पूर्वांचल के ब्राह्मण को आगे कर क्या साधना चाहते हैं अखिलेश?
शिवपाल, इंद्रजीत और राजभर पर क्यों भारी पड़े माता प्रसादः पूर्वांचल के ब्राह्मण को आगे कर क्या साधना चाहते हैं अखिलेश?
यूपी के नेता प्रतिपक्ष के लिए सपा के भीतर तीन नामों की चर्चा सबसे अधिक थी. पहला नाम अखिलेश के चाचा शिवपाल का था. दूसरा नाम इंद्रजीच सरोज और तीसरा राम अचल राजभर का था, लेकिन सबको पछाड़ते हुए माता प्रसाद नेता प्रतिपक्ष बन गए. माता प्रसाद के नेता प्रतिपक्ष बनने की 3 बड़ी वजहें हैं.
7 बार के विधायक हैं माता प्रसाद पांडेय
मुलायम सिंह के सानिध्य में राजनीति करने वाले माता प्रसाद सात बार के विधायक हैं. 2012 में अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने थे, उस सरकार में मुलायम ने माता प्रसाद को विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी थी. माता प्रसाद 2017 में चुनाव हार गए, लेकिन 2022 में वे फिर से सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से जीतकर सदन पहुंचे.
बड़ा सवाल- राजभर, सरोज-शिवपाल पर भारी कैसे पड़े?
नेता प्रतिपक्ष के लिए सपा के भीतर तीन नामों की चर्चा सबसे अधिक थी. पहला नाम अखिलेश के चाचा शिवपाल का था. दूसरा नाम इंद्रजीत सरोज और तीसरा राम अचल राजभर का था, लेकिन सबको पछाड़ते हुए माता प्रसाद नेता प्रतिपक्ष बन गए. माता प्रसाद के नेता प्रतिपक्ष बनने की 3 बड़ी वजहें हैं-
1. सपा के मूल काडर के नेता हैं माता प्रसाद
शिवपाल को छोड़कर जिन दो नेताओं (इंद्रजीत सरोज और राम अचल राजभर) के नामों की चर्चा थी, वो बहुजन समाज पार्टी से आए हैं. राजभर के सपा में आए हुए सिर्फ 2 साल ही हुए हैं. इंद्रजीत थोड़े पुराने हैं. इन दोनों के मुकाबले में माता प्रसाद सपा के मूल काडर के नेता हैं.
इन दोनों को पद नहीं देने की एक और वजह संगठन का कामकाज है. सपा सूत्रों के मुताबिक राजभर और इंद्रजीत संगठन के व्यक्ति हैं. अखिलेश दोनों के संगठन के ही कामों में लगाए रखना चाहते हैं.
वर्तमान में इंद्रजीत महासचिव और महाराष्ट्र के प्रभारी हैं, जहां इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है. राजभर के जिम्मे सपा के सक्रिय सदस्यों की संख्या को दुरुस्त करना है.
2. कार्यवाही का अनुभव, शिवपाल से भी बढ़िया तालमेल
नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवपाल यादव भी मजबूत दावेदार थे. मायावती के वक्त वे इस पद पर रह भी चुके हैं. हालांकि, वर्तमान राजनीति परिदृश्य में शिवपाल को नेता प्रतिपक्ष बनाना मुमकिन नहीं था. इसकी दो बड़ी वजहें हैं-
– सपा ने विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी यादव समुदाय के लाल बिहारी को सौंप रखी है. लोकसभा और राज्यसभा में भी पार्टी के नेता यादव ही हैं.
– शिवपाल अखिलेश के चाचा हैं और शिवपाल के बेटे आदित्य भी बदायूं से सांसद हैं. ऐसे में सपा में परिवार को ही आगे बढ़ाने का आरोप लगता.
दूसरी तरफ माता प्रसाद पांडेय की ट्यूनिंग शिवपाल के साथ भी बेहतरीन है. उनके पास विधानसभा की कार्यवाही का भी अनुभव है. खुद विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. ऐसे में सदन के भीतर सरकार को घेरने में उनके अनुभव का सपा को लाभ मिलेगा.
3. ब्राह्मण चेहरा, पीडीए में फिट हुए तो सोने पर सुहागा
माता प्रसाद पांडेय ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. पूर्वांचल खासकर गोरखपुर और बस्ती डिविजन में ब्राह्मणों का सियासी दबदबा है. इन जिलों से हरिशंकर तिवारी, शिव प्रताप शुक्ला जैसे कई बड़े ब्राह्मण नेता निकले हैं. अकेले बस्ती में 17-18 प्रतिशत के आसपास ब्राह्मण हैं. गोरखपुर, बांसगांव, देवरिया और डुमरियागंज में भी ब्राह्मण जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
बस्ती और गोरखपुर डिविजन के सात जिलों (संत कबीरनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर और देवरिया) में विधानसभा की 39 सीटे हैं.. 2022 में सपा को इन 39 में से सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली. इस बार लोकसभा चुनाव में भी इन जिलों की सिर्फ एक सीट (बस्ती) पर सपा को जीत मिली.
सपा माता प्रसाद के सहारे ब्राह्मणों को साधना चाहती है. अखिलेश की कोशिश इन इलाकों में ब्राह्मणों को पीडीए के साथ जोड़ने की है. यही वजह है कि 81 साल के माता प्रसाद को नेती प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई है. अगर यह प्रयोग सफल हो गया तो 2027 मेंं सपा के लिए सोने पर सुहागा हो जाएगा.