50 फीसदी भारतीयों को नसीब नहीं हो रहा ‘अच्छा खाना’ !

 50 फीसदी भारतीयों को नसीब नहीं हो रहा ‘अच्छा खाना’, जानें पौष्टिक आहार में कमी वजह …
सतत विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 वैश्विक लक्ष्यों का एक समूह है, जिसे 2015 में अपनाया गया था. इनका उद्देश्य 2030 तक दुनिया भर में सतत विकास को बढ़ावा देना है.

2024 में सतत विकास लक्ष्य को 10 साल हो चुके हैं. इस बीच हाल ही में ‘खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ पर विश्व रिपोर्ट 2024 सामने आई है. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया अपने तय किए गए सीमा से लगभग छह साल दूर है. यानी दुनिया को अगर “शून्य भूख” का लक्ष्य पूरा करना है तो उसे 6 साल और इंतजार करना होगा.  

पिछले सप्ताह पांच अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 10 सालों में यानी साल 2015 से अब तक दुनिया के सभी देशों में खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ आहार तक आर्थिक पहुंच में सुधार में प्रगति मामूली रही है. इसी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ आबादी के अनुपात में भारी गिरावट आई है. इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 50 फीसदी लोगों को अब तक सही पोषण वाला खाना तक नहीं मिल पाता. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि सतत विकास लक्ष्य क्या है और भारत के  लगभग 50 फीसदी आबादी को क्यों नहीं मिल पाता है ‘ढंग का खाना’

सबसे पहले समझते हैं क्या कहती है रिपोर्ट 

हाल संयुक्त राष्ट्र की विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और खाद्य और कृषि संगठन (FAO) जैसी संस्थान ने भारत में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की स्थिति पर चिंता जताई है. FAO की “द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड” रिपोर्ट 2023 में बताया गया है कि लगभग 50% भारतीयों को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है.

वहीं संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में कुल 74.1 फीसदी भारतीय 2021 में जरूरी प्रोटीन वाला खाद्य पदार्थ लेने में असमर्थ थे. वहीं खाद्य सुरक्षा और पोषण रिपोर्ट के 2023 क्षेत्रीय अवलोकन के अनुसार, भारत में साल 2020 में 76.2 फीसदी भारतीयों के स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होने की तुलना में यह थोड़ा सुधार है.

क्या है ये जीरो हंगर 

जीरो हंगर (Zero Hunger) सतत विकास लक्ष्य (SDG) 2 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका उद्देश्य साल 2030 तक दुनियाभर से भूख का अंत करना है, कुपोषण को समाप्त करना, सतत खाद्य उत्पादन प्रणाली और लचीली कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करना, छोटे किसानों का समर्थन और खाद्य विविधता और पारंपरिक ज्ञान शामिल है.

भारतीयों को क्यों नहीं मिल पा रहा ढंग का खाना 

गरीबी और आय असमानता: भारत में गरीबी का स्तर अभी भी उच्च है, और बड़ी संख्या में लोग निम्न आय वर्ग में आते हैं. ये लोग पर्याप्त पोषण युक्त भोजन खरीदने में असमर्थ होते हैं.

खाद्य वितरण प्रणाली में खामियां: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार, अनियमितताएं और वितरण में कमी होने के कारण जरूरतमंद लोगों तक भोजन नहीं पहुंच पाता है.

कृषि में समस्याएं: भारतीय कृषि प्रणाली में कई समस्याएं हैं जैसे कि जलवायु परिवर्तन, अपर्याप्त सिंचाई, उर्वरक और कीटनाशकों का असंतुलित उपयोग, जिससे फसल उत्पादन में कमी आती है.

बढ़ती जनसंख्या: भारत की बढ़ती जनसंख्या भी एक बड़ी चुनौती है. खाद्य उत्पादन और वितरण प्रणाली पर बढ़ते दबाव के कारण सबको पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना कठिन हो जाता है.

कुपोषण और अशिक्षा: कई लोग पोषण के महत्व के बारे में जागरूक नहीं होते हैं और उचित आहार का पालन नहीं करते हैं। कुपोषण की स्थिति में पर्याप्त पोषण युक्त भोजन प्राप्त करना और भी कठिन हो जाता है.

बेरोजगारी: बेरोजगारी और अधूरी रोजगार स्थिति के कारण कई परिवारों के पास नियमित आय का स्रोत नहीं होता है, जिससे वे पर्याप्त और पौष्टिक भोजन नहीं खरीद पाते हैं.

प्राकृतिक आपदाएं: बाढ़, सूखा, और अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती हैं. फसलों की बर्बादी और वितरण में रुकावटें आती हैं. गांवों और दूरदराज के इलाकों में उचित सड़क और परिवहन सुविधाओं की कमी होती है, जिससे खाद्य आपूर्ति में बाधा आती है. 

कैसे हो सकता है इस समस्या का समाधान 

इस सवाल के जवाब में डायटीशियन पल्लवी यादव ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि भारतीयों को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारत की सरकार को कई मोर्चों पर सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है. सबसे पहले तो केंद्र सरकार को देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार करने की जरूरत है. इस प्रणाली में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को कम करने और सही लाभार्थियों तक अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाना बेहद जरूरी है.

डायटीशियन पल्लवी आगे कहती हैं कि इसके अलावा केंद्र सरकार को ऐसी योजनाएं लेकर आनी चाहिए जिसकी मदद से किसानों को उर्वरक, कीटनाशक, बीज, और सिंचाई सुविधाओं की उचित आपूर्ति कराई जा सके. इसके अलावा खेती में आधुनिक तकनीकों और तरीकों का इस्तेमाल बढ़ाई जानी चाहिए और फसलों के नुकसान से बचाव के लिए प्रभावी फसल बीमा योजनाएं लागू करना भी सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिये. 

उन्होंने आगे कहा कि एक चीज जो सबसे जरूरी है वो है लोगों को स्वस्थ और संतुलित आहार के महत्व के बारे में जागरूक करना. आमतौर पर लोगों को लगता है कि उन्होंने चावल-दाल या रोटी खा ली और उनका पेट भर गया उतना ही काफी है. लेकिन, ऐसा नहीं है. लोगों में इस बात की जागरूकता लानी बेहद जरूरी है कि प्रोटीन के लिए अलग से बादाम, पनीर और चिकन जैसी चीजें खाई जाती है. 

क्या है सतत विकास लक्ष्य 

सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals – SDGs) संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 वैश्विक लक्ष्यों का एक समूह है, जिसे 2015 में अपनाया गया था. इनका उद्देश्य 2030 तक दुनिया भर में सतत विकास को बढ़ावा देना है.

सतत विकास लक्ष्य यानी एसडीजी के 17 लक्ष्यों में दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण भुखमरी की समाप्ति है. यह भुखमरी की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने और बेहतर पोषण एवं सतत कृषि को बढ़ावा देने पर फोकस करता है. एसडीजी-2 खाद्य सुरक्षा, पोषण, ग्रामीण परिवर्तन और टिकाऊ कृषि के बीच जटिल अंतर्संबंधों पर प्रकाश डालता है.

कैसे मापी जाती है एसडीजी की प्रगति 

सतत विकास लक्ष्य में प्रगति हुई है या नहीं इसे मापने के लिए 8 टारगेट और 14 संकेतक हैं. 8 टारगेट में से 5 को टारगेट के रूप में निर्धारित किया गया है जबकि 3 को उन टारगेट को हासिल करने के साधन में तय किया गया है.

  • भूख को खत्म करना और भोजन तक पहुंच में सुधार करना
  • कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त करना
  • कृषि उत्पादकता
  • टिकाऊ खाद्य उत्पादन प्रणाली और लचीली कृषि पद्धतियां
  • बीज, खेती वाले पौधों और खेती और पालतू पशुओं की आनुवंशिक विविधता; निवेश, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी
  • व्यापार प्रतिबंधों का समाधान निकालना
  • विश्व कृषि बाजारों में कमियों का समाधान निकालना
  • खाद्य वस्तु बाजारों और उनके डेरिवेटिव में खामियों को दूर करना.

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