उत्तराखंड: निगम कर्मचारियों को मुफ्त बिजली देने पर हाईकोर्ट ने UPCL को लगाई फटकार
नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने राज्य के तीनों निगमों के कर्मचारियों को मुफ्त बिजली मामले में यूपीसीएल (उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड) को कड़ी फटकार लगाई है.
देहरादून स्थित आरटीआई क्लब ने यूपीसीएल, पिटकुल और यूजेवीएनएल के कर्मियों और अधिकारियों को दी जा रही मुफ्त बिजली मामले में याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा था कि यूपीसीएल की तरफ से कोई कार्रवाई नही की गई है.
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में हो रही लेट लतीफी पर यूपीपीसीएल को कड़ी फटकार लगाई. इस मामले में अगली सुनवाई 10 फरवरी को होगी.
वजहें: उत्तराखड हाईकोर्ट ने प्रदेश के तीनो निगमों में तैनात कर्मचारियों को सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध कराई जा रही है. आरटीआई क्लब ने इस संबंध में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि एक तरफ विभाग अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को बेहद सस्ती दरों पर बिजली मुहैय्या करा रहा है.
वहीं दूसरी तरफ आम लोगों के लिए बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी की जा रही है. हाईकोर्ट ने यूपीसीएल के एमडी से पूछा है कि अभी तक कितने कर्मचारियों के वहां मीटर लग चुके हैं. कर्मचारियों को साल में कितनी यूनिट बिजली और किस दर से दी जाती है.
हाईकोर्ट ने यूपीसीएल के एमडी से ये भी पूछा कि साल 2018-19 में कर्मचारियों से कितना राजस्व वसूला गया और निगम को कितना घाटा हुआ. सुनवाई के दौरान कारपोरेशन की तरफ से बताया गया कि ‘बोर्ड ऑफ मीटिंग’ में फोर्थ क्लास कर्मचारियों को आठ हजार यूनिट, थर्ड क्लास कर्मचारियों को दस हजार सेकेंड और सेकेंड तथा फर्स्ट क्लास कर्मचारियों को ग्यारह और बारह हजार यूनिट देने का प्रस्ताव रखा है.
यदि कर्मचारी इससे अधिक बिजली खर्च करते हैं तो वे पचास प्रतिशत के हिसाब से भुगतान करेंगे. इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि देश के सभी न्यायधीशों को दस हजार यूनिट बिजली साल की दी जाती है और इससे अधिक खर्च करने पर उनसे प्रचलित बिजली दर के हिसाब से पैसा वसूला जाता है.
याचिकर्ता के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि हिमाचल प्रदेश में बिजली का ज्यादा उत्पादन नहीं होता है, फिर भी वहां बिजली की दर 1 रुपये प्रति यूनिट है. जबकि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश होते हुए भी आम जनता को साढ़े चार रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देता है.
हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को सौ से दो सौ यूनिट बिजली सब्सिडी में दी जाती है, जबकि उत्तराखंड में आठ हजार से बारह हजार यूनिट तक। हाईकोर्ट ने दो सप्ताह के अंदर यूपीसीएल के एमडी से जवाब पेश करने को कहा है.
अंदर की बात: दरअसल, इस मामले में हाईकोर्ट के का अंतिम फैसला आने से पहले ही कर्मचारी यूनियनों ने विरोध शुरू कर दिया है. कर्मचारियों का कहना है सस्ती दरों पर बिजली लेना उनका हक है.
विशेषज्ञों की राय: विशेषज्ञों की मानें तो राज्य बिजली विभाग घाटे में चल रहा है, दूसरी तरफ अधिकारी और कर्मचारी मुफ्त में बिजली लेकर मौज कर रहे हैं. जबकि आम आदमी के लिए बिजली की दरों में लगातार इजाफा किया जा रहा है.
आगे क्या: आरटीआई क्लब ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार विद्युत विभाग में तैनात अधिकारियों से 1 महीने का बिल मात्र 400 से 500 रुपए एवं अन्य कर्मचारियों से 100 रुपए ले रही है. जबकि इनका बिल लाखो में आता है, जिसका बोझ सीधे जनता पर पड़ रहा है.
वहीं याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रदेश में कई अधिकारियों के घर बिजली के मीटर तक नहीं लगे हैं. जो लगे भी हैं वे खराब स्थिति में हैं. उदारहण के तौर पर जनरल मैनेजर का 25 माह का बिजली का बिल 4 लाख 20 हजार आया था और उसके बिजली के मीटर की रीडिंग 2005 से 2016 तक नही ली गई.
वहीं कारपोरेशन ने वर्तमान कर्मचारियों के अलावा रिटायर व उनके आश्रितों को भी बिजली मुफ्त में दी है. जिसका सीधा भार आम जनता की जेब पर पड़ रहा है. याचिकाकर्ता का कहना है कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश घोषित है, लेकिन यहां हिमाचल से मंहगी बिजली है.
जबकि वहां बिजली का उत्पादन तक नहीं होता है. अब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यूपीसीएल अगर 2 हफ्ते में निर्णय नहीं लेगा तो उसे ही अंतिम निर्णय लेना होगा.