प्रभात झा से प्रभात जी बनने की पूरी कहानी …

प्रभात झा से प्रभात जी बनने की पूरी कहानी …
दोस्त बोले-संघर्ष भरा रहा जीवन, फर्श बिछवाने से लेकर मंच से भाषण तक अकेले संभालते थे
  • कुछ महीने पहले ही यह तस्वीर है जब भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रभात झा से मिलने पहुंचे। झा, सिंधिया के विरोधी माने जाते थे। - Dainik Bhaskar
कुछ महीने पहले ही यह तस्वीर है जब भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रभात झा से मिलने पहुंचे। झा, सिंधिया के विरोधी माने जाते थे।

सन 1980 में जब वह ग्वालियर आए थे तो प्रभात झा थे, लेकिन कुछ ही समय में अपने व्यवहार व शैली से वह प्रभात जी बन गए। सभी उनको प्रभात जी कहते हैं। प्रभात झा से प्रभात जी बनने की पूरी कहानी उनके साथ काम करने वाले दोस्तों जरिए दैनिक भास्कर आपके सामने रख रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल बताते हैं कि प्रभात जब किसी बड़े नेता की सभा होती थी तो फर्श बिछवाने से लेकर मंच पर भाषण तक पूरी जिम्मेदारी अकेले ही संभाल लेते थे। उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है। उनके निधन की सूचना के बाद उनके बंगला “सहयोग’ पर खामोशी है सन्नाटा खिंचा हुआ है।

चार जून 2023 को प्रभात झा के जन्मदिवस पर ग्वालियर में उनके घर कार्यकर्ता पहुंचे थे।
चार जून 2023 को प्रभात झा के जन्मदिवस पर ग्वालियर में उनके घर कार्यकर्ता पहुंचे थे।

दोस्त बोले-गुदड़ी के लाल जैसे थे प्रभात झा
वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल बताते हैं कि प्रभात झा से प्रभात जी होने का एक लंबा सफर है और संयोग से मैं इस सफर का हमराही भी हूँ और चश्मदीद भी। प्रभात मेरी दृष्टि में सचमुच गुदड़ी के लाल थे। प्रभात 1980 में ग्वालियर में उस समय आये थे जब भाजपा का जन्म हुआ ही था। वे बिहार में सीमामढ़ी व दरभंगा जिले के कोरियाही के हरिहरपुर गांव के रहने वाले थे। उनके पिता एक सामान्य परिवार के मुखिया थे। ग्वालियर में प्रभात का शैक्षणिक ,सामाजिक और राजनीयतिक जीवन जब शुरू हो रहा था तब मेरी पत्रकारिता का जीवन स्थापित हो चुका था। प्रभात को दो जून भोजन की व्यवस्था भाजपा ग्वालियर के सम्भवत:पहले अध्यक्ष रूप किशोर सिंघल के यहां से करा दी गयी थी। प्रभात में बचपन से ही श्रमजीवी होने के लक्षण थे। उनका जीवन बहुत संघर्ष से भरा रहा है।

भाजपा कार्यालय में रहते हुए राजनीति व पत्रकारिता में नाम कमाया
वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि भाजपा के महाराज बाड़ा पर होने वाली आम सभाओं के लिए फर्श बिछवाने से लेकर बड़े नेताओं के आने तक मंच पर अकेले भाषण देने का काम बाखूबी करने लगे थे। भाजपा का कार्यालय मुखर्जी भवन बना तो वे कार्यालय में आ गये। यहीं एक छोटे से कक्ष में प्रभात झा ने नाम कमाना शुरू किया। वे परिश्रमी थे, जिद्दी थे और मिलनसार भी, इसीलिए स्थानीय भाजपा नेताओं में अल्प समय में ही लोकप्रिय हो गए। उन्हें पितृवत संरक्षण दिया तत्कालीन भाजपा नेता भाऊ साहब पोतनीस ने। पोतनीस जी ग्वालियर के महापौर भी रहे। उन्होंने विधानसभा का चुनाव भी लड़ा और प्रभात झा उनके लिए अविराम काम करते रहे।

ग्वालियर स्थित प्रभात झा का बंगला 'सहयोग'
ग्वालियर स्थित प्रभात झा का बंगला ‘सहयोग’

पढ़ने-लिखने की रुचि ने बना दिया पत्रकार
प्रभात झां साल 1980 में बिहार से ग्वालियर एक भाजपा कार्यकर्ता के रूप में आए थे। पर लिखने-पढ़ने में प्रभात की अभिरुचियों को देखते हुए संघ ने उन्हें अपने मुखपत्र दैनिक स्वदेश में बुला लिया। वे अब दोहरी भूमिका में थे। एक पत्रकार के रूप में भी और भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में भी। पत्रकार राकेश अंचल बताते हैं कि हम दोनों हमउम्र थे और सत्ताप्रतिष्ठान के प्रति मुखर रहने वाले भी इसलिए हमारी निकटता मित्रता में कब तब्दीलहो गयी, हमें पता ही नहीं चला। मुझसे दो साल बड़े प्रभात ने मुझे कभी मेरे नाम से नहीं बुलाया । मैं उनके लिए अचल ही बना रहा।

जहां मिली दो, वहां गए सो, ऐसे थे प्रभात झा
प्रभात झा का जीवन का वो समय फकीराना जीवन था। सुबह का नाश्ता कहाँ होगा, दोपहर का भोजन कहां और रात्रि का भोजन कहाँ होगा प्रभात खुद नहीं जानते थे। हमारे यहां एक कहावत है कि जहाँ मिली दो ,वहीं गए सो’ ये कहावत उन दिनों प्रभात झा पर पूरी तरह लागू होती थी। पार्टी के लिए वे निशियाम काम करते थे।

लौटा दी थी माल्या की “लिकर” गिफ्ट
वरिष्ठ पत्रकार देवश्री माली ने बताया कि प्रभात झा कई कारणों से चर्चाओं में रहते थे। अक्टूबर 2009 में लिकर किंग विजय माल्या ने जब उनके घर बतौर तोहफा शराब की बोतल भेजी थी। इस पर झा ने बोतल लौटाते हुए पत्र लिखा कि ‘मेरा आपसे न तो कोई परिचय है और न ही मेरे-आपके अंतरंग संबंध है। मैं शराब का शौकीन भी नहीं हूं। आपने शराब की जगह कोई किताब भेजी होती, तो अच्छा होता।’उन्होंने यह पत्र सार्वजनिक भी किया और इसकी देश विदेश की मीडिया में जमकर चर्चा हुई थी। अगस्‍त 2012 में वे रेलवे कमेटी के सदस्‍य बने और अप्रैल 2013 से वे शिल्पकारों और कारीगरों के संसदीय फोरम के सदस्‍य हैं।

हमेशा कार्यकर्ता की मदद के लिए रहते थे तैयार- कमल माखीजानी
पूर्व जिलाध्यक्ष व प्रभात झा के करीबी कमल माखीजानी का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की मदद के लिए वे किसी भी समय, किसी भी अधिकारी या नेता के घर जा धमकते थे। उन्हें किसी की भी मदद करने में कोई संकोच नहीं था। ये वो दिन थे जब प्रभात जी पैदल राजनीति और पत्रकारिता दोनों करते थे। यही कारण था बहुत दिनों बाद उनके पास जमाने की सबसे लोकप्रिय लेकिन सस्ती मानी जाने वाली मोपेड लूना आयी। उसमें पेट्रोल कब ,कहां खत्म हो जाये ये कोई नहीं जानता था। जहाँ पेट्रोल खत्म वहीं लूना को सड़क पर खड़ा कर प्रभात जी किसी और के साथ सवार होकर निकल जाते थे।

गरीबी का अहसास था इसलिए हमेशा करते थे मदद
प्रभात झा को गरीबी का अहसास ही नहीं अनुभव भी था इसीलिए वे गरीबों के प्रति हमेशा उदार रहते थे। वे जिसके खिलाफ खड़े होते तो पीछे नहीं हटे और जिसके साथ खड़े होते तो कभी साथ नहीं छोड़ते थे। उनके ये ही गुण उनके भविष्य की आधारशिला बने। भाजपा के तबके शीर्ष नेता कुशाभाऊ ठाकरे के लिए प्रभात झा सबसे भरोसे के कार्यकर्ता थे। उनका यही विश्वास प्रभात को ग्वालियर से भोपाल ले गया। यही कारण है कि प्रभात झा के ग्वालियर में बंगला का नाम भी “सहयोग’ रखा गया था।

यह किताबें भी लिखीं
प्रभात झा ने व्यस्तताओं के बावजूद कई पुस्तक लिखीं हैं। उनकी चर्चित पुस्तक में 2005 में ‘शिल्पी’ (तीन खंडों में), 2008 में ‘जन गण मन’ (तीन खंडों में), 2008 में ही ‘अजातशत्रु–पं. दीनदयालजी’, ‘संकल्प’, ‘अंत्योदय’, ‘समर्थ भारत’, ’21वीं सदी – भारत की सदी’, ‘चुनौतियां’ तथा ‘विकल्प’ हैं। अगस्त 2009 में लोकसभा अध्यक्ष के नेतृत्व में संसदीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में ऑस्ट्रिया की यात्रा की थी।

प्रभात की कर्मभूमि ग्वालियर ने ही उनको पहचान दी
वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल बताते हैं कि प्रभात को ग्वालियर ने पहचान दी, परिवार दिया, बच्चे दिए और प्यार दिया। वे पोतनीस का बड़ा के स्थानीय निवासी बन गए, लेकिन उन्होंने कभी अपने परिवार को कभी अपनी सीमाओं से बाहर नहीं निकलने दिया। वे जब पार्टी के कार्यालय सचिव बनकर भोपाल आये तो मेरे भोपाल प्रवास का आश्रय उनका कार्यालय का कमरा ही होता था। वे हर समय हड़बड़ी में रहते थे। प्रेस से पार्टी के रिश्ते बनाने में प्रभात ने जो मेहनत की वैसी मेहनत मेरी नजर में अभी तक भाजपा का कोई मीडिया प्रमुख नहीं कर पाया। रूठों को मानाने में उन्हें महारत हासिल थी। मेरा उनसे अनेक अवसरों पर मतभेद भी हुआ लेकिन इस मतभेद ने खाई का रूप कभी नहीं लिया। हमारी उनकी दूरियां उनके राज्य सभा जाने के बाद बढ़ीं।

सिंधिया को भूमाफिया कह सुर्खियों में रहे
प्रभात झा सामंतवाद के मुखर विरोधी थे लेकिन राजमाता विजयाराजे सिंधिया के लिए सदैव समर्पित रहते थे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के साथ भी सौजन्य निभाया लेकिन उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ तब तक मोर्चा खोले रखा जब तक कि ज्योतिरादित्य खुद भाजपा में शामिल नहीं हो गए। उनको भू माफिया तक कहा, लेकिन सिंधिया ने हमेशा दरियादिली दिखाई और वे प्रभात कि पुराने आचरण को भूलकर उनसे मिलते-जुलते रहे। अब प्रभात ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हो गए थे।

ग्वालियर में एक समय नरेन्द्र तोमर और प्रभात दो बड़े खेमे रहे
प्रभात झा का अपना कोई जनाधार नहीं था। वे पार्टी कि जनाधार पर ही आगे बढ़े। आज के मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर उस जमाने में पार्षद होते थे और प्रभात झा पत्रकार। प्रभात झा ने सियासत में जिस तरह से छलांग लगाईं थी उससे पार्टी कि भीतर और बाहर उनके जितने समर्थक थे उतने ही विरोधी भी हो गए थे। एक समय ग्वालियर में दो खेमे हुआ करते थे जिसमे एक नरेन्द्र सिंह तोमर और दूसरा प्रभात झा का खेमा था। सारे नेता इनके ही इर्द गिर्द भटकते थे।

बेटे को राजनीतिक में स्थापित करने का सपना रह गया अधूरा
प्रभात झा को जीवन में वो सब कुछ हासिल हुआ, जिसके वे तलबगार थे। उनका एक ही सपना अधूरा रह गया और वो ये था कि वे अपने बेटे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी कि रूप में स्थापित नहीं कर पाए। उनके बेटे आत्मनिर्भर हैं ,उन्होंने अपनी और से कोशिश भी की किन्तु राजनीति शायद उनके नसीब में नहीं थी। प्रभात और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच अपने अपने पुत्रों को राजनीति में स्थापित करने की एक अघोषित प्रतिस्पर्द्धा रही। प्रभात झा अच्छे वक्ता थे,अच्छे लेखक थे ,अच्छे पाठक भी थे। लेकिन एक अराजक जीवन जीने की उनकी कमजोरी ने उन्हें तमाम शारीरिक व्याधियां भी दे दीं और यही व्याधियां उनके लिए घातक साबित हुईं।

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