी तरह से खारिज करते हैं। कहते हैं- हमारे यहां जो बाहर से परीक्षा लेने आते हैं और जो फीस तय होती है, वही देना होता है। अगर कोई छात्र एडमिशन लेता है, तो उसे रेगुलर क्लास करना ही होता है।
आमतौर पर माना जाता है कि शिक्षा का पेशा फायदा कमाने के उद्देश्य से नहीं किया जाना चाहिए। प्राइवेट कॉलेजों की महंगी फीस को लेकर एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी कि शिक्षा मुनाफा कमाने का पेशा नहीं है। पेशेवर पाठ्यक्रमों की फीस सस्ती होनी चाहिए। ऐसे में यूपी के प्राइवेट कॉलेजों में इस तरह की गड़बड़ी पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है।
(नोट: सभी केस में हमने स्टूडेंट्स के नाम बदल दिए हैं)
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यूपी में आधे से ज्यादा स्कूल-कॉलेज नेताओं के:रसूख से हर फाइल OK, किस पार्टी के नेता आगे…पूरी पड़ताल
यूपी के सरकारी स्कूल…जर्जर बिल्डिंग, टपकती छत और एक-एक कमरे में 100-100 बच्चे…। इन सरकारी स्कूलों को सुधारने की जिम्मेदारी हमारे सांसद-विधायकों की है। लेकिन इन पर कभी गंभीरता काम नहीं हुआ। इसकी बड़ी वजह है…नेताओं के अपने प्राइवेट स्कूल।
………… ने पूरे उत्तर प्रदेश के प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों की पड़ताल की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। आधे से ज्यादा यानी करीब 60% प्राइवेट स्कूल-कॉलेजों के मालिक हमारे नेता हैं।
यूपी में 74 हजार से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं। इसमें 50 हजार स्कूलों के मालिक नेता हैं। इनमें लगभग सभी पार्टियों के नेता शामिल हैं। 20 हजार प्राइवेट इंटर कॉलेज और 7 हजार से ज्यादा प्राइवेट डिग्री कॉलेज भी हैं। यहां भी 60% से ज्यादा नेताओं के ही हैं। ऐसे भी नेता हैं जिनके पास करीब 100 स्कूल-कॉलेज हैं। 31 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में 5 बीजेपी और 3 सपा नेताओं के हैं।
स्कूल-कॉलेज खोलने के लिए करीब 17 तरह के सर्टिफिकेट जरूरी हैं। इसे नेताओं की हनक कहें या ऊपर तक सेटिंग, उनके स्कूल-कॉलेजों की फाइल कहीं नहीं अटकती।
स्कूल-कॉलेज में भाजपा के नेता आगे
बसपा नेता शिव प्रसाद यादव के पास 100 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। बीजेपी नेता बृजभूषण शरण सिंह के पास 54 और संतकबीरनगर के बीजेपी नेता जय चौबे के पास 50 से अधिक स्कूल-कॉलेज हैं।
सपा के प्रदेश सचिव डॉक्टर जितेंद्र यादव के पास 20 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। उनके ज्यादातर स्कूल फर्रुखाबाद में हैं। फतेहपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष और बीजेपी नेता अजय प्रताप सिंह के पास 18 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं।
प्रयागराज की बारा सीट से अपना दल के विधायक वाचस्पति के 15 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। प्रतापगढ़ के सपा सांसद एसपी सिंह पटेल के 13 से स्कूल-कॉलेज हैं। LPS ग्रुप इन्हीं का है।
अमेठी में बीजेपी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री संजय सिंह के पास कुल 13 स्कूल-कॉलेज हैं। हरदोई के बीजेपी MLC अवनीश प्रताप सिंह के पास जिले में 10 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। गाजीपुर के बीजेपी नेता मनोज सिंह के पास 8 डिग्री कॉलेज, 2 इंटर कॉलेज और ITI कॉलेज हैं। बीजेपी विधायक अनुराग सिंह के पास मिर्जापुर में 5 डिग्री कॉलेज हैं।
डुमरियागंज से बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल के पास सूर्य ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन नाम से इंस्टीट्यूट है। इसमें डिग्री कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज शामिल है। मिर्जापुर में बीजेपी विधायक अनुराग सिंह के पास 5 कॉलेज हैं। कौशांबी में बीजेपी के पूर्व विधायक संजय गुप्ता के पास 4 इंटर कॉलेज और एक डिग्री कॉलेज है। बोर्डिंग स्कूल भी है। इन सबके आगरा के बीजेपी विधायक छोटे लाल वर्मा के पास 5 स्कूल-कॉलेज और संभल के बीजेपी नेता अजीत यादव के पास 4 स्कूल-कॉलेज हैं।
सपा सांसद के पास सबसे महंगे स्कूल की चेन
प्रतापगढ़ से सपा सांसद एसपी सिंह पटेल लखनऊ पब्लिक स्कूल के मालिक हैं। फर्रुखाबाद के सपा नेता डॉ. जितेंद्र यादव के पास पूरा बाबू सिंह ग्रुप है। 20 से ज्यादा डिग्री कॉलेज और 4 मेडिकल कॉलेज हैं। सपा सरकार में मंत्री रहे सिद्धार्थनगर के माता प्रसाद पांडेय के पास भी 5 स्कूल-कॉलेज हैं। सपा के दिग्गज नेता आजम खान के पास 3 स्कूल हैं, एक यूनिवर्सिटी भी है।
अपना दल और कांग्रेस-बसपा नेताओं के पास भी स्कूल-कॉलेज
अपना दल के टिकट पर प्रयागराज की बारा सीट से जीते वाचस्पति के पास 15 से अधिक स्कूल-कॉलेज हैं। बदायूं के डीपी यादव के पास 8 स्कूल-कॉलेज हैं। वह सपा-बसपा-भाजपा समेत कई पार्टियों में रह चुके हैं। अभी उन्होंने राष्ट्रीय परिवर्तन दल बना लिया है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के पास प्रतापगढ़ में 6 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं।
इसी तरह वाराणसी के कांग्रेस नेता राजेश्वर पटेल के पास 5 से ज्यादा स्कूल-कॉलेज हैं। कानपुर के कांग्रेस नेता आलोक मिश्रा DPS ग्रुप से जुड़े हैं। उनके पास इस वक्त कानपुर में ही 4 स्कूल हैं। बसपा के पूर्व विधायक लखीमपुर जिले के राजेश गौतम के पास 4 स्कूल-कॉलेज हैं।
यूपी के सबसे ज्यादा स्कूल चेन वाले नेता
सबसे ज्यादा स्कूल-कॉलेज इटावा के शिव प्रसाद यादव के पास मिले। इनके पास 100 से अधिक स्कूल-कॉलेज हैं। शिव प्रसाद ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर मैनपुरी से चुनाव लड़ा था।
अब प्राइवेट यूनिवर्सिटी की बात करते हैं…
बीजेपी नेताओं के पास 5 प्राइवेट यूनिवर्सिटी
यूपी में इस वक्त 31 प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं। इनमें 5 यूनिवर्सिटी बीजेपी नेताओं की हैं, 3 तो मथुरा में ही हैं। इनमें नारायण दास अग्रवाल की GLA यूनिवर्सिटी, सचिन गुप्ता की संस्कृति यूनिवर्सिटी, जिला पंचायत अध्यक्ष किशन चौधरी की KM यूनिवर्सिटी शामिल है। इसके अलावा ठाकुर जयवीर सिंह की नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के महापौर उमेश गौतम की इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी भी है। गोरखपुर की महायोगी गोरखनाथ यूनिवर्सिटी गोरक्षा पीठ ट्रस्ट के अधीन है।
3 सपा और 1 बसपा नेता के पास यूनिवर्सिटी
सपा के दिग्गज नेता आजम खान के पास जौहर यूनिवर्सिटी है। इस यूनिवर्सिटी को बनाने के बाद आजम खान पर जमीन कब्जाने के गंभीर मामले दर्ज हुए। आज भी यह मामला कोर्ट में चल रहा है। फिरोजाबाद के शिकोहाबाद में जेएफ यूनिवर्सिटी है। इसके प्रमुख डॉ. सुकेश यादव हैं। इसके अलावा एफएफ यूनिवर्सिटी है, जिसके प्रमुख डॉ. दिलीप यादव हैं।
सहारनपुर में बसपा नेता हाजी इकबाल के पास द ग्लोकल यूनिवर्सिटी है। इन 9 यूनिवर्सिटियों के अतिरिक्त जो 22 यूनिवर्सिटीज हैं, उनके प्रमुख या तो व्यवसायी हैं या फिर शिक्षा क्षेत्र से ही जुड़े हैं। ये सभी नेताओं के संपर्क में भी हैं, लेकिन किसी पार्टी से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं।
अब यह जानते हैं कि स्कूल खोलने के नियम क्या हैं? क्या नेता सारे नियम फॉलो कर रहे?
यूपी के आधे प्राइवेट स्कूल तय नियम के हिसाब से नहीं चल रहे
अगर शहरी क्षेत्र में 5वीं तक का स्कूल खोलना है, तो उसके लिए 500 वर्ग गज (करीब 5000 वर्ग फीट) का खेल का मैदान होना ही चाहिए। गांव में स्कूल खोलना है तो 1000 वर्ग गज का खेल का मैदान होना चाहिए। इसके अलावा 270 वर्ग फीट के तीन क्लासरूम, 150-150 वर्ग फीट का एक स्टाफ रूम और एक प्रिंसिपल रूम होना चाहिए। 8वीं तक के स्कूल में 600 वर्ग फीट की एक विज्ञान प्रयोगशाला भी अनिवार्य है। इन दोनों प्रकार के स्कूलों में एक 400 वर्ग फीट का अलग कमरा होना चाहिए।
शहर में कॉलेज खोलने के लिए 3 हजार वर्ग मीटर और गांव में कॉलेज खोलने पर 6 हजार वर्ग मीटर जमीन होनी चाहिए। इसके अलावा जमीन की खरीद का एफिडेविट, बिल्डिंग का फिटनेस सर्टिफिकेट, कंप्लीशन सर्टिफिकेट, जल बोर्ड से जल परीक्षण रिपोर्ट, बिल्डिंग का साइट प्लान, बैंक का इश्यू किया गया FD के बदले में नो-लोन सर्टिफिकेट जैसे कुल 17 तरीके के सर्टिफिकेट देने होते हैं। लेकिन, यूपी में 80% से ज्यादा स्कूल इन मानकों पर खरे नहीं उतरते।
नेताओं की अधिकारियों से पहचान, इसलिए ज्यादा स्कूल
इतने सारे परमिशन करवाना आम आदमी के बस में नहीं होता, क्योंकि कई मानक वह पूरा भी नहीं कर पाता। ऐसी दिक्कत नेताओं के साथ नहीं होती। उनके पास सोर्स और सिफारिश होती है। इसलिए उनकी फाइलें जल्दी पास हो जाती हैं।
एक पैटर्न और भी दिखता है, जिनके पास कई स्कूल-कॉलेज हैं, वह राजनीति में बहुत आक्रामक नहीं हैं। जैसे ही सरकार बदलती है, उनकी विचारधारा भी बदल जाती है। उदाहरण के रूप में संतकबीरनगर के जय चौबे को ले सकते हैं। जय चौबे पहले सपा में थे, लेकिन अब वह भाजपा में हैं।
..स्कूल-कॉलेज नॉन प्रॉफिटेबल फिर नेता कैसे कमा रहे करोड़ों
क्लास न आने के 5 हजार, परीक्षा न देने के 20 हजार वसूल रहे, कागज पर जिसकी सैलरी 30 हजार उसे मिल रहे 10 हजार