सभी मरीजों के लिए एक तरह का इलाज अब कारगर नहीं ​​​​​​​ !

सभी मरीजों के लिए एक तरह का इलाज अब कारगर नहीं ​​​​​​​

एक ऐसी स्वास्थ्य-सेवा प्रणाली की कल्पना करें, जो जेनेटिक जानकारी, उन्नत इमेजिंग तकनीक और एआई की मदद से बीमारी के जोखिमों का अनुमान लगाती हो और अलग-अलग रोगियों के लिए उपचार मुहैया कराती हो। यह कल्पना की उड़ान नहीं है। यह लोगों के स्वास्थ्य में बदलाव लाने वाली हकीकत की एक झलक भर है।

भारत में हेल्थ केयर का क्षेत्र अब बीमारियां होने के बाद उनका इलाज करने से हटकर उनकी शुरुआत से पहले ही उनकी रोकथाम की ओर बढ़ रहा है। किसी व्यक्ति को हो सकने वाली बीमारियों का पूर्वानुमान लगाकर और उसके विशिष्ट जोखिमों के आधार पर उसका उपचार किया जा सकता है।

स्वास्थ्य के बारे में हमारी सोच में यह बदलाव मौजूदा हालात के मद्देनजर बहुत महत्वपूर्ण है। आज हम हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और क्रोनिक श्वसन-सम्बंधी बीमारियों के रूप में वैश्विक चुनौती का सामना कर रहे हैं।

ये रोग हर साल 4.1 करोड़ लोगों की जान लेते हैं, जो दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों का 74% है। इनका प्रकोप विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में है, जहां 77% मौतें इस तरह की बीमारियों से होती हैं।

भारत में तो यह चुनौती विशेष रूप से कठिन है। आज भारत में 10.1 करोड़ से अधिक लोगों को डायबिटीज है, 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक अवस्था में हैं; 31.5 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, जबकि 25.4 करोड़ लोग मोटापे की श्रेणी में आते हैं।

इसके अलावा, 21.3 करोड़ लोग हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और 18.5 करोड़ लोगों में बैड कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर है। साथ ही, भारत को दुनिया में हृदय रोगों की राजधानी के रूप में जाना जाता है।

यहां हृदय सम्बंधी रोगों के कारण एक-चौथाई लोगों की मृत्यु होती है- जो किसी भी अन्य बीमारी से अधिक है। इनमें भी अधिक संख्या 50 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों की है। भारत में हृदय रोग सम्बंधी अकाल मृत्यु की आयु पश्चिमी देशों की तुलना में एक दशक कम है, जिसका मुख्य कारण हमारे जीन हैं।

यह न केवल जीवन की अपूरणीय क्षति है, बल्कि इससे परिवारों और समुदायों पर बड़ा आर्थिक और भावनात्मक बोझ भी पड़ता है। ऐसे खतरे के खिलाफ पहले से कार्रवाई करना बहुत जरूरी है, जो किसी को भी नहीं बख्शता। ऐसे में प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन का महत्व और बढ़ जाता है।

प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन पांच ‘सही’ चीजों के सिद्धांत पर आधारित हैं : सही मरीज को सही समय पर, सही खुराक में और सही तरीके से सही उपचार मिलना। यह रणनीति पारंपरिक चिकित्सा से बहुत अलग है, और सभी मरीजों के लिए एक ही तरह के समाधान से कहीं आगे जाती है।

यह प्रत्येक व्यक्ति के जेनेटिक, पर्यावरणीय और जीवनशैली सम्बंधी फैक्टर्स में गहराई से जाती है और ऐसी स्वास्थ्य-सेवा प्रणाली की ओर बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है, जो प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्टता को पहचानती है।

हृदय रोग के पारंपरिक उपचारों को देखें : रक्तचाप, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल की निगरानी करना और एक स्वस्थ जीवनशैली की हिदायत देना। यकीनन, ये उपाय कारगर साबित हुए हैं। लेकिन वे खतरे की स्थिति में आ चुके व्यक्तियों- खासकर वे जिन्हें अभी तक लक्षण अनुभव नहीं हुए हैं- के साथ तब तक तालमेल नहीं बिठा पाते, जब तक कि बहुत देर न हो जाए।

परम्परागत रूप से, हृदय रोग के लिए जोखिम-मूल्यांकन करते समय व्यक्तियों को ‘उच्च’ या ‘निम्न’ जोखिम श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। ‘हाई रिस्क’ वाले 100 लोगों में से 20 को हृदय सम्बंधी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। ‘लो रिस्क’ वाले समूह में केवल पांच को ही दिल का दौरा पड़ सकता है।

लेकिन चूंकि इस समूह को कम जोखिम वाला माने जाने के कारण मार्गदर्शन नहीं मिलता, इसलिए उन पांच के अप्रत्याशित स्थिति का शिकार होने का अंदेशा अधिक है। प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन वाली पद्धति इस रवैए में सुधार करती है और इसके लिए डेटा और एनालिटिक्स की मदद लेती है।

हालांकि अब डिजिटलीकरण की दिशा में काम बढ़ रहा है, लेकिन हेल्थकेयर सम्बंधी डेटा को पिछले कई सालों से बड़े पैमाने पर एकत्र किया जा रहा था। मशीन लर्निंग जैसी उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकों के साथ बड़े डेटा का संयोजन स्वास्थ्य-सेवा को बदल रहा है।

हृदय रोग सहित विभिन्न स्वास्थ्य-परिणामों के लिए व्यक्तिगत जोखिम को मापने के लिए प्रिडिक्टिव मेडिसिन इन उपकरणों का लाभ उठा रही है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम बड़े पैमाने पर डेटा का विश्लेषण करते हैं और ईसीजी की असामान्यताओं से लेकर जीवनशैली सम्बंधी फैक्टर्स तक पैटर्न की पहचान करते हैं। इससे डॉक्टरों को सटीक इलाज करने में मदद मिलती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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