राजनीति में रणनीतिक भूलें भारी पड़ती हैं
राजनीति में रणनीतिक भूलें भारी पड़ती हैं
uपी में 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने वाले हैं। इन पर बहुत कुछ दांव पर लगा है। वैसे उनके नतीजों का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विधानसभा की 403 सीटों में से 251 पर भाजपा काबिज है।
एनडीए सहयोगियों को मिलाकर 283 सीटें हैं- जो कि 70% से अधिक है। पर भाजपा के लिए चिंता का विषय यह है कि क्या 10 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे उसी रुझान को दर्शाएंगे, जिसने 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 62 सीटें जीतने वाली पार्टी को 2024 में 33 सीटों पर ला दिया था?
यूपी की इन 10 विधानसभा सीटों में से- जो मौजूदा विधायकों (सपा नेता अखिलेश यादव सहित) के लोकसभा चुनाव लड़ने या (एक मामले में) अयोग्य ठहराए जाने के कारण खाली हुई हैं- 5 ही भाजपा के लिए सुरक्षित दिखाई देती हैं।
ये सीटें भाजपा (3) और एनडीए सहयोगी आरएलडी (1) और निषाद पार्टी (1) के पास थीं। लेकिन भाजपा के लिए समस्या उन 5 सीटों को लेकर है, जिन पर पहले सपा का कब्जा था। योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव प्रचार की कमान खुद संभाली है।
उन्हें पता है कि विपक्षी दल ही नहीं, उनकी पार्टी के कुछ तत्व भी उन पर निशाना साध रहे हैं। एनडीए की 5 सीटों को बरकरार रखना भर ही योगी के दबदबे को बनाए रखने के लिए शायद काफी न हो। उन्हें सपा की 5 सीटों में भी सेंध लगाना होगी, जो कि उनके लिए एक चुनौती हैं।
ऐसे में विपक्ष को इन उपचुनावों में अपने लिए एक और अवसर की गंध आ रही है। एनडीए और विपक्षी गठबंधन दोनों ही मानते हैं कि 2027 में होने वाला अगला यूपी विधानसभा चुनाव 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय राजनीति को बदल सकता है।
आंध्र प्रदेश और बिहार को बजट में जैसी सौगातें मिली हैं, उनके मद्देनजर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के अब कोई आसार नहीं हैं। विपक्ष जानता है कि इसी के साथ मध्यावधि लोकसभा चुनाव की संभावनाएं भी धूमिल हो चुकी हैं।
ऐसे में उसके लिए सबसे अच्छी रणनीति इसी साल होने वाले प्रमुख राज्य विधानसभा चुनावों (महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड) को जीतकर 2029 से पहले केंद्र को कमजोर करना है। अगर विपक्ष महाराष्ट्र और हरियाणा में जीतता है, तो भारत के चार धनी राज्यों (कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र और हरियाणा) पर उसका नियंत्रण हो जाएगा। इसके अलावा तमिलनाडु में द्रमुक के साथ गठबंधन और कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष भी पुनरुद्धार की राह पर है।
इस सबके बावजूद कांग्रेस जानती है कि मुख्य किला तो यूपी ही है। हालांकि यूपी में चुनाव 2027 तक नहीं होंगे, लेकिन 10 सीटों पर उपचुनाव एक प्रारंभिक लिटमस टेस्ट साबित हो सकते हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी से उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में शामिल नहीं थे।
वे नए चेहरे चाहते थे, लेकिन हाईकमान ने उनकी बात खारिज कर दी। यूपी में कम से कम 25 सीटों पर खराब उम्मीदवारों के चयन के कारण भाजपा को हार मिली है। अंदरूनी असंतोष ने हालात और बिगाड़ दिए। राष्ट्रीय नेता के तौर पर योगी की बढ़ती लोकप्रियता को लखनऊ और दिल्ली दोनों जगहों पर पार्टी के कुछ लोगों ने खतरे की घंटी के तौर पर देखा था।
लेकिन अब राज्य में डबल इंजन को फिर से शुरू करने की कोशिशें चल रही हैं। मोदी ने योगी के नेतृत्व के लिए अपना समर्थन दोहराया है और यूपी इकाई में असंतुष्टों को निर्देश दे दिया गया है कि वे मतभेदों को अपने तक ही रखें। अयोध्या में हार के अलावा भाजपा ने लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के वाराणसी क्षेत्र में भी खराब प्रदर्शन किया था। उसने पश्चिमी यूपी और वाराणसी क्षेत्र की 28 में से सिर्फ 8 ही सीटें जीती हैं।
यूपी के अलावा, भाजपा आलाकमान से महाराष्ट्र में भी भूलें हुई हैं। अगर भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के बीच गठबंधन की सीटों का बंटवारा जल्दी से तय नहीं होता है तो नवंबर में वहां पर उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री के तौर पर वापसी हो सकती है।
अजित पवार के बागी विधायकों को महायुति गठबंधन में शामिल करना एक रणनीतिक गलती थी। इससे वर्षों तक एनसीपी की राजनीति से लोहा लेने वाले भाजपा के कैडर का मनोबल टूटा है। शरद पवार के प्रति सहानुभूति बढ़ी है। उद्धव खेमे के कई विधायक महा विकास अघाड़ी के प्रति वफादार बने हुए हैं।
कांग्रेस समेत तीनों गठबंधन सहयोगियों ने अक्टूबर 2024 में महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर पहले ही बातचीत शुरू कर दी है। जबकि शिंदे-फडणवीस-अजित पवार समूह अभी भी सीटों के बंटवारे को लेकर उलझा हुआ है और कई असंतुष्ट बागी एनसीपी नेता शरद पवार खेमे में वापसी की राह तलाश रहे हैं।
शीर्ष नेतृत्व की रणनीतिक गलतियों के कारण ही 2021 में पश्चिम बंगाल और 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष कर्नाटक चुनाव रणनीति के प्रभारी थे, जिनमें काफी खामियां थीं। लेकिन संतोष पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का भरोसा बना हुआ है।
पिछले हफ्ते योगी संतोष से मिलने दिल्ली आए थे, ताकि यूपी की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव और राज्य के संगठन में असंतोष को शांत करने पर चर्चा की जा सके। 2029 में दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरने वाला है। अगर राज्य के नेतृत्व को उम्मीदवार चयन पर आलाकमान द्वारा लिए गए खराब फैसलों के लिए बलि का बकरा बनाया जाता है, तो भाजपा के लिए यह रास्ता मुश्किल हो सकता है।
2029 में दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरेगा…
एनडीए और विपक्षी गठबंधन दोनों ही मानते हैं कि 2027 में होने वाला यूपी विधानसभा चुनाव 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय राजनीति को बदल सकता है। ऐसे में यूपी में 10 सीटों के उपचुनावों पर सबकी नजर लगी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)